Saturday, 21 December 2024

जिंदगी से प्यार कर

जो मिली है हमें वो जिंदगी स्वीकार कर 
जीने को मिली यहाँ जिंदगी से प्यार कर 
..
धूप भी मिलती यहाँ छाँव भी मिलती यहाँ
जीत भी मिलती यहाँ हार भी मिलती यहाँ 
वक़्त का खेला यहाँ वक़्त का इंतज़ार कर
जो मिली है हमें वो जिंदगी स्वीकार कर 
जीने को मिली यहाँ जिंदगी से प्यार कर
..
आँसू बहाती जिंदगी हँसाती भी यहाँ
पल पल हमारा ले रही इम्तिहाँ भी यहाँ
भुला कर गम सभी ख़ुशी का इज़हार कर
जो मिली है हमें वो जिंदगी स्वीकार कर 
जीने को मिली यहाँ जिंदगी से प्यार कर
..
जो मिली है हमें वो जिंदगी स्वीकार कर 
जीने को मिली यहाँ जिंदगी से प्यार कर

रेखा जोशी 



Friday, 8 November 2024

मुक्तक


आधार छंद द्विगुणित चौपाई, मात्रा 16,16

सूखे खेत सूखे खलिहान, भूमिपुत्र के मुख पर निराशा 
बरसा दो अंबर से पानी, विनती प्रभु से करे हताशा 
लहलहा रही थी हरी भरी, कभी खेतों में फसलें यहाँ 
खड़ा चौराहे नयन नभ पे, है काले बादल की आशा 

रेखा जोशी 

Monday, 4 November 2024

चिंतन मनन जरुरी है...,


 चिंतन मनन जरुरी है...,

लक्ष्य प्राप्ति के लिए 
शांत मन से चिंतन मनन जरुरी है

मनन कर मन हमारा बन जाता दोस्त
दृढ विचार दृढ मन दृढ संकल्प 
है पथ प्रकाशित करते 
सफलता की मंजिल का 
लक्ष्य प्राप्ति के लिए 
शांत मन से चिंतन मनन जरुरी है

चिंता मत करना रे भैया 
चिंता तो चिता सामान है 
रोगग्रस्त कर देगी तुम्हें जीवन भर 
मन से चिंतन मनन कर  देख 
जीवन सफल हो जायेगा 
लक्ष्य प्राप्ति के लिए 
शांत मन से चिंतन मनन जरुरी है

रेखा जोशी 


Wednesday, 25 September 2024

कर लो प्रभुवर का ध्यान

भजन 

है शीश झुकाये रघुवर हम, हो रखते हमारा मान 
हाथ जोड़कर अपने तुम,कर लो प्रभुवर का ध्यान 

अंधेरा था जीवन मेरा ,आस की जोत जगाई 
जब जब तुझे पुकारा मैंने , दौड़े आए रघुराई
कृपा करे भगवन सदा ही, कल्याण करते भगवान 
हाथ जोड़कर अपने तुम,कर लो प्रभुवर का ध्यान 
..
जो माँगा वो पाया तुमसे,है भर दी खाली झोली
बिन मांगे भी पाया तुमसे, हमारे राम हमजोली 
तुम बिन कोई नहीं सहारा, हैं गाएं सभी गुणगान 
हाथ जोड़कर अपने तुम,कर लो प्रभुवर का ध्यान 
है शीश झुकाये रघुवर हम,हो रखते हमारा मान 
हाथ जोड़कर अपने तुम,कर लो प्रभुवर का ध्यान 

रेखा जोशी

Thursday, 29 August 2024

अभिमान नहीं स्वाभिमान है मेरा


छंदमुक्त रचना 

बहुत प्यार है देश अपने से 
मान नहीं ईमान है मेरा 
बसती भारत में अपनी जान है 
अभिमान नहीं स्वाभिमान है मेरा 
..
सदियों पुरानी संस्कृति हमारी 
ऋषि मुनियों की पावन भूमि 
भरा ज्ञान का यहाँ भंडार है 
बसती भारत में अपनी जान है 
अभिमान नहीं स्वाभिमान है मेरा 
..
राम कृष्ण की धरती हमारी 
गुरुओं की गूंजे अमृतबानी 
देश धर्म की खातिर 
कटा शीश रखा देश का मान है
बसती भारत में अपनी जान है 
अभिमान नहीं स्वाभिमान है मेरा 

