रावण रहता हर गली,सीता दुखी अपार
राम आज आओ यहां ,कर रावण संहार
रेखा जोशी
ज़िन्दगी देती रहे दुख दर्द जब इंसान को
बेचता यूं ही नहीं है आदमी ईमान को
भूख से देखा तड़पते आदमी को जब यहां
रख दिया इंसान ने फिर ताक पर सम्मान को
रेखा जोशी
हर साल
जलाते रावण हम
क्यों मनाते खुशियां
उसे जला कर
पूर्ण ज्ञानी शिव भक्त
था रावण
लेकिन
मरता नहीं वह कभी
अमृत नाभि में है उसके अभी
बार बार जी उठता वह
मानते उसे प्रतीक बुराई का
लेकिन
नहीं मिटा पाते
बुराई अपने भीतर की
जलाना है रावण
तो
आओ मिटाएं बुराई
जला कर अपने
अंतस का रावण
रेखा जोशी
बेरोज़गारी
एम काम की डिग्री हासिल करने के बाद सुधीर को आशा थी कि उसके दिन बदल जायेंगे ,एक अच्छी सी नौकरी मिल ही जाएगी,मां बाप ,पत्नी निशा और अपने बच्चों की जिम्मेदारी वह अच्छी तरह निभा सकेगा ।वह एक के बाद एक इंटरव्यू देता रहा लेकिन केवल निराशा ही हाथ लगी ।दिन प्रतिदिन वह अवसाद में डूबता चला गया ,हालत यहां तक पहुंच गए कि उसने आत्महत्या करने की ठान ली ।निशा उसकी परेशानी समझ रही थी ,उसने हिम्मत नहीं हारी और "स्टार्ट अप" शुरू करने के लिए लोन ले लिया और घर में ही पापड़ और आचार बनाने का काम शुरू कर दिया ,अपने पति के साथ मिल कर उसे केवलअवसाद से बाहर ही नहीं निकला बल्कि उसकी बेरोज़गारी को अंगूठा दिखा दिया।
रेखा जोशी
दिल हमारा दुखाया न करो
नज़रें पिया चुराया न करो
प्यार किया है हमने तुमसे
तुम हमें यूं सताया न करो
रेखा जोशी
बहुत सोये जीवन भर अब तो जाओ तुम जाग
जीवन अपना ऐसे जियो लगे न कोई दाग
मिथ्या है यह बन्धन सारे तोड़ जाना इक दिन
करते रहना सतकर्म तुम ह्रदय में धर विराग
रेखा जोशी
तीन घंटे तीन घटनाएं (संस्मरण)
वैसे तो मै ऐसी बातों को मानती नहीं हूं,लेकिन हाल ही में मेरे साथ कुछ अजीब सी घटनाएं हुई,22 सितम्बर 2017 को मै झेलम एक्सप्रेस से पठानकोट जा रही थी ,सुबह होने को थी कि अचानक मेरी नींद खुली,समय देखने के लिए पर्स से मोबाईल निकालने को बंद आंखों से पर्स खोजने लगी तो पर्स नदारद ,जल्दी से उठ कर पूरा बिस्तर झाड़ दिया लेकिन पर्स वहां होता तो मिलता ,वह तो चोरी हो चुका था,मैने जोर जोर से शोर मचाना शुरू कर दियाऔर अपने कैबिन से बाहर की ओर भागी ,"मेरा पर्स चोरी हो गया,मेरा पर्स कोई उठा कर ले गया,"तभी देखा बाहर दो लड़के खड़े थे,मुझे देखते ही बोले ,"आंटी एक पर्स टायलट में तंगा हुआ है ,हम यही सोच रहे थे कि टी टी को सूचित कर देते है "।मैभाग कर टायलट में गई तो देखा कि मेरा पर्स खूंटी पर टंगा हुआ है ,जल्दी से उसे टटोला तो पाया कि कुछ रुपए जो बाहर की पाकेट में ऊपर के खर्च के रखे थे वाह गायब थे ,बाकी सारा सामान ज्यों का त्यों था ,वापिस अपनी सीट पर आईं तो वह दोनो लड़के गायब थे।मै खुश हो गई कि ज्यादा नुकसान नहीं हुआ ।
