Thursday 30 June 2016

उठा लो कलम अब समय आ गया है

बदलना जहाँ को हमे भा गया है 
उठा लो कलम अब समय आ गया है
.... 
मची धूम इस ज़िंदगी में हमारी 
हमें  आज़माना यहाँ आ गया है 
... 
कभी ज़िंदगी ने दिये दर्द हमको 
यहाँ  अब सिखाना हमें  आ गया है 
... 
बहुत चोट खाई यहाँ ज़िंदगी में 
हमें  मुस्कुराना यहाँ आ गया है 
..... 
गिरे है उठे है कई बार यारो 
गिरों को उठाना हमें आ गया है 

रेखा जोशी 


Wednesday 29 June 2016

तरसता रहा सदा जीने को हमारा मन

तपती  धूप  में बीत गया  हमारा बचपन
तरसता  रहा  सदा   जीने को हमारा मन
टूटी  फूटी  छत  ही  रही   सर  पर   हमारे
लिख दिया विधाता ने मरुस्थल में जीवन

रेखा जोशी 

अमृत जल से प्यास बुझाती धरा पर

उतर  पर्वत  से  मै  आती   धरा  पर
अमृत जल से प्यास बुझाती धरा पर
टेढ़ी   मेढ़ी    बहती   रहूँ     सदा   मै
राहें  अपनी   खुद   बनाती  धरा  पर

रेखा जोशी

है गुनगुनाते भँवरे झूमते वन उपवन

फूलों से बगिया खिली छाया हर्षोल्लास
धूम मचाने अब यहाँ आया है मधुमास
है गुनगुनाते भँवरे झूमते वन  उपवन 
चहुँ ओर छाई बहार पिया मिलन की आस

रेखा जोशी 

कहाँ है वो जादुई चिराग

कहाँ है वो जादुई चिराग [पूर्व प्रकाशित रचना ]

अलादीन का जादुई चिराग कहीं खो गया ,कहाँ खो गया ,मालूम नहीं ,कब से खोज रहा था बेचारा अलादीन ,कभी अलमारी में तो कभी बक्से में ,कभी पलंग के नीचे तो कभी पलंग के उपर ,सारा घर उल्ट पुलट कर रख दिया ,लेकिन जादुई चिराग नदारद ,उसका कुछ भी अता पता नहीं मिल पा रहा था आखिर गया तो कहाँ गया, धरती निगल गई या आसमान खा गया ,कहां रख कर वह भूल गया |''शायद उसका वह जादुई चिराग उसके किसी मित्र या किसी रिश्तेदार के यहाँ भूल से छूट गया है''|यह सोच वह अपने घर से बाहर निकल अपने परिचितों के घरों में उस जादुई चिराग की खोज में निकल पड़ा ,लेकिन सब जगह से उसे निराशा ही हाथ लगी |