रेखा जोशी 





Thursday, 25 July 2024

मैं चलता ही गया

करता रहा सामना
मुश्किलों का
जिंदगी के सफर में
और
मैं चलता ही गया

रुका नहीं, झुका नहीं
ऊँचे पर्वत गहरी खाई
मैं लांघता गया
और
मैं चलता ही गया

कभी राह में मिली खुशी
मिला गले उसके
कभी दुखों का टूटा पहाड़
रोया बहुत पर
खुद को संभालता गया
और
मैं चलता ही गया

जीवन के सफर में
कई साथी मिले चल रहे हैं साथ कुछ
यादें अपनी देकर कुछ छोड़ चले गए
और
बंधनों से घिरा
मैं चलता ही गया

चलता ही जा रहा हूँ
और
चलता ही रहूँगा
जीवन के सफर में
अंतिम पड़ाव आने तक
अंतिम पड़ाव आने तक

रेखा जोशी

Wednesday, 10 July 2024

221 2122 , 221 2122


.मापनी - 221 2122 , 221 2122
तुम  दूर जा रहे हो  , मत फिर हमे बुलाना 
अब प्यार में सजन यह ,फिर बन गया फ़साना 
...  
शिकवा नहीं  करेंगे ,कोई नहीं  शिकायत 
जी कर क्या करें अब ,दुश्मन हुआ ज़माना 
.... 
तुम  खुश रहो सजन अब ,चाहा सदा यही है 
मत भूलना हमें तुम ,वादा पिया निभाना 
.. 
किस बात की सज़ा दी ,क्यों प्यार ने दिया गम 
कोई हमें बता  दे , क्यों फिर जिया जलाना 
... 
तुम ज़िंदगी हमारी ,हम जानते सजन  ये 
फिर भी न  प्यार पाया ,झूठा किया बहाना 

रेखा जोशी 

Wednesday, 3 July 2024

वीराने से रास्ते

प्राकृतिक पहाड़ों के 
आँचल में खूबसूरत हरी भरी 
सुनसान घाटीयां
शहर के शोर ओ गुल से दूर
है कर देती हैं तर ओ ताज़ा
दिल और दिमाग़ को 
सादगी और सकून भरे 
उन वीरान से रास्तों की चुप्पी से 
लगता है अनजाना सा भय भी 
दिल के किसी कोने में 
इतने शांत और निर्मल वातावरण में भी 
कभी कभी दूर बैठे कौवे की 
कांव कांव भी 
डरा जाती है भीतर तक
लेकिन फिर भी वीरान से रास्तों पर 
चलना अच्छा लगता है 

रेखा जोशी 

 

आंखे मिलाने से

जब आंखो ही आंखो से होती है बात 
तब धड़कने लगता है दिल बेचारा 
नासमझ पगला यूँही दीवाना हो जाता है 
आंखे मिलाने से 

है आंखो ही आंखो में जब होते इशारे 
नहीं रह पाता दिल बस में हमारे 
बेबस हो जाता यह दिल बेचारा
चाहने लगता प्रियतम का सहारा 
इक हूक इक कसक उठती है सीने में 
ख्वाब हजारों लगते हैं सजने 
है जग जाती आस मिलन की
दिल दीवाने को 
नासमझ पगला यूँही दीवाना हो जाता है 
आंखे मिलाने से 

रेखा जोशी 




Wednesday, 26 June 2024

सर्वगुण सम्पन्न लाडली

माँ बाप नें 
अपनी लाडली बिटिया को 
देकर संस्कार अच्छे 
बना दिया लाडली को सर्वगुण सम्पन्न 
..
पढ़ाया लिखाया उसे
निपुण बनाया घर के काम काज में 
छोटे बड़ों का आदर भी 
करना सिखाया उसे 
सिखाया जिंदगी जीने का हुनर भी
बना दिया लाडली को सर्वगुण सम्पन्न  
..
दक्ष थी लाडली उनकी हर कार्य में 
उतार लाती वो स्वर्ग घरा पर 
बना देती घर को जन्नत 
लेकिन मिली ससुराल में रुसवाई
उसकी सर्वगुण सम्पन्नता 
किसी को रास नहीं आई 

