Thursday 30 April 2015

जलजला आया [अलिवर्णपाद छंद]

गिरते   पहाड़
कांपती धरती
अधर  में प्राण
डोलता  संसार
जलजला आया
त्रासदी  त्रासदी

रेखा जोशी

त्रासदी त्रासदी

कुपित हुई धरा
मच गया हाहाकार
कांपे पर्वत टूटे पहाड़
धराशाही हुये ऊँचे भवन मीनार
अधर में फंसे सबके प्राण
मचा शोर चहुँ ओर
त्रासदी त्रासदी
आपदा आई  सब पर भारी
संकट में  सबकी जान
चले न कोई जोर किसी का
पल भर में धरती पर
बिछ गये लाशों के ढेर
सो गये  सदा के लिये
रत्न कई अनमोल
दया करो हे प्रभु
न खोलो तीसरी आँख
पापियों से भरी धरा को
दो सहनशीलता का
वरदान

रेखा जोशी

है गर्मी आई [सदोका]

है गर्मी आई
रसीले तरबूज
खरबूजे अमृत
सूर्य नभ पे
लथपत पसीना
अंगार बरसता

रेखा जोशी

हाथ मेरा तुम पकड़ भी लो अगर तो क्या

ज़िंदगी भी  होश  अब  खोने लगी साजन
हसरते   भी  बोझ  बन  रोने  लगी साजन
हाथ मेरा तुम पकड़  भी लो अगर तो क्या
ज़िंदगी  की  शाम अब  होने  लगी साजन

रेखा जोशी




आज मौसम आशिकाना आ गया


प्यार तुमको अब निभाना आ गया 
रफ़्ता  रफ़्ता  मुस्कुराना  आ  गया 
.... 
छेड़  कर  ज़ुल्फ़ें  हवाओं  ने  कहा 
आज मौसम आशिकाना आ गया 
.... 
खुश रहो साजन जहाँ में तुम सदा 
ज़िंदगी  को  आज़माना  आ   गया
.... 
क्या कहें तुमसे न जाना छोड़ कर 
हाथ  थामा  तो  निभाना  आ गया 
.... 
दे  रही   है  अब  हवायें  यह  सदा 
साथ  जीने  का  ज़माना   आ गया 

रेखा जोशी
.. 



Wednesday 29 April 2015

यहाँ पर पर्वतों को भी गलते देखा

यौवन को  यहाँ  हमने ढलते देखा 
लोहे  को  भी हमने  पिघलते देखा 
रह  जाती  शेष  बस माटी ही माटी 
यहाँ  पर  पर्वतों को भी गलते देखा 

रेखा जोशी

जी रहे सीने लगा कर दर्द हम अपने सजन फिर

अब सजन रोये बहुत हम बिन रहे तेरे सजन फिर
लाख माँगा प्यार तुमसे  प्यार ना जाने सजन फिर
.. 
हाल तुम जानो नही जब मत कहो है प्यार तुमसे
नासमझ नादान हो  तुम दर्द  ना समझे सजन फिर

अब चलें फिर हम सजन ले हाथ मेरा थाम कर तुम
गर चलो अब साथ मेरे यह सफर भाये सजन फिर
… 
नाम ले कर जी रहे है अब सजन जीने हमे दो
छोड़ कर दुनियाँ अगर हम तो चलें जायें सजन फिर 
… 
प्यार तुम जानो सजन क्या जब न समझे हो वफ़ा को 
जी रहे सीने लगा कर दर्द हम अपने सजन फिर 

.. 

रेखा जोशी


धरती डोली कांपे जन हुआ विनाश


कब तक धरा पाप के बोझ तले रहती
आक्रोश  सीने  कब तक दबाये सहती
धरती  डोली  कांपे जन  हुआ  विनाश
व्यथा  ह्रदय  की अवनी  कैसे  कहती

रेखा जोशी



Tuesday 28 April 2015

सूरज को जीवन में उजाला लेकर आना है


ऊषा   आगमन  से  उजियारा  भर आना है
सूरज को जीवन में उजाला  ले कर आना है
है गहन अँधेरा न घबराना तुम तिमिर से अब
धूप  के  आते  ही  जीवन  संवर    आना है
रेखा जोशी