कैबिन बैठे सभी यात्री इस घटना पर चर्चा का ही रहे थे तभी खिड़की के परदे की राड मेरे सर पर गिरी लेकिन मुझे कोई चोट नहीं आई, बाते करते करते मेरे मुख से यह निकला ,"पता नहीं आज का दिन कैसा निकला , बातें करते स्टेशन आ गया और मै गाड़ी से उतर गई ।
मुझे पठानकोट से नूरपुर अपने भाई के घर जाना था अपने वयोवृद्ध पापा को देखन मैने एक लड़के से पूछा की नूरपुर की बस कहां से मिलती है तो उसने कहा कि उसे भी उसी तरफ जाना है ,यहां से रेलवे फाटक क्रास कर के बस मिल जाएगी ,मै उसके साथ चलने लगी ,लेकिन रेलवे फाटक वाला रास्ता बन्द था सो उसने कहा कि साइड से रेलवे लाइनस क्रास कर लेते है ,जैसे ही मै उस तरफ बढ़ी ,रास्ता पथरीला होने के कारण मेरा पांव किसी पत्थर पर पड़ा मै अपना संतुलन खो बैठी और गिर गई मेरे मुंह और घुटनों पर हलकी चोटें आईं लेकिन मेरा बायां पांव बुरी तरह से मुड़ गया था और पूरा सूज गया था जिसके कारण मै खड़ी भी नहीं हो पा रही थी ,उस लड़के ने मुझे उठाया और धीरे धीरे बस अड्डे ले गया, मुझे बस मेंबिठाया और नूरपुर मेरे भाई के पास छोड़ कर आया । बस में बैठे सब यात्री मुझे देख कर अपनी अपनी राय दे रहे थे ,""बच गई कोई भारी ग्रह आया था ,टल गया"। तीन घंटों में तीन घटनाएं ,क्या सचमुच यह किसी ग्रह की साज़िश थी या मात्र संयोग ?,इन घटनाओं ने मुझे भी आश्चर्यचकित कर दिया।
रेखा जोशी
नीला आसमान मैला हुआ है
प्रदूषण चहुं ओर फैला हुआ है
मत खेलो अब प्रकृति से मानव तुम
जल भी अब यहां कसैला हुआ है
रेखा जोशी
जादुई कलम ने
मेरी
कर दिया कमाल
लिखते ही
पूरे होने लगे
मेरे ख्वाब
रंगीन तितलियों सी
उड़ती रंग बिरंगी
अनेक ख्वाहिशें
मंडरा कर
सिमटती गई
कलम में मेरी
और
धीरे धीरे
महकाने लगी मेरा आंगन
पुष्पित उपवन
नभ पर विचरते पंछी
गाने लगे नवगीत
संग संग
और
खिल उठी मै भी
लिए हाथ में
अपनी जादुई कलम
रेखा जोशी
बीती रात कब यह खबर न हुई
तुम न आये तो क्या सहर न हुई
मिला न साथ तेरा ज़िन्दगी में
आओ तुम पास वो पहर न हुई
रेखा जोशी
आंचल में भरे है सुनहरी रंग
रूप देखा वसुधा का हुई दंग
स्वर्णिम आभा है बिखरी बिखरी
रंग दे बादल को तूलिका संग
रेखा जोशी
ख्वाबों में तेरे सो गई आँखे
तुझको सोचा तो खो गई आँखे
,
पाया जो तुमको जहान पा लिया
सपनो में देखो खो गई आँखे
,
समाया तेरी निगाहों में प्यार
प्यार में पिया लो खो गई आँखे
,
सताती हमे अब यादें तुम्हारी
यादों में अब तो खो गई आँखे
,
बिठाया तुमको पलकों पे हमने
चाहत में अब जो खो गई आँखे
रेखा जोशी
मां की आंखों में छिपा असीम प्यार पढ़ो
ममता स्नेह अनुराग का भंडार पढ़ो
रूप मां का धर आये भगवान धरा पर
समाया हृदय में सारा संसार पढ़ो
रेखा जोशी
2122 2122 2122 212
काफिया आ
रदीफ़ लेते कहीं
दर्द दिल का ज़िंदगी में हम बता देते नहीं
नैन में जज़्बात अपने हम छिपा लेते कहीं
..
ज़ख्म इस दिल के दिखायें हम किसे जानिब यहाँ
शाम होते ही सजन महफ़िल सजा लेते कहीं
...
अब सुनायें हाल दिल का ज़िंदगी में हम किसे
टीस उठती है जिगर में हम दबा लेते कहीं
.....
