tag:blogger.com,1999:blog-59616241445990972342024-03-19T02:28:05.281-07:00Ocean of BlissUnknownnoreply@blogger.comBlogger2631125tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-86436165367471729242024-03-16T08:40:00.000-07:002024-03-16T08:40:15.665-07:00गीतिका <div><div>गीतिका "लावणी छंद "</div><div><br></div><div>बसंत आया मधुरस छाया ,धरा पर मुस्कुराते दिन</div><div>अम्बुआ डार कोयल कुहकी , बाग में गुनगुनाते दिन</div><div>..</div><div>है महक रहे बाग बगीचे, बिखरी खुशबू यहाँ वहाँ </div><div>इधर उधर नाचती तितलियाँ ,है उपवन महकाते दिन </div><div>..</div><div>शीतल मदमस्त पवन बहती, है सहरा जाती तन मन</div><div>उड़ रही चुनरिया गोरी की, अंग अंग सहलाते दिन</div><div>..</div><div>रंग चुरा तितली फूलों का, कर रही सिंगार अपना,</div><div>पुष्प हवा संग लहरा रहे,फूलों को भी भाते दिन</div><div>..</div><div> गुलाबी मौसम ऋतुराज का, पीली चहुँ ओर बहारें</div><div>खेत खलिहान पीले पीले, रंग पीला लुभाते दिन </div><div><br></div><div>रेखा जोशी</div></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div>Unknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-76683529550956646682024-03-13T05:00:00.000-07:002024-03-13T05:01:05.956-07:00उड़ते पंछी नील गगन पर <div>छंदमुक्त रचना <br></div><div><br></div><div>उड़ते पंछी</div><div>नील गगन पर</div><div>उन्मुक्त इनकी उड़ान</div><div>.</div><div><div>दल बना उड़ते मिल कर </div><div>संगी साथी </div><div>देते इक दूजे का साथ</div><div>चहक चहक खुशियाँ बांटे</div><div>गीत मधुर स्वर में गाते</div><div><div>उड़ते पंछी</div><div>नील गगन पर</div><div>उन्मुक्त इनकी उड़ान</div><div>..</div></div></div><div>भरोसा है अपने<br></div><div>पंखों पर</div><div>नहीं मानते हार कभी </div><div>हौंसलों में है इनके जान</div><div>थकते नहीं रुकते नहीं</div><div>लड़ते आँधियों तूफानों से</div><div>हैं मंज़िल अपनी पा लेते </div><div>उड़ते पंछी</div><div>नील गगन पर</div><div>उन्मुक्त इनकी उड़ान</div><div><br></div><div>रेखा जोशी</div><div><br></div><div><br></div><div><br></div>Unknownnoreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-50867249374733183222024-03-11T05:02:00.000-07:002024-03-11T05:02:12.616-07:00मुक्तक जय शिव शंकर भोलेनाथ दुख हरता<div>दर्द का सागर प्रतिदिन जाता भरता</div><div>हलाहल पीना तुम मुझे भी सिखा दो</div><div>कर जोड़ अपने प्रार्थना प्रभु करता<br></div><div>..</div><div>सारथी पार्थ के , गीता पाठ समझाया</div><div>राधा के साँवरे, था प्रेमरस छलकाया </div><div>कान्हा के रंग में, रास रचाती गोपियाँ</div><div>नतमस्तक धनंजय,विराट रूप दिखलाया</div><div><br></div><div>रेखा जोशी </div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-24460523201302692772024-03-09T06:37:00.000-08:002024-03-09T06:37:28.473-08:00ज़िन्दगी का अर्थ हमको है सिखाया आपने <div><br></div><div>आधार छंद- गीतिका </div><div><br></div><div>2122 2122 2122 212</div><div><br></div><div>ज़िन्दगी का अर्थ हमको है सिखाया आपने </div><div>दिल हमारे आस का दीपक जगाया आपने</div><div>..</div><div>ज़िन्दगी की ठोकरों से टूट थे हम तो गए</div><div>फिर नया इक जोश सा हमको दिलाया आपने</div><div>..</div><div>मुस्कुराना ज़िन्दगी में भूल हम तो थे गए</div><div>आज जीवन की ख़ुशी से फिर मिलाया आपने</div><div>..</div><div>भर दिए वो ज़ख्म सारे जो दिए थे ज़िन्दगी </div><div>प्यार में हमको पिया अपना बनाया आपने</div><div>..