Monday 30 November 2015

खट्टे मीठे रिश्ते देते एहसास


है  जीवन   में  बनते  बिगड़ते  रिश्ते
दिल  की  गहराई   से  सँवरते  रिश्ते
खट्टे     मीठे   रिश्ते    देते    एहसास
यहाँ प्यार मुहब्बत से खिलते  रिश्ते
रेखा जोशी

आईना मुहब्बत का धुंधला सा गया

न कोई  शिकवा न शिकायत तुमसे
दिल के  जज़्बात  अब  कहें किससे 
आईना मुहब्बत का धुंधला  सा गया
देखी थी कभी तस्वीर ए यार जिसमे

रेखा जोशी 

Sunday 29 November 2015

जाने क्यों आये सजन हमारी दुनिया में तुम

कट रही थी यहाँ  ज़िंदगी अच्छी भली हमारी
यह ज़िंदगी  बिन  तुम्हारे   बेहतर थी  हमारी
जाने  क्यों आये सजन  हमारी दुनिया में तुम
आ  कर  अब छीनी  तुमने हमसे ख़ुशी हमारी

रेखा जोशी

Wednesday 25 November 2015

वक्त तो अब यह बदलने से रहा

गीतिका

फूल गुलशन में महकने  से रहा 
दिल हमारा अब बहलने से रहा 
रात  साजन नींद में अब सो  गई 
थाम दामन भोर चलने से रहा 

चाह तेरी इस कदर रुला गई 
नीर   नैनों  का बहने  से रहा 

पास आओ तुम कभी तो  हमसफ़र 
वक्त तो अब यह बदलने  से रहा 

साथ तेरा तो निभाया ज़िंदगी 
साथ तेरे आज  चलने से रहा 

रेखा जोशी 

शिक्षित बेटी है गर्वित ममतामयी अखियाँ

है  दुनिया हमारी बस  ममता की अखियाँ
है  ख़्वाब सजे  माँ की ममता भरी अखियाँ
जहाँ  मिला  वही  सजाया  आशियाँ हमने
शिक्षित बेटी है गर्वित ममतामयी अखियाँ

रेखा जोशी


हसरते मरती रही रूठी चाहते हमारी पल पल

सतरंगी  इस  दुनिया  में मिला  हमें कोई रंग नही
मिला साथ रिश्तों का सबको कोई हमारे संग नहीं
हसरते  मरती  रही  रूठी  चाहते  हमारी  पल पल
जी  रहे अब यहाँ ज़िंदगी लेकिन  कोई उमंग नही

रेखा जोशी 

जो न आया घर हमारे रौशनी कैसे कहूँ

जो न  समझे दर्द उसको आदमी कैसे कहूँ 
जी सके हम जो नही वह ज़िंदगी कैसे कहूँ 
…… 
आसमाँ पर चाँद निकला हर तरफ बिखरी किरण 
जो   न  उतरे   घर   हमारे   चाँदनी    कैसे   कहूँ 
...... 
मुस्कुराती हर अदा तेरी सनम जीने न दे 
हाल  अपने  की  हमारे   बेबसी कैसे कहूँ 
…… 
राह मिल कर हम चले थे ज़िंदगी भर के लिये 
मिल सके जो तुम न हम को वह कमी कैसे कहूँ 
…… 
हो  गया रोशन जहाँ जब प्यार मिलता है यहाँ 
जो न आया  घर हमारे रौशनी कैसे कहूँ 

रेखा जोशी 

Tuesday 24 November 2015

रात काली यह सुबह में आज ढलनी चाहिये

रात  काली  यह  सुबह  में आज  ढलनी चाहिये  
ज़िंदगी  की  शाम  भी  साजन सँभलनी चाहिये 
इस  जहाँ में प्यार की  कीमत को'ई समझे नहीं
साज पर इक प्यार की धुन भी मचलनी चाहिये 

