गोकुल में मुरली मधुर बजाये कान्हा
है गोपियों के संग रास रचायें कान्हा
धुन मुरली की सुन बाँवरी हुई राधा
देख सूरत मन्द मन्द मुस्काये कान्हा
रेखा जोशी
सफलता का मूलमंत्र
प्रिया ने सुबह सुबह अपनी पड़ोसन को मुहँ अँधेरे अपने घर से बाहर निकलते देखा ,इससे पहले वह उससे कुछ पूछती उसकी पड़ोसन जल्दी जल्दी कहीं चली गई |प्रिया को उसका इस तरह जाना कुछ अजीब सा लगा ,इतना तो वह जानती थी कि आजकल उनके घर के हालात कुछ ठीक नही चल रहे ,उसके पति काफी समय से बीमार चल रहे थे और उसके बेटे की कमाई भी कुछ ख़ास नही थी और वह अंधाधुंध ज्योतिष्यों और तांत्रिकों के पीछे भाग रही थी ,उसकी सोच पर प्रिया को बहुत दुःख होता था ,क्या ऐसे पाखंडियों के पास कोई जादू का डंडा था जो घुमा दिया तो सारी मुसीबतें खत्म ,बस ''खुल जा सिम सिम ''की तरह उनकी किस्मत का ताला भी खुल जाए गा और वो पाखंडी बाबा उनका घर खुशियों से भर देगा प्रिया इस तरह के अंधविश्वासों को बिलकुल नही मानती थी ,बल्कि उसका कई बार मन होता था की वह अपनी पड़ोसन को समझाये कि इन सब ढकोसलों से उसे कुछ भी हासिल होने का नही और वह व्यर्थ में इन पोंगे पंडितों पर अपनी खून पसीने की कमाई लुटा रही थी |
इस संसार में हर इंसान की जिंदगी में अच्छा और बुरा समय आता है ,लेकिन बुरे वक्त में इंसान अक्सर घबरा जाता है और उन परस्थितियों का सामना करने में अपने आप को असुरक्षित एवं असमर्थ पाता है उस समय उसे किसी न किसी के सहारे या संबल की आवश्यकता महसूस होती है ,जिसे पाने के लिए वह इधर उधर भटक जाता है ,जिसका भरपूर फायदा उठाते है यह पाखंडी पोंगे पंडित |अपनी लच्छेदार बातों में उलझा कर वह शातिर लोग उन्हें बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा करते है ,पता नही हमारे देश के कितने लोग ऐसे पाखंडियों के बहकावे में आ कर अपनी जिंदगी भर की कमाई उन्हें सोंप कर अंत में बर्बाद हो कर बैठ जाते है |अपने बुरे वक्त में अगर इंसान विवेक से काम ले तो वह अपनी किस्मत को खुद बदलने में कामयाब हो सकता है ,आत्म विश्वास,,दृढ़ इच्छा शक्ति ,लगन और सकारात्मक सोच किसी भी इंसान को सफलता प्रदान कर आकाश की बुलंदियों तक पहुंचा सकती है ।
कुछ दिन पहले प्रिया की मुलाकात एक बहुत ही कामयाब इंसान से हुई थी ,यूँ ही प्रिया ने बातों बातों में उससे उसकी सफलता के पीछे किसका हाथ है ,पूछ लिया ,उसके उत्तर ने प्रिया को बहुत प्रभावित किया ,उसने कहा था कि अपनी जिंदगी में उसने बहुत कठिन परस्थितियों का सामना किया था लेकिन जब कभी भी उसे कुछ कर दिखाने का कोई अवसर दिखाई देता , वह आगे बढ़ कर उस अवसर को