Sunday 31 January 2016

है अंतहीन यह दौड़

भागती दौड़ती
यह ज़िन्दगी
जहाँ देखा
भीड़ ही भीड़
हर कोई
है भाग रहा
मंज़िल कहाँ
मालूम नही
है अंतहीन यह दौड़
इच्छाओं की 
चाहतों की तृष्णाओं की
रूकती नही
है भागती जाती
यह ज़िंदगी 
न जाने  कहाँ 

रेखा जोशी

सफलता की सीढियाँ

सफलता और असफलता ज़िंदगी के दो पहलू है ,लेकिन सफलता की राह में कई बार असफलता से रू ब रू भी होना पड़ता है ,बल्कि असफलता वह सीढ़ी है जो सफलता पर जा कर खत्म होती है ,प्रसिद्ध कवि श्री हरिवंशराय बच्चन जी की जोशीली पंक्तिया किसी में में जोश और उत्साह भर सकती है |

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

जी हाँ कोशिश करते रहना चाहिए लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है उसके लिए उस व्यक्ति को एक बार फिर से अपनी सारी ऊर्जा एकत्रित कर अपने आप को एक बार फिर से संघर्ष के लिए तैयार करना पड़ता है | ऐसा देखा गया है जब एक बार इंसान भीतर से टूट जाता है तो उसे अपने को उसी संघर्ष के लिए फिर से तैयार करना बहुत कठिन हो जाता है | हम सब जानते है कि किसी भी व्यक्ति की सफलता के पीछे रहती है उसकी अनथक लग्न ,भरपूर आत्मविश्वास और सफलता पाने का दृढ संकल्प ,चाहे कार्य कुछ भी हो छोटा याँ बड़ा ,सफलता की चाह ही उसे उस मुकाम तक पहुंचाती है जहाँ वह पहुंचना चाहता है ,लेकिन कई बार उस मुकाम तक पहुंचने के लिए उसे कई परेशानियों और अड़चनों का सामना करना पड़ता है जिससे प्राय: उसका आत्मविश्वास डगमगा जाता है और वह अपनी मज़िल तक नहीं पहुंच पाता बल्कि वह निराशा और अवसाद की स्थिति में पहुंच जाता है | ऐसी स्थिति में आवश्यकता होती है उसके मनोबल और आत्मविश्वास को मज़बूत करने और जोश भरने की |

सदियों से हमारे देश की यह परम्परा रही है ,जब भी कोई राजा युद्ध के लिए जाता था उसकी रानी उसके माथे पर तिलक लगा कर ईश्वर से उसके लिए विजय हासिल करने की प्रार्थना किया करती थी .उसी परम्परा के चलते , जब अक्सर जब हम कोई परीक्षा देने जाते है तो हमारी माँ याँ दादी हमे दही खिला कर परीक्षा देने भेजती है , याँ हम अपने घर से किसी यात्रा के लिए निकलते है तो चाहे चीनी के दो दाने ही हो हमारी माँ ,दादी कुछ मीठा खिला कर ही हमे घर से विदा करती है ,तो प्रश्न यह उठता है की क्या मात्र दही खाने से हम परीक्षा में उत्तीर्ण हो सकते है ,याँ फिर चीनी के दो दाने खाने से हमारी यात्रा सफल हो जाती है ? मगर इस परम्परा के पीछे छुपी हुई है हमारे प्रियजनों के मन में हमारी सफलता के लिए शुभकामनायें .उस परमपिता से हमारी इच्छा पूर्ति की प्रार्थना ,जो हमे बल दे कर हमारे मनोबल को ऊँचा कर हमारे भीतर आत्मविश्वास पैदा करती है और इसी आत्मविश्वास के चलते हम ज़िंदगी में सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ पाते है| 

हमारी संस्कृति ने हमे सदा अपने माता पिता और बड़े बुज़ुर्गों का आदर करना सिखाया है ,उनके आशीर्वाद से हम ज़िंदगी में बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना आसानी से कर पाते है ,तो क्यों न अपनी संस्कृति की इस धरोहर का मान रखे हुए अपने बच्चों को भी इसका महत्व सिखायें और अपने बड़े बुज़ुर्गों की शुभकामनाएं और आशीर्वाद लेते हुए ज़िंदगी में सफलता की सीढियाँ चढ़ते जायें |