रेखा जोशी 





Tuesday, 25 June 2024

बिखरा संगीत प्रकृति के कण कण में

है बिखरा संगीत प्रकृति के कण कण में
गूंज रही ध्वनि ओम की 
ब्रह्माण्ड के सुर ताल में 
 
करती शांत मन सबका 
झरने की सुरीली ताल 
नवयौवना की मस्त चाल सी 
लहराती बलखाती गुनगुनाती 
अठखेलियां लुभाती नदी की 
टिप टिप बरसता अंबर से पानी 
झूम झूम जाता है मनुआ 
नाचे मोर वन उपवन में 
चहके पंछी कोयलिया कुहूके
गुनगुन भंवरे गुनगुनाते 
है बिखरा संगीत प्रकृति के कण कण में
गूंज रही ध्वनि ओम की 
ब्रह्माण्ड के सुर ताल में 

रेखा जोशी 





Monday, 17 June 2024

तिरंगे का करें सम्मान आँखों पे

सिंधु छंद 
1222 1222 1222
रहेगी देश की अब शान आँखों पे
तिरंगे का करें सम्मान आँखों पे
जहाँ में देश चमकेगा सदा भारत
ज़ुबा पर अब रहेगा नाम आँखों पे
करें हम नमन भारत के जवानों को
शहीदों का रखेंगे मान आँखों पे
….
करेंगे खत्म घोटाले सभी मिल कर
रखेंगे देश का अभिमान आँखों पे
मिला कर कदम चलते ही रहेंगे हम
रखेंगे देश की अब आन आँखों पे
रेखा जोशी

Monday, 27 May 2024

बहुत करीब से देखा है तुम्हेंजिंदगी

बहुत करीब से देखा है तुम्हें

जिंदगी

बच्चों के पेट की खातिर

देखा है माँ को मजबूर होते हुए

न चाहते हुए भी बिक जाती वो

बहुत करीब से देखा है तुम्हें

जिंदगी

..

देखा है नन्हें नन्हें हाथों को

पुस्तकों की जगह

ढो रहे बोझ अपने घर का

किसी को हँसाती और किसी को

रुलाती

किसी के हिस्से बांटे खुशिया

किसी के नसीब में ग़मों का साया

बहुत करीब से देखा है तुम्हें

जिंदगी

Tuesday, 21 May 2024

तेरे मेरे प्यार में कुछ तो कमी थी

गीत 

टूट गए दिल अपने आँख में नमी थी 
तेरे  मेरे  प्यार  में  कुछ  तो कमी थी
..
चाहा हमें तुमने , हमने भी चाहा 
प्यार  तेरे  को था हमने  सराहा 
तुम  आसमान  थे और मैं ज़मीं  थी 
तेरे  मेरे  प्यार  में  कुछ तो कमी थी
..
चली  तेरे  पीछे  तुम  रहे  आगे
लाचार हुए हैं तकदीर के आगे 
न जाने क्यों अपनी किस्मत थमी थी 
तेरे   मेरे  प्यार  में  कुछ  तो कमी थी
..
टूट गए दिल अपने आँख में नमी थी 
तेरे  मेरे  प्यार  में  कुछ  तो कमी थी

रेखा जोशी 



Monday, 6 May 2024

कुछ हसीन पल

 भर देते असीम खुशियाँ अंतस में 
अक्सर यादों के वोह खूबसूरत लम्हें 
मत खोना उन्हें 
संभाल के रखा कीजिए 
बहुत अनमोल होते हैँ जीवन के 
वोह कुछ हसीन पल 
..
बचपन की हसीन यादें 
गुदगुदा देती हैँ तन मन को 
वोह सखियों सहेलियों से 
लड़ना झगड़ना फिर मान जाना 
वोह  छोटी छोटी सी बातों पर 
हंसना खिलखिलाना 
मत खोना उन्हें 
संभाल के रखा कीजिए 
बहुत अनमोल होते हैँ जीवन के 
वोह कुछ हसीन पल 