</div><div>फूल मुरझाये कभी थे प्यार के उपवन पिया</div><div>प्यार की बरसात ने उनको खिलाया आपने</div><div><br></div><div>रेखा जोशी </div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-68103967141252494042024-03-07T10:23:00.000-08:002024-03-07T10:23:10.042-08:00जय महाकाल <div>हे शिव शम्भू<br></div><div>जय महाकाल </div><div>पा कर सान्निध्य तेरा </div><div>हुई धन्य मैं त्रिपुरारि </div><div>..</div><div>जगत के हों पालनहार</div><div>शीश झुकाएं तेरे द्वार </div><div>और नहीं कुछ चाहिए </div><div>तुम्हीं तो हो तारणहार </div><div>नाम लेकर तेरा</div><div>हुई धन्य मैं, त्रिपुरारि<br></div><div>..</div><div>डम डम डम</div><div>जब डमरू बाजे</div><div>ताल पर इसकी हर कोई नाचे</div><div>सर्प हार गले पर साजे</div><div>शशिधरण का रूप निराला</div><div>आई शंभू मैं तेरे द्वार</div><div>पा कर सान्निध्य तेरा <br></div><div>हुई धन्य मैं त्रिपुरारि</div><div>..</div><div>गरल पान करने वाले</div><div>दुखियों के दुख हरने वाले</div><div>भोले बाबा,भोले भण्डारी</div><div>कृपा करो कृपानिधान </div><div>पाकर आशीष तेरा</div><div>हुई धन्य मैं,त्रिपुरारि </div><div>..</div><div>हे शिव शम्भू<br></div><div>जय महाकाल </div><div>पा कर सान्निध्य तेरा </div><div>हुई धन्य मैं त्रिपुरारि </div><div>..</div><div> रेखा जोशी </div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div>Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-1844807876650928112024-03-07T01:39:00.000-08:002024-03-07T01:39:40.076-08:00रिसते ज़ख्म <div>रिस रहे हैं ज़ख्म दिल में,<br></div><div>पर टूटा तो नहीं दिल अब तक मेराl </div><div>जी रही हूँ असहनीय पीड़ा के साथ,</div><div>लेकिन न जाने क्यों,</div><div>आस और उम्मीद संजोये हूँ बैठी,</div><div>अभी भी. अपना दामन फैलाये </div><div>इंतज़ार में तुम्हारीll</div><div><br></div><div>तुम आओगे फिर से बहार बन,</div><div>जिंदगी में मेरीl</div><div>थाम लोगे मुझे गिरने से तुम ll</div><div>लगा दोगे मलहम अपने हाथों से,</div><div>मेरे रिसते जख्मों परl</div><div>भर दोगे खुशियाँ फिर से मेरे जीवन में तुमll</div><div>काश आ जाओ प्रियतम,</div><div>कर दो मेरी बगिया गुलज़ार फिर सेl </div><div>आस और उम्मीद संजोये हूँ बैठी,</div><div>अभी भी अपना दामन फैलाये </div><div>इंतज़ार में तुम्हारीll</div><div><br></div><div>रेखा जोशी <br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-44787212042873643702024-03-06T08:26:00.000-08:002024-03-06T08:26:32.918-08:00दर्द का कोई धर्म नहीं होता <div><br></div><div><br></div><div>छंद मुक्त रचना </div><div><br></div>हाँ होता है दर्द सबको जब लगती है चोट,<div>चोटिल हो पशु पक्षी भी कराहते हैं दर्द से,</div><div>क्योंकि दर्द का कोई धर्म नहीं होता l</div><div><br></div><div>लिया है जन्म जिसने इस धरा पे,</div><div>बहता है खून जिसकी भी रगों में,</div><div>तड़पता है दर्द से हर जीवधारी,</div><div>क्योंकि दर्द का कोई धर्म नहीं होता l</div><div><br></div><div>है कर सकता इंसान बयाँ,</div><div>अपने तन मन के दर्द को l</div><div>लेकिन उन मूक प्राणियों का क्या,</div><div>सुनी है कराह कभी उनके दर्द की,</div><div>देखे है आंसू क्या , बयाँ करते जो पीड़ा उनकी l</div><div>मासूम सहते पीड़ा चुपचाप</div><div>क्योंकि दर्द का कोई धर्म नहीं होता<br></div><div><br></div><div>रेखा जोशी </div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div>Unknownnoreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-37273917205988814622024-02-28T02:06:00.000-08:002024-02-28T02:06:11.438-08:00प्यार का सफर <p dir="ltr">अथवा- 2122 1212 22<br>आधार