रेखा जोशी 

Saturday 30 January 2016

आसमान चाँद निकला अब उजाला चाहिए

गीतिका 

प्यार में दिल को सदा दिल से मिलानाचाहिए 
कुछ नहीं तुम को पिया हमसे छिपाना चाहिए 
.... 
खिलखिलाती धूप में गुल मुस्कुराते बाग़ में 
 भंवरे को भी यहाँ  पर  गुनगुनाना चाहिए  
..... 
रात की रानी खिली अंगना हमारा खिल उठा 
आसमान चाँद निकला अब उजाला चाहिए 
...
ओस की बूँदें  पुकारे आँख आँसू  भर यहाँ 
 रात रोती ही रही अब दिन सुहाना चाहिए 
.... 
काश तुम आओ यहाँ पर तो बहारे फिरखिलें 
दिल किसी का तोड़ कर फिर यूँ न जाना चाहिए 

रेखा जोशी 

दीप भगवन नेह का मन में जलाना चाहिए

गीतिका
शीश अपना ईश के आगे झुकाना चाहिए 
नाम मिलकर हर किसी को साथ गाना चाहिए 
.... 
पीर हरता हर किसी की ज़िंदगी में वह सदा 
नाम सुख में भी हमें तो याद आना चाहिए 
..... 
पा लिया संसार सारा नाम जिसने भी जपा 
दीप भगवन नेह का मन में जलाना चाहिए 
..... 
गीत गायें प्रेम से दिन रात भगवन हम यहाँ 
प्रीत भगवन आप को भी तो निभाना चाहिए 
.... 
हाथ अपने जोड़ कर हम माँगते तुमसे दया 
प्रभु कृपा करना हमें  अपना बनाना  चाहिए 

 रेखा जोशी 

Friday 29 January 2016

हूँ चाहती पूर्ण होना


तुम और मै 
है दोनों अलग अलग 
सम्पूर्ण नही 
अस्तित्व हमारा 
हर जन्म में 
हूँ खोज रही 
तुम्हे 
हूँ चाहती
पूर्ण होना 
दैहिक नही आत्मिक भी 
टुकड़ों में नही 
पूर्ण होने की 
है चाह मेरी 
युगों युगों से 
हूँ चाहती जीना 
और मरना 
सर्वस्व हो कर 
रेखा जोशी 

कैसे चुगें हम मोती बिन आपके

है  इंतज़ार  साथी   हमें  तुम्हारा
माना  हमने अपना  तुम्हे सहारा
कैसे चुगें हम मोती बिन आपके
प्रदूषित हुआ नीर जग कहे सारा

रेखा जोशी

यह कैसा समय आ गया है आजकल


टूटा   कहर   आतंक  के  धमाकों  से
सिसक रही मानवता बम धमाकों से
यह कैसा समय आ गया है आजकल
सहमा  जगत  आतंक के  धमाकों से

रेखा जोशी 

Thursday 28 January 2016

ख्वाहिशे तो हमारी है बहुत सी

बहुत मिला जीवन में फिर भी कम  है
नही    हमे   इसका   भी   कोई  गम है
ख्वाहिशे   तो   हमारी    है   बहुत   सी
इनकों   को   पूरा    करने  का    दम है

रेखा जोशी

न आँख में नमी कभी किसी गरीब की दिखे

कभी किसी  गरीब  की यहाँ सँवार  ज़िंदगी 
मिले  यहाँ  ख़ुशी  अपार और प्यार ज़िंदगी 
न आँख में नमी कभी किसी गरीब की दिखे 
ख़ुशी  जहान  में   मिले  करे दुलार  ज़िंदगी 

रेखा जोशी 


Wednesday 27 January 2016

आज आगे देश को अब है बढ़ाना

जाग जाओ देश मिलकर है बचाना
नींद में सोये हुओं को है जगाना

साँस दुश्मन को मिटा कर आज लेंगे
साथ मिलकर अब बुराई है  मिटाना

मिट गये है देश पर लाखो सिपाही
जान अपनी वार कर अब है दिखाना

देश के दुश्मन छिपें घर आज अपने
पाठ उनको ढूँढ कर अब है पढ़ाना

प्यार से मिलकर रहें आपस सदा हम
आज आगे देश को अब  है बढ़ाना 
रेखा जोशी

भारत से करता ह्रदय से मै प्यार

भारत से करता  ह्रदय से मै  प्यार
धंधा  कोई  करता  न  मै  व्यापार
हूँ बाँटता  तिरंगा मै जन जन को
होते जयहिन्द से  सपने   साकार

रेखा जोशी



चल रहा सागर किनारे

चल  रहा सागर किनारे
हाथ  थामे  माँ   तुम्हारे
है कितना गहरा यह माँ
चल   रहा   तेरे   सहारे

रेखा जोशी 

हूँ चाहती साकार करना सपने अपने


हूँ चाहती
साकार करना
सपने अपने
दूर है जो
बहुत बहुत मुझसे
खड़ी किनारे पर
सागर के
चुन रही कुछ सीपियाँ
टूटी फूटी
कैसे करूँ मंथन
कल्पना के सागर का
कैसे ढूँढू
अमूल्य निधि
हो सके
फिर
स्वप्न मेरे परिष्कृत
कर रही प्रयास
निरंतर
हूँ चाहती
साकार करना
सपने अपने
दूर है जो
बहुत बहुत मुझसे