रेखा जोशी  

Monday 23 November 2015

तड़पता दिल भूख से बिलखते बच्चे देख कर

टूटे    फूटे    झोंपड़ों     से    झाँकती   गरीबी 
नहाते बच्चे    छप्पड़ों   से   झाँकती   गरीबी
तड़पता दिल भूख से बिलखते बच्चे देख कर
फ़टे   पुराने    चीथड़ों    से  झाँकती    गरीबी

रेखा जोशी

विष्णुपद--छंद

विष्णुपद--छंद 
रघुवर राम ह्रदय में राखे , सबका करे भला 
जो जन जाने  पीर पराई , सबसे गले मिला। 
दीन दुखी  गले से लगाये  ,सबसे स्नेह करे 
उसको राह भगवन दिखाये ,उस पर कृपा रहे । 

छंद आधारित मुक्तक 
रघुवर राम ह्रदय में राखे , सबका करे भला 
जो जन जाने  पीर पराई , सबसे गले मिला। 
दीन दुखी  गले से लगाये  ,सबसे स्नेह करे 
उसको राह भगवन दिखाये,पुष्प वन में खिला । 

रेखा जोशी 

Sunday 22 November 2015

सुन्दर मन करे कल्याण जन का


मल मल करते स्नान हम तन का
धो  लो  मैल अब  अपने   मन का
तन  सुन्दर  मन मैला किस काम
सुन्दर मन करे कल्याण  जन का

रेखा जोशी

नही मिली ज़िंदगी मुकम्मल यहाँ इसे ढूँढ़ते सभी जन


कहीं मिले ज़िंदगी कहीं ज़िंदगी तले मौत जीतना है 
मिली किसी को हजार खुशियाँ कहीं  मिली आज वेदना है 

नही  मिली ज़िंदगी मुकम्मल यहाँ इसे ढूँढ़ते सभी जन
मिले हमे ज़िंदगी जहाँ  में कभी यही आज कामना है

खिले यहाँ फूल राह में ज़िंदगी सुहानी बने  हमारी
ख़ुशी मिले  कब हमें जहाँ में सजन यही आज जानना है

यहाँ मिले गम हमें सुनाये किसे पुकारें किसे जहाँ में
नहीं हमारा जहान में  गम  हमें यहाँ आज  झेलना है

नहीं मिला प्यार ज़िंदगी आज शाम में ढल गई सजन अब
न रात गुज़री यहाँ न सुबह' हुई अँधेरा यहाँ घना है

रेखा जोशी






तैरते बादल नील गगन पे

तैरते 
बादल नील गगन पे  
रूप 
अपना भिन्न भिन्न 
आकृतियों में
बदलते 
हवा संग 
उड़ता जाये 
पागल मनवा मेरा 
सपनो 
को संजोये  
उभरती
आकृतियों में 
पिघल गई आकृतियाँ 
बादलो की 
बूँद बूँद बरसती 
धरा पे 
सपने मेरे घुल गये 
मोती से 
अश्को में झड़ने लगे
 नैनो से 
बरसती जलधारा में 

रेखा जोशी 

कहाँ से आये हम और जायेंगे फिर कहाँ


ज़िंदगी का  सफर  सभी को तय कर जाना है
बुनते  रहें    जीवन  में  हम   ताना   बाना  है
कहाँ  से  आये  हम  और   जायेंगे  फिर  कहाँ
न  कोई  मंज़िल  किसी की न ठौर ठिकाना है

रेखा जोशी 

Saturday 21 November 2015

राह निहारती गोरी ,पिया मिलन की आस है

आओ चलें कहीं दूर ,
हाथों में लेकर हाथ , कहनी दिल की बात है । 
झूमते  नभ पर तारे ,
चाँदनी गुनगुना रही ,मुस्कुरा रहा चाँद है । 
खिलते सुमन उपवन  में ,
तितली नाचे झूम के ,छाई  बहार ख़ास है 
सजन गये अब परदेस ,
राह निहारती गोरी  ,पिया मिलन की आस है । 
चमका सूरज गगन पर ,
गुज़ारा  दिन यादों  में ,आई अब तो शाम है 

रेखा जोशी 









Friday 20 November 2015

धोखा और फरेब मिलता यहाँ पर हर पल .