थक हार ,निराश हो कर अलादीन एक पार्क के बेंच पर बैठ गया ,अपने जादुई चिराग के खो जाने पर वह बहुत दुखी था, रह रह कर उसे अपने जादुई चिराग और उसमे बंद जिन्न की याद सता रही थी |''कही उसका जादुई चिराग चोरी तो नहीं हो गया '', यह सोच वह और भी परेशान हो गया ,''अगर किसी ऐरे गेरे के हाथ लग गया तो ,बहुत गडबड हो जाए गी ,अनर्थ भी हो सकता है ,नहीं नहीं मुझे अपना वह जादुई चिराग वापिस पाना ही होगा ”|भारी कदमो से अलादीन बेंच से उठा और धीरे धीरे बाहर की ओर चलनेl लगा ,तभी  सामने से एक भद्रपुरुष हाथ में जादुई चिराग लिए उसके पास आये |उसे देखते ही अलादीन उछल पड़ा ,”अरे मेरा यह जादुई चिराग आप के पास कैसे ? मैने इसे कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा ,मै इसके लिए कितना परेशान था ,कही आपने इससे कुछ माँगा तो नही ?”अच्छा तो आप ही अलादीन है ,आपका यह जादुई चिराग तो सच में बहुत कमाल का है ,मैने इसे अपडेट कर दिया है और इसने कितने ही घरों के बुझते चिरागों को रौशन कर दिया है ,तुम भी देखना चाहो गे ,”यह कहते हुए उस भद्रपुरुष ने अपने हाथ से उस जादुई चिराग को रगडा और उसमे से जिन्न ने निकलते ही बोला, ”हुकम मेरे आका”| ”कौन हो तुम ?”भद्रपुरुष ने पूछा |जिन्न ने बोलना शुरू किया ,”मै अभी ,इस समय का एक अनमोल पल हूँ ,वह क्षण हूँ मै जो तुम्हारी दुनिया बदल सकता है ,मै वर्तमान का वह पल हूँ जो एक सुदृढ़ पत्थर है तुम्हारे सुनहरे भविष्य की ईमारत का ,तुम चाहो तो अभी इसी पल से उसे सजाना शुरू कर सकते हो ,इस पल कि शक्ति को पहचानो ,व्यर्थ मत गंवाओ इस कीमती क्षण को ,तुम अपनी जिन्दगी की वह सारी की सारी खुशियाँ पा सकते हो इस क्षण में ,वर्तमान के इस क्षण के गर्भ में विद्यमान है हमारे आने वाले कल की बागडोर ,वर्तमान का यह पल हमारे आने वाले हर पल का वर्तमान बनने वाला है ,जीना सीखो वर्तमान के इसी पल में ,जिसने भी इस पल के महत्व को जान लिया उनके घर खुशियों से भर जाएँ गे ,जगमगा उठे गी उनकी जिंदगी ”|

इतना कहते ही जिन्न वापिस उस जादुई चिराग में चला गया| अलादीन अवाक सा खड़ा देखता रह गया ,कभी वह अपने जादुई चिराग को देखता तो कभी मुस्कराते हुए उस भद्रपुरुष को,हाथ आगे बड़ा के उसने उस भद्रपुरुष से अपना वह जादुई चिराग ले लिया और उसी पल उसने फैसला कर लिया और  वह निकल पड़ा अपने जादुई चिराग के साथ पूरी दुनियां को उसका उसका चमत्कार दिखाने |

रेखा जोशी 

Tuesday 28 June 2016

कुदरत को भी अब मुस्कुराना आ गया

तुम  पर हमारा  दिल दीवाना आ गया
कुदरत को भी अब मुस्कुराना आ गया
आने   से    तेरे    आ    गई   है   बहारें
लो आज यहाँ  मौसम सुहाना आ गया

रेखा जोशी

Monday 27 June 2016

इत्तेफ़ाक़न

वो लम्हा
याद है तुम्हे
इत्तेफ़ाक से
हम तुम
मिले थे जब
खामोश थे लब
और
निगाहों से 
हुई थी बाते
तब से अब तक
थम गया वहीं पर वक्त
मै और तुम
बंध गए
इक प्यारे से
रिश्ते में
सोचती हूँ
इत्तेफ़ाक़न
मुलाकात हमारी
मात्र था इत्तेफ़ाक़
या फिर
मिलना
हमारा तुम्हारा
था चल रहा
यूँही
जन्म जन्म
से

रेखा जोशी


जियेंगे साथ हम तेरे मरेंगे साथ हम तेरे

छन्द- विजात (14 मात्रा के चार चरण, दो-दो क्रमागत चरण तुकान्त) 

मापनी - 1222 1222
कभी तो पास आना तुम 
नहीं फिर दूर जाना तुम 
जियेंगे  साथ  हम   तेरे 
मरेंगे   साथ   हम  तेरे 

रेखा जोशी 


आई अपने पिया के घर

सात समुद्र पार कर,
आई पिया के द्वार ,
नव नीले आसमां पर,
झूलते इन्द्रधनुष पे ,
प्राणपिया के अंगना ,
सप्तऋषि के द्वार ,
झंकृत हए सात सुर,
हृदय में नये तराने |
…………………….
उतर रहा वह नभ पर ,
सातवें आसमान से ,
लिए रक्तिम लालिमा
सवार सात घोड़ों पर ,
पार सब करता हुआ ,
प्रकाशित हुआ ये जहां
अलौकिक , आनंदित
वो आशियाना दीप्त
………………………….
थिरक रही अम्बर में ,
अरुण की ये रश्मियाँ,
चमकी धूप सुनहरी सी
अब आई मेरे अंगना ,
है स्फुरित मेरा ये मन ,
खिल उठा ये तन बदन
निभाने वो सात वचन ,
आई अपने पिया के घर |

