गीतिका "लावणी छंद "
बसंत आया मधुरस छाया ,धरा पर मुस्कुराते दिन
अम्बुआ डार कोयल कुहकी , बाग में गुनगुनाते दिन
..
है महक रहे बाग बगीचे, बिखरी खुशबू यहाँ वहाँ
इधर उधर नाचती तितलियाँ ,है उपवन महकाते दिन
..
शीतल मदमस्त पवन बहती, है सहरा जाती तन मन
उड़ रही चुनरिया गोरी की, अंग अंग सहलाते दिन
..
रंग चुरा तितली फूलों का, कर रही सिंगार अपना,
पुष्प हवा संग लहरा रहे,फूलों को भी भाते दिन
..
गुलाबी मौसम ऋतुराज का, पीली चहुँ ओर बहारें
खेत खलिहान पीले पीले, रंग पीला लुभाते दिन
रेखा जोशी
वाह
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय 🙏🙏
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteसादर आभार Onkar जी 🙏
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसादर आभार हरीश जी
Delete