रेखा जोशी

Tuesday 26 January 2016

भाई बंधु थे अपने

याद है वो दिन
तपती दोपहरी के बाद
शाम को 
जब गली में अपनी
लगता था बच्चों का मेला
पड़ोस के सब बच्चे
मिल कर खेलते थे खेल नये
और हाथ में परात  लिये
लगता था मेला
साँझे  चुल्हे  पर 
भीनी भीनी पकती 
वह तन्दूर की गर्मागर्म रोटियाँ 
याद कर खुशबू जिनकी
आ जाता मुहँ में पानी 
पड़ोसी नही थे वो
भाई बंधु थे अपने
सुख दुख  के साथी 
हाथ बँटाते बिटिया की शादी में
आँसू  बहाते उसकी विदाई पे
जाने कहाँ गये वो दिन
जब पड़ोसी ही
इक दूजे के काम आते

रेखा जोशी 

मिलता नही तेरे बगैर चैन कहीं भी हमें


तेरे बिन किसी  से भी कभी प्यार नहीं होगा
तेरे  बिन  पूरा  कभी  यह  सँसार  नहीं होगा
मिलता  नही  तेरे  बगैर  चैन  कहीं  भी  हमें
तुमसा हसीन दुनिया में दिलदार नहीं  होगा

रेखा जोशी 

Monday 25 January 2016

राष्ट्र के गणतंत्र दिवस को आज हम करें सलाम

राष्ट्र के गणतंत्र दिवस को आज हम करें सलाम
अम्बर  में  लहराते   तिरंगे  को  हम करें  सलाम
भारत की आन बान शान पर मर मिटे जो जवान
उन अमर जवानों की शहादत को हम करें सलाम

रेखा जोशी 

हम हाथ अपने जोड़ कर तुम को पुकारे आज

मापनी - 2212 2212 2212 221

गीता छंद 

देना  हमें  आशीष प्रभु रहना हमारे साथ
भगवन हमारे कर कृपा तुम आज दीनानाथ
हम हाथ अपने जोड़ कर तुम को पुकारे आज
हो कामना पूरी  करो  पूरे हमारे काज
...
गीता छंद पर मुक्तक

देना  हमें  आशीष प्रभु रहना हमारे साथ
भगवन हमारे कर कृपा तुम आज दीनानाथ
हम हाथ अपने जोड़ कर तुम को पुकारे आज
हो कामना पूरी रहे सर पर हमारे हाथ

 रेखा जोशी 

Sunday 24 January 2016

जियें ज़िंदगीअपनी हम तुम

रब  ने  रचा  अजब   खेला  है
रहना   तो   यहाँ   झमेला   है
जियें  ज़िंदगीअपनी हम तुम
जीवन   दो  दिन  का  मेला है

रेखा जोशी

Saturday 23 January 2016

कच्चे धागे ने बाँधी डोर,देखो टूट न जाये

गीतिका 
जब जीवन में मिलते अपने ,यही रिश्ते नाते हैं  
प्यार से निभाना यहाँ रिश्ते ,दिल से अपनाते हैं 
....
ह्रदय से मानों इन्हे अपना ,रिश्तों में भर दो स्नेह 
सुख दुःख में आते  काम ,साथ ये   निभाते हैं  
... 
बिखर जाता सब कुछ हमारा , ह्रदय जब टूट जाता 
महक मन  की तब सूख जाती,गुल जब मुरझाते हैं  
..... 
अनमोल बहुत हमारे रिश्ते ,मोल नहीं है  कोई 
खो जायें  अगर ज़िंदगी में ,याद बहुत आते हैं 
.... 
कच्चे धागे ने बाँधी डोर,देखो टूट न जाये 
टूटे धागे अगर कहीं फिर, दिल को तड़पाते हैं 
... 
रेखा जोशी 

Friday 22 January 2016

सींचा खून से अपने हमारा यहाँ चमन


कदम  बढ़ाते  दिखाया अबद्धता  का स्वप्न
सींचा  खून   से  अपने  हमारा  यहाँ  चमन
सुभाष  चन्द्र  बोस  को  भूल हम  न पायेंगे
आज़ाद हिन्द फ़ौज को हम करे सदा नमन
रेखा जोशी



Thursday 21 January 2016

ख़ुशी नही तुमसे जब मिली कहें किससे

कभी नही तुमने हाल ज़िंदगी जाना 
मिला नही तुम बिन प्यार ज़िंदगी माना 
ख़ुशी नही तुमसे जब मिली कहें किससे 
शमा जले न जले आज ज़िंदगी आना 
रेखा जोशी 

