Thursday 27 February 2014

किनारा हमी से क्यों कर लिया है

बहुत प्यार तुमने सनम गर किया है 
वफ़ा ऐ मुहब्बत सनम  गर किया  है 
बयाँ कर दिया दर्द दिल का सनम अब 
किनारा  हमी  से  क्यों  कर  लिया  है 

रेखा जोशी 

Wednesday 26 February 2014

सभी मित्रों को महाशिवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें

ओम नमः शिवाय 

सभी मित्रों को महाशिवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें 

रच कर सुन्दरता को वह स्वयं इसमें खो गया है
फिर स्वयं को खोज रहा यह उसे क्या हो गया है
मन ही मन आनंद ले है सुन्दरता ही परम सत्य
सत्य ही शिव है शिव ही सुन्दर भान यह हो गया है

रेखा जोशी

यह बाँवरी अविरल अश्रुधारा

उठने
लगी आज
फिर
इक हलचल सी
सीने में मेरे
कसमसाने लगी
उफनती
भावनाएँ
बाँध रखा था
मैने जिन्हे
अब तक
नही रोक
पाई मै
आज उन्हें
तोड़ कर
सब बंधन 
उमड़ घुमड़ कर
बादल सी
बरसने लगी
फिर
नैनो से
यह बाँवरी
अविरल
अश्रुधारा

रेखा जोशी

Tuesday 25 February 2014

जिये जा रहे अब यूँही यादों के सहारे

मिले गम ही गम जाने के बाद तुम्हारे 
लेकिन प्यार को दिल में बसा के तुम्हारे 
छुपा लिया हर गम को मुस्कुराहट में अपनी 
जिये  जा  रहे अब  यूँही  यादों  के सहारे 

रेखा जोशी 

गरजत बरसत काले मेघा

रिम झिम रिम झिम 
गरजत बरसत
काले मेघा 

पिया गये  परदेस 
छोड़ अकेला सूना अंगना 
बिन पिया जले जिया 
गरजत बरसत  
काले मेघा 

इक बरसे बदरिया 
दूजे मेरे नैना 
बिजुरी चमके धड़के जिया 
घर आजा सावरियाँ 
गरजत बरसत  
काले मेघा

चारो ओऱ 
जलथल जलथल 
तरसे प्यासे नैना 
पीर न जाने 
मोरे जिया की 
गरजत बरसत  
काले मेघा

रेखा जोशी 

हाइकु

हाइकु 

छिड़ी थी जंग
सुर औ असुर में
अमृत पाना
.....................
मोहिनी रूप
सागर का मंथन
किया था छल
......................
मस्त असुर
देवों के अधर पे
रख दी सुधा
..................
गरल आया
नीलकंठ शंकर
विश्व बचा
.................
गरल सुधा
मिलते जीवन में
है यही पाया
..................
स्वाती अमृत
मिल कर जो पियें
ये सुधा सुधा
....................
धरो कंठ में
ये गरल गरल
सब के लिए

रेखा जोशी

कुंडली छन्द [पायें सब आनंद]



 कुंडली छन्द 

बरसाये यह प्रेमरस  ,नवल कुंडली छन्द 
दिल को यह बहुत भाये  ,पायें सब आनंद 
पायें  सब आनंद  मनमंदिर में समाये
प्रेम की  अमृत धार,यह मधुर रस  बरसाये

रेखा जोशी 

Sunday 23 February 2014

तांका


चुनरी पीली 
झूमती लहराती 
गोरी छबीली 
सर पर गागर 
देख आया फाल्गुन 
……………… 
छाई बहार 
मदमस्त पवन 
गुंजित भौरा 
बगिया गुलज़ार 
छलकता खुमार 
..................
खिलखिलाती 
धूप मेरे आंगन 
खुशियाँ लाई 
देखें मनभावन 
बाँवरे दो नयन 
……………… 
झूला झूलती 
अंगना मेरे आलि 
छाई है मस्ती 
बहारों का मौसम 
महकता है मन 