सुअवसर में बदल देता था और उसके पीछे रहती थी उसकी अनथक लगन ,भरपूर आत्मविश्वास और सफलता पाने का दृढ संकल्प ,बस जैसे ही उन रास्तों पर चलना शुरू करता ,मंजिलें अपने आप मिलने लग गई थी ,बस यही राज़ था उसके सफलता के द्वार के खुलने का |तभी प्रिया को सामने से अपनी पड़ोसन आती दिखाई दी और वह उससे मिलने और जीवन में सफलता पाने का मूलमंत्र बताने के लिए उसकी तरफ चल पड़ी |
रेखा जोशी
आ गई बहार जो आये हो तुम
चहकने लगी बुलबुल अब दिल की
फूलों पर भंवरे भी लगे मंडराने
महकने लगा अब आलम सब ओर
तरसती थी निगाहें तुम्हे देखने को
भूल गये अचानक वो रस्ता इधर का
मुद्दते हो चुकी थी देखे हुए उनको
भर दी खुशियों से आज झोली उसी ने
महकती रहे बगिया मेरे आंगन की
खुशिया ही खुशिया बनी रहे दिल में
आ गई बहार जो आये हो तुम
चहकने लगी बुलबुल अब दिल की
है खिल खिल गये उपवन महकाते संसार
फूलों से लदे गुच्छे लहराते डार डार
सज रही रँग बिरँगी पुष्पित सुंदर वाटिका
भँवरें अब पुष्पों पर मंडराते बार बार
......
छाई चहुँ ओर बहार ही बहार है
महकता चमन भी अपना गुलज़ार है
छलकती खुशियाँ अब आँगन में मेरे
चलती फागुन की जब मस्त बयार है
रेखा जोशी
संवाद ,नारी
शीर्षक कन्या पूजन
कलाकार
सास
शिखा
राजू(शिखा का पति)
स्टेज पर सास का प्रवेश
सास ,शिखा कहाँ हो तुम,जल्दी आओ हमें अभी जाना है
शिखा का स्टेज पर आना
शिखा (तौलये से हाथ साफ़ करते हुए)
क्या है माँ ,कहाँ जाना है?
सास ,डॉक्टरनी के पास ,पता है वो मंदिर वाले पंडित जी के पास गई थी कुंडली लेकर ,पता है उन्होंने कुंडली देखा कर क्या बताया
शिखा ,क्या?
सास,अरे पगली ,उन्होंने कहा था कि मै अगर नवरात्रि में पूरे नौ दिन तक उपवास करूँ और हर रोज नौ कन्या की पूजा करूँ तो मेरे मन की मुराद अवश्य पूरी होगी ,बस अभी मैं उद्यापन कर के आई हूं।
शिखा,(आश्चर्य से ) पर आप तो डॉक्टरनी के पास जाने को कह रही हो
सास ,ओफ़ हो ,तुम तो मेरे मन की बात भी नहीं समझती,कैसी मोटी बुद्धि
से पाला पड़ गया
सास , मै तो बस मरने से पहले अपने पोते का मुहँ देखना चाहती हूँ और कुछ नही चाहिए मुझे ,देख लेना की बार तेरे बेटा ही होगा ,चल अब जल्दी ,बतियाती ही रहे गी क्या ,?
राजू का प्रवेश
राजू ,माँ ओ माँ क्या बताया डाक्टरनी ने ?
सास का प्रवेश ,मुहँ लटका हुआ और बहुत उदास
सास ,बेटा हमारे तो भाग ही फूटे हैं ,लड़की है ससुरी के पेट में ,अबके न आने देंगे इसे ,मैने डाक्टरनी से बात कर ली है ,बेटाा कल ही सफाई करवा देते है
राजू ,है माँ यह ठीक रहेगा
शिखा का प्रवेश
शिखा ,यह तुम क्या कह रहे हो राजू,माँ तो नासमझ है और तुम पढ़लिख कर भी ....