आसमान  में  शीतल  चांदनी   छाई है 
लहरें प्यार भरी यहाँ दिल में लहराई है
धोखा और फरेब मिलता यहाँ पर हर पल .
दिल   दीवाने न  जाना उधर परछाई है
रेखा जोशी


उमंग से भरी वह उछलती इठलाती

छोड़   कर   दामन  पहाड़ों   का  इतराती
उमंग   से   भरी   वह  उछलती  इठलाती
आकुल  नदिया  चली समाने  सागर   में
मिलने  प्रियतम  से लहराती   बलखाती

रेखा जोशी 

खिलेंगे फूल बगिया में कभी तो

निभाया  प्यार अब  हमने यहाँ पर
दिया   धोखा  हमें  तुमने  यहाँ  पर
खिलेंगे  फूल   बगिया  में कभी  तो
लगी महफ़िल पिया सजने यहाँ पर

रेखा जोशी

Thursday 19 November 2015

लिए हाथों में हाथ चल रहें साथ साथ

आज
है कुछ ख़ास
पाया
मैने सुखद एहसास
सुबह सुबह
मुस्कुरा रहा खिड़की से
अरुण
बिखेर रहा स्वर्णिम रश्मिया
दे रहा बधाई हमे
देख उसे
पाया मैने सुखद एहसास

खिले मेरे अंगना
चालीस बसंत
हर सुबह
संग संग चले
हर रात
संग संग मुस्कुराये
जीवन भर
संग संग हँसे
संग  संग रोये
लिए हाथों में हाथ
चल रहें साथ साथ
मिला जो तेरा हाथ
पाया मैने सुखद एहसास

रेखा जोशी

Wednesday 18 November 2015

आ रहे अब याद बीते दिन हमें

गीतिका
मापनी /बहर 2122 212 2 212

क्या ज़माना आ गया देखा यहाँ
अब  पढ़ा  बच्चा  रहा  समझा यहाँ

अब लगा कर आँख पर चश्मा नया
खोल पुस्तक फलसफा  देता यहाँ

याद आता प्यार से बचपन भरा
काश हम फिर  खेलते  खेला  यहाँ
....
दिन सुहाने खो  गये जाने किधर
ज़िंदगी का चल रहा मेला यहाँ
....
आ रहे अब याद बीते दिन हमें
ढल चुकी अब  शाम की बेला यहाँ

रेखा जोशी





Tuesday 17 November 2015

बीत जायेंगी घड़ियाँ इंतज़ार की

याद मेरी  उनको जब आती होगी
आँसूओं के आँख भर जाती होगी
बीत  जायेंगी घड़ियाँ इंतज़ार की
मिलेंगे तब दिया संग बाती होगी

रेखा जोशी


Monday 16 November 2015

बगिया महक उठी दिल को हर ख़ुशी मिल गई

तकदीर  से  मिले   तुम  तो  ज़िंदगी  मिल गई 
छट  गया   अंधेरा  हमें    रोशनी    मिल    गई 
खिल खिल गये यहाँ पर उपवन महक उठे तब 
बगिया महक उठी दिल को  हर ख़ुशी मिल गई 

रेखा जोशी 

भर दे उजाला जग में

बनाये जो 
मानव को मनुज 
करते उसे हम 
कोटि कोटि प्रणाम 
मिटा कर अंधकार 
प्रज्ज्वलित करे ज्ञान दीप 
करते उसे हम 
शत शत नमन 