रेखा जोशी

Saturday 22 February 2014

निकल पड़ो ज़िंदगी की लम्बी उड़ान भरने

दुःख
होता है
देख तुम्हे
कैद
दीवारों में
जो बना
रखी
खुद तुमने
अपने ही
हाथों
खुद को
कैद
कर लिया
क्यों
पिंजरे में
मुहँ छिपाये
पँख लपेटे
कब तक
बुनते
रहो गे
जाल
अपने
इर्द गिर्द
तोड़ दो
अब
बंधन सब
भर लो
उड़ान
फैला कर
अपने पँख
उन्मुक्त
ऊपर दूर
आकाश में
विश्वास
है तुम्हे
खुद पर
जानते हो तुम
मंज़िल तुम्हारी
उड़ान  है
तुम्हे
उड़ना है
उठो
फैलाओं
अपने पँख
और
निकल पड़ो
फिर से
ज़िंदगी की
इक
लम्बी उड़ान
भरने

रेखा जोशी








Friday 21 February 2014

कैसे कहूँ मै तुमसे अपने हृदय की बतियाँ


गीत

कैसे कहूँ मै तुमसे
अपने हृदय की बतियाँ

तुम्ही मेरे चितचोर
देखूँ जब तेरी ओऱ
झुक जाएँ मेरी अखियाँ

कैसे कहूँ मै तुमसे
अपने हृदय की बतियाँ

मै हुई शर्म से लाल
देखें  मेरा यह हाल
मुझे छेड़े है सखियाँ

कैसे कहूँ मै तुमसे
अपने हृदय की बतियाँ

रेखा जोशी


Thursday 20 February 2014

सत्य कर्म से ही संवरता है यह भाग्य हमारा


कर्त्तव्य  बोध  ही  जीवन  है यह  हमे  बताया है 
चला चल राह सत्य की पकड़ यह हमे सिखाया है 
सत्य  कर्म  से ही  संवरता  है  यह  भाग्य हमारा 
इच्छा  फल  की  मत  कर गीता ने हमे  पढ़ाया है 

 रेखा जोशी 

Wednesday 19 February 2014

जन जन में तुम ही तुम हो बस

अखियाँ       मेरी   ढूँढे   तुम्हे 
ओ    मेरे     प्रभु    ढूँढे   तुम्हे 
जन जन में तुम ही तुम हो बस 
पागल नैना फिर भी ढूँढे तुम्हे 

रेखा जोशी 

जीवन के दिन चार ,है दुनिया एक छलावा

जीवन के  दिन चार ,है  दुनिया एक छलावा
करनी अपनी छुपा ,मत करना तुम दिखावा
जो   जैसा  करे  गा  ,वह   वैसा  ही  भरे  गा
पाये   कर्मो  का   फल , काहे  करे  पछतावा

रेखा जोशी 

हाइकु

छिड़ी थी जंग
सुर औ असुर में
अमृत पाना
.....................
मोहिनी रूप
सागर का मंथन
किया था छल
......................
मस्त असुर
देवों के अधर पे
रख दी सुधा
..................
गरल आया
नीलकंठ शंकर
विश्व बचा
.................
गरल सुधा
मिलते जीवन में
है यही पाया
..................
स्वाती अमृत
मिल कर जो पियें
ये सुधा सुधा
....................
धरो कंठ में
ये गरल गरल
सब के लिए

रेखा जोशी

जीवन का संगीत है तेरा यह ख्याल

जीवन का संगीत है तेरा यह ख्याल 
उस प्रभु का आशीष है तेरा यह ख्याल 
बसा है तेरा ख्याल इस मन मंदिर में 
गुनगुना रहा सदा है तेरा यह ख्याल 

रेखा जोशी

Tuesday 18 February 2014

खूबसूरत सफ़र

छिपा कर अपनी पलकों में
खूबसूरत नज़ारे
संग संग बादलों के 
शीतल पवन के झोंकों से सिहरता
मेरा तन 
लौट कर आई मै
माथेरन पर्वत स्थल
से नीचे 
छोटी टोय रेलगाड़ी की
 छुक छुक ताल पर
चीरती हुई ऊँची नीची पहाड़ियाँ
घने जंगलों से नीचे
उतरती नेरल के
स्टेशन तक  
समा गया
यह खूबसूरत सफ़र
मेरी यादों में
सदा सदा के लिए 

रेखा जोशी 

इसे देख क्या करें

इज्ज़त लुटती जहाँ बालाओं की इसे देख क्या करें 
परेशान  बहुत रहे जहाँ  जनता इसे  देख क्या करें 
भूख गरीब  बेरोज़गारों  की कमी  नही इस देश में 
पग पग  पनप रहा  भ्रष्टाचार  इसे देख  क्या करें 