छन्द- पारिजात<br></p><p dir="ltr">समांत अर<br>पदाँत - साजन </p><p dir="ltr">ज़िन्दगी प्यार का सफर साजन <br></p><p dir="ltr">चल पड़े प्यार की डगर साजन</p><p dir="ltr">नाच सागर रही किरण झिलमिल</p><p dir="ltr">चमक सूरज लिए प्रखर साजन </p><p dir="ltr">हाथ में हाथ ले चले दोनों</p><p dir="ltr">प्यार अपना रहे अमर साजन<br></p><p dir="ltr">हम नहीं प्यार को कभी भूलें <br></p><p dir="ltr">प्यार तुमसे बहुत मगर साजन<br></p><p dir="ltr">आज पूरे हुए पिया सपनें </p><p dir="ltr">लग न जाए कहीं नज़र साजन </p><p dir="ltr">रेखा जोशी </p>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-29504466205721455982024-02-25T06:57:00.001-08:002024-02-25T06:57:49.275-08:00हूँ आस का दीपक<div>मैं जलता रहा हरेक के अंतस में</div><div>हूँ आस का दीपक</div><div><br></div><div>हारे जो जीवन से अपने</div><div>टूटे हो जो जिनके सपने </div><div>मैं फैला कर रौशनी अपनी</div><div>जगा कर उम्मीद की इक किरण</div><div>बिखेर देता हूँ सुनहरी रश्मियाँ कभी कभी</div><div>जीवन में उनके</div><div>मैं जलता रहा हरेक के अंतस में</div><div><div>हूँ आस का दीपक</div></div><div><br></div><div>बुझे निराश मन को झकझोर कर<br></div><div>प्रयास करता हूँ मैं हर पल </div><div>नवीन उत्साह भरने का </div><div>जीवन की मुश्किलें हल करने का</div><div>मैं जलता रहा हरेक के अंतस में</div><div>हूँ आस का दीपक</div><div><br></div><div>रेखा जोशी <br><div><br><div><br></div></div></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-17508683488718877042024-02-25T06:20:00.000-08:002024-02-25T06:20:55.255-08:00गीत <div><br></div><div><br></div><div>विधा-गीत</div><div>आधार छंद चौपाई</div><div>मात्रा 16</div><div>मुखड़ा समान्त अने पदाँत आले</div><div>अंतरा 1 समान्त ऐ अपदांत </div><div>अंतरा 2समान्त ऐरी अपदांत</div><div><br></div><div>उड़ान ऊँची भरने वाले</div><div>नभ पर पंछी उड़ने वाले</div><div>.</div><div>झूमते संग संग हवा के</div><div>मनभावन मधुर गीत गाते</div><div>सुंदर अपना रूप सजा के</div><div>सब के मन को हरने वाले</div><div>नभ पर पंछी उड़ने वाले</div><div>.</div><div>काया रंग बिरंगी तेरी </div><div>बोली मीठी मीठी तेरी</div><div>फुदक रहे हो बगिया मेरी</div><div>डाली बैठ चहकने वाले</div><div>नभ पर पंछी उड़ने वाले</div><div>.</div><div>उड़ान ऊँची भरने वाले</div><div>नभ पर पंछी उड़ने वाले</div><div>.</div><div>रेखा जोशी </div><div><br></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-19805481533797115442024-02-21T09:39:00.000-08:002024-02-21T09:39:15.230-08:00गीत <p>गीत <br></p><p>रूठो ना हमसे तुम प्रियतम,आज साजन क्या हो गया</p><p>निभाई प्रीत दिल से हमने ,हाल.अपना क्या कर लिया</p><p>..</p><p>हैं बहारें खिली मधुबन में ,मौसम आज तड़पा रहा</p><p>गा रही हवाएं गीत मधुर, दिलअपना बस तुम्हारा रहा </p><p>बादल अँगना घिर घिर आया, छमाछम मींह बरसाया</p><p>निभाई प्रीत दिल से हमने ,हाल.अपना क्या कर लिया <br></p><p>..</p><p>जान चाहे ले लो हमारी, मगर दिल न तोड़ना कभी </p><p>तुम बिन जियें कैसे पिया, दूर हमसे जाना ना कभी</p><p>छोड़कर हमें चले कहां प्रियतम, दर्द इतना दे क्यों दिया</p><p>निभाई प्रीत दिल से हमने ,हाल.अपना क्या कर लिया </p><p>रेखा जोशी</p>Unknownnoreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-41219398866869815222024-02-18T08:55:00.000-08:002024-02-18T08:55:33.214-08:00गीत <div><div><br></div><div>गीत </div></div><div>आधार छंद --चौपैया (मात्रिक)<br></div><div>शिल्प विधान -30 मात्राएँ (10,8,12 पर यति) अंत में गागा अनिवार्य । </div><div>मुखड़ा ,</div><div>समांत आएं, पदांत हैँ</div><div>अंतरा 1</div><div>समांत इये,पदांत तेरी<br></div><div>अंतरा 2</div><div>समांत आए अपदांत</div><div><br></div><div>दीप जलाएं अब , ख़ुशी मनाएं, अंगना सजाएँ हैँ </div><div>घर हमारे आज, भगवान राम,धाम अवध आएं हैँ</div><div>..