राजू ,देखो शिखा माँ ठीक कह रही है ,मुझे भी बेटा ही चाहिए,तुम कल माँ के साथ लेडी डॉक्टर के पास चली जाना
शिखा ,लेकिन राजू मेरे पेट में तुम्हारा अंश है ,नहीं मैं इसे जन्म दूँगी
सास ,चुप रह नासपीटी ,बहुत बोल लिया तुमने ,कह दिया न चल जाना है तो जाना है ,एक शब्द भी और नहीं
शिखा ,माँ तुम कैसी बात कर रही हो ,एक तरफ तो तुमने पूरे नवरात्रे देवी माँ के लिए उपवास किया ,हर रोज़ नौ कन्याओं का पूजन किया और जब देवी माँ कन्या के रूप में हमारे घर आना चाह रही है तो तुम उसे मार कर क्यों पाप करना चाहती हो
सास और राजू दोनों शिखा की तरफ हैरानी से देखते है
शिखा ,नही मै यह अपराध नहीं करूंगी और न ही किसी और को इस पाप की भागीदार बनने दूँगी ,हमारी बेटी इस दुनिया में आएगी और अवश्य आएगी
सास से,क्यों माँ बोलो अब ,जिस देवी माँ की तुमने पूजा की हैवह अब तरे पास आ रही है तो क्या तुम देवी माँ का गला घोंट दोगी
सास ,अरे शिखा बेटा ,तुम सच कह रही हो मै यह कैसा पाप करने जा रही थी ,मुझे माफ कर दो, तुमने तो मेरी आँखे खोल दी ,हम अपनी बेटी को बेटे जैसे पालेंगे उसे खूब पढ़ाएंगे ,डाक्टरनी बनाएंगे
राजू ,हां माँ शिखा ठीक कह रही है
सभी, बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ
रेखा जोशी
अंधा कर देती चमक
पैसे की
लालच की अंधी दौड़ में
लगाता जाता दाव पे दाव
जुआ
जीतने की होड़ में
थी लगाई द्रोपदी दाव पर
युधिष्ठर ने
सब कुछ हार जाने के बाद
हुआ युद्ध का शंखनाद
था कांप उठा कुरुक्षेत्र का
मैदान
थी मिली द्युत क्रीड़ा से
जन जन को पीड़ा
सर चढ़ कर जब बोले
जुनून इसका हो जाता तब
बर्बाद इंसान
रेखा जोशी
शायद मेरी आयु पूर्ण हो गई
देहरादून की सुंदर घाटी में स्थित प्राचीन टपकेश्वर मन्दिर , शांत वातावरण और उस पावन स्थल के पीछे कल कल बहती अविरल पवित्र जल धारा, भगवान आशुतोष के इस निवास स्थल पर दूर दूर से ,आस्था और विश्वास लिए ,पूजा अर्चना करने हजारो लाखों श्रदालु हर रोज़ अपना शीश उस परमेश्वर के आगे झुकाते है और मै इस पवित्र स्थान के द्वार पर सदियों से मूक खड़ा हर आने जाने वाले की श्रधा को नमन कर रहा हूँ |लगभग पांच सौ साल से साक्षी बना मै वटवृक्ष इसी स्थान पर ज्यों का त्यों खड़ा हूँ ।
|आज मेरी शाखाओं से लटकती ,इस धरती को नमन करती हुई ,मेरी लम्बी लम्बी जटायें जो समय के साथ साथ मेरा स्वरूप बदल रहीं है , मुझे अपना बचपन याद दिला रही है ,उस बीते हुए समय की,जब इस पवित्र भूमि का सीना चीर कर ,मै अंकुरित हुआ था ,अनगिनत आंधी तूफानों ,जेष्ठ आषाढ़ की तपती गर्मियों और सर्दियों की लम्बी ठंडी सुनसान रातों की सर्द हवाओं के थपेड़े सहते सहते मै आज भी वहीँ पर,चारो ओर ,अपनी लम्बी जड़ों के सहारे ,टहनियां फैलाये हर आने जाने वाले भक्तजन को ,चाहे तपती धूप हो या बारिश हो ,कैसा भी मौसम हो ,उनको अपनी घनी शाखाओं की ठंडी छाया देता हुआ अटल सीना ताने खड़ा हूँ |