रेखा जोशी

Monday 17 February 2014

मेरे सपनों की रानी कब आये गी तू


मोतीचूर का लड्डू क्यों जनाब ?आ गया न मुहं में पानी ,लड्डू और वह भी मोतीचूर का ,सुनते ही जी ललचा जाता है और अगर वह सामने  सजी हुयी प्लेट में पड़ा हो तो क्या कहने ,हर किसी का दिल करे गा बस जल्दी से उठाओ और मुहं में डाल लो ,अरे भई  मुहं में डालने से पहले अच्छी तरह सोच समझ लो , कहीं ऐसा न हो मुहं का स्वाद ही बिगड़ जाए ,अरे नही नही , एक बार मुहं में डाल कर इसे बाहर थूक मत देना ,ऐसा करने से आप बहुत बड़ी मुसीबत में पड़ सकते हो ,यही तो हुआ बेचारे गोलू जी के साथ ,बहुत ही खूबसूरत अपनी सहयोगी सुन्दरी के प्रेमजाल में फंस कर झट मंगनी कर पट शादी के बंधन में बंध गए , वह शादी क्या , उनकी बर्बादी थी , यूँ समझ लो ,चार दिन की चांदनी फिर अँधेरी रात ,बस कुछ ही दिनों में प्यार का खुमार रफूचक्कर हो गया और गोलू जी जो कभी आसमान में उड़ा करते थे ,वह मोतीचूर का लड्डू खाते ही चारो खाने चित हो कर जमीन पर औंधे मुहं गिर गए | सुन्दरी अल्ट्रा मार्डन और बेचारे गोलू जी  एक बहुत ही साधारण परिवार से सम्बन्ध रखते थे |इस प्रकार की शादियाँ  भला कितने दिन चल सकती है ,अंत में तुम उस गली और मै इस गली, फिर शुरू हो जाती है लम्बी कानूनी लड़ाई जो खत्म होती है तलाक पर जाकर ,जवानी का वह अनमोल समय यूहीं  व्यर्थ में बर्बाद नहीं करना चाहते तो भैया इस मोतीचूर के लड्डू को खाने के लिए इतने भी बेताबी ठीक नही |

उधर बेचारे गोलू जी तो कोर्ट कचहरी के चक्कर काट रहें है ,और इधर हमारे रामू भैया के मुहं में मोतीचूर के स्वादिष्ट लड्डू को देख कर पानी आ रहा है ,बहुत ही बेचैन हो रहें है उसे खाने के लिए , आजकल वह सोते जागते बस उस लड्डू के ही सपनो में खोये रहते है ,तडप रहें है उसका स्वाद चखने के लिए ,रात दिन एक ही गाना उनके होंठो पर रहता है ,मेरे सपनों की रानी कब आये गी तू |'' देखिये जनाब ,जी भर के सपने देखिये ,वह इसलिए कि सपने हकीकत से ज्यादा खूबसूरत होते है ,ऐसे हसीन सपने देखने का नाम ही जवानी है |रामू भैया जी जरा सपनो से बाहर निकल कर तो देखिये ,इस मोतीचूर के लड्डू को सहेज कर प्यार से खाना  कितना मुश्किल काम है ,कितने नाज़ नखरे उठाने पड़ते है अपने घर की सुख शांति के लिए ,अपने दोस्त श्याम सुंदर और उसकी पत्नी  मीरा  की जोड़ी को ही देखो ,दोनों के माँ बाप ने उन दोनों को एक दूसरे के लिए पसंद किया , शादी के पहले दो साल तक तो श्याम सुंदर जी को अपनी पत्नी मीरा का खूबसूरत चेहरा चाँद जैसा दिखाई देता था ,लेकिन आज सात साल बाद श्याम जी अपने ही घर के अंदर डरते डरते कदम रखते है ,क्या मालूम कब उनके घर में ज्वालामुखी फूट पड़े |

सारी जिंदगी इस मोतीचूर के लड्डू की मिठास का स्वाद  कुछ किस्मत वालों के नसीब में ही होता है|अक्सर शादी के इस पवित्र बंधन में नोंक झोंक  तो चलती  ही रहती है ,लेकिन बेचारा  लड्डू  तो मुफ्त में ही बदनाम हो गया ,जो खाए वह भी पछताए जो न खाए वह भी पछताए |