रेखा जोशी 

Wednesday 15 June 2016

है मिला हमें साथ जो तुम्हारा प्रियतम

झील  के  पानी  पर  धूप  जब  लहराई
सुहानी   वादियाँ   धरा  पर   मुस्कुराई
है मिला हमें साथ जो तुम्हारा प्रियतम 
अम्बर से  जन्नत धरा  पर उतर  आई 

 रेखा जोशी 

Tuesday 14 June 2016

आसमाँ पर रौशनी थी

आसमाँ पर रौशनी थी 
चाँद की वह चॉंदनी थी 
.... 
जब झुका था आसमाँ तब 
यह ज़मीं  भी मचलती थी 
..... 
याद तेरी जब सताती 
मधुर बजती बांसुरी थी  
,,,,,,
हमसफर ने हाथ थामा
प्यार की मंज़िल मिली थी
....
तुम चले आओ यहाँ  पर
प्यार में  बन्दगी  थी  
.....
रेखा जोशी

Sunday 12 June 2016

मन जीते जग जीत

मन ,जी हाँ मन ,एक स्थान पर टिकता ही नही पल में यहाँ तो अगले ही पल न जाने कितनी दूर पहुंच जाता है ,हर वक्त भिन्न भिन्न विचारों की उथल पुथल में उलझा रहता है ,भटकता रहता है यहाँ से वहाँ और न जाने कहाँ कहाँ ,यह विचार ही तो है जो पहले मनुष्य के मन में उठते है फिर उसे ले जाते है कर्मक्षेत्र की ओर । जो भी मानव सोचता है उसके अनुरूप ही कर्म करता है ,तभी तो कहते है अपनी सोच सदा सकारात्मक रखो ,जी हां ,हमें मन में उठ रहे अपने विचारों को देखना आना चाहिए ,कौन से विचार मन में आ रहे है और हमे वह किस दिशा की ओर ले जा रहे है ,कहते है मन जीते  जग जीत ,मन के हारे हार ,यह मन ही तो है जो आपको ज़िंदगी में सफल और असफल बनाता है ।
ज़िंदगी का दूसरा नाम संघर्ष है ,हर किसी की ज़िंदगी में उतार चढ़ाव आते रहते है लेकिन जब परेशानियों से इंसान घिर जाता है तब कई बार वह हिम्मत हार जाता है ,उसके मन का विश्वास  डगमगा जाता है और घबरा कर वह सहारा ढूँढने लगता है ,ऐसा ही कुछ हुआ था सुमित के साथ जब अपने व्यापार में ईमानदारी की राह पर चलने से उसे मुहं की खानी पड़ी ,ज़िंदगी में सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ने की जगह वह नीचे लुढ़कने लगा ,व्यापार में उसका सारा रुपया डूब गया ,ऐसी स्थिति में उसकी बुद्धि ने भी सोचना छोड़ दिया ,वह भूल गया कि कोई उसका फायदा भी उठा सकता ,खुद पर विश्वास न करते हुए ज्योतिषों और तांत्रिकों के जाल में फंस गया ।
जब किसी का मन कमज़ोर होता है वह तभी सहारा तलाशता है ,वह अपने मन की शक्ति को नही पहचान पाता और भटक जाता है अंधविश्वास की गलियों में । ऐसा भी देखा गया है जब हम कोई अंगूठी पहनते है याँ ईश्वर की प्रार्थना ,पूजा अर्चना करते है तब ऐसा लगता है जैसे हमारे ऊपर उसका सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है लेकिन यह हमारे अपने मन का ही विश्वास होता है । मन ही देवता मन  ही ईश्वर मन से बड़ा न कोई ,अगर मन में हो विश्वास तब हम कठिन से कठिन चुनौती का भी सामना कर सकते है |

रेखा जोशी 

लोक लाज छोड़ कर सभी अब रखे बाहर कदम

घूँघट   के   पीछे   सदा  सदियों   से  रही  नारी
अबला   सदा    पुरुष   से   पीछे    रही   बेचारी
लोक लाज छोड़ कर सभी अब रखे बाहर कदम
साथ साथ अब वह चलती हिम्मत न कभी हारी

