आंध्रप्रदेश में एक छोटा सा गाँव अनंतपुर ,गरीबी रेखा के नीचे रहते कई किसान भाई ,जिनका जीवन सदा उनके खेत और उसमे लहलहाती फसलों के इर्द गिर्द ही घूमता रहता है ,आज शोक में पूरी तरह डूबा हुआ है ,पता नही किसकी नजर लग गई जो आज सुबह घीसू भाई , शहर में किसी के साथ अपनी जवान बेटी रधिया को बेचने का सौदा कर के आया है , सुबह से किसी के पेट में खाने का एक निवाला तक नही गया ,क्योकि वहां कई घरों में चूल्हा ही नही जला , सवेरे से ही रधिया और उसकी छोटी बहन रमिया ने अपने आप को पीछे की छोटी कोठरी में बंद कर रखा हुआ है tघीसू की पत्नी गुलाबो का तो रो रो कर बुरा हाल हो गया ,''क्या इसी दिन के लिए उसने अपनी जान से भी प्यारी बेटी को पाल पोस कर बड़ा किया था ,चंद नोटों के बदले अपने ही जिस्म के टुकड़े को बेचने के लिए ,नही नही ,वह मर जाए गी पर ऐसा अनर्थ नही होने देगी ,वह अपनी रधिया को कभी भी अपने से दूर नही जाने देगी ,हे भगवान अब केवल तेरा ही आसरा है ,किसी भी तरह से इस अनहोनी को होने से रोक लो ,''यह सब सोच सोच कर गुलाबो का दिल बैठा जा रहा था |उधर घीसू के दिल का हाल शायद ही कोई समझ पाता,उपर से पत्थर बने बुत की भांति अपना सर हाथों में थामे ,घर के बाहर एक टूटी सी चारपाई पर वह निर्जीव सा पड़ा हुआ था ,लेकिन उसके भीतर सीने में जहाँ दिल धडकता रहता है ,उसमे एक ज़ोरदार तूफ़ान ,एक ऐसी सुनामी आ चुकी थी जिसमें उसे अपना घर बाहर सब कुछ बहता दिखाई दे रहा था ,''कोई उसे क्यों नही समझने की कोशिश करता ,अपने बच्चे को क्यों कोई बेचे गा ,मै उसका बाप आज कितना मजबूर हो गया हूँ जो अपने कलेजे के टुकड़े को ,कैसे अपने दिल पर पत्थर रख कर उसे सिर्फ पैसे के लिए अपने से दूर इस अंधी दुनिया में धकेल रहा हूँ ,पता नही उसकी किस्मत में क्या लिखा है परन्तु वह कर भी क्या सकता है ,आज उसके खेतों ने भी उसका साथ नही दिया ,फसल ही नही हुई ,लेकिन उसके सर पर सवार क़र्ज़ की मोटी रकम कैसे चुकता हो पाए गी ,उपर से भुखमरी ,घर गृहस्थी का बोझ ,जी तो करता है कि जग्गू की तरह नहर में कूद कर अपनी जान ही दे दूँ ,लेकिन गुलाबो और रमिया कि खातिर वह ऐसा भी तो नही कर सकता ,जग्गू के परिवार का उसके मरने के बाद हुई दुर्गति से वह भली भाँती परिचित था ''|आज घीसू अपने आप को बहुत असहाय ,बेबसऔर निर्बल महसूस कर रहा था ,उसकी आँखों के आगे बार बार भोली भाली रधिया का चेहरा घूम रहा था और दिल में उठ रही सुनामी आँखों से अश्रुधारा बन फूट पड़ी ,''काश कोई रधिया को मुझ से बचा ले ,''फूट फूट कर रो उठ घीसू | रधिया ,जो गरीबी की सूली पर चढ़ चुकी थी , अपने पिता की बेबसी को बखूबी समझ चुकी थी , खामोश सी ,अपनी आँखे बंद कर उस घड़ी का इंतज़ार कर रही थी ,जब किस्मत के बेरहम हाथ उसे उठा कर ,अपनों से दूर किसी अनजानी दुनिया में पटक देंगे ,लेकिन