है बिखरा संगीत प्रकृति के कण कण में
गूंज रही ध्वनि ओम की
ब्रह्माण्ड के सुर ताल में
करती शांत मन सबका
झरने की सुरीली ताल
नवयौवना की मस्त चाल सी
लहराती बलखाती गुनगुनाती
अठखेलियां लुभाती नदी की
टिप टिप बरसता अंबर से पानी
झूम झूम जाता है मनुआ
नाचे मोर वन उपवन में
चहके पंछी कोयलिया कुहूके
गुनगुन भंवरे गुनगुनाते
है बिखरा संगीत प्रकृति के कण कण में
गूंज रही ध्वनि ओम की
ब्रह्माण्ड के सुर ताल में
रेखा जोशी
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