रेखा जोशी

Saturday 11 June 2016

खोल दिया राज़ ऐ दिल निगाहों ने सजन



चाह  में तेरी  अब  तो गुज़रे   ज़माने   है 
ज़िन्दगी  गाती सदा  नित नये तराने  है
खोल दिया राज़ ऐ दिल निगाहों ने सजन 
प्यार  तुमसे  किया लाखों बने फ़साने  है

रेखा जोशी 

Friday 10 June 2016

है गर्व मुझे इस देश में मैने जन्म लिया

जीजाबाई  जैसी  माँ  मिली इस देश को
लक्ष्मीबाई वीरांगना  मिली इस देश को
है गर्व मुझे  इस देश में मैने जन्म लिया
बेटी  कल्पना चावला मिली इस देश को

रेखा जोशी 

हाथ थामा अगर तो निभाना

ज़िंदगी साथ मत छोड़ जाना 
दिल हमारा नहीं  तोड़ जाना 
प्यार करने  लगी ज़िंदगी अब 
हाथ थामा अगर तो निभाना 

रेखा जोशी 

Thursday 9 June 2016

ज़िंदगी बहुत सुन्दर है

सुनहरा  आँचल 
सागर का चूम रहा गगन 
सूरज  के  चमकने  से
चल  रहा जीवन 
पल पल यहॉं
बदल रही समय की धार
समा रहा  सागर में
धीरे  धीरे दिवाकर
है ढल रही सिंदूरी शाम
नव भोर की आस लिये
खूबसूरत है  यह शाम
गर्भ में जिसके समाई
इक सुन्दर प्रभात
देगी दस्तक फिर उषा
चहचहायेंगे पंछी
शीतल पवन के झोंके
गायेंगे मधुर गीत
दिलायेंगे एहसास
ज़िंदगी बहुत सुन्दर है
ज़िंदगी बहुत सुन्दर है

रेखा जोशी  

आओ नाचे गायें हम तुम आई बैसाखी

आओ नाचे गायें हम तुम
आई बैसाखी
मस्ती चहुँ ओर है छाई
आई बैसाखी
खेतों ने उगला सोना
माटी है अनमोल यारा
आई बैसाखी
शीश नवाते प्रभु  को हम
धन धान से किया भरपूर यारा
आई बैसाखी
आओ नाचे गायें हम तुम
आई बैसाखी

रेखा जोशी 

Wednesday 8 June 2016

गगन से उतर आये चाँद तारे भी धरा पर

 ढूँढ़ते  हुये  हम   आपको  महफ़िल  तक  आ गये
छोड़   दामन  लहरों  का  हम साहिल तक आ गये
गगन    से  उतर    आये  चाँद  तारे  भी   धरा  पर
लिये दिल में प्यार अपने हम मंज़िल तक आ गये

रेखा जोशी 

सम्भल कर रहना इन लोगों से

मतलब की इस दुनिया में 
हर कदम अपना 
रखना सम्भाल कर 
चेहरे पर ओढ़े 
कई चेहरे 
पहन मुखौटे घूम रहे 
छुपा कर अपना 
असली मन 
दिखाते यह रंगीन सपने 
उलझा कर तुम्हे 
चिकनी चुपड़ी बातों में 
फिर चुपके से निकल जाते 
रह जाओगे बस तुम देखते 
सम्भल कर रहना 
इन  लोगों से 
दिखावा करते जो 
पल पल 

रेखा जोशी

आओ मिल नाचे साजन हम दोनों यहाँ

बिन तुम्हारे हमारा दिल बेकरार है
न जाने क्यूँ फिर भी तेरा इंतज़ार है
..
गुनगुना रहे गीत अब होंठों पे मेरे
गुनगुना रही शब् का हमें इंतज़ार है
..
खुश्बू तेरी महका रही हसीन लम्हे
इन लम्हों से हमें अब भी बहुत प्यार है
..
उतर के आया अब चाँद भी अंगना में
चारों ओर छाया खुमार ही खुमार है
..
आओ मिल नाचे साजन हम दोनों यहाँ 
थिरकती ज़िंदगी का हमें  इंतज़ार है
..
रेखा जोशी

