Friday, 8 November 2024
मुक्तक
आधार छंद द्विगुणित चौपाई, मात्रा 16,16
सूखे खेत सूखे खलिहान, भूमिपुत्र के मुख पर निराशा
बरसा दो अंबर से पानी, विनती प्रभु से करे हताशा
लहलहा रही थी हरी भरी, कभी खेतों में फसलें यहाँ
खड़ा चौराहे नयन नभ पे, है काले बादल की आशा
रेखा जोशी
1 comment:
Onkar
16 November 2024 at 22:23
सुंदर
Reply
Delete
Replies
Reply
Add comment
Load more...
Newer Post
Older Post
Home
View mobile version
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
सुंदर
ReplyDelete