अब जियेंगे और मरेंगे हम साथ साथ


जीवन की राहों में ले हाथों में हाथ
साजन मेरे चल रहे हम अब साथ साथ

अधूरे  है हम  तुम बिन सुन साथी  मेरे
आओ जियें जीवन का हर पल साथ साथ

हर्षित हुआ  मन देख  मुस्कुराहट तेरी
खिलखिलाये गे दोनों अब  साथ साथ

आये कोई मुश्किल कभी जीवन पथ पर
सुलझा लेंगे दोनों मिल कर  साथ साथ

तुमसे बंधी हूँ मै  साथी यह मान ले
निभायें गे इस बंधन की हम साथ साथ

छोड़ न जाना तुम कभी राह में अकेले
अब जियेंगे और मरेंगे हम साथ साथ

रेखा जोशी

Monday 27 April 2015

अलिवर्णपाद छंद

अधूरे सपने
है पूरे सपने
सतरंगी जहाँ
दिखाये सपने
भाग रहे सब
सपनों के पीछे

रेखा जोशी

माँ के कदमों तले सम्पूर्ण ब्रह्मांड

माँ ”इक छोटा सा प्यारा शब्द जिसके कदमों तले है सम्पूर्ण विश्व ,सम्पूर्ण सृष्टि और सम्पूर्ण ब्रह्मांड  और उस अथाह ममता के सागर में डूबी हुई सुमि के मानस पटल पर बचपन की यादें उभरने लगी |”बचपन के दिन भी क्या दिन थे ,जिंदगी का सबसे अच्छा वक्त,माँ का प्यार भरा आँचल और उसका वो लाड-दुलार ,हमारी छोटी बड़ी सभी इच्छाएँ वह चुटकियों में पूरी करने के लिए सदा तत्पर ,अपनी सारी खुशियाँ अपने बच्चों की एक मुस्कान पर निछावर कर देने वाली ममता की मूरत माँ का ऋण क्या हम कभी उतार सकते है ?हमारी ऊँगली पकड़ कर जिसने हमे चलना सिखाया ,हमारी मूक मांग को जिसकी आँखे तत्पर समझ लेती थी,हमारे जीवन की प्रथम शिक्षिका ,जिसने हमे भले बुरे की पहचान करवाई और इस समाज में हमारी एक पहचान बनाई ,आज हम जो कुछ भी है ,सब उसी की कड़ी तपस्या और सही मार्गदर्शन के कारण ही है

”सुमि अपने सुहाने बचपन की यादो में खो सी गई ,”कितने प्यारे दिन थे वो ,जब हम सब भाई बहन सारा दिन घर में उधम मचाये घूमते रहते थे ,कभी किसी से लड़ाई झगड़ा तो कभी किसी की शिकायत करना ,इधर इक दूजे से दिल की बाते करना तो उधर मिल कर खेलना ,घर तो मानो जैसे एक छोटा सा क्लब हो ,और हम सब की खुशियों का ध्यान रखती थी हमारी प्यारी ”माँ ” ,जिसका जो खाने दिल करता माँ बड़े चाव और प्यार से उसे बनाती और हम सब मिल कर पार्टी मनाते” | एक दिन जब सुमि खेलते खेलते गिर गई थी .ऊफ कितना खून बहा था उसके सिर से और वह कितना जोर जोर से रोई थी लेकिन सुमि के आंसू पोंछते हुए ,साथ साथ उसकी माँ के आंसू भी बह रहें थे ,कैसे भागते हुए वह उसे डाक्टर के पास ले कर गई थी और जब उसे जोर से बुखार आ गया था तो उसके सहराने बैठी उसकी माँ सारी रात ठंडे पानी से पट्टिया करती रही थी ,आज सुमि को अपनी माँ की हर छोटी बड़ी बात याद आ रही थी और वह ज़ोरदार चांटा भी ,जब किसी बात से वह नाराज् हो कर गुस्से से सुमि ने अपने दोनों हाथों से अपने माथे को पीटा था ,माँ के उस थप्पड़ की गूँज आज भी नही भुला पाई थी सुमि ,माँ के उसी चांटे ने ही तो उसे जिंदगी में सहनशीलता का पाठ पढाया था,कभी लाड से तो कभी डांट से ,न जाने माँ ने जिंदगी के कई बड़े बड़े पाठ पढ़ा दिए थे सुमि को,यही माँ के दिए हुए संस्कार थे जिन्होंने उसके च्रारित्र का निर्माण किया है ,यह माँ के संस्कार ही तो होते है जो अपनी संतान का चरित्र निर्माण कर एक सशक्त समाज और सशक्त राष्ट्र के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान करते है ,महाराज छत्रपति शिवाजी की माँ जीजाबाई को कौन भूल सकता है , दुनिया की हर माँ अपने बच्चे पर निस्वार्थ ममता लुटाते हुए उसे भरोसा और सुरक्षा प्रदान करती हुई उसे जिंदगी के उतार चढाव पर चलना सिखाती है |  

अपने बचपन के वो छोटे छोटे पल याद कर सुमि की आँखे भर आई , माँ के साथ जिंदगी कितनी खूबसूरत थी और उसका बचपन महकते हुए फूलों की सेज सा था | बरसों बाद आज सुमि भी जिंदगी के एक ऐसे मुकाम पर पहुँच चुकी है जहां पर कभी उसकी माँ थी ,एक नई जिंदगी उसके भीतर पनप रही है और अभी से उस नन्ही सी जान के लिए उसके दिल में प्यार के ढेरों जज्बात उमड़ उमड़ कर आ रहे है ,यह केवल सुमि के जज़्बात ही नही है ,हर उस माँ के है जो इस दुनिया में आने से पहले ही अपने बच्चे के प्रेम में डूब जाती है,यही प्रेमरस अमृत की धारा बन प्रवाहित होता है उसके सीने में ,जो बच्चे का पोषण करते हुए माँ और बच्चे को जीवन भर के लिए अटूट बंधन में बाँध देता है |आज भी जब कभी सुमि अपनी माँ के घर जाती है तो वही बचपन की खुशबू उसकी नस नस को महका देती है ,वही प्यार वही दुलार और सुमि फिरसे इक नन्ही सी बच्ची बन माँ की  गोद में में अपना सर रख ज़िंदगी कि सारी परेशानियाँ  भूल जाती है । 