अनचाहे विचार उसके मानस पटल पर उमड़ते हुए उसे व्यथित कर रहे थे ,''कब तक हम लड़कियों को अपने परिवार की खातिर बलि देते रहना होगा ,मेरे बापू ने तो जी तोड़ मेहनत की थी ,जग्गू चाचा का क्या कसूर था जो उन्हें आत्महत्या करनी पड़ी | कभी सोने की चिड़िया कहलाने वाला हमारा भारत देश , जिसकी सोंधी सी महक लिए माटी में सदा लहलहाते रहे है ,हरे भरे खेत खलिहान,किसानो के इस देश में ,उनके साथ आज क्या हो रहा है ? उनके सुलगते दिलों से निकलती चीखे कोई क्यों नही सुन पा रहा ,संवेदनहीन हो चुके है लोग यां सबकी अंतरात्मा मर चुकी है ,इस देश को चलाने वाली सरकार भी शायद बहरी हो चुकी है ,भारत के किसान अपनी अनथक मेहनत से दूसरों के पेट तो भरते आ रहें है ,लेकिन वह आज अपनी ही जिंदगी का बोझ स्वयम नही ढो पा रहे और अब हालात यह हो गए है की वह यां तो आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहें है यां उनकी, मेरी जैसी अनगिनत बेटियाँ अपने ससुराल न जा कर ,अपनों के ही हाथों एक अनजानी ,निर्मम और अँधेरी दुनिया में पैसों की खातिर धकेल दी जाती है |'' तभी शहर से आई एक लम्बी सी गाड़ी घीसू के घर के सामने आ कर रुक गई और घीसू ने अपने घर की प्यारी सी अधखिली कली, रधिया को गाड़ी में बिठा कर,उसे किसी अंधी गली में भटकने के लिए ,सदा सदा के लिए विदा कर दिया |
Monday, 6 May 2013
किसानो की दुर्दशा
आंध्रप्रदेश में एक छोटा सा गाँव अनंतपुर ,गरीबी रेखा के नीचे रहते कई किसान भाई ,जिनका जीवन सदा उनके खेत और उसमे लहलहाती फसलों के इर्द गिर्द ही घूमता रहता है ,आज शोक में पूरी तरह डूबा हुआ है ,पता नही किसकी नजर लग गई जो आज सुबह घीसू भाई , शहर में किसी के साथ अपनी जवान बेटी रधिया को बेचने का सौदा कर के आया है , सुबह से किसी के पेट में खाने का एक निवाला तक नही गया ,क्योकि वहां कई घरों में चूल्हा ही नही जला , सवेरे से ही रधिया और उसकी छोटी बहन रमिया ने अपने आप को पीछे की छोटी कोठरी में बंद कर रखा हुआ है tघीसू की पत्नी गुलाबो का तो रो रो कर बुरा हाल हो गया ,''क्या इसी दिन के लिए उसने अपनी जान से भी प्यारी बेटी को पाल पोस कर बड़ा किया था ,चंद नोटों के बदले अपने ही जिस्म के टुकड़े को बेचने के लिए ,नही नही ,वह मर जाए गी पर ऐसा अनर्थ नही होने देगी ,वह अपनी रधिया को कभी भी अपने से दूर नही जाने देगी ,हे भगवान अब केवल तेरा ही आसरा है ,किसी भी तरह से इस अनहोनी को होने से रोक लो ,''यह सब सोच सोच कर गुलाबो का दिल बैठा जा रहा था |उधर घीसू के दिल का हाल शायद ही कोई समझ पाता,उपर से पत्थर बने बुत की भांति अपना सर हाथों में थामे ,घर के बाहर एक टूटी सी चारपाई पर वह निर्जीव सा पड़ा हुआ था ,लेकिन उसके भीतर सीने में जहाँ दिल धडकता रहता है ,उसमे एक ज़ोरदार तूफ़ान ,एक ऐसी सुनामी आ चुकी थी जिसमें