Sunday 28 April 2013

टेढ़ा है पर मेरा है


यह जिंदगी भी कितनी अजीब होती है खासतौर पर लड़कियों के लिए ,जन्म देने वाले माता पिता ,पालपोस और पढ़ा लिखा कर  अपनी बेटी को अपने ही हाथों किसी पराये पुरुष के हाथ सौंप कर निश्चिन्त हो जाते है ,बस उनका कर्तव्य  पूरा हुआ ,बेटी अपने घर गई गंगा नहाए |मीनू ने भी अपने माँ बाप का घर छोड़ कर अपने ससुराल में जब कदम रखा तो उसका स्वागत करने उसकी सासू माँ दरवाज़े पर खड़ी थी हाथ में आरती की थाली लिए ,उसकी आरती उतारी गई ,अपने  पाँव से चावल से भरे लोटे को उल्टाने  के बाद मीनू ने आलता भरे पावों से घर के दरवाज़े के अंदर कदम रखा ,घर के भीतर कदम रखते ही उसने दरवाज़े की तरफ देखा ,''अरे यह क्या घर का मुख्य  दरवाज़ा टेढ़ा ''उसे क्या पता था कि उसका अब कितने टेढ़े लोगों से पाला पड़ने वाला है ,ख़ैर जब शादी के बाद की सारी रस्मे पूरी हो गई तो प्रेम उसे घुमाने मनाली की सुंदर वादियों में ले गया ,अल्हड़ जवान   लडकी की भाँती कल कल करती ब्यास नदी ने उसका मन मोह लिया और उपर से शहद से भी मीठा प्रेम का प्रेम रस ,ऐसा लगने लगा जैसे अनान्यास ही सारी खुशियाँ उसकी झोली में आन पड़ी हो ,परन्तु यह सब खुशियाँ कुछ ही दिनों की मेहमान थी ,ससुराल में पतिदेव ,सास ससुर के साथ साथ बड़े भैया , भाभी ,नन्द ,छोटा  देवर ,सबको खुश रख पाना मीनू के लिए एक चुनौती भरा कार्य था ,एक जन खुश होता तो दूसरा नाराज़ ,सब की सोच अलग ,खानपान अलग,उसे कभी किसी के ताने सुनने पड़ते तो कभी किसी की डांट फटकार ,लेकिन एक बात तो थी उसके पति प्रेम सदा एक मजबूत  ढाल बन कर उसके आगे खड़े हो जाते,और बंद हो जाती सबकी बोलती ,किन्तु मीनू के लिए इस सबसे भी कठिन था अपने प्यारे पतिदेव प्रेम को समझना ,उसे पता ही नही चल पाता कि उसकी किस बात से उसके पिया रूठ जाते और उन्हें मनाना तो और भी मुश्किल हो जाता ।

 दिन महीने साल गुजर गए अब मीनू इस घर के हर सदस्य को अच्छी तरह जान चुकी थी ,बहुत मुश्किलों से गुजरना पड़ा था उसे अपने ससुराल में सबके साथ सामंजस्य स्थापित करने में ,लेकिन अपने पतिदेव को समझ पाना उफ़ माँ अभी तक उसके लिए टेढ़ी खीर थी , भगवान् ही जाने ,सीधे चलते चलते कब किस दिशा करवट मोड़ ले ,मीनू इसे कभी समझ नही पाई ,चित भी अपनी और पट भी अपनी ,खुद ही अपना सामान रख कर भूल जाना तो उनकी पुरानी आदत है ,चलो आदत है तो मान लो ,लेकिन नहीं प्रेम जैसा सम्पूर्ण व्यक्तित्व वाला इंसान गलती करे ,ऐसा तो कभी हो ही नही सकता ,पूरी दुनिया में कुछ भी घटित हो जाए उस सबके लिए ज़िम्मेदार है तो सिर्फ और सिर्फ मीनू ,लेकिन दुनिया में जो  सबसे प्यारी है तो वह भी तो सिर्फ और सिर्फ मीनू ,अपने पतिदेव के ऐसे व्यवहार के कारण न जाने कितनी राते रो रो कर गुजारी थी मीनू ने ,न जाने क्यों प्रेम मीनू की हर बात को उल्टा क्यों ले लेता ,वह कुछ भी कहती तो प्रेम ठीक  उसके विपरीत बात कहता ,कहीं से भी वह उसके साथ तालमेल नहीं बिठा पाती ,हार कर चुप हो जाती ,शायद यह उसका अहम था यां फिर कुछ और  , परन्तु जैसा जिसका स्वभाव होता है उसे शायद ही कोई बदल पाता हो |