तोड़ कर दिल को हमारे तुम सदा आबाद हो
दिल हमारे को सजन समझा बुझा लेते कहीँ
....
रात दिन तड़पे यहाँ पर ज़िंदगी तेरे लिये
काश हम फिर ज़िंदगी तुमको मना लेते कहीँ
रेखा जोशी
कितने ईमानदार है हम ?इस प्रश्न से मै दुविधा में पड़ गई ,वह इसलिए क्योकि अब ईमानदार शब्द पूर्ण तत्त्व न हो कर तुलनात्मक हो चुका है कुछ दिन पहले मेरी एक सहेली वंदना के पति का बैग आफिस से घर आते समय कहीं खो गया ,उसमे कुछ जरूरी कागज़ात ,लाइसेंस और करीब दो हजार रूपये थे ,बेचारे अपने जरूरी कागज़ात के लिए बहुत परेशान थे |दो दिन बाद उनके घर के बाहर बाग़ में उन्हें अपना बैग दिखाई पड़ा ,उन्होंने उसे जल्दी से उठाया और खोल कर देखा तो केवल रूपये गायब थे बाकी सब कुछ यथावत उस बैग में वैसा ही था ,उनकी नजर में चोर तुलनात्मक रूप से ईमानदार था ,रूपये गए तो गए कम से कम बाकी सब कुछ तो उन्हें मिल ही गया ,नही तो उन्हें उन कागज़ात की वजह से काफी परेशानी उठानी पड़ती|
आज भी समाज में ऐसे लोगों की कमी नही है जिसके दम पर सच्चाई टिकी हुई है | वंदना अपनी नन्ही सी बेटी रीमा की ऊँगली थामे जब बाज़ार जा रही थी तभी उसे रास्ते में चलते चलते एक रूपये का सिक्का जमीन पर पड़ा हुआ मिल गया,उसकी बेटी रीमा ने झट से उसे उठा कर ख़ुशी से उछलते हुए वंदना से कहा ,''अहा,मम्मी मै तो इस रूपये से टाफी लूंगी,आज तो मज़ा ही आ गया ''| अपनी बेटी के हाथ में सिक्का देख वंदना उसे समझाते हुए बोली ,''लेकिन बेटा यह सिक्का तो तुम्हारा नही है,किसी का इस रास्ते पर चलते हुए गिर गया होगा ,ऐसा करते है हम मंदिर चलते है और इसे भगवान जी के चरणों में चढ़ा देते है ,यही ठीक रहे गा ,है न मेरी प्यारी बिटिया ।
'वंदना ने अपनी बेटी को ईमानदारी का पाठ तो पढ़ा इस देश में ईमानदारी और नैतिकता जैसे शब्द खोखले, निरर्थक और अर्थहीन हो चुके है,एक तरफ तो हम अपने बच्चों से ईमानदारी ,सदाचार और नैतिक मूल्यों की बाते करते है और दूसरी तरफ जब उन्हें समाज में पनप रही अनैतिकता और भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है तब हमारे बच्चे ,इस देश के भविष्य निर्माता टूट कर बिखर जाते है ,अपने परिवार से मिले आदर्श संस्कार उन्हें अपनी ही जिंदगी में आगे बढ़ कर समाज एवं राष्ट्र हित के लिए कार्य करने में मुश्किलें पैदा कर देते है और कुछ लोग सारी जिंदगी घुट घुट कर जीते है |
हमारे देश में हजारों , लाखों युवक और युवतिया बेईमानी ,अनैतिकता ,घूसखोरी के चलते क्रुद्ध ,दुखी और अवसादग्रस्त हो रहे है ,लेकिन क्या नैतिकता के रास्ते पर चल ईमानदारी से जीवन यापन करना पाप है ?