Saturday 25 April 2015

लेन देन से परे रिश्ते

रिश्ता वही
जिसमे हो प्यार
सुगंध से  जिसकी
खिले विश्वास
स्नेह के धागों से
बंधी डोर रिश्तों की
है बहुत नाज़ुक
शीघ्र चटकती
लेकिन
लेन देन से परे
जब बनते रिश्ते
नही टूटते वह
आसानी से
घायल  होकर भी
निभाते साथ
जीवन भर

रेखा जोशी

Friday 24 April 2015

संग संग चलेंगे हम जीवन भर साजन


निभाऊँ विवाह के  सात वचन सदा प्रिये
वफ़ा का दीप रखना जला कर सदा प्रिये
संग संग  चलेंगे हम जीवन  भर साजन
बना  रहे यह  प्रेम  का बंधन  सदा  प्रिये
रेखा जोशी



Thursday 23 April 2015

बिन माँगे मोती मिले माँगे मिले न भीख


क्यों बैठे तुम निठठ्ले
नहीं है कोई  काम धाम
कर्म की महिमा को समझो
कर्म सुख की खान
मूढ़ बैठा चौखट प्रभु के
मांगे है दिन रात
कर्मयोगी बन कोई
करता है पुरुषार्थ
कहा कृष्ण  ने अर्जुन से
ध्येय तुम्हारा है करना कर्म
फल की इच्छा त्याग
अर्पित कर सब कर्म प्रभु को
रख ह्रदय में आस
फलित होंगे कर्म तुम्हारे
रख खुद पे विश्वास
आस कह रही श्वास से
धीरज रखना सीख
बिन माँगे मोती मिले 
माँगे मिले न भीख 

रेखा जोशी 

प्यार ना जाने सजन फिर

गीतिका

हम सजन रोये बहुत फिर 
बिन रहे तेरे  सजन फिर 
.. 
लाख माँगा प्यार तुमसे 
दर्द  ना समझे सजन फिर 
..
थाम मेरा हाथ ले अब 
कब चलें जायें सजन फिर 
.. 
तुम चलो गर साथ मेरे 
यह सफर भाये सजन फिर 
.. 
नासमझ  नादान हो  तुम 
प्यार ना जाने सजन फिर 
.. 

रेखा जोशी 

तुम न आये सजन यहाँ गर अब

ज़िन्दगी कितनी खूबसूरत है
प्यार में चाह की नज़ाकत है 
... 
आ चलें दूर इस जहाँ से हम 
प्यार तेरा यही   हकीकत है 
... 
तुम न आये सजन यहाँ गर अब 
हम न बोलें यही शिकायत है 
.... 
आप हमको न देख यूँ साजन 
प्यार से  यह भरी  शरारत है 
....
रूठ कर दूर तुम न जाना अब 
ज़िंदगी यह  तिरी अमानत है 

रेखा जोशी 

Wednesday 22 April 2015

शत शत नमन करें तुझे माँ शारदे



दीप ज्ञान  का जला   दे  माँ शारदे
कृपा   तेरी   बनी    रहे  माँ  शारदे
फैले  जगत  में उजियारा ज्ञान से
शत शत नमन करें तुझे माँ शारदे


रेखा जोशी 

पथ निहारे व्याकुल राधिका

कौन हृदय की अब पीर हरे
आये   नहीं   मोहन   साँवरे
पथ निहारे व्याकुल राधिका
छूटी   गागर   नयन  बाँवरे

रेखा जोशी 

परेशान सभी यहाँ सूरज की तपिश से

अगन बरसती धरा पे  सबका बुरा हाल
बिन नीर अब धरा पे जीना  हुआ मुहाल
परेशान सभी यहाँ  सूरज  की तपिश से
प्यासा  पंछी  गर्मी  से अब  हुआ बेहाल