</div><div>आरती उतारूं, शीश झुकाऊँ, दया चाहिए तेरी </div><div>आशीष मिले प्रभु, सुन लो पुकार ,कृपा चाहिए तेरी</div><div>मन मंदिर प्रभु जी ,आन बसो तुम, हम शीश झुकाएं हैं</div><div>घर हमारे आज, भगवान राम,धाम अवध आएं हैँ</div><div>..</div><div>मिल कर रहें सभी,तुम्हीं सहारे,कष्ट न कोई पाए </div><div>सर ऊपर प्रभु का, रहे हाथ जब, दुख दर्द मिटा जाए</div><div>राम कृपा करना, सब दुख हरना, सुधबुध बिसराए हैँ</div><div>घर हमारे आज, भगवान राम, धाम अवध आएं हैँ<br></div><div>..</div><div>दीप जलाएं अब , ख़ुशी मनाएं, अंगना सजाएँ हैँ </div><div>घर हमारे आज, भगवान राम,धाम अवध आएं हैँ</div><div>..</div><div>रेखा जोशी </div><div><br></div><div><br></div><div> </div><div> </div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-87451288547074218202024-02-15T05:37:00.001-08:002024-02-15T05:37:48.817-08:00आया ऋतुराज<p>आया ऋतुराज मौसम बहारों का</p><p>हौले हौले बह रही संगीतमय लहर</p><p>दे रही हिलोरे मदमस्त बसंती पवन</p><p>झूम रहे धरा पर पीले पीले फूल.</p><p>.</p><p>मन में उमंग लिये</p><p>उपवन में मुस्कुराते गुनगुना रहे भँवरे</p><p>लहराते धरा पर</p><p>खिलखिला रहे पीले पीले फूल</p><p>.</p><p>मौसम ने ली अंगड़ाई</p><p>छाया चहुँ ओर रंग बसंती </p><p>कुहक रही कोयलिया अंबुआ की डाल पे</p><p>खेतों खलिहानों में नाच उठी सरसों</p><p>इतरा रहे धरा पर पीले पीले फूल</p><p>.</p><p>मधुरस बिखेरता आया मधुमास</p><p>लहराये चुनरिया</p><p>पिया मिलन की आस</p><p>गोरी के आँचल तले</p><p>शरमा रहे पीले पीले फूल</p><p>.</p><p>रेखा जोशी</p>Unknownnoreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-74429447178560401542024-02-15T05:15:00.000-08:002024-02-15T05:15:37.247-08:00गीतिका <div><br></div><div>गीतिका </div><div><br></div><div>फूलों से लदे गुच्छे लहराते डार डार</div><div>है खिल खिल गए उपवन महकाते संसार</div><div>,</div><div>सज रही रँग बिरँगी पुष्पित सुंदर वाटिका</div><div>है भँवरें पुष्पों पर मंडराते बार बार</div><div>,</div><div>सुन्दर गुलाब खिले महकती है खुशी यहां</div><div>संग संग फूलों के यहां मिलते है खार</div><div>,</div><div>है मनाती उत्सव रंग बिरंगी तितलियां</div><div>चुरा कर रंग फूलों का कर रही सिंगार</div><div>,</div><div>अंबुआ की डाली पे कुहुकती कोयलिया</div><div>खिले जीवन यहां जैसे बगिया में बहार</div><div><br></div><div>रेखा जोशी</div><div><br></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-53339699432956118252024-02-14T08:58:00.001-08:002024-02-15T05:50:42.955-08:00<div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">बहु और बेटी</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">बहु और बेटी ,क्या हम दोनों को एक समान देखते है ? कहते तो सब यही है कि बहु हमारी बेटी जैसी है लेकिन हमारा व्यवहार क्या दोनों के प्रति एक सा होता है ? नही ,बहु सदा पराई और बेटी अपनी ,बेटी का दर्द अपना और बहु तो बहु है अगर सास बहु को सचमुच में अपनी बेटी मान ले तो निश्चय ही बहु के मन में भी अपनी सास के प्रति प्रेमभाव अवश्य ही पैदा हो जायेगा|अपने माँ बाप भाई बहन सबको छोड़ कर जब लड़की ससुराल में आती है तो उसे प्यार से अपनाना ससुराल वालों का कर्तव्य होता है ।