रेखा जोशी 

Saturday, 4 May 2024

अब तो अंधेरा भी छाने लगा है

छंदमुक्त रचना 

तुम तो न आए पिया 
तेरे इंतज़ार में 
खोई रही मैं यादों में तेरी 
सुबह से लेकर अब शाम हो गई 
घर आजा सजन प्रीत मैंने निभाई 
दीपक प्यार का भी बुझने लगा है 
अब तो अंधेरा भी छाने लगा है 

गगन की लालिमा दे रही दुहाई
दिख रही मुझसे 
दूर होती मेरी ही परछाई 
डूब रहा सूरज ढल रही शाम 
क्षतिज का सूरज भी जाने लगा है
आ भी जाओ सजन 
अब तो अंधेरा भी छाने लगा है  

रेखा जोशी 


Tuesday, 30 April 2024

छंदमुक्त रचना

छंद मुक्त रचना 

हाल ए दिल क्या कहें अपना 
जो हाल तुम्हारा है 
यही हाल इधर भी है 

न दिन को चैन पाते हैं 
तुम से मिलने की
इक हूक सी उठती है
करवटे बदलते राते गुजरती है
हर धड़कन लेती है नाम तुम्हारा 
मेरी सांसों में समाये रहते हो 
उधर बैचैन तुम हो
इधर बैचन हम हैँ 

हाल ए दिल क्या कहें अपना 
जो हाल तुम्हारा है 
यही हाल इधर भी है 

रेखा जोशी 



Sunday, 28 April 2024

भूलना अच्छा लगता है

छंदमुक्त रचना 

बीती बातों को क्या याद करना 
बेहतर है उन्हें भूल जाना 

भूलना  अच्छा  लगता है 
जब उस दर्द को याद कर
बहने लगे आंसू 
जब उस कड़वे सच का 
एहसास कर इक कसक
तड़पा जाए मन को 
बेहतर है उन्हें भूल जाना 

भूलना अच्छा लगता है 
छोड़ गुजरे वक़्त को पीछे 
सिवा पीड़ा के कुछ भी तो 
हासिल होता नहीं 
बेकार के ताने बाने में 
फिर क्यों उलझाएँ दिल को
बेहतर है उन्हें भूल जाना 

रेखा जोशी 



गीत

गीत 

साँझ सवेरे प्रियतम मेरे
है यादें रहीं मुझे घेरें 
..
रात दिन तेरी करूँ पूजा
तेरे सिवा न कोई दूजा 
संग तेरे ले लिए फेरे 
है यादें रहीं मुझे घेरें 
..
जानू न यहाँ रीत प्रीत की
जोगन भई अपने मीत की
मुझे बुला लो अपने डेरे 
है यादें रहीं मुझे घेरें 
..
साँझ सवेरे प्रियतम मेरे
है यादें रहीं मुझे घेरें 

रेखा जोशी 



Wednesday, 24 April 2024

दोस्त

जीवन में कुछ दोस्त 
इस कदर जुड़ जाते हैँ 
और जिंदगी जीना फिर से 
सिखला जाते हैँ 
..
जब गम के अंधेरों में 
भटकते हैं तन्हा 
तब पोंछने को आंसू 
कुछ दोस्त चले आते हैँ 
और फिर से 
मुस्कुराना सिखला जाते हैँ
और जिंदगी जीना फिर से 
सिखला जाते हैँ  
..
खुशनसीब हैँ वो लोग 
जिन्हें मिलते हैँ सच्चे दोस्त
जो कांधे पर रख हाथ अपना 
जीवन के मुश्किल दौर से 
बाहर ले आते हैँ 
अक्सर ऐसे दोस्त सुख दुख में 
सदा साथ निभाते हैँ 
और जिंदगी जीना फिर से 
सिखला जाते हैँ 

रेखा जोशी 

Sunday, 21 April 2024


गीतिका 

दिल मचलता रहा पर उनसे ना मुलाकात हुई बीता दिन इंतज़ार में अब तो सजन रात हुईं

रिमझिम बरसती बूंदों से है नहाया तन बदन
आसमान से आज फिर से जम कर बरसात हुईं

,काली घनी  घटाओं संग चले शीतल हवाएँ उड़ने लगा मन मेरा ना  जाने क्या बात हुई

झूला झूलती सखियाँ है पिया आवन की आस आए ना  सजन  मेरे  बीती  रैन  प्रभात  हुई 

चमकती दामिनी गगन धड़के हैं मोरा जियरा
गर आओ मोरे बलम तो  बरसात सौगात हुईं

रेखा जोशी

Friday, 12 April 2024

ज़िन्दगी की तूलिका

छंद मुक्त रचना 

यह जो है ज़िन्दगी की तूलिका
अक्सर बिखेरती रहती अनेकानेक रंग 
हमारे जीवन के केनवस पर 