प्रकाशित नभ पर 
भर दे उजाला जग में 
स्वर्णिम अरूण को 
करते नमस्कार 

रेखा जोशी 



मौन हूँ फिर भी मेरी लेते सुन पुकार

भक्ति  करते हम तेरी मन ही मन अपार 
मौन  हूँ  फिर  भी  मेरी  लेते   सुन  पुकार
हे भगवन अजब रिश्ता हम से  है तुम्हारा
कृपा  गर  सर पर  हो   देते  जीवन सँवार

रेखा जोशी 

Sunday 15 November 2015

कब तक झुलसे गी मानवता आतंक के धमाकों से


बिछी   लाशें  रोती  आँखें  चारो  ओर  मचा  चीत्कार
अब छिन गया सबका सुख चैन है मच रहा   हाहाकार
कब  तक  झुलसे  गी मानवता  आतंक के धमाकों  से
करना   होगा   मिलकर  सबको  इन दरिंदों  का संहार

रेखा जोशी 

मौसम ने किया ऐसा इशारा


ज़िंदगी  में  दिवस  ख़ास  आ गये
घनन घनन घन अब रास आ गये
मौसम   ने   किया  ऐसा     इशारा
दूर   जा   रहे    वो   पास  आ  गये

रेखा जोशी 

Friday 13 November 2015

है पंछी इक दूजे के साथी हम तुम


धरती  अम्बर  पर  उड़ते  साथी हम  तुम 
मिल जुल कर  बाते करते साथी  हम तुम 
गाना   गा   इक  दूजे  का   दिल  बहलाते 
है   पंछी   इक   दूजे  के  साथी  हम  तुम

रेखा जोशी 


Wednesday 11 November 2015

खोये हम जाने कब से रहे भटक तन्हा तन्हा हम

दिल की लगी को 
दिल लगा कर
तुमसे
अब समझे हम 


छुपाये अपने नयनों में 
अश्क 
याद तेरी संग 

खोये हम
जाने कब से रहे  भटक
तन्हा तन्हा हम 

इक कसक इक  टीस 
दिल में छुपा कर 
खो गये  हो तुम

छोड़ा हमे 
सिसकते हुये 
लगाया 
दर्द सीने से 

याद को तेरी
बना लिया साथी 
उम्र भर के लिए  

दिल की लगी को
दिल लगा कर
तुमसे
अब समझे हम , 

रेखा जोशी

मेरी नन्ही सी प्यारी गुड़िया

मेरी नन्ही सी प्यारी  गुड़िया
भोली सूरत मासूम सा चेहरा
अपनी आँखों में चमक लिए
निहारती रहती है चेहरा मेरा
जिज्ञासा से भरे उसके नयन
 खोजते रहते है न जाने क्या
मोह लेती है वो निश्छल हसी
जब मुस्कुराती वो नन्ही परी
नन्ही नन्ही उँगलियों से जब
छूती है प्यार से चेहरे को मेरे
भर देती है वो तन मन में मेरे
इक नई उमंग इक नई तरंग
कभी खींच लेती आँचल मेरा
कभी सो जाती वो काँधे पे मेरे 
इस जिंदगी की शाम में उसने
आगमन किया नव भोर का

रेखा जोशी 

Sunday 8 November 2015

ज़िंदगी यूँही चलती रहे

वक्त जो
है गुज़र जाता
छोड़ जाता पीछे कई
खट्टी मीठी यादें
है भर आती आँखें कभी
या लब पे
आती मुस्कान कभी
पर गुज़रा हुआ वक्त
नीव बन  संवारता
आने वाले
जीवन के पल
है भरता जीवन में रंग
दे जाता हमे सीख नई
भुला कर  दर्द वो
है छिपे जो
अतीत के आँचल तले
ज़िंदगी यूँही चलती रहे
होंठों पर
मुस्कान लिये