Wednesday 20 January 2016

भोले नयन खिलखिलाया सावन

झूमता   हुआ   लो   आया  सावन
खुशियाँ  अपने सँग लाया  सावन
रिमझिम रिमझिम बरसती घटायें
भोले नयन  खिलखिलाया  सावन

रेखा जोशी 

है धरती हमारी धुँआ धुँआ

अब चाँद तक जा पहुँचा मानव
आकाश  में  अब  उड़ता  मानव
है  धरती    हमारी   धुँआ  धुँआ
प्रदूषित  धरणी   करता  मानव

रेखा जोशी

राम कृपा जिस पर हो जाये , बिन माँगे मोती वो पाये

राम नाम के  गुण सब गाये, नाम  बिना  कछु  नहीं सुहाये
भगवन जिसके ह्रदय समाये , दुख दर्द कभी पास  न आये
...
राम  नाम तू  सुमिरन कर ले ,पीड़ा रोग सब  नाम  हर ले
पी  ले  राम  नाम  का  प्याला  ,कृपा   करेंगे दीन  दयाला
...
राम  कृपा जिस  पर  हो जाये  , बिन  माँगे  मोती वो पाये
 है  निस  दिन जो उसको ध्याये , नैया उसकी पार लगाये

 रेखा जोशी

Tuesday 19 January 2016


ओ  उड़ने  वाले  पंछी सुन बोल तेरा क्या नाम रे 

सुन्दर से पँख बिखेरे फुदक रहे सुबह यहाँ  शाम रे
...............................................……………
झूमे पवन मिले हिचकोले  डाली डाली  झूले तुम
मेरी बगिया में आये तुम  मन  मेरे को भाये तुम 
रूप  अनुपम  तुमने  पाया यहां  तेरा क्या काम रे 
ओ उड़ने वाले ……
................................................. …………
मधुर कंठ  तुमने पाया है गीत मधुर तुमने गाया
मधुर रसीले गीत  से  है संगीत जग में बिखराया 
आज़ाद गगन में उड़ने वाले  तेरा कहाँ  धाम रे 
ओ उड़ने वाले ………

रेखा जोशी

लिख लिख मै सदा हारी व्यथा ज़िंदगी की

कैसी रची विधाता ने प्रथा ज़िंदगी की
रही अधूरी जाने क्यों कथा ज़िंदगी की
है टूट गई कलम मेरी अब मै क्या लिखूँ
लिख लिख सदा मै हारी व्यथा ज़िंदगी की
रेखा जोशी

प्यार तुमको अब निभाना आ गया

प्यार तुमको अब निभाना आ गया
रफ़्ता रफ़्ता मुस्कुराना आ गया
....
छेड़ कर ज़ुल्फ़ें हवाओं ने कहा
आज मौसम आशिकाना आ गया
....
खुश रहो साजन जहाँ में तुम सदा
ज़िंदगी को आज़माना आ गया
....
क्या कहें तुमसे न जाना छोड़ कर
हाथ थामा तो निभाना आ गया
....
दे रही है अब हवायें यह सदा
साथ जीने का ज़माना आ गया

रेखा जोशी

Monday 18 January 2016

है बनी रहे हमेशा उनकी हम पर छाँव

माता पिता  की  सेवा से मिलते   भगवान
रूप  में  उनके  प्रभु से  मिला हमें  वरदान 
है  बनी   रहे  हमेशा  उनकी हम  पर छाँव 
फ़र्ज़  हमारा हम उनका सदा करें सम्मान 

रेखा जोशी 

खिल गई बगिया बहारें जो चमन में आई

आप को अपना बनाने की तमन्ना की है
आज तो हद से गुज़रने की तमन्ना की है

खिल गई बगिया बहारें जो चमन में आई
गुल खिलें दिल ने महकने की तमन्ना की है

दिल हमारे की यहाँ धड़कन लगी है बढ़ने
क्या करें दिल ने मचलने की तमन्ना की है

देखते ही आपको यह क्या हुआ साजन अब
खुद इधर दिल ने बहकने की तमन्ना की है

लो शर्म से अब सनम आँखे झुका ली हमने
दिल में तेरे बस जाने  की तमन्ना की है
रेखा जोशी

माँ क़दमों तले सम्पूर्ण ब्रह्मांड

माँ  क़दमों तले सम्पूर्ण ब्रह्मांड [मेरी पुरानी रचना ]