प्रेम दिल का बहुत अच्छा इंसान होते हुए भी पता नही क्यों मीनू के जज़्बात को नही समझ पाया ,वह मीनू से बहुत प्यार करता था लेकिन अपने ही तरीके से |काश प्रेम मीनू को समझ पाता,उसके मन में उमड़ते प्रेम के प्रति बह रहे प्यार के सैलाब को देख पाता,यह सब सोचते सोचते मीनू की आँखे फिर से भर आई |आज पच्चीस साल हो गए उनकी शादी को, वैसा ही प्रेम और वैसा ही उसका स्वभाव ,अबतो घर में नई बहू भी आ गई जिसने भी आते ही प्रेम से कहा ,''पापा इस घर के टेढ़े दरवाज़े को बदलवा दो ,यह देखने में अच्छा नही लगता ,''|चौंक पड़ी मीनू ,हंस कर कहा ,''बेटा,कोई बात नही ,यह टेढ़ा है पर हमारा अपना है ''

रेखा जोशी 

Thursday 25 April 2013

झूठ का बोल बाला

माँ के संस्कार
सत्य होता विजयी
झूठ की हार
......................
जगत यह
सब है विपरीत
जीता असत्य
....................
पाप फलता
पुण्य मांगता भीख
शोषण यहाँ
....................
 रोज़ मरता
ईमानदार यहाँ
झूठा फलता
...................
रो रहा सत्य
झूठ का बोल बाला
खोखली शिक्षा

सिर्फ इक आह


दिल में यह हसरत थी कि कांधे पे उनके

रख के मै सर, ढेर सी बाते करूँ, बाते
जिसे सुन कर वह गायें, गुनगुनायें
बाते जिसे सुन वह हसें, खिलखिलायें
बाते जिसे सुन, प्यार से मुझे सह्लायें
तभी,  उन्होंने कहना शुरू किया और
मै मदहोश सी,  उन्हें सुनती रही
वह कहते रहे, कहते रहे, और मै
सुनती रही, सुनती रही,  सुनती रही
दिन,  महीने,  साल,  गुजरते गए
अचानक मेरी नींद खुली और मेरी
वह ढेर सी बातें, शूल सी चुभने लगी
उमड़ उमड़ कर,  लब पर मचलने लगी
समय ने, दफना दिया जिन्हें  सीने में ही
हूक सी उठती अब,  इक कसक औ तडप भी
लाख कोशिश की,  होंठो ने भी खुलने की
जुबाँ तक, वो ढ़ेर सी बाते आते आते थम गयी
होंठ हिले, लब खुले ,लकिन मुहँ से निकली
सिर्फ इक आह, हाँ, सिर्फ इक आह

Tuesday 23 April 2013

नवगीत


नवगीत
मत तोड़ फूल को शाख से
झूमते झूलते संग हवा के
हिलोरें ले रही शाखाओं पर 
सज रहें ये खिले खिले पेड़
बहने दो संगीतमय लहर
यही तो गीत है जीवन का
....................................
 रहने दो फूल को शाख पर
वहीँ खिलने और झड़ने दो
बिखरने दो इसे यूं ही यहाँ
आकुल है भूमि चूमने इसे
महकने दो आँचल धरा का
सृजन होगा नवगीत यहाँ


Monday 22 April 2013

पृथ्वी दिवस पर हाइकु



सुंदर धरा
लहरा रहे पौधे
पेड़ लगाओ
...........
प्रदुष्ण हटा
धरती को बचाओ
स्वस्थ जीवन

Saturday 20 April 2013

हे राम आओ संहार रावण का करने

पांच साल की मासूम बच्ची दरिंदगी की शिकार ,शर्मसार हादसा

सदियों पहले रावण को मारा राम ने
वह तो जिंदा हो रहा बार बार मर के
कभी निर्भया  पकड़ता कभी गुड़िया
रावण ने डाले है जगह जगह पर डेरे
रूप अनेक बदल  शोषण रहा है कर
फेंकता तेज़ाब कभी इज्ज़त रहा हर
चीख रही सीता आंसू  नैनो में भर के
हे राम आओ संहार रावण का करने