मैने माथे पर बिंदिया लगाये ,सजी धजी उन सुहागनों की पायल की झंकार के साथ वह हर एक पल जिया था जिन्होंने अपने सुहाग की दीर्घ आयु की कामना करते हुए भोले बाबा के इस मंदिरमें नतमस्तक होकर भगवान शंकर का आशीर्वाद प्राप्त किया था और आज भी पायल की सुरीली धुन पर अनगिनत सुंदर सजीले चेहरे मेरे सामने अपने आंचल में श्र्धाकुसुम लिए छम छम करती 'ॐ नमः शिवाय 'के उच्चारण से इस शांत स्थल को गुंजित कर मंदिर के भीतर जाने के लिए एक एक सीढ़ी उतरते हुए उस पभु ,जो देवों के देव महादेव है उनके चरणों में अर्पित कर अपनी सारी मनोकामनाएं पूर्ण करने का आशीर्वाद लेते देख रहा हूँ |कोई नयी नवेली दुल्हन अपने पति संग ,अपनी होने वाली संतान की आस लिए और कोई अपने प्रियतम को पाने की आस लिए ,हर कोई अपने मन में कल्याण स्वरूप भगवान विश्वनाथ की छवि को संजोये उस प्राचीन मंदिर के पावन शिवलिंग पर टपकती बूंद बूंद जल के साथ दूध और जल अर्पित कर विश्वास और आस्था को सजीव होते हुए मै सदियों से देख रहा हूँ |
आज जब मै बूढ़ा हो रहा हूँ ,एक एक कर मेरी शाखाओं के हरेभरे पत्ते दूर हवा में उड़ने लगे है, और वह दिन दूर नही जब मै धीरे धीरे सिर्फ लकड़ी का एक ठूठ बन कर रह जाऊं गा और पता नही कब तक मे अपनी चारों तरफ फैलती जड़ों के सहारे जीवित रह सकूँ गा ,शायद अब मेरी आयु पूरी हो चली है लेकिन मुझे इस बात का गर्व है कि मैने अपनी जिंदगी के पांच सौ वर्ष इस पवित्र ,पावन प्राचीन शिवालय कि चौखट पर एक प्रहरी बन कर जिए है ,मेरा रोम रोम आभारी है उस परमपिता का जिन्होंने मुझे सदियों तक अपनी दया दृष्टि में रखा ,मुझे पूर्ण विश्वास है कि सबका कल्याण करने वाले भोलेनाथ बाबा एक बार फिर से मुझे अपने चरणों में स्थान देने की असीम कृपा करेंगे |
रेखा जोशी
दूसरों की बुराई सुबह शाम करते हैं
बगल में छुरी मुख से राम राम करते हैं
भगवान बचाये ऐसे लोगों से हम को
भुजंग जैसी टेढ़ी सदा चाल चलते है
रेखा जोशी
उपकार
आओ मिल कर ज़िंदगी में हम सबसे करें प्यार
हम जीवन में अपनी गलतियों को करें स्वीकार
हो जाती गलती किसी से क्योकि हम है इंसान
क्षमा करें दिल से किसी को खुद पर करें उपकार
,....
अपकार
हो सके गर तो जीवन किसी का सँवार
हर किसी से जीवन में तुम करना प्यार
तुम लेना दुआयें जीवन में सभी की
भूल का भी तुम कभी न करना अपकार
रेखा जोशी
प्रदत्त मापनी - 2212 2212 2212 2212
गाये बहुत है गीत मिलकर प्यार में चहके सजन
आओ चलें दोनों सफर यह प्यार का महके सजन
...
हसरत रही है प्यार में हम तुम रहें साथी सदा
मुश्किल बहुत है यह डगर इस पर रहें मिलके सजन
.....
खिलते रहें अब फूल बगिया मुस्कुराती ज़िन्दगी
मधुमास आया ज़िंदगी खिलने लगी अबके सजन
....