रेखा जोशी


पृथ्वी दिवस पर हाइकु

सुंदर धरा

लहरा रहे पौधे
प्रदुष्ण हटा
...........
लगाओ पेड़
धरती को बचाओ
स्वस्थ जीवन

रेखा जोशी 

Tuesday 21 April 2015

ख़ुशी की तलाश में

ख़ुशी की तलाश में
शाम का समय था ,न जाने क्यों रितु का मन बहुत बोझिल सा हो रहा था , भारी मन से उठ कर रसोईघर में जा कर उसने अपने लिए एक कप चाय बनाई और रेडियो एफ एम् लगा कर वापिस आकर कुर्सी पर बैठ कर धीरे धीरे चाय पीने लगी | चाय की चुस्कियों के साथ साथ वह संगीत में खो जाना चाहती थी कि एक पुराने भूले बिसरे गीत ने उसके दिल में हलचल मचा दी ,लता जी की सुरीली आवाज़ उसके कानो में मधुर रस घोल रही थी ,''घर से चले थे हम तो ख़ुशी की तलाश में ,गम राह में खड़े थे वही साथ हो लिए '', कभी ख़ुशी कभी गम ,कहीं सुख और कहीं दुःख ,इन्ही दोनों रास्तों पर हर इंसान की जिंदगी की गाड़ी चलती रहती है ,कुछ ही पल ख़ुशी के और बाकी दुःख को झेलते हुए ख़ुशी की तलाश में निकल जाते है | रितु अपनी ही विचारधारा में खो सी गई थी ,क्या तलाश करने पर किसी को भी ख़ुशी मिली है कभी,शायद नही ,ख़ुशी तो अपने अंदर से ही उठती है ,जिस दिन उसके घर में ,उसकी बाहों में एक छोटी सी गुड़िया, नन्ही सी परी आई थी ,तब उसकी और उसके पति राजेश की खुशियों का पारावार मानो सातवें आसमान को छू रहा था ,और हाँ जिस दिन राजेश की प्रमोशन हुई थी उस दिन भी तो हमारे पाँव जमीन पर ख़ुशी के मारे टिक नही रहे थे |
हर छोटी बड़ी उपलब्धी से हमारे जीवन में अनंत खुशियों का आगमन होता है ,चाहे हम अपनी मनपसंद वस्तु की खरीदारी करें यां फिर हमारी किसी इच्छा की पूर्ति हो ,अगर हमारी कोई अभिलाषा पूरी नही हो पाती तो हमे क्रोध आता है ,आकोश पनपता है और हम निराशा एवं अपार दुःख में डूब जाते है |वह इसलिए कि जैसा हम चाहते है वैसा हमे मिल नही पाता ,ऐसी परिस्थितियों से कोई उभर कर उपर उठ जाए ,यां आशा ,निराशा में सामंजस्य स्थापित कर सके तो हमारा दामन सदा खुशियों से भरा रहे पाए गा |अपने अंतर्मन की ऐसी आवाज़ सुन कर अनान्यास ही रितु के मुख से निकल पड़ा ''नही नही .यह तो बहुत ही मुश्किल है ,जब हम उदास होतें है तब तो हम और भी अधिक उदासी एवं निराशा में डूबते चले जाते है ,''|उन भारी पलों में हमारी विचारधारा ,हमारी सोच केवल हमारी इच्छा की आपूर्ति न होने के कारण उसी के इर्द गिर्द घड़ी की सुई की तरह घूमती रहती है |इन्ही पलों में अगर हम अपनी विचार धारा को एक खूबसूरत दिशा की ओर मोड़ दें तो जैसे जलधारा को नई दिशा मिलने के कारण बाढ़ जैसी स्थिति को बचाया जा सकता है ठीक वैसे ही विचारों के प्रवाह की दिशा बदलने से हम निराशा की बाढ़ में डूबने से बच सकतें है
|हमारी जिंदगी में अनेक छोटी छोटी खुशियों के पल आते है ,क्यों न हम उसे संजो कर रख ले ?,जब भी वह पल हमे याद आयें गे हमारा मन प्रफुल्लित हो उठे गा |क्यों न हम अपने इस जीवन में हरेक पल का आनंद लेते हुए इसे जियें ? जो बीत चुका सो बीत चुका ,आने वाले पल का कोई भरोसा नही ,तो क्यों न हम इस पल को भरपूर जियें ?इस पल में हम कुछ ऐसा करें जिससे हमे ख़ुशी मिले ,आनंद मिले |जो कुछ भी हमे ईश्वर ने दिया है ,क्यों न उसके लिए प्रभु को धन्यवाद करते हुए , उसका उपभोग करें |''हर घड़ी बदल रही है रूप जिंदगी ,छाँव है कही ,कही है धूप जिंदगी ,हर पल यहाँ जी भर जियो ,जो है समां कल हो न हो ''रेडियो पर बज रहे इस गीत के साथ रितु ने भी अपने सुर मिला दिए |
रेखा जोशी

सार यही जीवन का

देखती हूँ हर रोज़ 
अपनी बगिया के पेड़ पर 
नीड़ इक झूलता हुआ 
महफूज़ थे जिसमें 
वो नन्हे से 
चिड़िया के बच्चे 
चोंच खोले आस में 
माँ के इंतज़ार में 
पाते ही आहट उसकी 
चहचहाते उमंग से 
उन नन्ही सी चोंचों को  
भर देती वह दानों से 
जो लाई  दूर से 
अपने नन्हों के लिए 
दिन पर दिन गुजरते गए 
घोंसला छोटा हुआ 
और बच्चे बढ़ते गए 
देखा इक दिन नीड़ 
बैठी चुपचाप वह 
भर ली 
उड़ान बच्चों ने 
रह गई  अकेली
सार यही जीवन का 
सार यही जीवन का 


रेखा जोशी 

चाहते तुम्हे हम दिल ओ जान से अपनी

तुम हमसे अब बाते बेकार मत करना
बिना वजह तुम हमसे तकरार मत करना
चाहते तुम्हे हम दिल ओ जान से अपनी
हमारी मुहब्बत से  इंकार मत करना

रेखा जोशी

Monday 20 April 2015

हाइकू

नदी उतरी 

दामन पहाड़ का 
बहती चली 
..........  
चमचमाती 
पहाड़ से लिपटी 
नदी बहती 
………… 
आकाश पर 
चाँद और सूरज 
रहे विचर 
…………
सूरज चाँद 
खेलें आँख मिचोली 
है आते जाते 
.............
बसंत आया 
पतझर भगाया 
फूल बगिया 
................
सूना बसंत 
जीवन पतझड़ 
बिन सजन 