Friday 19 April 2013

आगमन नव भोर का


मेरी नन्ही सी प्यारी  गुड़िया
भोली सूरत मासूम सा चेहरा
अपनी आँखों में चमक लिए
निहारती रहती है चेहरा मेरा
जिज्ञासा से भरे उसके नयन
 खोजते रहते है न जाने क्या
मोह लेती है वो निश्छल हसी
जब मुस्कुराती वो नन्ही परी
नन्ही नन्ही उँगलियों से जब
छूती है प्यार से चेहरे को मेरे
भर देती है वो तन मन में मेरे
इक नई उमंग इक नई तरंग
कभी खींच लेती आँचल मेरा
कभी सो जाती वो काँधे पे मेरे
इस जिंदगी की शाम में उसने
आगमन किया नव भोर का

Wednesday 17 April 2013

माँ कालरात्रि

सप्तम शक्ति
गर्दभ पे सवार
माँ कालरात्रि
.....................
ज्वाला अग्नि की
तीन नेत्र ब्रह्मांड
दुर्गुण भस्म
...................
करे कल्याण
सब दुःख हरनी
अम्बे भवानी
....................
रंग है काला
गले विद्धुत माला
नयन ज्वाला
....................
मिटे अँधेरा
फैल जाता प्रकाश
है शुभंकरी


Tuesday 16 April 2013

इंतज़ार

चाँद से आज मै पूछती  हूँ सवाल ?
विरहन को तड़पाते  हो तुम  जहां ,
प्रिय  मिलन को रिझाते क्यों  वहां?
चांदनी से मिले जहां ठंडक किसी को ,
जलाती  वही ठंडक  क्यों विरहन को ?
प्रिय मिलन की आस में बैठी चकोरी ,
निशब्द निहारे एकटक सी ओर तेरी ,
कैसा फैलाया है तूने यह माया जाल 
चाँद से आज मै पूछती हूँ सवाल ?

Sunday 14 April 2013

गरिमा रिश्तों की

हर रिश्ते की अपनी ही एक गरिमा होती  है ,ऐसे ही एक प्यारा रिश्ता होता है नन्द और भाभी का,बात रक्षाबंधन त्यौहार की है जब मेरी नन्द अपने प्यारे भैया को यानी कि मेरे पति को राखी बाँधने हमारे घर आई ।बहुत ही खुशनुमा माहौल था और बहुत  ही स्नेह से मेरी नन्द ने अपने भैया को तिलक लगा कर राखी बाँधी और ढेरों आशीर्वाद भी दिए ,मेरे पति ने भी उसे सुंदर उपहार दिए ।काफी दिनों बाद दोनों भाई बहन मिले थे इसलिए वह अपने बचपन और घर परिवार की बाते याद करने लगे ।मै भी रसोईघर  में जा कर दोपहर के भोजन की तैयारी में जुट गई ,तभी मुझे दोनों भाई बहन की जोर जोर से बोलने की आवाज़ सुनाई पड़ी ,मै भाग कर वहां पहुंची तो देखा कि मेरी ननद अपने सारे उपहार छोड़ कर जा रही थी और मेरे पति भी बहुत गुस्से में अपनी नाराज़गी  जता रहे थे ,मैने  अपनी नन्द को मनाने और रोकने की भी बहुत कोशिश की लेकिन वह दरवाज़े से बाहर निकल गई ।पूरे घर का वातावरण गमगीन हो गया था ,मुझे यह सब देख कर बहुत ही दुख हो रहा था कि राखी वाले दिन उनकी बहन रूठ कर बिना कुछ खाये पिये हमारे घर से जा रही थी लेकिन मै ठहरी भाभी , नाज़ुक रिश्ता था मेरा और मेरी ननद के बीच।मैने अपने पति की तरफ देखा, उनकी आँखों में पश्चाताप के आंसू साफ़ झलक रहे थे ,मैने झट से देरी न करते हुए अपनी ननद का हाथ पकड़ लिया ,इतने में मेरे पति भी वहां आ गए और उन्होंने अपनी प्यारी बहना को गले लगा कर क्षमा मांगी ,दोनों की आँखों में आंसू देख मेरी आँखे भी नम हो गई ।मैने जल्दी से  खाने की मेज़ पर उन्हें बिठा कर भोजन परोसा और हम सब ने मिल कर खाना खाया ।सारे गिले शिकवे दूर हो गए और नाराज़गी से भाई बहन के रिश्ते में पड़ी सिलवटें उनकी आँखों से बहते हुए आंसुओं से दूर हो गई थी ।हमारे यहाँ से जाते हुए मेरी ननद ने मुझ से गले मिल कर इस प्यार के रिश्ते की गरिमा बनाये रखने पर अपना आभार प्रकट किया |