</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">हम सब अपने बेटे की शादी के लिए पढ़ी लिखी संस्कारित परिवार की लड़की दूंढ कर लाते हैं,जिसके आने से पूरे घर में खुशियों की लहर दौड़ उठती है ,लेकिन सास और बहु का रिश्ता भी कुछ अजीब सा होता है और उस रिश्ते के बीचों बीच फंस के रह जाता है बेचारा लड़का ,माँ का सपूत और पत्नी के प्यारे पतिदेव ,जिसके साथ उसका सम्पूर्ण जीवन जुड़ा होता है ,कुछ ही दिनों में सास बहु के प्यारे रिश्ते की मिठास खटास में बदलने लगती है और सास का बेटा तो किसी राजकुमार से कम नही होता और माँ का श्रवण कुमार ,माँ की आज्ञा का पालन करने को सदैव तत्पर ,ऐसे में बहु ससुराल में अपने को अकेला महसूस करने लगती है,और बेचारा लड़का ,एक तरफ माँ का प्यार और दूसरी ओर पत्नी के प्यार की मार, उसके लिए असहनीय बन जाती है और आखिकार एक हँसता खेलता परिवार दो भागों में बंट जता है,लेकिन यह इस समस्या का समाधान नही है ,परन्तु आख़िरकार दोष किसका है?</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">दोष तो सदियों से चली आ रही परम्परा का है ,दोष सास बहु के रिश्ते का है ,सास बहु को बेटी नही मान सकती और बहु सास को माँ का दर्जा नही दे पाती ।सास को अपना ज़माना याद रहता है जब वह बहु थी और उसकी क्या मजाल थी कि वह अपनी सास से आँख मिला कर कुछ कह भी सके ,लेकिन वह भूल जाती है कि उसमे और उसकी बहु में एक पीढ़ी का अंतर आ चुका है ,उसे अपनी सोच बदलनी होगी ,बेटा तो उसका अपना है ही वह तो उससे प्यार करता ही है ,और अगर वह अपनी बहु को माँ जैसा प्यार दे , अपनी सारी दिल की बातें बिना अपने बेटे को बीच में लाये सिर्फ अपनी बहु के साथ बांटे , उसका शारीरिक ,मानसिक और भावनात्मक रूप से साथ दे तो बहु को भी बेटी बनने में देर नही लगेगी।</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">रेखा जोशी</div><div dir="auto"><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">मेरा संक्षिप्त परिचय संलग्न है<br /></div><div dir="auto"><p><br />परिचय<br />रेखा जोशी<br />जन्म : 21 जून 1950 ,अमृतसर<br />शिक्षा :एम् एस सी [भौतिक विज्ञान ]बी एच यू<br />आजीविका :अध्यापन ,के एल एम् डी एन कालेज फार वीमेन ,फरीदाबाद<br />हेड आफ डिपार्टमेंट ,भौतिकी विभाग [रिटायर्ड ]<br />कार्यकाल में आल इण्डिया रेडियो ,रोहतक से विज्ञान पत्रिका के अंतर्गत<br />अनेक बार वार्ता प्रसारण ,कई जानी मानी हिंदी की मासिक पत्रिकाओं में लेख<br />एवं कहानियों का प्रकाशन।<br />अन्य गतिविधिया :<br />1जागरण जंक्शन .काम पर ब्लॉग लेखन<br />२ ओपन बुक्स आन लाइन पर ब्लॉग लेखन<br />३ गूगल ओशन आफ ब्लीस पर रेखा जोशी .ब्लाग स्पॉट .काम पर लेखन<br />४ कई इ पत्रिकाओं में प्रकाशन<br /><br />पता :<br />Rekha Joshi<br />565,Sector 16A<br />Faridabad<br />121002<br />Haryana</p></div></div></div></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-9235829253071757602024-02-10T07:21:00.000-08:002024-02-10T07:21:03.703-08:00<div>गीतिका </div><br><div>फूल उपवन सदा मुस्कुराते रहे<br></div><div>संग मधुकर यहाँ गुनगुनाते रहे</div><div>..</div><div>चल पड़े साथ राहें अलग थी मगर </div><div>ज़िन्दगी साथ तेरा निभाते रहे</div><div>..</div><div>गम भरी ज़िन्दगी में ख़ुशी भी मिली</div><div>पोंछ आंसू यहाँ खिलखिलाते रहे</div><div>..</div><div>ज़िन्दगी की यहाँ शाम ढलने लगी</div><div>आस का दीप हम तो जलाते रहे</div><div>..</div><div>पास आओ कभी हाल अपना कहें</div><div>ज़िन्दगी भर नज़र क्यों चुराते रहे</div><div><br></div><div>रेखा जोशी </div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div>..