माँ ”इक छोटा सा प्यारा शब्द जिसके कदमों तले है सम्पूर्ण विश्व ,सम्पूर्ण सृष्टि और सम्पूर्णब्रह्मांड  और उस अथाह ममता के सागर में डूबी हुई सुमि के मानस पटल पर बचपन की यादें उभरने लगी |”बचपन के दिन भी क्या दिन थे ,जिंदगी का सबसे अच्छा वक्त,माँ का प्यार भरा आँचल और उसका वो लाड-दुलार ,हमारी छोटी बड़ी सभी इच्छाएँ वह चुटकियों में पूरी करने के लिए सदा तत्पर ,अपनी सारी खुशियाँ अपने बच्चों की एक मुस्कान पर निछावर कर देने वाली ममता की मूरत माँ का ऋण क्या हम कभी उतार सकते है ?हमारी ऊँगली पकड़ कर जिसने हमे चलना सिखाया ,हमारी मूक मांग को जिसकी आँखे तत्पर समझ लेती थी,हमारे जीवन की प्रथम शिक्षिका ,जिसने हमे भले बुरे की पहचान करवाई और इस समाज में हमारी एक पहचान बनाई ,आज हम जो कुछ भी है ,सब उसी की कड़ी तपस्या और सही मार्गदर्शन के कारण ही है

”सुमि अपने सुहाने बचपन की यादो में खो सी गई ,”कितने प्यारे दिन थे वो ,जब हम सब भाई बहन सारा दिन घर में उधम मचाये घूमते रहते थे ,कभी किसी से लड़ाई झगड़ा तो कभी किसी की शिकायत करना ,इधर इक दूजे से दिल की बाते करना तो उधर मिल कर खेलना ,घर तो मानो जैसे एक छोटा सा क्लब हो ,और हम सब की खुशियों का ध्यान रखती थी हमारी प्यारी ”माँ ” ,जिसका जो खाने दिल करता माँ बड़े चाव और प्यार से उसे बनाती और हम सब मिल कर पार्टी मनाते” | एक दिन जब सुमि खेलते खेलते गिर गई थी .ऊफ कितना खून बहा था उसके सिर से और वह कितना जोर जोर से रोई थी लेकिन सुमि के आंसू पोंछते हुए ,साथ साथ उसकी माँ के आंसू भी बह रहें थे ,कैसे भागते हुए वह उसे डाक्टर के पास ले कर गई थी और जब उसे जोर से बुखार आ गया था तो उसके सहराने बैठी उसकी माँ सारी रात ठंडे पानी से पट्टिया करती रही थी ,आज सुमि को अपनी माँ की हर छोटी बड़ी बात याद आ रही थी और वह ज़ोरदार चांटा भी ,जब किसी बात से वह नाराज् हो कर गुस्से से सुमि ने अपने दोनों हाथों से अपने माथे को पीटा था ,माँ के उस थप्पड़ की गूँज आज भी नही भुला पाई थी सुमि ,माँ के उसी चांटे ने ही तो उसे जिंदगी में सहनशीलता का पाठ पढाया था,कभी लाड से तो कभी डांट से ,न जाने माँ ने जिंदगी के कई बड़े बड़े पाठ पढ़ा दिए थे सुमि को,यही माँ के दिए हुए संस्कार थे जिन्होंने उसके च्रारित्र का निर्माण किया है ,यह माँ के संस्कार ही तो होते है जो अपनी संतान का चरित्र निर्माण कर एक सशक्त समाज और सशक्त राष्ट्र के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान करते है ,महाराज छत्रपति शिवाजी की माँ जीजाबाई को कौन भूल सकता है , दुनिया की हर माँ अपने बच्चे पर निस्वार्थ ममता लुटाते हुए उसे भरोसा और सुरक्षा प्रदान करती हुई उसे जिंदगी के उतार चढाव पर चलना सिखाती है |  

अपने बचपन के वो छोटे छोटे पल याद कर सुमि की आँखे भर आई , माँ के साथ जिंदगी कितनी खूबसूरत थी और उसका बचपन महकते हुए फूलों की सेज सा था | बरसों बाद आज सुमि भी जिंदगी के एक ऐसे मुकाम पर पहुँच चुकी है जहां पर कभी उसकी माँ थी ,एक नई जिंदगी उसके भीतर पनप रही है और अभी से उस नन्ही सी जान के लिए उसके दिल में प्यार के ढेरों जज्बात उमड़ उमड़ कर आ रहे है ,यह केवल सुमि के जज़्बात ही नही है ,हर उस माँ के है जो इस दुनिया में आने से पहले ही अपने बच्चे के प्रेम में डूब जाती है,यही प्रेमरस अमृत की धारा बन प्रवाहित होता है उसके सीने में ,जो बच्चे का पोषण करते हुए माँ और बच्चे को जीवन भर के लिए अटूट बंधन में बाँध देता है |आज भी जब कभी सुमि अपनी माँ के घर जाती है तो वही बचपन की खुशबू उसकी नस नस को महका देती है ,वही प्यार वही दुलार और सुमि फिरसे इक नन्ही सी बच्ची बन माँ की  गोद में में अपना सर रख ज़िंदगी कि सारी परेशानियाँ  भूल जाती है । 