Saturday 13 April 2013

मचलती लहरों का संगीत ,



लहर पर लहर आती रही,
तुम्हारी हसीन यादें लिए।
देती रही ये दर्द दिल को ,
मगर तुम्ही न आये वहां  ।
कुछ तो बोलो हमदम मेरे,
तुम न जाने कहाँ खो गए ।
चुपके से लिख जाते तुम ,
कोई गजल ख़्वाबों में मेरे ।
मचलती लहरों का संगीत ,
समुंद्र की  तरंगों पर गीत ।
इन तन्हाइयों में चुपके से ,
चांदनी रात समुंद्र किनारे ।
मुस्कराती हुई वह झलक  ,
काफी थी दीदारे यार की   ।
मेरे महबूब थी क्या खता  ,
जो रुसवा हुई चाहतें मेरी  ।
साथ होते जो तुम यादों में ,
आज कुछ और बात होती ।

Friday 12 April 2013

वंदना


हे ईश
झुकाये अपने शीश
तुझको रहा पुकार
आज तेरा परिवार
............................
हिन्दू ने राम कहा
तो ईसाई ने मसीहा
मुसलमां का मुहम्मद
पर रब तो तू सब का
...............................
मानवता की काया पर
साम्प्रदायिकता की छाया
अपने में लेगी लीन कर
हे प्रभु यह कैसी माया
................................
बुद्धिजीवियों की बुद्धि को
भक्तजनों की भक्ति को
दो अपने प्रेम की दीक्षा
हे राम मत लो यह परीक्षा
................................
हे सर्वव्यापक
जन जन में बसने वाले
बना दो अमृत की धारा
विष जो हम पीने है वाले

Thursday 11 April 2013

प्रीत की डोरी


प्रीत की डोरी
तुम संग संग हो
सजना मेरे
.....................
तन्हाई मेरी
अधूरे तुम बिन
आंसू बहाती
....................
आँखें है बंद
आस पास हो तुम
सपने तेरे
..................
प्रेम दीवानी
मीरा जैसी पगली
पुकारे कान्हा
...................
प्रीत की डोरी
तुम संग संग हो
सजना मेरे


Sunday 7 April 2013

मै बांसुरी बन जाऊं प्रियतम

मै बांसुरी बन जाऊं  प्रियतम
और फिर इसे तुम अधर धरो
.............................................
.धुन मधुर बांसुरी की सुन मै
 पाऊं कान्हा को राधिका बन
..........................................
रोम रोम यह कम्पित हो जाए
तन मन में कुछ ऐसा भर दो
............................................
प्रेम नीर भर आये नयनों में
शांत करे जो ज्वाला अंतर की
..........................................
फैले कण कण में उजियारा
और हर ले मन का अँधियारा
.........................................
मै बांसुरी बन जाऊं  प्रियतम
और फिर इसे तुम अधर धरो

प्रभु वंदना


सुन कर अब पुकार मेरी 
तुम जल्दी से आ जाओ। 
कहाँ छुपे हो ओ मेरे प्रभु ,
दरस अपना दिखा जाओ॥ 
..............................
पार लगा दीजो नैया मेरी,
डगमगा रही बीच मझधार। 
सहारा  अब तेरा ही पा कर,
मिले चैन मेरे इस मन को ॥ 
...............................
मुश्किल है राहें मेरी मगर ,
तुम हो भक्तों के रखवाले । 
हर पल रहते हो  साथ मेरे ,
विघ्नहर्ता विघ्न हरो सबके॥ 