रेखा जोशी 

Sunday 16 February 2014

वह शर्मीला चाँद

सुन्दर
सलोना
नभ पर
बादलों के
झरोखों से
झाँक रहा
वह शर्मीला चाँद

शीतल
चांदनी
मदमस्त पवन
संग संग
मेरे
चल रहा
वह शर्मीला चाँद

लो वह
उतर आया
धरा पर
बन प्रियतम
देख
सामने
हर्षाया मन
खेल रहा
मेरे संग
आँख मिचोली
वह शर्मीला चाँद

पिया मिलन
है चांदनी रात
हाथों में लिये हाथ
ओढ़े आँचल
हया का
खिड़की से
मुस्कुराया
वह शर्मीला चाँद

रेखा जोशी

खिला खिला सा रूप

कहाँ छुप गए हो तुम अब तो आ भी जाइये 
वो खिला खिला सा अपना रूप दिखा जाइये 
महकने लगी मदमस्त हवाएँ बदलती रुत में
पागल दिल देख रहा राह अब आ भी जाइये 

रेखा जोशी 

इक नज़र प्यार से देखो तुम इधर

लाख इलज़ाम हम पर लगा लो तुम मगर 
रिश्ता ए मुहब्ब्त को समझ सको तुम गर 
कहते सुनते ही बीत न जाये ज़िंदगी 
बस इक नज़र  प्यार से देखो तुम इधर

रेखा जोशी

Saturday 15 February 2014

फूल राहों में खिलें

चलता चल तू  अकेला साथी मिले  न मिले 
मत  देखना पीछे  तुम राह  कठिन  हो भले 
थक हार कर कहीं बैठ न जाना तुम कभी भी 
अगर मन में हो विशवास फूल राहों में खिलें 

रेखा जोशी 

Friday 14 February 2014

आईना झूठ बोलता है

कहते है कि आईना कभी झूठ नहीं बोलता,आईने की इसी खूबी के कारण  , बेचारी नन्ही सी राजकुमारी स्नो वाईट को ,अपनी सौतेली माँ के ज़ुल्मों का शिकार होना पड़ा|  जितनी बार  उसकी माँ आईने से  पूछती ,''आईने, आईने बता सबसे सुंदर कौन ,' आईना बेचारा कैसे झूठ बोलता  ,वो हर बार यही कहता ,''स्नो वाईट और उसकी माँ के गुस्से का पहाड़ टूट पड़ता उस नन्ही सी जान पर | शुक्र है कि उसे सात बौने मिल गए ,जिन्होंने उसकी दुष्ट माँ से उसकी रक्षा की,वरना  वह   उसे मरवा ही देती |स्नो वाईट को तो बौनों ने बचा लिया ,मगर आईना बेचारा परेशान और दुखी हो गया कि उसके कारण प्यारी सी स्नो वाईट को कैसे कैसे दुःख और मुसीबतें झेलनी पड़ी ,वो कुछ कुछ सावधान हो गया, जब  विभिन्न विभिन्न मुखौटे ओढ़े  तरह तरह के लोग उसके सामने आते तो वह थोडा धुंधला जाता और उन लोगों की असलियत को छिपा जाता | झूठ की चादर लपेटे लोग भी सत्यवादी कहलाने लगे |धोखेबाज़ दुष्ट और फरेबी लोगो का बोलबाला होने लगा क्यों कि आईने ने अब सच का दामन छोड़ दिया था |मेरी तरह के गिने चुने लोग चिल्ला चिल्ला कर कहते ,'आईना झूठ  बोलता है ,आईना झूठ बोलता है '',लेकिन सब बेकार ,आईना तो सबूत था उनकी सच्चाई का |