</div><div><br></div><div><br></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-44059785774219773112023-12-21T06:14:00.001-08:002023-12-21T06:14:56.057-08:00है गुलज़ार बगियाखिली बगिया मेरी यहाँ महकते फूल<div>लाल पीले सफ़ेद कुछ रंगीले फूल</div><div>छाई अद्धभुत छटा है गुलज़ार बगिया</div><div>लहलहाते उपवन रंग बिरंगे फूल</div><div><br></div><div>रेखा जोशी </div>Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-52941011803266104612023-12-15T21:04:00.001-08:002023-12-15T21:04:54.096-08:00लम्हा लम्हा लम्हा लम्हा कट रही है जिंदगी कुछ ऐसे<div><br></div><div>न कोई तमन्ना जीने की रही हो जैसे</div><div><br></div><div>..</div><div><br></div><div>रूठी सभी चाहते जीने की आस नहीं</div><div><br></div><div>जी कर भी क्या करें अपने ही पास नहीं</div><div><br></div><div>.</div><div><br></div><div>लगता था जो हमें दुनिया में सबसे प्यारा</div><div><br></div><div>तोड़ कर दिल चला गया वोह ही हमारा</div><div><br></div><div>..</div><div><br></div><div>साज सूने गीत सूना सूनी है सरगम</div><div><br></div><div>आंसू अविरल बह रहे हर ओर ग़म ही ग़म</div><div><br></div><div>..</div><div><br></div><div>रह गए हम तो अकेले दुनिया की भीड़ में</div><div><br></div><div>जो किया शायद अच्छा ही किया तकदीर ने</div><div><br></div><div>रेखा जोशी</div>Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-59547447073129399232023-11-27T07:28:00.001-08:002023-11-27T07:34:29.306-08:00इक दूजे के लिए महक , एक खूबसूरत लड़की न जाने कैसे गलत दोस्तों के संसर्ग में आ कर ड्रग्स के सेवन में उलझ कर रह गई ,मस्ती के आलम में एक ही सिरींज से उसने अपने साथियों के साथ बांटा ,इस बात से अनभिज्ञ कि वह एक ऐसी जानलेवा बीमारी को निमंत्रण दे चुकी है जो लाइलाज है ,जी हा एड्स यानीकि’‘एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिसिएंशी सिंड्रोम” जिसका अर्थ है ”मनुष्य की प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर अनेक बीमारियों का उस पर प्रहार जो की "एच.आई.वी”. वायरस से होती है.और यह वायरस ही मनुष्य की प्रतिरोधी क्षमता पर असर कर उसे इतना कमज़ोर कर देता है,जिसके कारण खांसी ज़ुकाम जैसी छोटी से छोटी बीमारी भी रोगी की जान ले सकती है |<div><br></div><div>यह जानलेवा बीमारी किसी भी इंसान में एच.आई. वी. ”ह्यूमन इम्यूनो डेफिसिएंशी वाइरस ”के पाजी़टिव होने से होती है ,लेकिन महक इन सब बातों से दूर थी उसने तो सिर्फ अपने एक साथी से ड्रग्स का इंजेक्शन ले कर लगाया था ,इस बात से बेखबर कि उसने किसी एच आई वी पासिटिव व्यक्ति के रक्त से संक्रमित हुए इंजेक्शन का सेवन कर लिया था,जिसने उसे मौत के मुहं की तरफ धकेलदिया था ,क्योकि इस बीमारी का इलाज तो सिर्फ और सिर्फ बचाव में ही हैl</div><div><br></div><div> अगर कोई”एच आई वी” से ग्रस्त व्यक्ति किसी भी महिला या पुरुष से असुरक्षित यौन सम्बन्ध बनाता है तोवह उसे तो इस बीमारी से ग्रस्त करता ही है और अगर इस बीमारी से पीड़ित किसी पुरुष से कोई महिला गर्भवती हो जाती है तो उसके पेट में पल रहे बच्चे को भी यह जानलेवा बीमारी अपनी ग्रिफ्त में ले लेती है ,इसी कारण हमारे देश में इस रोग से पीड़ित लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है l समलैंगिक सम्बन्ध ,रेड अलर्ट एरिया भी भारी संख्या में इस खतरनाक बीमारी को फैलाने में अच्छा खासा योगदान दे रहें है l</div><div><br></div><div>आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी और अनैतिक संबंधों की बढ़ती बाढ़ से यह बीमारी और भी तेजी से फैल रही है,और पूरे विश्व के लिए यह एक अच्छी खासी सिरदर्द बन चुकी है,यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इस बीमारी को बेहद गंभीरता से लिया है और हर वर्ष पहली दिसंबर को यह दिन ”विश्व