Tuesday 12 March 2013

लालच ,भ्रष्टाचार की जड़


मेरे घर एक छोटी सी नन्ही परी है ,मेरी फुदकने वाली पांच साल की गुडिया ,जिसकी एक हँसी पूरे घर में  खुशियाँ बिखेर देती है \उसकी एक फरमाइश पर उसकी पसंद की चीज़ उसके सामने हाजिर हो जाती है \उसका छोटा सा कमरा ढेरों खिलौने से भरा होने के बावजूद जब भी वह मार्किट जाती है तो वह किसी नये खिलौने को देख मचल उठती है ,''मुझे यह वाला चाहिए ,नहीं नहीं, मुझे तो वो वाला चाहिए ''और उसकी जिद के आगे किसी का बस नहीं चल पाता\यह दिल तो है ही ऐसा ,क्या छोटे क्या बड़े ,हर किसी को कुछ न कुछ चाहिए ,यह कमबख्त दिल तो बस मांगे मोर और मोर .....अपनी अपनी  इच्छाओं की एक न खत्म होने वाली सूची हरेक के पास सदा रहती है लेकिन दिल तो दीवाना है, किसी आशिक से पूछ कर के तो देखो अपनी महबूबा के लिए आसमान से तारे तोड़ने की बातें करे गा,नामुमकिन को भी मुमकिन बनाने की यह कोशिश इस दिल की जिद ही तो है और उसकी इस जिद के कारण बेचारा दिमाग घुटने टेक देता हैऔर ,उसकी सोचने समझने की बत्ती हो जाती है गुल \वह सही और गलत का अंतर ही समझ नहीं पाता\अरे भाई ठीक है जिंदगी में हर कोई उड़ान भरना चाहता है,कुछ पाना चाहता है,एक कमरे में रहने वाले को दो कमरे चाहिए और कोठियों ,फ़ार्म हाउसिज़ के मालिकों की निगाहें मुकेश अंबानी सरीखे  रईसों पर होती है \अगर फलां फलां के पास मर्सिडीज़ गाड़ी है तो उसके पास क्यों नहीं हो सकती \उसका दोस्त अगर हवाई जहाज में सफर कर सकता है तो वो क्यों नही ?मिर्ज़ा ग़ालिब ने सही कहा है ,''हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिशपे दम निकले ''इस पागल दिल के पीछे लग कर नासमझ इंसान बिना सोचे समझे कूद पड़ता है, लालच की अन्धी दौड़ में,हर कोई भाग रहा है पैसे के पीछे ,दीन ईमान को ताक पे रख कर ,जैसे भी हो बस चाहिए तो चाहिए सिर्फ  पैसा ही पैसा,जैसे भी मिले ,कहीं से भी मिले ,काला हो यां सफ़ेद कोई परवाह नहीं,भई पैसा तो आखिर पैसा है\उफ़ यह लालच ,भ्रष्टाचार की जड़ ,कहाँ जा कर खत्म होंगी ये जड़ें, रुकने का नाम ही नहीं लेती,फैलती ही चली जा रही है खरपतवार की तरह  ,सींच तो दिया इसने देश में कई  घोटालों को :बस और नहीं अब और नहीं ,देश खोखला हो तो हो ,लालच के अंधों को देश से कोई सरोकार नही\बचपन में एक कहानी सुनी थी ;एक राजा को वरदान मिला था ,वह जिस वस्तु को छुए गा वह सोने में बदल जाए गी,लालच में अंधे हो कर उसने अपने महल की हर वस्तु को सोने में बदल दिया,लेकिन उसे पछतावे के सिवा कुछ नहीं मिला,उसका भोजन सोने में बदल चुका था ,जब उसकी जान से भी प्यारी बिटिया उसके छूने से सोने की मूर्ति बन गई ,तब उसे एहसास हुआ कि लालच बुरी बला है लेकिन अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गयी खेत \अरे भैया समय रहते संभल जाओ ,दिल को उड़ान भरने दो पर संभल कर,सीमाओं में रह कर ,ऐसा न हो कही यह लालच का भूत कभी तुम्हे भी पछताने को मजबूर न कर दे \

7 comments:

  1. चर्चा में शामिल करने पर एवं पोस्ट पसंद करने के लिए हार्दिक आभार

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  2. आपने सही कहा है लालच बुरी बला है !!

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    1. पूरन जी ,साईट जाईन करने और रचना पसंद करने पर हार्दिक आभार धन्यवाद आपका

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  3. सादर जन सधारण सुचना आपके सहयोग की जरुरत
    साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )

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  4. सीमाओं में रहकर ही सुविधाओं का संकलन उचित है. ऐसा ना हो सुविधाओं की लिस्ट तो बनी पर उसके पाने के लिये गलत तरीके अपनाये जाएँ.

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    1. रचना जी मेरी साईट पर आपका स्वागत है ,उत्साहवर्धन हेतु आपका आभार

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