Monday, 11 November 2013
बिगड़े गा क्रोधाग्नि से सुन्दर रूप तेरा
महाकाल ने जब जब
भी
है रौद्र रूप धरा,
था भस्म हुआ सब कुछ जब खुला नेत्र तीसरा।
पिघल जाते पत्थर भी धधक रही ज्वाला में
बिगड़े गा क्रोधाग्नि से सुन्दर रूप तेरा
रेखा जोशी
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