रेखा जोशी 

हो रहे लहूलुहान रिश्ते इस दुनियाँ में

जीवन की दौड़ में देखों बिखरते  रिश्ते
पाषाण हृदय लिये  देखो घूमते  रिश्ते
हो रहे   लहूलुहान रिश्ते इस दुनियाँ में
पत्थर की बैसाखियाँ लिये चलते रिश्ते

रेखा जोशी 

आओ भगिनी मिटा कर द्वेष बने सखियाँ

बहन हूँ तुम्हारी 
सौतेली हुई तो क्या 
करती हूँ स्नेह तुमसे 
चाहती हूँ तुम्हे बनाना अपना 
और तुम 
रहती हो खफा खफा मुझसे 
नहीं करती मै  ईर्ष्या तुमसे 
और तुम 
डाह की अग्नि में 
क्यों जला रही हो खुद को 
जलन यह तुम्हारी देगी मिटा 
तुम्हारे अंतस के प्रेम को 
आओ भगिनी मिटा कर द्वेष 
बने सखियाँ 
रहें मिलजुल कर 
दे सुख  दुख में साथ 
इक दूजे का 

रेखा जोशी 

Sunday 19 April 2015

सपनो को नैनो में भर के साजन [गीत ]

गीत 

सपनो को नैनो में भर के साजन 
अरमानो की डोली में बैठे हम 
 .... 
दिल में अब हलचल की इन नैनो ने 
आँखों में मेरे है सपने  तेरे 
कैसे रोकें मन को बालम  हम अब
यह क्या कर डाला है तुमने  साजन 
… 
जीवन में जिस दिन से आये  हो तुम 
खुशियाँ ही खुशियाँ अब लाये हो तुम 
है जागी चाहत  दिल में   मेरे अब 
महके  यह आँगन अब तुमसे साजन 
.... 

सपनो को नैनो में भर के साजन 
अरमानो की डोली में बैठे हम 
 .... 
रेखा जोशी 

बहुत रोये सनम तेरे लिये हम

तुझे चाहें सदा अब ज़िंदगी में 
न हो हमसे खफा अब ज़िंदगी में

रहे तन्हा बिना तेरे सहारे 
सताये गी वफ़ा अब ज़िंदगी में 

बहुत रोये सनम तेरे लिये हम 
नही कुछ भी कहा अब ज़िंदगी में 

तड़प तुम यह हमारी देख लो अब 
मिले जो इस दफा अब ज़िंदगी में

न कर शिकवा बहारों से सनम तू
नही वह बेवफा अब ज़िंदगी में

रेखा जोशी

जाने किस कसूर की सजा पा रहे है हम

काश  मेरे  जीवन में न  आये  होते तुम
जाने किस कसूर की सजा पा रहे है  हम
हमने  तुम्हे  सदा  जी जान से  है  चाहा
आखिर क्यों हमारा इम्तिहान ले रहे तुम

रेखा जोशी 

Saturday 18 April 2015

सतरंगी आसमाँ


ढलती साँझ
उदास सी चुपचाप
सुनती रही
सागर की लहरों का शोर
तोड़ती रही वह मौन
सागर तट का
सुरमई शाम सिहर उठी
लहरों की गर्जना से
और सूरज धीरे धीरे
छूने लगा
आँचल सुनहरी लहरों का
नाचती थिरकती झूम उठी
लहरें पाकर
लालिमा सूरज की
खामोश शाम भी
चहक उठी देख
सतरंगी आसमाँ

रेखा जोशी 

Friday 17 April 2015

श्रीमद भगवद्गीता से :----

मेरे पापा द्वारा रचित

श्रीमद भगवद्गीता से :----

जन्म कर्म जो मेरे दिव्य दिव्य जाने तत्व से
देह छोड़ न जन्म ले पाये अर्जुन वह मुझे
.
राग भय क्रोध तज मुझ में मगन मेरी शरण
ज्ञान तप से पुनीत आये मुझ में बहुत जन
..
जैसे जो मुझे भजें वैसे भजूँ मे उन्हें
मार्ग मेरे पर चले मनुष्य सभी ओर से
..
कर्मफल जो चाहते देवगण को पूजते
शीघ्र मानुष लोक में कर्म का फल है मिले
..
महेन्द्र जोशी

Thursday 16 April 2015

नई सुबह

पल पल यूँ ही हमारी गुज़रती ज़िंदगी
हर पल यहाँ नये पल में ढलती ज़िंदगी
हर दिन सूरज लाये आशा की नवकिरण
रोशनी दामन हमारा  भरती ज़िंदगी

जी हां रौशनी को अपने दामन में भरना चाहते हो तो मायूसियों से दामन छुड़ाना पड़ेगा | हार और जीत ज़िंदगी के दो पहलू है लेकिन हार को जीत में बदलना ही ज़िंदगी है ,जीत के लिए संघर्षरत इंसान अपनी गलतियों से सीखता हुआ ,चाहे देर से ही अंतः अपनी मंज़िल पा ही लेता है ,बस सिर्फ ज़िंदगी की नई सुबह को ओर कदम बढ़ाने का जज़्बा होना चाहिए | अक्सर लोग ज़िंदगी की परेशनियों से घबरा जाते है और उन से बचने के लिए नए नए रास्ते खोजना शुरू कर देते और कई बार तो वह खुद को कई चक्करों में बुरी तरह से फंसा लेते है जहां से उनका निकलना बहुत कठिन हो जाता है ,कभी ज्योतिषों ,तांत्रिकों के चक्कर में तो कभी उधारी की दलदल में फंस कर रह जाते है , यहां तक कि कई लोग अवसाद की स्थिति में पहुंच जाते है ,कभी कभी तो लोग अपनी नाकामियों से परेशान हो कर आत्महत्या कर लेते है |