रेखा जोशी 

गुड मार्निंग टीचर

मेरी पुरानी रचना 

सुबह के समय की ,हर रोज़ की तरह भाग दौड़ से ही शुरुआत हुई ,चाय को चुस्कियों का आनंद ,पिंकी के लिए नाश्ता बनाते बनाते ही उठाया ,इतने में ही सात बज गये ,जल्दी से पिंकी को जगा कर ,उसे झटपट नहला धुला कर भारती ने उसे स्कूल के लिए तैयार किया और उसके भारीभरकम स्कूल बैग को अपने काँधे पर लाद कर उसे स्कूल बस पर चढ़ाने घर से निकल पड़ी ,और भी कई बच्चे वहां खड़े बस का इंतज़ार कर रहे थे ,इतने में एक सुंदर सी महिला ,सलीके से साड़ी में लिपटी हुई पल्लू को काँधे पर अच्छे से टक किया हुआ ,सामने से आती हुई दिखाई पड़ी |उसे देखते ही ,बस का इंतज़ार करते हुए बच्चों ने ,”गुड मार्निंग ,टीचर ”कह कर उसका अभिवादन किया और उसने भी एक खिली हुई मुस्कुराहट के साथ उनके अभिवादन को स्वीकारते हुए ,बोला ,”गुड मार्निंग चिल्ड्रेन ”|इतने में बस आगई,और सभी जन उसमे सवार हो कर स्कूल के लिए निकल पड़े |

पिंकी को बस में चढ़ाने के बाद ,मै भी घर की ओर चल पड़ी ,रास्ते भर , मै अपने ही विचारों में खोई , यही ताने बाने बुनती रही कि कितना अंतर आगया है हमारे शिक्षा तन्त्र में ,सदियों से चली आ रही गुरुकुल प्रणाली हमारे समाज का एक विभिन्न अंग रही है और गुरु को हमारी संस्कृति में सर्वोच्च स्थान दिया गया है ,यहाँ तक कि राजे महाराजे भी गुरु के आगे सदैव नतमस्तक हो अपना शीश झुकाते रहें है |भारतीय संस्कृति की मजबूत नीव रही है ,यह गुरु शिष्य प्रणाली ,गुरु भी ऐसा जो निस्वार्थ भाव से अपने शिष्यों को विद्या का दान देता रहा और शिष्य भी ऐसे जो गुरु कि एक आवाज पर पूर्ण समर्पण को तैयार रहते थे |जो कुछ भी शिष्य अपने घरों से रुखा सूखा अपने गुरु के लिए ले आते थे उसी में उनकी गुरुमाता अपना जीवन यापन कर लेती थी |शांत वनों के वातावरण में बुद्धिजीवी ऋषियों की देख रेख में ,आश्रमों में सादगी से रहते हुए बालक अपनी शिक्षा ग्रहण किया करते थे |गुरु द्रोणाचार्य ,चाणक्य जैसे गुरुओं का बस एक ही उदेश्य हुआ करता था अपने शिष्यों का भविष्य ,उन्हें पूर्ण रूप से प्रशिक्षित करना |समय के साथ साथ शिक्षा का स्वरूप बदला, सभ्यता बदली ,गुरु बदले और शिष्य भी बदले ,विद्यालयों ,स्कूलों ने गुरुकुलों का स्थान ले लिया| 

एक ऐसा भी समय आया था जब शिक्षक की छवि में आँख पर चश्मा चढाये और हाथ में डंडा लिए मास्टर जी कक्षा में पढाते नजर आते थे ,लेकिन बदलते वक्त के चलते स्कूलों की छवि में निखार आता गया ,कारपोरल पनिशमेंट एक्ट के अनुसार ,छात्र एवं छात्राओं को शारीरिक यातना देना मना है,लेकिन क्या सभी स्कूलों में इसका पालन होता है ?सरकारी स्कूलों में छात्र ,छात्राओं की पढाई को ले कर कई अनगिनत सवाल है ,क्या विद्यार्थी और अध्यापक अथवा अध्यापिकाओं से उनसे रिश्ता प्राइवेट स्कूलों जैसा है ?क्या सरकारी स्कूलों के अध्यापक गण अपनी पूरी निष्ठां से अपना काम करते है? कितनी शर्म की बात है कि इन स्कूलों में बच्चों से कई टीचर अपने निजी कार्य करवाते है और पढाने के नाम पर सिर्फ खानापूरी करते है |कई बार तो बच्चों की भावनाओं और संवेदनाओं को ताक पर रख कर उन्हें कठोर से कठोर दंड देने में भी नहीं हिचकचाते ,”|