अभी हाल ही में मेरी मुलाकात हुई ,ऐसे ही एक करोडपति सज्जन पुरुष से ,जो एक लम्बी बीमारी से उठे थे ,वो जब भी मिलते ,यही कहते ,'',मैने मौत को बहुत करीब से देखा है ,अस्पताल में सारा दिन बिस्तर पर पड़ा पड़ा यही सोचा करता था ,कि मेरे जैसा मूर्ख दुनिया में कोई नहीं ,जो मै पैसे का घमंड करता रहा ,आज मेरे पास इतनी दौलत होने पर भी मै अपने को नहीं बचा पाया तो क्या फायदा'',और वो खूब धर्म करम की बाते किया करते |मै भी उनकी बातो में आ गयी ,सोचा शायद बीमारी में आईने ने इन्हें इनका असली चेहरा दिखा दिया हो ,चलो देर आये दुरुस्त आये ,वह किसी आश्रम में भी जाने लगे |एक दिन वो फिर मुझे मिले ,जनाब नई औडी गाडी में सवार थे ,वही पुराने रंग ढंग ,वही पैसे का गरूर |इंसान की फितरत को इतनी जल्दी रंग बदलते देख मै दंग रह गयी | ओफ हो, अब समझी उनके पैसे के गरूर और घमंड से आईना फिर से धुंधला पड़ गया,वह उन सज्जन को वही दिखाने  लगा जो वह देखना चाहते थे |, अब आप लोग भी सावधान हो जाइए ,आगे से जब भी आप आईने में देखे तो ,उसे पहले  साफ़ कपड़े से जरूर पोंछ लीजिये ताकि आईना झूठ न बोल सके |

रेखा जोशी 

Wednesday 12 February 2014

छज्जू दा चौबारा 


छज्जू दा चौबारा 

पड़ोस में कहीं बहुत ऊँची आवाज़ में ऍफ़ एम् रेडियो बज रहा था ”यह गलियाँ यह चौबारा यहाँ आना न दोबारा” गाना सुनते ही आनंद के मौसा जी परेशान हो गए ,”अरे भई कैसा अजीब सा गाना है ,हम कहीं भी जाए ,दुनिया के किसी भी कोने में जाए लेकिन आना तो वापिस अपने घर ही में होता है , हूँअ ,भला यह कोई बात हुई यहाँ आना न दोबारा ,अरे भाई अपने घर अंगना ना ही जाएँगे तो कहाँ जाएँगे |अब हमी को ले लो बबुआ ,देखो तो हफ्ता हुई गवा तोरे यहाँ पड़े हुए ,लेकिन अब हम वापिस अपने घर को जाएँ गे क्यों कि हमे अपने घर की बहुतो याद आ रही है ,अहा कितनी सान्ती थी अपनी उस छोटे से घर में |”यह कहते कहते आनंद के मौसा जी ने अपना सामान बांधना शुरू कर दिया |”अरे अरे यह क्या कर रहें है आप ,कहीं नही जाएँ गे ,आप की तबीयत ठीक नही चल रही और वहां तो आपकी देखभाल करने वाला भी कोई नही है ,मै वहां आप को अकेले नही छोड़ सकता ,”कहते हुए आनंद ने उनका सामान खोल कर एक ओर रख दिया |

 मौसा जी चुपचाप कुर्सी पर बैठ गए ,”अब का बताये तुम्हे बबुआ ,हमार सारी जिन्दगी उह छोटे से घर में कट गई ,अब कहीं भी जावत है तो बस मन ही नाही लगत,पर अब इस बुढ़ापे की वजह से परेसान हुई गवे है ,ससुरा इस सरीर में ताकत ही न रही ,का करे कछु समझ न आवे,का है के बबुआ तुम कुछ दिन चलो न अपने गावं हमरे साथ ,बहुतो अच्छा लगे गा तोरे को ”|बहुत समझाया आनंद ने अपने बूढ़े मौसा जी को ,लेकिन वह तो टस से मस नही हुए अपनी जिद पर अड़े रहे और वापिस अपने गाँव चले गए |

मौसा जी तो चले गए लेकिन आनंद को उसके माता पिता की याद दिला गए ,अकेले दोनों बुढ़ापे में अपने गाँव वाले घर में रहते थे,अब बुढ़ापे में तो आये दिन कभी माँ तो कभी पिता जी बीमार रहने लगे |एक तो बुढ़ापा उपर से बीमारी ,दोनों यथासंभव एक दूसरे का ध्यान भी रखते थे परन्तु आनंद उन्हें भला कैसे तकलीफ में देख सकता था ,उन दोनों को वह जबरदस्ती शहर में अपने घर ले आया ,कुछ दिन तक तो सब ठीक चलता रहा ,फिर वह दोनों वापिस गाँव जाने की जिद करने लगे ,वह इसलिए कि उनका आनंद के यहाँ मन ही नही लगा ,आनंद और उनकी बहू सुबह सुबह काम पर चले जाते और शाम ढले घर वापिस आते ,हालाँकि बहू और बेटा दोनों उनका पूरा ध्यान रखते थे ,लेकिन वह दोनों भी जिद कर के वापिस अपने गाँव चले गए और एक दिन हृदय गति के रुक जाने से आनंद के पिता का स्वर्गवास हो गया |बहुत रोया था आनंद उस दिन ,परन्तु वह समझ नही पाया था किउसके माता पिता उसके साथ क्यों नही रहे |