रेखा जोशी




चाहे तमस काली हो कितनी भी

दीपक  प्रेम   के यहाँ जलते रहें
सदा  बाती दिया सा  जलते  रहे
चाहे तमस काली हो कितनी भी
आस  के  दीपक सदा जलते  रहे

रेखा जोशी 

Saturday 7 November 2015

खिले है फूल पल दो पल चमन में अब

सजन तेरी हमे जब याद आती है 
ख़ुशी रह रह पिया तब गीत गाती है 
.... 
मचल जाते यहाँ अरमान दिल में जब 
सुहानी रात भी तब गुनगुनाती है 
....
चले आओ पुकारें आज दिल मेरा 
चँदा की चाँदनी भी  अब बुलाती है 
.... 
पुकारे ज़िंदगी जी लो यहाँ हर पल 
अभी तो ज़िंदगी भी मुस्कुराती है 
.... 
खिले है फूल पल दो पल चमन में अब 
बहारें आज साजन खिलखिलाती है 

रेखा जोशी 


भरता रहे रब झोलियाँ सर हाथ हो प्रभु का सदा [हरिगीतिका छंद]

जलते  रहें  सब दीप अब ,चमके सदा घर अंगना 
मिलते  रहें  सब  प्यार से खिलता रहे घर अंगना 
भरता रहे रब  झोलियाँ  सर हाथ हो प्रभु का सदा 
करते  रहें  हम   वंदना  सजता   रहें  घर  अंगना 

रेखा जोशी 


Friday 6 November 2015

खिले प्यार के फूल अब ज़िंदगी में


मिले  तुम सहारा मिला प्यार पाया 
मिली   ज़िंदगी आज  क'रार  पाया 
खिले प्यार  के फूल  अब ज़िंदगी में 
मिला प्यार जो  आज संसार पाया 

रेखा जोशी 

मिट कर पल पल भर देती है उजाला

है जलती  बाती  मिट जाने  के लिये 
आता  हर  पल  उसे जलाने के लिये 
मिट कर पल पल भर देती है उजाला 
है  रोशन  दीपक  जल जाने के लिये

रेखा जोशी 



Thursday 5 November 2015

कभी कभी जिंदगी में ऐसे भी पल आते है

जब जीवन में अपने भी पराये हो जाते है
वक्त आने पर जब वो सब पीठ दिखा जाते है
 हमने तो  उनके लिए दिल ओ जान भी वार दिया
कभी कभी जिंदगी में ऐसे भी पल आते है

रेखा जोशी

Wednesday 4 November 2015

सतरंगी रंग बिरंगी धरा हमारी

सुंदर  नज़ारों  से  भरी  धरा हमारी
हरे  भरे  वृक्षों  से सजी धरा हमारी
झिलमिलाती झीलें अनोखे है पर्वत
सतरंगी   रंग   बिरंगी   धरा हमारी

रेखा जोशी


भुजंग बना उसने चली ऐसी टेढ़ी चाल

अपने दिल का हाल उसे मीत मान बताया 
देखा   चेहरा    भोला   नही   पहचान  पाया 
भुजंग  बना   उसने  चली   ऐसी  टेढ़ी चाल 
आस्तीन  का सांप  बना  लेने जान  आया 

रेखा जोशी 

Tuesday 3 November 2015

क्या मालूम किस पल बदले यहाँ रूप

पल पल जीवन का बदले  यहाँ स्वरूप
है  कहीं पर छाँव  और कहीं  यहाँ  धूप
भर लो झोली खुशियों से इस  जीवन में
क्या मालूम  किस पल बदले  यहाँ रूप

रेखा जोशी



आईना जिंदगी का [गीत]