इस संसार में हर इंसान की जिंदगी में अच्छा और बुरा समय आता है ,लेकिन जब वह उन परस्थितियों का सामना करने में अपने आप को असुरक्षित एवं असमर्थ पाता है तो उस समय उसे किसी न किसी के सहारे या संबल की आवश्यकता महसूस होती है ,जिसे पाने के लिए वह इधर उधर भटक जाता है ,जिसका भरपूर फायदा उठाते है यह पाखंडी पोंगे पंडित |अपने बुरे वक्त में अगर इंसान विवेक से काम ले तो वह अपनी किस्मत को खुद बदलने में कामयाब हो सकता है ,आत्म विश्वास  ,दृढ़ इच्छा शक्ति, लगन और सकारात्मक सोच किसी भी इंसान को सफलता प्रदान कर आकाश की बुलंदियों तक पहुंचा सकती है ,हम जिस नजरिये से जिंदगी को देखते है जिंदगी हमे वैसी ही दिखाई देती है लेकिन केवल ख्याली पुलाव पकाने से कुछ नही होता ,जो भी हम सोचते है उस पर पूरी निष्ठां और लगन से कर्म करने पर हम वो सब कुछ पा सकते है जो हम चाहते है,हम अपने भीतर की छुपी हुई ऊर्जा को पहचान नही पाते | ईश्वर ने हमे बुद्धि के साथ साथ असीम ऊर्जा भी प्रदान की है ,अक्सर मानव भूल जाता है कि अगर वह किसी भी कार्य को पूरे मन ,उत्साह और जी जान से करे तो उसमे ईश्वर भी उसकी सहायता करता है |

कहते है ”बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध ले ,हम सब जानते है हर रात के बाद एक नई सुबह आती है ,शाम का सूरज रात में ढल जाता है और फिर सुबह का सूरज एक नई आशा की किरण लेकर आता है ,कहते है उम्मीद पर दुनिया कायम है, अपनी नाकामियों पर निराश न हो कर अगर नए सिरे से पूरे जोश के साथ ज़िंदगी की शुरुआत करे तो हमे सफल होने से कोई रोक नहीं सकता |

है दुःख होता देख तुम्हे
कैद दीवारों में
जो बना रखी तुमने
अपने ही हाथों
खुद को कैद कर
क्यों पिंजरे में मुहँ छिपाये
बैठे रहोगे  कब तक
पँख लपेटे बुनते रहोगे
जाल इर्द गिर्द अपने
तोड़ दो बंधन सब
भरलो उड़ान फैला कर अपने पँख
उन्मुक्त ऊपर दूर गगन में
विश्वास है तुम्हे
खुद पर
जानते हो तुम मंज़िल अपनी
तुम्हे है उड़ना
उठो फैलाओं अपने पँख
ज़िंदगी की नई सुबह में
भरलो तुम फिर से
इक लम्बी उड़ान

रेखा जोशी 

पहचान ले खुद को

देखा  झांक कर 
मन के आईने में 
नही पहचान 
पाया  खुद को 
धूल में लिपटे 
अनेक मुखौटे 
नहीं था वो मै 
मूर्ख मनवा 
पहचान ले खुद को 
साफ़ कर ले धूल को 
और 
फेंक दे सब मुखौटे 
कर पहचान 
असत्य और सत्य की 

रेखा जोशी 

दिये धोखे हमारी ज़िंदगी ने जब

सजन  तेरा  सहारा प्यार देता  है 
दिल और जान अपनी वार देता है 
दिये  धोखे हमारी ज़िंदगी ने जब 
सजन जीवन यहाँ   संवार देता है 

रेखा जोशी 

श्रीमद भगवद्गीता से :----

श्रीमद भगवद्गीता से :----

काम यह क्रोध यह जो रजोगुण से है बने
महाअशन महापाप जान तू वैरी इन्हें

काम का आवास है ये मन बुद्धि इन्द्रियां
इन द्वारा ज्ञान ढक मोह ले जीवात्मा

महेंद्र जोशी 

Wednesday 15 April 2015

कदम सफर में अपने निशान रख देगा


दिये यहाँ  जब धोखे जहान ने साजन 
मिले हमे तुम जो  दास्तान रख देगा 
… 
चले गये तुम जो  छोड़ कर हमे  तन्हा 
तिरे कदम पे अपनी युँ  जान रख देगा

बहुत हसीन सफर ज़िंदगी यहाँ गुज़रा
कदम सफर में अपने निशान रख देगा 

मिले नही तुम  रोये बहुत यहाँ हम तो 
युँ  प्यार में अब अपना उफान रख देगा 
… 
किसे कहें हम यह दास्तान अब दिल की 
क़लम वरक़ पे नई दास्तान रख देगा

रेखा जोशी 



भूख प्यास से बिलख रहे बच्चे

भीगे नयन  देख कर रूखी  धरा
बरखा की आस लिये प्यासी धरा
भूख  प्यास  से बिलख रहे  बच्चे
करुणा  माँ की  पुकारे सूखी धरा