हार जीत के रंग 
ख़ुशी गम लिए रंग 
सुख दुख से भरे रंग 
ये रंग बिरंगी ज़िन्दगी हमारी 
अक्सर बिखेरती रहती अनेकानेक रंग
हमारे जीवन के केनवस पर 

खो जाते विभिन्न रंगों में हम 
अक्सर बह जाते 
भावना के रंगों संग हम 
देती है पीड़ा दर्द भी हमें 
ख़ुशी के संग संग 
रुलाती भी बहुत है 
हंसी के संग संग हमें 
ये रंग बिरंगी ज़िन्दगी हमारी 
अक्सर बिखेरती रहती अनेकानेक रंग
हमारे जीवन के केनवस पर 

यह जो है ज़िन्दगी की तूलिका
अक्सर बिखेरती रहती अनेकानेक रंग 
हमारे जीवन के केनवस पर 

रेखा जोशी 


Sunday, 7 April 2024

आईना झूठ नहीं बोलता

विधा --छंदमुक्त 

आईना जो कहे 
वह सदा सच नहीं होता 
है दिखलाता वही तुम्हें 
जो देखना चाहते हो तुम 
छुपा कर सच 
है झूठ बोलता वोह 
धुंधला गया है वोह शायद 
गर देखना चाहते हो सच को
है देखना तुम्हें 
साफ साफ अक्स अपना 
तो पोंछ लो अच्छे से उसे 
और अपने मन को भी
तब आईना सच बतायेगा 
क्योंकि वह कभी झूठ नहीं बोलता 

रेखा जोशी 



Wednesday, 3 April 2024

भयानक काली रात

वोह खौफ़नाक मंजर आते ही याद
केदारनाथ धाम की वोह शाम 
थी भयानक  काली रात 
जब तबाही ही तबाही थी हर ओर 
कांप उठती है रूह अभी भी  
जब था दिखलाया महादेव नें 
रौद्र रूप अपना 
थे बिखर गए सब ताश के पत्तों से 
भवन, पुल गाड़िया सब कुछ 
उस महा जलप्रलय में 
भयंकर गर्जना करती मन्दाकिनी
अपने प्रबल वेग से बहा ले गई संगअपने 
सोते लोगों को पानी में 
बह गए प्रवेग धारा में क्या बच्चे क्या बूढ़े 
सब के सब लीन हुए जल समाधि में 
मन्दाकिनी के  भारी शोर में खामोश हुआ 
चीखों का शोर 
पत्नी का हाथ पति से छूटा
बिछड़ गए अपने अपनों से 
परिवार के परिवार लुप्त हो गए 
क्षण भर में विलिप्त हो गए
वक़्त वो तो गुजर गया 
लेकिन कैसे भर पाएंगे 
वो गहरे ज़ख्म, जो छोड़ गए 
दुख भरी दास्तां पीछे अपने 

रेखा जोशी 


Sunday, 31 March 2024

गीत

गीत
आधार छन्द- रास छंद  
8,8,6 पर यति  इसमें चार चरण होते हैं 
हर चरण में 22 मात्राएं होती हैं 
चरण के अंत में 112 अनिवार्य है
दो क्रमागत पंक्तियों में तुकांत होते हैं

अँगना चिड़िया, है फुदक रही, चहक रही 
चुरा के महक, फूलों से मैं,  महक रही 
..
पिया न आए, हिय घबराये ,दिल धड़के 
जियरा चाहे, देखूँ  उनको, जी भर के 
मदमस्त समां, ली अँगड़ाई , बहक रही 
आओ सजना,कोयल भी अब, कुहक रही 
चुरा के महक, फूलों से मैं, महक रही 
काली काली ,घटा घनघोर, घन बरसे
अब तो आजा, साँवरे पिया,मन तरसे 
भीगा मौसम ,सर से चुनरी, सरक रही 
चमके बिजुरी,आसमान पर,दमक रही 
चुरा के महक, फूलों से मैं, महक रही 
..
अँगना चिड़िया, है फुदक रही, चहक रही 
चुरा के महक, फूलों से मैं, महक रही 