यह मन तो मेरा पगला है
पर आईना वो जिंदगी का
...
डूब जाता है कभी तो वो
भावनाओं के समन्दर में
उमड़ उमड़ आता है प्यार
कोई अंत नही नफरत का
...
रोता बिछुड़ने से तो कभी
गीत खुशियों के गाता कभी
है आँसू भी बहाता कभी
पर प्याला भी है प्रेम का
...
छोटा सा है यह जीवन रे
हर पल यूँ हाथ से छूटा रे
सुन ओ पगले मनुवा मेंरे
है मोल बहुत रे इस पल का
...
यह मन तो मेरा पगला है
पर आईना वो जिंदगी का

रेखा जोशी

प्रभु करें पूरा यहाँ सपना कभी

काम अच्छा  तुम यहाँ करना कभी 
फिर  करो  मंथन यहाँ अपना कभी 
तब    बने  गी   खूबसूरत   ज़िंदगी 
प्रभु  करें   पूरा  यहाँ   सपना  कभी 

रेखा जोशी 

Sunday 1 November 2015

पिया के द्वार [पूर्व प्रकाशित रचना ]


सात समुद्र पार कर
आई पिया के द्वार 
नव नीले आसमां पर
झूलते इन्द्रधनुष पर  
प्राणपिया के अंगना 
सप्तऋषि के द्वार 
झंकृत हए सात सुर
हृदय में  नये तराने |
.........................
उतर रहा वह नभ पर 
सातवें आसमान  से 
लिए रक्तिम लालिमा
सवार सात घोड़ों पर 
पार सब करता हुआ 
प्रकाशित हुआ ये जहां
अलौकिक , आनंदित
वो आशियाना दीप्त
...............................
थिरक रही अम्बर में 
अरुण की ये रश्मियाँ
चमकी धूप सुनहरी सी
अब आई  मेरे अंगना 
है स्फुरित मेरा ये मन 
खिल उठा ये तन बदन
निभाने वो सात वचन 
आई अपने पिया के द्वार 

रेखा जोशी 

तू करता चल शुभ कर्म जगत में

है  पाया  जीवन  प्रभु  की  माया
कुछ  करने  ही   दुनिया में आया
तू करता चल शुभ कर्म जगत में
रहे  सभी  पर  उसकी  छत्र छाया

रेखा जोशी 

मुस्कुराता रहे मधुबन प्यारा

है  अपनी  धरती  गगन  हमारा
मिलजुल कर यह उपवन संवारा
खिलती  कलियाँ  दे  रही  संदेश
मुस्कुराता  रहे  मधुबन   प्यारा

रेखा जोशी 

छाँव है कही ,कही है धूप जिंदगी [मेरी पूर्व प्रकाशित रचना ]

''छाँव है कही ,कही है धूप जिंदगी''

शाम का समय था ,न जाने क्यों रितु का मन बहुत बोझिल सा हो रहा था , भारी मन से उठ कर रसोईघर में  जा कर उसने अपने लिए एक कप चाय बनाई और रेडियो एफ एम् लगा कर वापिस आकर कुर्सी पर बैठ कर धीरे धीरे चाय पीने लगी |  चाय की चुस्कियों के साथ साथ वह संगीत में खो जाना चाहती थी कि एक पुराने भूले बिसरे गीत ने उसके दिल में हलचल मचा दी ,लता जी की सुरीली आवाज़ उसके कानो में मधुर रस घोल रही थी ,''घर से चले थे हम तो ख़ुशी की तलाश में ,गम राह में खड़े थे वही साथ हो लिए '', कभी ख़ुशी कभी गम ,कहीं सुख और कहीं दुःख ,इन्ही दोनों रास्तों पर हर इंसान की जिंदगी की गाड़ी चलती रहती है ,कुछ ही पल ख़ुशी के और बाकी दुःख को झेलते हुए ख़ुशी की तलाश में निकल जाते है | 