रेखा जोशी 

चौपाइयाँ

राम नाम हृदय  में बसाया,कुछ नहीं अब हमे है भाया
राम नाम के गुण सब गायें  ,नाम बिना कुछ नहीं सुहाये
....
सीताराम भजो मन प्यारे ,दुखियों के सब कष्ट  निवारे
 भगवन जिसके ह्रदय समाये , पीड़ा रोग पास ना  आये

दीन बंधु सबका रखवाला , कर कृपा अपनी नंदलाला
एक ही सहारा प्रभु  नाम का ,पी ले प्याला राम नाम का
....
राम नाम घट घट का वासी ,चारो धाम ह्रदय में काशी
मन के तार प्रभु से मिला ले , है भक्तों के राम रखवाले

दुःख निवारे हरे सब पीड़ा ,राखो  मन अपने रघुवीरा
दे दो प्रभु  तुम हमे सहारे ,मीत  बनो तुम ईश  हमारे

रेखा जोशी

आओ मिल संवारे अब यह ज़िंदगी [गीत ]

 [गीत ]

आओ मिल संवारे हम  यह ज़िंदगी
मिलकर सभी गुज़ारें हम यह ज़िंदगी

अपनों के लिये हमने बहुत किया है
इनके  लिये तो हमने बहुत जिया है
अब गैर को अपना  बना यह ज़िंदगी
....
दुख दर्द बाँट सबके खुशियाँ दे यहाँ
कर ले पुरी अपनी सब हसरतें यहाँ
चाहत के आइने  मुस्काये ज़िंदगी
....
है दो  दिन की अब तो  ज़िंदगी यहाँ
है धूप  छाँव सबको तो मिलती यहाँ
छाँव  में  भी  तो गुनगुनायें  ज़िंदगी
....
आओ मिल संवारे हम  यह ज़िंदगी
मिलकर सभी गुज़ारें हम  यह ज़िंदगी

रेखा जोशी 

Tuesday 14 April 2015

मिलते है ख़ुशी और गम तकदीर से अपनी


ज़िंदगी  में   सुख दुःख  वह रहने  नहीं देता
प्यार  से अपने  दुःख   वह  सहने नहीं  देता
मिलते है ख़ुशी  और गम तकदीर से अपनी
यहाँ पर किसी को कुछ वह कहने नहीं  देता

रेखा  जोशी 

Friday 10 April 2015

प्रधानाचार्य  [कोई नृप होय हमें क्या हानि]

 एक महाविधालय के प्रधानाचार्य के पद के लिए दो उम्मीदवारों ने इंटरव्यू दिया और दोनों ही सशक्त ,एक गोल्ड मेडिलिस्ट और दूसरे  की अंतराष्ट्रीय स्तर की उपलब्धियाँ ,एक को चुना गया तो दूसरे ने अदालत में केस डाल  दिया । केस अदालत में होने के कारण लम्बा खिंच गया ,बेचारे अध्यापक और विधार्थी दोनों परेशान ,महाविधालय में दबे पाँव राजनीति डेरा डालने लगी महाविधालय दो गुटों में बंटने लगा ,आखिरकार विद्यार्थियों  के लीडर ने उन्हें  समझाया कि अपने को इस राजनीति  से अलग रखो ,''कोई नृप होय हमें क्या हानि'' चाहे कोई भी प्रधानाचार्य बने उन्हें तो अपनी पढ़ाई से मतलब है

रेखा जोशी 

कभी रूठ कर अब सताना नहीं तुम

कसम प्यार की अब न जाना कहीं तुम 
कभी  रूठ  कर  अब  सताना  नहीं तुम 
सदा   हम  निभाये   सजन  साथ  तेरा 
न   होना  सनम अब  परेशाँ  कभी तुम 

रेखा जोशी 
  

Thursday 9 April 2015

देखो हो रहा अब मिलन धरती गगन का


चलो चलें हम दोनों सजन  क्षितिज के पार
आगोश   में   सूरज    सागर    के    बेकरार
देखो हो  रहा  अब  मिलन  धरती गगन का
लहर   लहर  सुनहरा   गोला   झूमें   अँगार

रेखा जोशी 

रंग बिरंगा पुष्पित संसार

झील के उस पार
दूर गगन को
चूम रही अरुण की
सुनहरी रश्मियाँ 
आँचल उसका 
रंग सिंदूरी चमक रहा 
आसमां भरा गुलाल
अनुपम सौंदर्य
बिखरा धरा पर
हो कर सवार कश्ती पर
आओ सजन निहारें
रंग बिरंगा पुष्पित संसार
तृप्त हो मन
देख अलौकिक छटा
जो समाई कण कण में
उसकी सृष्टि में

रेखा जोशी 

देते रहे धोखा

दगाबाज तुम
प्यार की डगर
नही समझते
देते रहे धोखा
अपना समझा
गैरों के हो गये

रेखा जोशी 

हुये झंकृत यहाँ अंतर्मन के तार

सुन्दर  फिजाये खूबसूरत  नज़ारे
गुनगुना रही यहाँ उन्मुक्त हवायें
हुये  झंकृत यहाँ  अंतर्मन के तार
गीत गा रही यहाँ मदमस्त  बहारें
रेखा जोशी 