मिलते रहें हम तुम भरी हो प्यार से यह ज़िन्दगी
देखो न हमको यूँ हमारा अब जिया धड़के सजन
.....
दिन रात करके याद हम तुमको यहाँ खोये रहें
आ साथ मिलकर हम चलें न'फिर कदम बहके सजन
.....
चाहत थी उसकी
ज़िन्दगी में
सफलता
है उसकी धरोहर
सत्य ईमानदारी और सेवा भाव
है उसमें साहस भी
लगन मेहनत और उमंग से भरा
लेकिन न हो सका सफल
ज़िन्दगी में
रहा असफल
नही पहुंच सका वह बुलंदियों पर
नहीं कर सका वह
जी हजूरी और रिश्वतखोरी
नही बना सकता था वह
मीठी मीठी बातें
न ही था उसके
सिर पर किसी सत्ता का हाथ
रेखा जोशी
ॐ नमः शिवाय ,ॐ नमः शिवाय ,ॐ नमः शिवाय
ॐ नमः शिवाय - सभी मित्रों को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें
है शिवशंकर महादेव की महिमा अपरम्पार
आओ मनायें मिलकर शिवरात्रि का त्यौहार
बरसो की तपस्या पूर्ण हुई गौरी की तब
पहनाया जब शंकर को जयमाला का हार
रेखा जोशी
121. 221. 121. 22
न याद आना न हमें सताना
न याद करना तुम भूल जाना
,
रहे न तुम पास कभी हमारे
न ज़िन्दगी में तुम पास आना
,
मिली हमे थी न ख़ुशी जहां में
न ज़िन्दगी फिर तुम मुस्कुराना
,
चले सफर में हम साथ तेरे
न सोचना साथ सजन निभाना
,
कभी मिले थे हम इस जहाँ में
न सोचना तुम न हमें बुलाना
रेखा जोशी
रात कुछ देर की अब मेहमान है
बिन तेरे चांदनी भी वीरान है
,
है शीतल पवन आज लगाये अग्न
जाग उठे अब हमारे अरमान है
,
है सूने नज़ारे सूनी यह डगर
रास्ते भी यहाँ पर तो अंजान है
,
धड़क रहा दिल हमारा तन्हाई में
जीने का नही कोई सामान है
,
चले आओ राह निहारते तेरी
नही कोई भी अपनी पहचान है
रेखा जोशी
है हमने प्रेम किया ज़िन्दगी से
नहीं हमें अब गिला ज़िन्दगी से
आँचल फूलों से रहा महकता
है बहुत हमें मिला ज़िन्दगी से
रेखा जोशी
देना जिसको वोट कर उसकी पहचान
आओ चलो करते हम अपना मतदान
...
भारत की सेवा में जो दिन रात लगा
वोट उसको देना रखना उसका ध्यान
...
जात पात औ धर्म पीछे सब को छोड़
व्यक्ति हो विशेष गुणों की देखना खान
....
भांति भांति के लोग विविधा अनेक यहां
मानवता ह्रदय रहे वह नेता महान
.....
भेदभाव जो ना करे सबके हो साथ
गरीब के दुख दर्द से हो ना अंजान
रेखा जोशी
जिंन्दगी के हर मोड़ पर हम चले थे हमसफर
छोड़ कर तुम हमें अकेला अब चले गये किधर
विरह की यह पीर अब साजन किसे हम बताये
कोई नही अब संगी साथी सूनी ये डगर
रेखा जोशी
दो मिनट में टिफ़िन पैक
सुबह सवेरे बच्चों को स्कूल भेजने की जल्दी होती है इसलिए उनके टिफ़िन बॉक्स में कुछ बढ़िया स्वादिष्ट और जो फटाफट बन जाये,इस ही कोई व्यंजन रखना चाहिए,हमें इस बात का ख़ास ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों के लंच में अधिक से अधिक पौष्टिक तत्व हों और लंच उनकी पसंद का भी हो
पनीर टमाटर ग्रिल्ड सैंडविच
सामग्री
1दो ब्रेड स्लाइस
2थोड़ा सा कटा हुआ पनीर
3टमाटर के स्लाइस
4हरी चटनी/टोमैटो सौस
5स्वाद के अनुसार नमक
6 इच्छा अनुसार काली मिर्च,चाट मसाला
विधि
ब्रेड स्लाइस पर कुछ हरी चटनी या सौस लगाएं और कटा हुआ पनीर और टमाटर के साथ उन्हें भरें उसके बाद अपने स्वाद के अनुसार काली मिर्च, नमक और चाट मसाला छिड़कें। अब इस सैंडविच को कुरकुरा होने तक ग्रिल करें और खाने के लिए तैयार है चटपटा सैंडविच ,इसे फॉयल में लपेट कर टिफ़िन में पैक कर दीजिए
रेखा जोशी
रंगीन धरती का गीत पर्यावरण
प्रकृति का मधुर संगीत पर्यावरण
..