हमारे बुज़ुर्ग क्यों नही छोड़ पाते उस स्थान का मोह जहां उन्होंने सारी उम्र बिताई होती है ,शायद इसलिए कि हम सब अपनी आदतों के गुलाम बन चुके है और अपने आशियाने से इस कदर जुड़ जाते है कि उसी स्थान पर ,.उसी स्थान पर ही क्यों हम अपने घर के उसी कोने में रहना चाहते है जहां हमे सबसे अधिक सुकून एवं शांति मिलती है ,चाहे हम पूरी दुनिया घूम ले लेकिन जो सुख हमे अपने घर में और घर के उस कोने में मिलता है,वह कहीं और मिल ही नही पाता,तभी तो कहते है ”जो सुख छज्जू दे चौबारे ओ न बलख न बुखारे ” |

Monday 10 February 2014

पल पल में छुपी मौत है या हँसती है यह जिंदगी

पल पल यूँ ही गुज़र जाती है हमारी यह जिंदगी
छोड़ पुराना नये पल में ढल जाती है यह जिंदगी
जीतें है यहाँ हम सब ख़ुशी और गम के अनेक पल
पल पल में छुपी मौत है या हँसती है यह जिंदगी

रेखा जोशी

चहकने लगी बुलबुल अब दिल की

आ गई  बहार जो आये हो तुम
चहकने लगी बुलबुल अब दिल की
...................................................................
फूलों पर भंवरे   लगे मंडराने
लगी शर्माने कलियाँ  गुलशन की
....................................................................
तरसती  निगाहें तुम्हे देखने को
भूल गये अचानक वो राहें इधर की
......................................................................
मुद्दते हो चुकी थी देखे हुए उनको
उसी ने खुशियों से मेरी झोली भर दी
.......................................................................
खुशिया ही खुशिया बनी रहे दिल में
महकती रहे बगिया मेरे आंगन की
........................................................................
आ गई  बहार जो आये हो तुम
चहकने लगी बुलबुल अब दिल की


रेखा जोशी

Sunday 9 February 2014

सात फेरे और सात वचन याद है मुझे

सात फेरे 
और 
सात वचन 
याद है मुझे 
आदर करती हूँ मै तुम्हारा 
और 
सबका यहाँ क्योंकि 
मै तुम्हारी हूँ 
और 
तुम्हारे अपने
है अब मेरे
और
मेरे अपने
वह भी तो है तुम्हारे
मै कभी भी 

नही सह पाऊँगी
निरादर उनका
इल्तिजा है मेरी तुमसे
रखना मान
सदा उनका

रेखा जोशी

तलाश रही है तुम्हे मेरी भीगी ऑंखें



वीरान 
है यह दिल 
बिन तुम्हारे 
मालूम है 
नही 
आओ गे तुम 
फिर भी 
न जाने  क्यों 
इंतज़ार 
है तुम्हारा 
महक रहे 
यह हसीन लम्हे 
और 
गुनगुनाती हुई 
यह सुहानी शाम 
बुला रही 
है तुम्हे 
अब तो 
उतर आया है 
चाँद भी 
अंगना में 
गुम है 
यह दिल 
जुस्तजू 
में तेरी 
और 
तलाश रही है 
तुम्हे मेरी 
भीगी ऑंखें 

रेखा जोशी 

ज़िंदगी जीने के लिए नव राह जो दिखलाता है



चीर घोर  अन्धकार  को वह  रोशनी दिखाता  है
अँधेरे  से  उजाले  में  वह  बाहँ  पकड़   लाता  है
करते है नमन ऐसे महान गुरू को हम सब मिल
ज़िंदगी  जीने के लिए नव  राह जो  दिखलाता है