एड्स दिवस”के रूप में मनाया जाता है ताकि दुनिया भर में लोगों को इस नामुराद बीमारी से अवगत करा कर इससे बचने के उपाय बताये जा सकें |इस खतरनाक ,लाइलाज बीमारी से अगर कोई ग्रस्त हो गया तो बस समझ लो वह मौत के मुहं में पहुंच चुका है उसके बचने का कोई भी उपाय नही है ,इस जानलेवा बीमारी से बचने का एक मात्र उपाय केवल सावधानी और बस सावधानी ही है ,यह एक ऐसा सुरक्षा चक्र है जो इस भयानक बीमारी से हर किसी को दूर रख सकता है ,वह है पति पत्नी का इक दूजे के प्रति उनका समर्पण भाव l</div><div><br></div><div>,हमारे हिन्दू धर्म में विवाह को सदा एक पवित्र रिश्ता माना जाता रहा है जिसमे पति के लिए पत्नी और पत्नी के लिए पति पूजनीय है ,कितना ही अच्छा हो अगर हम सब इस रिश्ते की गरिमा को समझ कर सदा अपने जीवन साथी के प्रति समर्पित रह कर एड्स जैसी घिनौनी बीमारी को सदा के लिए अपने से दूर रखें |इससे पहले कि महक जैसे अनेक भटके हुए युवा अपनी जवानी के नशे में जिंदगी के अनदेखे ,अनजाने रास्तों पर चल कर अपनी मौत को खुद ही आमंत्रित करें हम सबका यह कर्तव्य बनता है कि हम उन्हें सही राह दिखाते हुए इस बीमारी से बचने के लिए पति पत्नी के आपसी प्रेम के सुरक्षा चक्र के बारे में जानकारी दे कर उनका मार्गदर्शन करे ओर उनको एक स्वस्थ और खुशहाल जिंदगी की ओर अग्रसर करे l</div><div><br></div><div>रेखा जोशी </div>Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-49174678815074337582023-11-26T23:14:00.001-08:002023-11-26T23:46:15.787-08:00,पारिजात.<div><br></div><div>महकने लगी वसुधा</div><div>खिले जो पुष्प हरसिंगार के</div><div>सुगंधित शीतल चाँदनी में.</div><div>लिपटी धरा सफेद केसरिया </div><div>फूलों की चादर से</div><div><div>बिखरे हैं धरा पर ज्यों </div></div><div>अश्रु तुम्हारे प्यार के</div><div>पलता आंसुओ में प्रेम तेरा</div><div><div>बहते रहे रात भर.जो</div><div>प्रियतम अपने की याद में<br></div></div><div>झरते रहते भोर तक</div><div>यह पुष्प पारिजात के</div><div><br></div><div>रेखा जोशी </div><div><br></div>Unknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-39672801454004369622023-11-24T04:41:00.001-08:002023-11-25T06:36:34.538-08:00मुक्तक <div>मुक्तक </div><div><br></div><div>प्यार से सबको यहां अपना बनाना है हमें<br></div><div>साथ रह कर जिन्दगी में मुस्कुराना है हमें</div><div>जिन्दगी रूके नहीं है चार दिन की चाँदनी <br></div><div>आज अपनों से यहां वादा निभाना है हमें<br></div><div><br></div><div>रेखा जोशी<br></div><div><br></div><div><br></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-9691064644717328452023-11-03T22:03:00.003-07:002023-11-03T22:06:10.503-07:00"एक कप चाय और सौगंध बाप की" <div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div>"शर्मा जी ने हाल ही में सरकारी नौकरी का कार्यभार संभाला था,अपनी प्रभावशाली लेखन शैली के कारण वह बहुत जल्दी अपने ऑफ़िस में प्रसिद्ध हो गए। जिस किसी को भी अपनी रिपोर्ट उपर के ऑफ़ीसर को भेजनी होती थी, वह एक बार उनसे राय जरूर ले लेता था। उसी ऑफ़िस में कार्यरत एक कर्मचारी हर रोज़ शाम के समय शर्मा जी के कमरे में आकर मित्रता के नाते बैठने लगा,और धीरे धीरे अपनी रिपोर्ट भी उनसे बनवाने लगा। जब शर्मा जी उसकी रिपोर्ट लिख रहे होते वह उनके लिए एक कप चाय मंगवा देता ,कुछ दिन तक यह सिलसिला चलता रहा और एक दिन शर्मा जी को ऐसा लगा जैसे वह उन्हें चाय रिपोर्ट लिखने के बदले में पिला रहा है तो उसी क्षण उन्होंने उसके लिए लिखना बंद कर दिया।