टूट रहे तार सूना पर्यावरण
बचाना हमें धरती का आवरण
..
कोयल की कूक,पंछी की चहक,
फूलो की महक,झरनों की छलक
..
प्रदूष्ण ने फैलाया कैसा जाल
लिपटी हुई धरती उसमें आज
..
कटे पेड़ों से बिगड़ा आकार
चहुँ ओर अब फैला हाहाकार
..
आओ लगायें नये पेड़ पौधे ,
सूनी धरा में खुशियाँ हम बो दे
..
नये गीत गाये हसीं पर्यावरण
वनसम्पदा का प्रतीक पर्यावरण
रेखा जोशी
साडा चिड़ियाँ दा चम्बा वे
जब मै बचपन में अपनी माँ की उंगली पकड़ कर चला करती थी ,बात तब की है ,हमारे पडोस में एक बूढी अम्मा रहा करती थी ,उन्हें हम सब नानी बुलाते थे | जब भी मेरी माँ उनसे मिलती ,वो उनके पाँव छुआ करती थी और नानी उन्हें बड़े प्यार से आशीर्वाद देती और सदा यही कहती ,''दूधो नहाओ और पूतो फलो ''|उस समय मेरे बचपन का भोला मन इस का अर्थ नहीं समझ पाया था ,लेकिन धीरे धीरे इस वाक्य से मै परिचित होती चली गई, ''पूतो फलो '' के आशीर्वाद को भली भाँती समझने लगी | क्यों देते है ,पुत्रवती भव का आशीर्वाद ,जब की एक ही माँ की कोख से पैदा होते है पुत्र और पुत्री ,क्या किसी को पुत्री की कोई चाह नहीं ?
मैने अक्सर देखा है बेटियां ,बेटों से ज्यादा भावनात्क रूप से अपने माता पिता से जुडी होती है |एक दिन अपनी माँ के साथ मुझे अपने पडोस में एक लडकी की शादी के सगीत में जाने का अवसर प्राप्त हुआ ,वहां कुछ महिलायें 'सुहाग 'के गीत गा रही थी ,''साडा चिड़ियाँ दा चम्बा वे ,बाबल असां उड़ जाना |''जब मैने माँ से इस गीत का अर्थ पूछा तो आंसुओं से उसकी आखे भीग गई | यही तो दुःख है बेटियों को पाल पोस कर बड़ा करो और एक दिन उसकी शादी करके किसी अजनबी को सोंप दो ,बेटी तो पराया धन है , उसका कन्यादान भी करो,साथ मोटा दहेज भी दो उसके बाद उसे उसके ससुराल वालों के भरोसे छोड़ दो,माँ बाप का फर्ज़ पूरा हो गया ,अच्छे लोग मिले या बुरे यह उसका भाग्य ,बेटी चाहे वहा कितनी भी दुखी हो ,माँ बाप उसे वहीं रहने की सलाह देते रहेगे ,उसे सभी ससुराल के सदस्यों से मिलजुलकर रहने की नसीहत देते रहे गे
|माना की हालात पहले से काफी सुधर गये है लेकिन अभी भी समाज के क्रूर एवं वीभत्स रूप ने बेटी के माँ बाप को डरा कर रखा हुआ है | बलात्कार ,दहेज़ की आड़ में बहुओं को जलती आग ने झोंक देना ,घरेलू हिंसा ,मानसिक तनाव इतना कि कोई आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाए ,इस सब के चलते समाज के इस कुरूप चेहरे ने बेटियों के माँ बाप के दिलों को हिला कर रख दिया है ,उनकी मानसिकता को ही बदल दिया है,विक्षिप्त कर दिया है |तभी तो समाज और परिवार के दबाव से दबी,आँखों में आंसू लिए एक माँ अपनी नन्ही