सोचते सोचते कब घर आगया पता ही नहीं चला ,आते ही भारती घर का काम निबटाने में जुट गई ,दूसरे कमरे से टी वी की आवाज़ कानो में पड़ रही थी ,अचानक एक खबर सुनते ही काम करते करते उसके हाथ रुक गए ,”एक नौवीं कक्षा की छात्रा दूवारा आत्महत्या ,सन्न रह गई भारती ,मानसिक रूप से कितनी टूट गई होगी वह ,ऐसे कई समाचार हम आये दिन सुनते रहते है और ऐसी घटनाएँ केवल सरकारी स्कूलों में ही नहीं घटती ,इसकी चपेट में कई प्राइवेट एवम पब्लिक स्कूल भी आते है क्या इसके लिए शिक्षक उतरदायी नहीं है ?शिक्षा तो आजकल एक व्यवसाय बन गया है ,जिस में पिस रहें है छात्र ,छात्राओं के माँ बाप |अभी हाल ही में भारती की मुलाक़ात एक छोटी सी बच्ची की माँ से हुई जो एक टीचर के व्यवहार से बहुत परेशान थी ,कक्षा में उस छोटी सी बच्ची को बार बार डांटना और चांटे लगाना ,उस नन्ही सी बच्ची पर अनावश्यक दबाव ने उसे इतना भयभीत कर दिया था कि वह स्कूल जाने से ही कतराने लगी,अब ऐसी शिक्षिका के बारे में क्या कहा जाए ? क्या वह उस बच्ची को ट्यूशन से पढाना चाह रही थी ? 

इंजीनिअरिंग और मेडिकल कालेज में दाखिला लेने के लिए माँ बाप अपनी मेहनत की कमाई के लाखों रूपये कोचिंग क्लासों में खर्च के देतें है |क्या स्कूल के शिक्षक ही अपने छात्रों को इन कालेजों में दाखिले के लिए तैयारी नहीं करवा सकते ? सारा दिन ऐसे अनेको सवालों में घिरी रही भारती ,बिस्तर पर लेटते ही कब आँख लगी पता ही नहीं चला |अगली सुबह फिर वही दिनचर्या ,पिंकी की ऊँगली पकड़ उसे बस में चढाने निकल पड़ी ,बस का इंतज़ार कर रहे बच्चे अपनी शिक्षिका के साथ खड़े थे ,तभी एक नन्ही , प्यारी सी बच्ची ,हाथ में गुलाब का फूल अपनी टीचर को देती हुई बोली ,”गुड मार्निंग टीचर ” |मै एक बार फिर सोच में पड़ गई,क्या यह सच में इस प्यारी सी गुड मार्निंग के योग्य है ??

रेखा जोशी 

Sunday 17 January 2016

कामना पूर्ण करे नाम प्रभु का


राम नाम का बन्दे कर ले जाप
नाम उसका  सबके  हर ले पाप
कामना  पूर्ण  करे नाम प्रभु का
झोलियाँ सबकी रब भर दे आप

रेखा  जोशी 

कब आयेंगे मोरे पिया सखी री

बिना साजन अब दिन लगे न सुहाने
पीड़ा  इस  ह्रदय   की  कोई  न  जाने
कब   आयेंगे   मोरे   पिया  सखी  री
टाल  मटोल  कर  बनाओ   न बहाने

रेखा  जोशी 

Saturday 16 January 2016

अक्सर मुस्कुराते हो हमारी यादों में प्रियतम

चुरा लिया तुमने चुपके से चैन दिल का हमारा 
छेड़  देते  हो  दिल में  हमारे  प्यार  का तराना 
अक्सर   मुस्कुराते हो हमारी यादों में प्रियतम
चले आओ चुपके से फिर दिल ने सजना पुकारा 

रेखा जोशी 

Friday 8 January 2016

तडप तडप के गुजारी है हर घड़ी हर पल ,


मेरी  एक पुरानी रचना 


रात में यह दिल तन्हां डूबा  जाता है 
मायूसियों के आलम में दम घुटा जाताहै
.. 
या खुदा मेरी उल्फत को जिंदगी दे दे 
गम जुदाई काअब और नही सहा जाता है  |
..
तडप तडप के गुजारी है हर घड़ी हर पल 
मेरी वफा का दिया जल जल के बुझा जाता है |
..
इंतजार और अभी,और अभी और अभी 
सब्र ए पैमाना अब लब से छुटा जाता है |
.