चाँद उतार लाऊँ अंगना अपने

सजन जहाँ में ख़ुशी बाँटें हम तुम
ज़िंदगी मधुर गीत गायें हम तुम
चाँद  उतार  लाऊँ  अंगना  अपने
झूमेंगे मिल  चाँदनी  में हम तुम

रेखा जोशी 

Monday 6 June 2016

लोग इंसानियत भूल जाते है

फूल  की   चाह  में  शूल  पाते है
लोग  इंसानियत  भूल  जाते  है
सत्ता  के गरूर  में अक्सर नेता
जनता  को  यहाँ  धूल  चटाते है 

रेखा जोशी 

Saturday 4 June 2016

सीताराम भजो मन प्यारे

सीताराम भजो  मन प्यारे 
मन के तार प्रभु से मिला ले , भक्तों के वह रखवारे 
राम  नाम  का  प्याला पी ले , हरे पीर दुख निवारे 
पीड़ा  रोग  पास  ना  आये  ,   राम नाम जो  पुकारे 
भगवन जिसके ह्रदय समाये, जीवन फिर प्रभु  सँवारे 
राम नाम के गुण हम  गायें  प्रभु  बने मीत हमारे 
नाम बिना कुछ नहीं सुहाये  प्रभु हर बँधन से  तारे 
नैया फंसी बीच भँवर  में,,  प्रभु हमें पार उतारे 


रेखा जोशी 







फूल काँटों साथ खिलते है

फूल  काँटों साथ  खिलते है
सुख कभी दुख साथ चलते है
ज़िंदगी की धूप छाया में
हमसफ़र ही साथ चलते है

रेखा जोशी


Friday 3 June 2016

है दीमक लगा देश को

पनप  पाप रहा
सुलग  पुण्य रहा
गगन उगल रहाअभिशाप यहाँ
सींच रहे धरती को
भ्रष्टाचार से जन जन यहाँ
परेशाँ सब यहाँ
है दीमक लगा  देश को
खोखला कर रहा
खोखला कर  रहा

रेखा जोशी 

मिलजुल कर अब रहना सीखें प्यारी इक बौछार लिखें

सावन बरसा अब आँगन में, चलती मस्त बयार लिखें 
मिलजुल कर अब रहना सीखें प्यारी इक बौछार लिखें 
....
भीगा  मेरा  तन  मन सारा ,भीगी  मलमल  की चुनरी 
छाये काले बादल नभ पर , बिजुरी अब   उसपार लिखें 
....
झूला झूलें मिल कर सखियाँ ,पेड़ों पर है हरियाली 
तक धिन नाचें मोरा मनुवा ,है चहुँ ओर बहार  लिखें 
.... 
गरजे बदरा धड़के जियरा ,घर आओ सजना मोरे 
बीता जाये सावन साजन ,अँगना अपने प्यार लिखें 
.... 
नैना सूनें राह निहारें ,देखूँ पथ कब से तेरा 
आजा रे  साँवरिया मेरे ,मिल कर नव संसार लिखें 

रेखा जोशी 

Thursday 2 June 2016

मनमंदिर में राम समाया,मोहे प्रभु मिली प्रीति

मनमंदिर में राम समाया,मोहे प्रभु मिली प्रीति 
मंदिर में मनमीत बसाया,   मन की सूनी  भीति
शीश  धरूँ भगवन चरणन में  नाम  जपूँ मै तेरा 
निर्भय  बनाये  नाम तिहारा , साची तेरी  भक्ति 

रेखा जोशी 

Wednesday 1 June 2016

नटखट चंचल और मचलते

है कोमल ह्रदय दिल के अच्छे
नटखट  चंचल और  मचलते
हाथ  जोड़   कर  करते   पूजा 
सबका अनुसरण करते बच्चे

रेखा जोशी 

है बहती नदिया अठखेलियाँ करती

लहरें गुनगुनाती किनारों के बीच
मचलती लहराती किनारों के बीच
है बहती नदिया अठखेलियाँ करती 
नाचती इठलाती किनारों के बीच

रेखा जोशी