रितु अपनी ही विचारधारा  में खो सी गई थी ,क्या तलाश करने पर किसी को भी ख़ुशी मिली है कभी,शायद नही ,ख़ुशी तो अपने अंदर से ही उठती है ,जिस दिन उसके घर में ,उसकी बाहों में एक छोटी सी गुड़िया, नन्ही सी परी आई थी ,तब  उसकी और उसके पति राजेश की खुशियों का पारावार मानो सातवें आसमान को छू रहा था ,और हाँ जिस दिन राजेश की प्रमोशन हुई थी उस दिन भी तो हमारे पाँव जमीन पर ख़ुशी के मारे टिक नही रहे थे |हर छोटी बड़ी उपलब्धी से हमारे जीवन में अनंत खुशियों का आगमन होता है ,चाहे हम अपनी मनपसंद वस्तु की खरीदारी करें यां फिर हमारी किसी इच्छा की पूर्ति हो ,अगर हमारी कोई अभिलाषा पूरी नही हो पाती तो हमे क्रोध  आता है ,आक्रोश  पनपता है और हम  निराशा एवं अपार दुःख में डूब जाते है |वह इसलिए कि जैसा हम चाहते है वैसा हमे मिल नही पाता ,ऐसी परिस्थितियों  से कोई उभर कर उपर उठ जाए ,या आशा ,निराशा में सामंजस्य स्थापित कर सके तो हमारा दामन सदा खुशियों से भरा रहे पाए गा |अपने अंतर्मन की ऐसी आवाज़ सुन कर अनान्यास ही रितु के मुख से निकल पड़ा ''नही नही .यह तो बहुत ही मुश्किल है ,जब हम उदास होतें है तब तो हम और भी अधिक उदासी एवं निराशा में डूबते चले जाते है ,''|उन भारी पलों में हमारी विचारधारा ,हमारी सोच केवल हमारी इच्छा की आपूर्ति न होने के कारण  उसी के इर्द गिर्द घड़ी की सुई की तरह घूमती रहती है |

इन्ही पलों में  अगर हम अपनी विचार धारा को एक खूबसूरत दिशा की ओर मोड़ दें तो जैसे  जलधारा को नई दिशा मिलने के कारण बाढ़ जैसी स्थिति को बचाया जा सकता है ठीक वैसे ही विचारों के प्रवाह की दिशा बदलने से हम निराशा की बाढ़ में डूबने से बच सकतें है |हमारी जिंदगी में अनेकों छोटी छोटी खुशियों के पल आते है ,क्यों न हम उसे संजो कर रख ले ?,जब भी वह पल हमे याद आयें गे हमारा मन प्रफुल्लित हो उठे गा |क्यों न हम अपने इस जीवन में हरेक पल का आनंद लेते हुए इसे जियें ? जो बीत चुका सो बीत चुका ,आने वाले पल का कोई भरोसा नही ,तो क्यों न हम इस पल को भरपूर जियें ?इस पल में हम कुछ ऐसा करें जिससे हमे ख़ुशी मिले ,आनंद मिले |जो कुछ भी हमे ईश्वर ने दिया है ,क्यों न उसके लिए  प्रभु को धन्यवाद करते हुए , उसका उपभोग करें |''हर घड़ी बदल रही है रूप जिंदगी ,छाँव है कही ,कही है धूप जिंदगी ,हर पल यहाँ जी भर जियो ,जो है समां कल हो न हो ''रेडियो पर बज रहे इस गीत के साथ रितु ने भी अपने सुर मिला दिए। 

रेखा जोशी 

जान सके जो सत्य असत्य

नीर  क्षीर जहाँ   घुल  जाये
तब  क्षीर भी बन जल जाये
जान सके जो सत्य असत्य
हंस  गर   कोई  मिल  जाये

रेखा जोशी


हम धरा पर चाँद तारे आसमाँ पर

खूबसूरत  है  नज़ारे   आसमाँ  पर
गुनगुनाये जब निहारें आसमाँ  पर 
चाँदनी  यह  रात आओ गीत गायें 
हम धरा  पर चाँद तारे आसमाँ पर 

रेखा जोशी