रेखा जोशी



हूँ छोटी सी तितली

है हरा भरा 
इनका संसार 
रंग चुराने फूलो का 
है उड़ती  यह 
डाली डाली 
खेल अजब प्रकृति का 
लाल पीले बैंजनी नीले 
सुन्दर रंगों से अपना  
रूप सजाती 
है मुग्ध देख इनकी कला 
सुन्दर से रंग बिरंगे पंख लिये 
कैसे बगिया में 
इठलाती इतराती 
हूँ छोटी सी तितली 
तो क्या हुआ 
चित्रकार हूँ मै सबसे महान 

रेखा जोशी


अपने बड़े बुज़ुर्गों का हम सदा करें सम्मान

बसते अपने बच्चों में सदा माँ बाप के प्राण
उनकी  सेवा  करने से  मिल जाते  भगवान
....
लाये  इस दुनियाँ  में दिया अपना हमें नाम
कभी भूल से उनका  मत हो हमसे अपमान
...
माता पिता की  बनी रहे  सदा  हम पर छाँव
रूप  में  उनके  ईश  से  मिला   हमें  वरदान
....
जीवन के हर मोड़ पर है  मिला उनका  साथ
चलना  सीखा  ऊँगली  पकड़ सदा  करें मान
 .....
हाथ  जोड़  अपने  कहूँ  छोटा  मुहँ बड़ी  बात
अपने बड़े  बुज़ुर्गों  का हम सदा करें सम्मान

रेखा जोशी 

Thursday 7 January 2016

रोक लो आज वक्त की धारा


ढल गई शाम रँग सिंदूरी है 
हसरतें  तो अभी  अधूरी  है 
रोक लो आज वक्त की धारा 
चाहतें   हों  तमाम  पूरी  है

रेखा जोशी 

Wednesday 6 January 2016

गुनगुनाते गीत अब होंठों पे मेरे


बिन तुम्हारे हमारा दिल बेकरार  है
न जाने क्योँ  हमें  तेरा  इंतज़ार है

गुनगुनाते  गीत अब  होंठों पे मेरे
अभी तक मुस्कुराती शब का खुमार है 

खुश्बू तेरी महका रही हसीन लम्हे 
इन्हीं  लम्हों से हमें बहुत मिला प्यार है 

उतर आया हसीं चाँद भी अंगना में
अंगना को  भी  रही महका बहार है

बेचैन निगाहें  तलाश रही है तुम्हें
प्यार की चलने लगी सजना बयार है 

रेखा जोशी 

Tuesday 5 January 2016

ह्रदय में प्रेम की जोत जला कर

सरिता तट  शीतल पवन भाये
धूप   गुलाबी  तन  मन  हर्षाये
ह्रदय में प्रेम की जोत जला कर
साथ मिल दोनों जीवन बितायें

रेखा जोशी 

यहाँ पर दो दिन की ज़िंदगी हमारी

 हम क्या जहान में लाये साथ लेकर
करेंगे  कूच  हम  खाली  हाथ  लेकर
यहाँ  पर दो दिन की ज़िंदगी हमारी
जायेंगे   यहाँ    से    परमार्थ   लेकर

रेखा जोशी

करते हम उन सब वीरों को शत शत नमन

देश  के   नाम  पर  उन्होंने   दे   दिये  प्राण
इस  भूमि  की  माटी  पर  हो  गये बलिदान
करते  हम उन सब वीरों को शत शत नमन
भारत   की  खातिर    शीश    किये   कुर्बान

रेखा जोशी

Monday 4 January 2016

तुम जो मिले तो मिल गया हमे सारा जहाँ

जुड़   गया  मेरा  नाम  तेरे   नाम  के साथ
खुशियों  का  मिला जाम तेरे नाम के साथ
तुम जो मिले तो मिल गया हमे सारा जहाँ
पा   लिये  चारो   धाम  तेरे  नाम  के साथ

रेखा जोशी

Sunday 3 January 2016

बाँध लो उन्हें प्रीत के कच्चे धागे से

मत बाँधों
पँख परिंदों के
है फितरत उनकी
भरना उड़ान
उड़ने दो उन्हें आसमान में
है गर दम
हौंसलों में तुम्हारे  
बाँध लो उन्हें
प्रीत के
कच्चे धागे से
खिचे चले आयेंगे
बरबस
सदा के लिये

रेखा जोशी 

Saturday 2 January 2016

सभी मित्रों को नववर्ष को हार्दिक शुभकामनायें

गुज़र गया साल पुराना अब
सिमट यादों में रह गया अब
मिले खुशियाँ सबको यहाँ पर
करें स्वागत नववर्ष का अब

सभी मित्रों को नववर्ष को हार्दिक शुभकामनायें