रेखा जोशी
आज तेरी याद हमें फिर आईं है
सपनों में महफ़िल हमने सजाई है
,
दिल ओ जान से हमने चाहा उनको
मिली हमें तो उनसे रुसवाई है
,
हमने सदा साथ तेरा है निभाया
न करना कभी हमसे बेवफ़ाई है
,
तड़पना है हमें तो प्यार में तेरे
मिली प्यार में हमको तो तन्हाई है
,
आदत है तेरी हमें तड़पाने की
दे दी हमको उम्र भर की जुदाई है
रेखा जोशी
मंद्रांचल पर्वत पर
नाग वसूकी लिपटा कर
सुरों और असुरों के बीच
था हुआ क्षीर सागर का मंथन
छिडी दोनों में जंग
रत्नों का भंडार मिला
आया शिव के हिस्से हलाहल
अंत में निकला अमृत रस
पाने की थी होड़ दोनों में
बैठे असुर लगाये घात
किया विष्णु ने असुरों से छल
तुम डाल डाल हम पात पात
रूप मोहिनी का धर
दे दी उनको मात
कराया असुरों को रूपरस पान
देवताओं को कराया अमृत पान
रेखा जोशी
यमुना के तट पर मनमोहन गोपाला
गोकुल में कान्हा संग गेंद खेलत ग्वाला
…
खेलत गेंद मोहन नटखट नंदलाला
थी आगे चली गेंद पीछे भागत ग्वाला
..
छवि नाग की देख गेंद फेंक यमुना में
फिर यमुना के पानी में कूदत गोपाला
..
जा पहुँचे पाताल मनमोहन कन्हैया
था जहाँ पे भयंकर नाग सोवत कालिया
..
था हुआ घमासान तभी जल के भीतर
नाग कालिया ने ज़हरीली भरत फुंकार
..
काला हुआ जल कान्हा श्याम कहलाये
मर्दन कर कालिया का गेंद आवत लाये
..
बँसी की मधुर धुन पर फिर हुआ चमत्कार
कृष्ण प्रेम की जयकार से गूँजत संसार
रेखा जोशी
संग संग रहेंगे सदा अब यह कहानी हमारी है
तोता-मैना बहुत सुने अब तेरी -मेरी बारी है
,
खुशी हो या गम जियेंगे मरेंगे हम सदा साथ साथ
हमारे कदमों तले अब साजन यह दुनिया सारी है
,
राहें कभी भी न जुदा हो हमारी जीवन में प्रियतम
सूरज की तपिश मिले या घटा घिरे कारी कारी है
,
साथ साथ अब हम दोनों चले मिलाकर कदम से कदम
बहका बहका मौसम कुहुके कोयलिया हर डारी है
,
गुंजित भंवरे तितली मुस्कुराती फूल खिले उपवन
साथ हमें पिया का मिला महकने लगी फुलवारी है
रेखा जोशी
दोहे
नभ पर बादल गरजते ,घटा घिरी घनघोर ।
रास रचाये दामिनीे ,मचा रही है शोर ॥
,
आँचल लहराती हवा ,ठंडी पड़े फुहार ।
उड़ती जाये चुनरिया ,बरखा की बौछार ||
,
सावन बरसा झूम के ,भीगा तन मन आज ।
पेड़ों पर झूले पड़े ,बजे मधुर है साज़ ॥
,
भीगा सा मौसम यहाँ ,भीगी सी है रात ।
भीगे से अरमान है ,आई है बरसात ॥
कुहुक रही कोयल यहां ,अँबुआ की हर डार।
हरियाली छाई रही,है चहुँ ओर बहार।।
रेखा जोशी
कर लो सबसे तुम अब प्यार
जीवन अपना लो संवार
,
सेवा कर ले बन कर दास
होगा प्रभु का फिर दीदार
,
मिलता उनको है भगवान
तोड़ें नफरत की दीवार
,
हम को रहती तेरी आस
कर दो मेरी नैया पार
,
छोड़ो मत तुम प्रभु का हाथ
करते पूजा बारम्बार
रेखा जोशी
जाम ए ज़िन्दगी तो पीना है यारों
हमने सदियों कहां जीना है यारों
,
इबादत करें खुदा की मिली ज़िन्दगी
मानो यह रब का मदीना है यारों
,
साज बजाओ ज़िन्दगी में प्यार भरा
ज़िन्दगी मधुर स्वर वीणा है यारों
,
भर लो दामन में अपने खुशियां यहां
ज़िन्दगी अनमोल नगीना है यारों
,
न जाने कब छोड़ दें यह संसार हम
पर्दा मौत का तो झीना है यारों
रेखा जोशी
देख उन्हें नयन हमारे खिल जाते है
जीवन के हसीं पल हमें मिल जाते है
संग संग चले मिला कर कदम से कदम
मचलते अरमान जब मिल दिल जाते है
रेखा जोशी
प्रभु को तू करके याद
कर ले ज़िन्दगीआबाद
बाबाओं के चक्कर में
मत कर ज़िन्दगी बर्बाद
रेखा जोशी