रेखा जोशी

Saturday 8 February 2014

बरसा अमृत की बूँदे अथाह प्रेम सागर से

जला कर ज्योति प्रेम की पार हुए भव सागर से 
तर गए संत फकीर छलकाए प्रेमरस गागर से 
प्रेम पूजा प्रेम शिव सबसे प्रेम कर ले तू 
बरसा अमृत की बूँदे अथाह प्रेम सागर से 

रेखा जोशी 

Friday 7 February 2014

सत्य ही शिव है



रच कर  सुन्दरता को वह स्वयं इसमें खो गया है
फिर स्वयं को खोज रहा यह उसे  क्या हो गया है
मन ही मन आनंद ले है सुन्दरता ही  परम सत्य
सत्य ही शिव है शिव ही सुन्दर भान यह हो गया है

रेखा जोशी

अंतहीन दौड़

वह
दौड़ रहां  है
इस
दुनिया में
अंतहीन दौड़
लेकिन
तन्हा
पूरे करने  है
उसे
सपने
जो देखे है
उसके पिता  ने
खरा उतरना है
उसे
उम्मीदों पर
अपनी माँ
पत्नी और
बच्चों की
पर
उसके
अपने सपने
दफन है
उसके
सीने में
थक कर
हांफने
लगा
लेकिन
वक्त नही है
रुकने का
जीतनी
है जंग
उसे
ज़िंदगी की
क्योंकि
उसे प्यार है
सबसे
अपने सपनो
से भी
ज्यादा

रेखा जोशी

Thursday 6 February 2014

प्रभु के नाम का कर जाप रे बन्दे

प्रभु के नाम का कर जाप रे बन्दे 
बने गे बिगड़े सब काम रे बन्दे 
कर ले भरोसा तू नाम का उसके 
नाम में है चारो धाम रे बन्दे 

रेखा जोशी

Tuesday 4 February 2014

खिला सकते हो तुम फूल ही फूल

वक्त
रुकता नही
कभी
चलती है
ज़िंदगी
संग इसके
तुम अकेले
क्यूँ
खड़े हो
रुके हो
क्यूँ तुम
रुकता नही
सूरज
और
न ही
चाँद सितारे
फिर तुम
किसका
इंतज़ार
कर रहे हो
रुकना तो
मृत्यु है
उठो चलो
समझो
अपने
होने का
अस्तित्व
बह जाओ  तुम
संग धारा के
खिला सकते
हो तुम
फूल ही फूल
महका सकते
हो तुम
वन उपवन

रेखा जोशी


जाने अब कहाँ नज़ारे चले गए

जाने  अब  कहाँ  नज़ारे  चले  गए
जीने   के   सभी   सहारे  चले  गए

दिन तो ढल चूका औ चाँद भी  नही
जाने  सब  कहाँ  सितारे  चले  गए

उठ के जा  चुके वे तो  कभी  के  थे
जाने  क्यूँ   हमीं   पुकारे  चले  गए

शायद  वो अभी  लहरेँ  हो मचलती
जिन को छोड़ हम किनारे चले गए

महेन्द्र जोशी 

Sunday 2 February 2014

दिन का सुकून और रातों की नींदे उड़ गई

तुम्हारी चाहत लिये   हम पल पल मरते रहे
पथ   में  पलक   बिछाये  इंतज़ार करते  रहे
दिन  का सुकून और रातों  की नींद  उड़ गई
अनजान बने  तुम्ही इस दिल में धड़कते रहे

रेखा  जोशी 

Saturday 1 February 2014

दूर हो बहुत दूर मुझसे

बहुत 
करीब 
हो तुम मेरे 
फिर भी 
बहुत दूर हो 
क्यों 
नही समझ 
पा रहे 
मेरे अंतस 
की पीड़ा 
क्यों 
नही सुन 
पा रहे 
शोर 
मेरे दिल में 
जो मचल 
रहे है 
मचा रहे 
हलचल 
उन अनकहे 
जज़बातों का 
मौन हूँ मै 
क्यों
नही सुन  
पा रहे 
मेरी 
आँखों की 
भाषा तुम 
क्योंकि 
तुम पास
हो कर भी 
दूर हो 
बहुत दूर 
मुझसे 

रेखा जोशी