सी जान को कभी कूड़े के ढेर पर तो कभी गंदी नाली में फेंक कर,याँ पैदा होने से पहले ही उसे मौत की नीद सुलाकर सदा के लिए अपनी ही नजर में अपराधिन बना दी जाती है |ठीक ही तो सोचते है वो लोग '',ना रहे गा बांस और ना बजे गी बासुरी ''उनके विक्षिप्त मन को क्या अंतर पड़ता है ,अगर लडकों की तुलना में लडकियां कम भी रह जाएँ ,उन्हें तो बस बेटा ही चाहिए ,चाहे वह बड़ा हो कर कुपूत ही निकले ,उनके बुढापे की लाठी बनना तो दूर ,लेकिन उनकी चिता को अग्नि देने वाला होना चाहिए |जब तक सिर्फ बेटों की इच्छा और कन्याओं की हत्या करने वाले माँ बाप के विक्षिप्त मानसिकता का सम्पूर्ण बदलाव नहीं होता तब तक बेचारी कन्याओं की इस सामाजिक परिवेश में बलि चढती ही रहे गी |
नारी सशक्तिकरण के लिए कितने ही कानून बने ,जो अपराधियों को उनके किये की सजा देते रहते है,भले ही आँखों पर पट्टी बंधी होने के कारण कभी कभी कानून भी उन्हें अनदेखा कर देता है | समाज की विक्षिप्त मानसिकता में बदलाव लाना हमारी ज़िम्मेदारी है ,जागरूकता हमे ही लानी है ,लेकिन कब होगा यह ? हमारे समाज में बेटी जब मायके से विदा हो कर ससुराल में बहू के रूप में कदम रखती है तो उसका एक नया जन्म होता है ,रातों रात एक चुलबुली ,चंचल लड़की ,ससुराल की एक ज़िम्मेदार बहू बन जाती है ,और वो पूरी निष्ठां से उसे निभाती भी है ,क्यों की बचपन से ही उसे यह बताया जाता है की ससुराल ही उसका असली घर है ,वहीउसका परिवार है ,लेकिन क्या ससुराल वाले उसे बेटी के रूप में अपनाते है ? बेटी तो दूर की बात है ,जब तक वो बेटे की माँ नहीं बनती उसे बहू का दर्जा भी नहीं मिलता | अभी हाल ही में हमारे पड़ोसी के बेटे की शादी हुयी ,नयी नवेली दुल्हन की मुख दिखाई में मै भी उसे आशीर्वाद देने पहुंची ,जैसे ही उसने मेरे पाँव छुए ,मेरे मुख से भी यही निकला ,''पुत्रवती भव '' |
रेखा जोशी
न कर प्रेम अभिमान से अगाध
अपने जीवन को अब ले साध
काम क्रोध मद लोभ छोड़ बन्दे
यह करवाते जघन्य अपराध
रेखा जोशी
नारी सशक्तिकरण
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी
सुभद्रा कुमारी चौहान जी की लिखी यह पंक्तियाँ वीरांगना झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को समर्पित है ,आज़ादी की प्रथम लड़ाई में उस मर्दानी ने अंग्रेजो से खिलाफ अपनी वीरता का प्रदर्शन कर पूरी स्त्रीजाति को गौरव प्रदान किया था ,लेकिन ऐसी वीरांगनाएँ तो लाखों में कोई एक ही होती है l इस पुरुष प्रधान समाज में नारी की शक्ति को सदा दबाया गया है ,आज़ादी से पहले की नारी की छवि का ध्यान आते ही एक ऐसी औरत की तस्वीर आँखों के आगे