Friday 5 April 2013

अनन्या

''ट्रिग ट्रिन ''दरवाज़े की घंटी के बजते ही मीता ने खिड़की से  झाँक कर देखा तो वहां उसने अपनी ही पुरानी इक छात्रा अनन्या को दरवाज़े के बाहर खड़े पाया ,जल्दी से मीता  ने दरवाज़ा खोला तो सामने खड़ी वही मुधुर सी  मुस्कान ,खिला हुआ चेहरा और हाथों में मिठाई का डिब्बा लिए अनन्या खड़ी थी । ''नमस्ते मैम ''मीता को सामने देखते ही उसने कहा ,''पहचाना मुझे आपने।  ''हाँ हाँ ,अंदर आओ ,कहो कैसी हो ''मीता ने उसे अपने घर के अंदर सलीके से सजे ड्राइंग रूम में बैठने को कहा । अनन्या ने टेबल पर मिठाई के डिब्बे को रखा और बोली ,''मैम आपको एक खुशखबरी देने आई हूँ मुझे आर्मी में सैकिड लेफ्टीनेंट की नौकरी मिल गई है ,यह सब आपके आशीर्वाद का फल है ,मुझे इसी सप्ताह जाईन करना है सो रुकूँ गी नही ,फिर कभी फुर्सत से आऊं गी ,''यह कह कर उसने मीता के पाँव छुए और हाथ जोड़ कर उसने विदा ली । अनन्या के जाते ही मीता के मानस पटल पर भूली बिसरी तस्वीरे घूमने लगी, जब एक दिन वह बी एस सी अंतिम वर्ष की कक्षा को पढ़ा रही थी तब उस दिन अनन्या क्लास में देर से आई थी और मीता  ने उसे देर से कक्षा में आने पर डांट  दिया था और क्लास समाप्त होने पर उसे मिलने के लिए बुलाया था । पीरियड खत्म होते ही जब मीता स्टाफ रूम की ओर जा रही थी तो पीछे से अनन्या ने आवाज़ दी थी ,''मैम ,प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो ,''और उसकी आँखों से मोटे मोटे आंसू टपकने लगे । तब मीता उसे अपनी प्रयोगशाला में ले गई थी ,उसे पानी पिलाया और सांत्वना देते हुए उसके रोने की वजह पूछी ,कुछ देर चुप रही थी वो ,फिर उसने अपनी दर्द भरी दास्ताँ में उसे भी शरीक कर लिया था  उसकी कहानी सुनने के बाद मीता की आँखे भी नम  हो उठी थी ।उसके पिता  का साया उठने के बाद उसके सारे रिश्तेदारों ने अनन्या की माँ और उससे छोटे दो भाई बहनों से मुख मोड़ लिया था ,जब उसकी माँ ने नौकरी करनी चाही तो उस परिवार के सबसे बड़े बुज़ुर्ग उसके ताया  जी ने उसकी माँ के सारे सर्टिफिकेट्स फाड़ कर फेंक दिए,यह कह कर कि उनके परिवार की बहुएं नौकरी नही करती। हर रोज़ अपनी आँखों के सामने अपनी माँ  और अपने भाई बहन को कभी पैसे के लिए तो कभी खाने के लिए अपमानित होते देख अनन्या का खून खौल  उठता था ,न चाहते हुए भी कई बार वह अपने तथाकथित रिश्तेदारों को खरी खोटी भी सुना दिया करती थी और कभी अपमान के घूँट पी कर चुप हो जाती थी ।
पढने  में वह एक मेधावी छात्रा  थी  ,उसने पढाई के साथ साथ एक पार्ट टाईम नौकरी भी कर ली थी ,शाम को उसने कई छोटे बच्चों को  ट्यूशन भी देना शुरू कर दिया था और वह सदा अपने छोटे भाई ,बहन की जरूरते पूरी करने  की कोशिश में रहती थी ,कुछ पैसे बचा कर माँ की हथेली में भी रख दिया करती थी ,हां कभी कभी वह मीता के पास आ कर अपने दुःख अवश्य साझा कर लेती थी ,शायद उसे इसी से कुछ मनोबल मिलता हो । फाइनल परीक्षा के समाप्त होते ही मीता को पता चला कि उनका परिवार कहीं और शिफ्ट कर चुका है ।धीरे धीरे मीता भी उसको भूल गई थी ,लेकिन आज अचानक से उसके आने से मीता को उसकी सारी बाते उसके आंसू ,उसकी कड़ी मेहनत सब याद आगये और मीता  का सिर  गर्व से ऊंचा हो गया उस लडकी ने अपने नाम को सार्थक कर दिखाया अपने छोटे से परिवार के लिए आज वह अनपूर्णा देवी से कम नही थी