Wednesday 8 April 2015

अलिवर्णपाद छंद


चलें साथ  साथ
हम दोनों आज
मधुर चांदनी
दूर कहीं आज
छूटे नहीं हाथ
निभायें गे साथ
…………।
चाहते हमारी
कुछ हुई पूरी
है कुछ अधूरी
चाहतों में डूबा
जीवन चलता
उम्मीद से बंधा

रेखा जोशी 

घट घट में है वही समाया ,जिन खोजा उसने ही पाया

जय शिव शंकर बम बम भोले ,नयन तीसरा जब वह खोलें 
 अगन सब ओर बरसाये, त्राहि त्राहि चहुँ ओर मचाये 

मन मंदिर में ईश हमारे ,ढूँढ  रहे सब मारे मारे
घट घट में है वही  समाया ,जिन खोजा उसने ही पाया

प्रभु की अपरम्पार यह लीला ,सर चमके अंबर यह नीला 
हरे भरे उपवन महकाये ,रंग बिरंगे सुमन खिलाये 

हाथ जोड़ कर शीश झुकाये ,सदा हमारे रहो सहाये 
विनती करे है हम तुम्हारी ,रखना लाज प्रभु तुम हमारी 

राह निहारते  प्रभु  तुम्हारी , आये अब हम शरण तिहारी 
नैनों  में तुम आन समाये  , कुछ भी ना तेरे बिन भाये

रेखा जोशी 

Tuesday 7 April 2015

फैले जगत में उजियारा ज्ञान से


दीप ज्ञान  का जला   हे  माँ शारदे
कृपा   तेरी   बनी    रहे  माँ  शारदे
फैले  जगत  में उजियारा ज्ञान से
शत शत नमन करें तुझे माँ शारदे


रेखा जोशी 

जन्म भर निभाये सजन साथ हम

धड़कते हुए दिल में अरमान रख 
सजन ज़िंदगी अब युँ आसान रख 
… 
न हो तुम कभी भी परेशाँ सजन 
कभी  चेहरे पर युँ  मुस्कान रख 
.. 
बहुत प्यार हमने किया है सनम 
कसम प्यार की अब युँ ईमान रख 
...
अगर तुम न समझो वफ़ा प्यार में 
हमारी वफ़ा को  न अनजान रख 
.... 
जन्म भर निभाये सजन साथ हम
रहो  दिल  हमारे युँ  भगवान रख 

रेखा जोशी 

उठे ज्वाला भीतर जलाये दिल रह रह कर

धरती पर कट के उड़तीं  पतंग जब आये
टूटे हुये  दिल की आह जब लब पर आये
उठे ज्वाला भीतर जलाये दिल रह रह कर
ओढें  मुस्कान झूठी  नैन सजल भर आये

रेखा जोशी

Monday 6 April 2015

सुन्दर चहकते पंछियों ने भर ली उड़ान

ऊषा की उजली  किरण का किया अभिनंदन
शीतल पवन की सिहरन का किया अभिनंदन
सुन्दर  चहकते   पंछियों  ने भर  ली  उड़ान
सृष्टि के इस अभिवादन का किया  अभिनंदन

रेखा जोशी 

अब सनम मुश्किलें हम न पायें कभी


राह पे हम चलें हाथ थामे कभी 
गम न कर हम नही साथ छोड़े कभी 
… 
मेल हम सब  रखेंगे यहाँ पर अगर 
अब सनम मुश्किलें हम  न पायें कभी
… 
मान जाओ सजन रूठना अब नही 
जान जाये हमारी न माने कभी 
… 
रात दिन हम जिये सनम यह ज़िंदगी 
ज़िंदगी में  न  हम साथ  छोड़ें कभी 
.... 
चार दिन की जवानी मिले है यहाँ 
क्या पता ज़िंदगी रूठ जाये कभी
....
रेखा जोशी



मधुर प्रेम लहरों के संगीत से

बंधे हम तुम
प्यार की लहरों से
दौड़ती जो  लहू बन कर
हमारी रगों में
हर्षाया  हमारा  मन
मधुर प्रेम लहरों के संगीत से
हुआ स्पंदन नव अंकुर  में
सिमट गई  भावनायें
हमारी
पुलकित हुआ मन
नव सृजन पे
आगोश में धरा के
रहेंगे खिलते सुमन
मधुर प्रेम लहरों के संगीत से

रेखा जोशी 

Sunday 5 April 2015

उम्मीद की इक आस

क्षितिज के उस पार
आस लिए सूरज की
देख रहे वो बच्चे
कुछ अर्द्धनग्न
कुछ मैले  कुचैले कपड़ों में
लिपटे हुए
टकटकी बांधे
निहार रहे शून्य में
एक आस लिए
कभी तो मुस्कुराये गी
धूप वहाँ पर 
कभी तो आयेगी
रोशनी वहाँ पर 
कभी तो जगमगाएँ गी
वह काली दीवारें
कभी तो खिलें गे
उम्मीदों के कमल 
चहकेगें वहाँ पर
सुन्दर रंग बिरंगे
पँछी 
हसें गे तब वह भी
सुन कर लोरियाँ
ख्वाबो के महल में
माँ की
ढेर सारी ख्वाहिशें लिये
मन में 
सो गये वह मन में 
उम्मीद की इक 
आस लिए

रेखा जोशी