उतर कर आती है जिसके सिर पर साड़ी का पल्लू ,माथे पर एक बड़ी सी बिंदिया ,शांत चेहरा और हमेशा घर के किसी न किसी कार्य में व्यस्त ,कई बार तो सिर का पल्लू इतना बड़ा हो जाता था कि बेचारी अबला नारी का पूरा चेहरा घूँघट में छिप कर रह जाता था ,उसका समय अक्सर घर की दहलीज के अंदर और पुरुष की छत्रछाया में ही सिमट कर रह जाया करता था l अधिकतर परिवारों में बेटा और बेटी में भेद भाव आम बात थी नारी का पढ़ना लिखना तो बहुत की बात थी ,समाज में ऐसी अनेक कुरीतियाँ,बाल विवाह ,दहेज प्रथा ,सती प्रथा आदि पनप रही थी जिसका सीधा प्रभाव नारी को भुगतना पड़ता था ,लेकिन समय के चलते मदनमोहन मालवीय जैसे कई समाजसेवी आगे आये और धीरे धीरे ऐसी कुप्रथाओं को समाप्त करने के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ी और कालान्तर समाज का स्वरूप बदलने लगा l
आज इक्सिवीं सदी की महिलायें घूँघट को पीछे छोड़ते हुए बहुत आगे निकल आई है lआज की नारी घर की दहलीज से बाहर निकल कर शिक्षित हो रही है ,उच्च शिक्षा प्राप्त कर पुरुष के साथ कन्धे से कन्धा मिला कर सफलता की सीढियां चढ़ती जा रही है l आर्थिक रूप से अब वह पुरुष पर निर्भर नही है बल्कि उसकी सहयोगी बन अपनी गृहस्थी की गाड़ी को सुचारू रूप से चला रही है l बेटा और बेटी में भेद न करते हुए अपने परिवार को न्योजित करना सीख रही है ,लेकिन अभी भी वह समाज में अपने अस्तित्व और अस्मिता के लिए संघर्षरत है ,दहेज प्रथा ,कन्या भ्रूण हत्या जैसी बुराइयों का उसे सामना करना पड़ रहा है ,भले ही समाज में खुले घूम रहे मनुष्य के रूप में जानवर उसकी प्रगति में रोड़े अटका रहे है ,लेकिन उसके अडिग आत्मविश्वास को कमजोर नही कर पाए l हमारे देश को श्रीमती इंदिरा गांधी ,प्रतिभा पाटिल जी ,कल्पना चावला जैसी भारत की बेटियों पर गर्व है ,ऐसा कौन सा क्षेत्र है जिस में आज की नारी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन न कर पा रही हो | आज नारी बदल रही है और साथ ही समाज का स्वरूप भी बदल रहा है ,वह माँ बेटी ,बहन पत्नी बन कर हर रूप में अपना कर्तव्य बखूबी निभा रही है |
आज की भारतीय नारी स मेरा अनुरोध है कि वह देश की भावी पीढ़ी में अच्छे संस्कारों को प्रज्ज्वलित करें ,उन्हें सही और गलत का अंतर बताये ,अपने बच्चो में देश भक्ति की भावना को प्रबल करते हुए एक सशक्त समाज का निर्माण करने की ओर एक छोटा सा कदम उठाये ,मुझे विश्वास है नारी शक्ति ऐसा कर सकती है और निश्चित ही एक दिन ऐसा आयेगा जब भारतीय नारी द्वारा आज का उठाया यह छोटा सा कदम हमारे देश को एक दिन बुलंदियों तक ले जायेगा |
रेखा जोशी