</div><div><br></div><div>शर्मा जी के मना करने पर वह कर्मचारी गुस्से से लाल पीला हो गया ,आव देखा न ताव एक घूंसा शर्मा जी की तरफ बढ़ा दिया जिसे उन्होंने ने बीच में ही काट उस कर्मचारी के मुख पर जोर से घूंसा जड़ दिया। आग की तरह जल्दी ही बात पूरे ऑफ़िस में फैल गई। दोनों को बड़े साहब ने बुलाया ,चोट लगे कर्मचारी के साथ पूरे स्टाफ की सहानुभूति थी और उसने भी रोते हुए बड़े साहब से अपने बाप की सौगंध खाते हुए कहा कि वह बिलकुल निर्दोष है ,नतीजतन शर्मा जी से लिखित स्पष्टीकरण माँगा गया। उस रात शर्मा जी सो न सके,सुबह उठते ही इस्तीफा लिख कर जेब में रखा और ऑफ़िस पहुंच गए।</div><div><br></div><div>वहां पहुंचते ही पता चला कि रात को उस कर्मचारी के पिता जी परलोक सिधार गए।"</div><div> </div><div>रेखा जोशी </div>Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-91945510695419040582023-11-03T22:02:00.001-07:002023-11-03T22:02:02.353-07:00खूबसूरत [लघु कथा]<div>"खूबसूरत [लघु कथा]</div><div><br></div><div>शन्नो की सगी बहन मन्नु लेकिन शक्ल सूरत में जमीन आसमान का अंतर , अपने माता पिता की लाडली शन्नो इतनी सुंदर थी मानो आसमान से कोई परी जमीन पर उतर आई हो ,बेचारी मन्नु को अपने साधारण रंग रूप के कारण सदा अपने माता पिता की उपेक्षा का शिकार होना पड़ता था |शन्नो अपने माँ बाप के लाड और अपनी खूबसूरती के आगे किसी को कुछ समझती ही नही थी |एक दिन दुर्भाग्यवश उनकी माँ बहुत बीमार पड़ गई ,सारा दिन बिस्तर पर ही लेटी रहती थी ,मन्नु ने अपनी माँ की सेवा के साथ साथ घर का बोझ भी अपने कंधों पर ले लिया ,उसकी नकचढ़ी बहन किसी भी काम में उसका हाथ नही बंटाती थी |धीरे धीरे मन्नु की मेहनत रंग ले आई और उसकी माँ के स्वास्थ्य में सुधार होना शुरू हो गया,अपनी बेटी को इतना काम करते देख उसके माँ बाप की आँखों में आंसू आ गये ,उन्होंने उसे गले लगा लिया ,वह जान चुके थे असली खूबसूरती तो मन की होती है |"</div><div><br></div><div>रेखा जोशी </div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-78710203962290473252023-10-28T05:25:00.002-07:002023-10-28T05:26:53.253-07:00न जाने कहाँ चली गई ज़िंदगी<div>न जाने कहाँ चली गई ज़िंदगी</div><div><br></div><div>मेरे घर के पिछवाड़े आँगन में </div><div>सुबह शाम पंछियों का चहचहाना</div><div>शहतूत के घने पेड़ पर </div><div>जो था रैन बसेरा </div><div>अनेक जीवों का </div><div>दूर करता था जो सूनापन </div><div>बस्ती थी जहाँ अनेक ज़िंदगियाँ </div><div>है आज वीरान सुनसान </div><div>लेकिन आता याद वही कलरव </div><div>चहचहाना उनका </div><div>न जाने कहाँ चली गई ज़िंदगी </div><div>उनके साथ </div><div><br></div><div>रेखा जोशी</div>Unknownnoreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5961624144599097234.post-62806304452477195402023-10-19T22:12:00.002-07:002023-10-19T22:13:12.809-07:00प्रियतम मेरे प्रियतम मेरे <div>फिर वही शाम वही तन्हाई </div><div>दिल में मेरे वही दर्द ले कर आई </div><div>....................................</div><div><br></div><div>प्रियतम मेरे </div><div>ढूँढ़ रही है बेचैन निगाहें </div><div>कहाँ खो गये दुनिया की भीड़ में</div><div>......................................</div><div><br></div><div>प्रियतम मेरे</div><div>मजनू बना प्यार में तेरे </div><div>आईना भी नही पहचानता मुझे</div><div>............................................</div><div><br></div><div>प्रियतम मेरे </div><div>दर्देदिल ने कुछ ऐसा किया </div><div>हो गया मै तुम्हारा उम्र भर के लिए</div><div>......................................... </div><div><br></div><div>प्रियतम मेरे</div><div>हो न जाऊं कहीं पागल मै </div><div>स्वाती अमृत की बूंद मुझे दे </div><div><br></div><div>रेखा जोशी</div>Unknownnoreply@blogger.com2