उसे अपना घर बाहर सब कुछ बहता दिखाई दे रहा था ,''कोई उसे क्यों नही समझने की कोशिश करता ,अपने बच्चे को क्यों कोई बेचे गा ,मै उसका बाप आज कितना मजबूर हो गया हूँ जो अपने कलेजे के टुकड़े को ,कैसे अपने दिल पर पत्थर रख कर उसे सिर्फ पैसे के लिए अपने से दूर इस अंधी दुनिया में धकेल रहा हूँ ,पता नही उसकी किस्मत में क्या लिखा है परन्तु वह कर भी क्या सकता है ,आज उसके खेतों ने भी उसका साथ नही दिया ,फसल ही नही हुई ,लेकिन उसके सर पर सवार क़र्ज़ की मोटी रकम कैसे चुकता हो पाए गी ,उपर से भुखमरी ,घर गृहस्थी का बोझ ,जी तो करता है कि जग्गू की तरह नहर में कूद कर अपनी जान ही दे दूँ ,लेकिन गुलाबो और रमिया कि खातिर वह ऐसा भी तो नही कर सकता ,जग्गू के परिवार का उसके मरने के बाद हुई दुर्गति से वह भली भाँती परिचित था ''|आज घीसू अपने आप को बहुत असहाय ,बेबसऔर निर्बल महसूस कर रहा था ,उसकी आँखों के आगे बार बार भोली भाली रधिया का चेहरा घूम रहा था और दिल में उठ रही सुनामी आँखों से अश्रुधारा बन फूट पड़ी ,''काश कोई रधिया को मुझ से बचा ले ,''फूट फूट कर रो उठ घीसू | रधिया ,जो गरीबी की सूली पर चढ़ चुकी थी , अपने पिता की बेबसी को बखूबी समझ चुकी थी , खामोश सी ,अपनी आँखे बंद कर उस घड़ी का इंतज़ार कर रही थी ,जब किस्मत के बेरहम हाथ उसे उठा कर ,अपनों से दूर किसी अनजानी दुनिया में पटक देंगे ,लेकिन अनचाहे विचार उसके मानस पटल पर उमड़ते हुए उसे व्यथित कर रहे थे ,''कब तक हम लड़कियों को अपने परिवार की खातिर बलि देते रहना होगा ,मेरे बापू ने तो जी तोड़ मेहनत की थी ,जग्गू चाचा का क्या कसूर था जो उन्हें आत्महत्या करनी पड़ी | कभी सोने की चिड़िया कहलाने वाला हमारा भारत देश , जिसकी सोंधी सी महक लिए माटी में सदा लहलहाते रहे है ,हरे भरे खेत खलिहान,किसानो के इस देश में ,उनके साथ आज क्या हो रहा है ? उनके सुलगते दिलों से निकलती चीखे कोई क्यों नही सुन पा रहा ,संवेदनहीन हो चुके है लोग यां सबकी अंतरात्मा मर चुकी है ,इस देश को चलाने वाली सरकार भी शायद बहरी हो चुकी है ,भारत के किसान अपनी अनथक मेहनत से दूसरों के पेट तो भरते आ रहें है ,लेकिन वह आज अपनी ही जिंदगी का बोझ स्वयम नही ढो पा रहे और अब हालात यह हो गए है की वह यां तो आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहें है यां उनकी, मेरी जैसी अनगिनत बेटियाँ अपने ससुराल न जा कर ,अपनों के ही हाथों एक अनजानी ,निर्मम और अँधेरी दुनिया में पैसों की खातिर धकेल दी जाती है |'' तभी शहर से आई एक लम्बी सी गाड़ी घीसू के घर के सामने आ कर रुक गई और घीसू ने अपने घर की प्यारी सी अधखिली कली, रधिया को गाड़ी में बिठा कर,उसे किसी अंधी गली में भटकने के लिए ,सदा सदा के लिए विदा कर दिया |
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