रेखा जोशी 



Saturday, 30 March 2024

गीतिका

गीतिका 

आधार छंद- सार 
विधान- कुल २८ मात्रा, १६,१२ पर यति। अन्त में गुरु गुरु अनिवार्य।
समांत आना पदाँत होगा 

बहुत किया इंतजार तेरा, तुमको आना होगा 
सोया भाग्य मेरा भगवन, तुम्हें जगाना होगा 
..
हूँ अकेली इस जगत में प्रभु, कोई नहीं सहारा 
बीच भंवर डूब रही नाव, तुम्हें बचाना होगा 
..
ना कोई है संगी साथी, जीवन से मैं हारी 
निर्जन राह पर चलती रही, साथ निभाना होगा 
..
सूना पथ पाँव पड़े छाले, भगवन किसे पुकारूँ 
कोई नहीं तुम बिन मेरा,गले लगाना होगा 
..
हे दीन दयाला प्रभु मेरे, रक्षा करो तुम मेरी
तुम ही तुम रखवाले मेरे, पास बुलाना होगा 

रेखा जोशी 

..






Thursday, 21 March 2024

नव भोर

शीर्षक  नव भोर

"आज भी कोई मछली जाल में नही आई "राजू ने उदास मन से अपने साथी दीपू से कहा l दोनों मछुआरे अपनी छोटी सी नाव में सवार सुमुद्र में मछलियाँ पकड़ने सुबह से  ही घर से निकले हुए थे l उनके  पास थोड़ा सा खाना और पीने का पानी था, जो शाम होते होते खत्म हो चुका था, तभी राजू को सुमुद्र में फैंके जाल में हलचल महसूस हुई और जाल भारी भी लगा, उसके चेहरे पर ख़ुशी की लहर आ गई l वह जोर से चिल्लाया,"दीपू हमारी मेहनत सफल हो गई, लगता है जाल में काफी मछलियाँ फंस गई हैँ, आओ दोनों मिलकर जाल ऊपर खींचते हैँ l मछलियों को देख दोनों ख़ुशी से उछल पड़े, लेकिन जैसे उनकी ख़ुशी को किसी की नज़र लग गई, आसमान में घने बादल छा गए, तेज होती हवाओं से उनकी नाव लड़खड़ाने लगी और उनकी ज़िन्दगी में तूफान दस्तक दे चुका था, शाम ढलने को थी,लहरों पर तेज़ी से झूलती नाव हिचकोले खाने लगी और कश्ती  में सुमुद्र  का का पानी भरने लगा, राजू और दीपू के चेहरे की रंगत बदल गई, आज उनकी परीक्षा की घड़ी थी l दोनों बाल्टी से नाव में भरते पानी को निकाल सुमुद्र में फेंक रहे थे और जी जान से नाव को संभालने की कोशिश करने लगे, लेकिन प्रकृति के आगे उनके हौसले कमजोर पड़ गए l वह दिशा भटक गए थे, अँधेरी रात, बारिश, दिशाहीन लड़खड़ाती नाव और तेज तूफान में वह दोनों फंस चुके थे l उसी आंधी तूफान में दीपू को दूर एक चमकीली रोशनी दिखाई दी, सुमुद्र की ऊँची ऊँची लहरों के थपेड़ों से उनकी कश्ती चरमराने लगी थी, फिर भी दीपू ने दम लगा कर नाव का रुख उस "लाइट हाउस" की ओर मोड़ दिया, दोनों बुरी तरह से थक चुके थे, हार कर उनके हाथ से पतवार छूट गई  उस भयंकर तूफान से लड़ते लड़ते वह दोनों बेहोश हो गए, कब रात बीती कब सुबह हुई, वह दोनों बेखबर नाव में ही गिर हुए थे l तेज सूरज की रोशनी से जब राजू की आँख खुली तो उनकी नाव सुमुद्र के किनारे पर थी और तूफान थम चुका था, कुछ लोग उनकी नाव के पास खडे थे, उन लोगों ने उन्हें उस टूटी नाव से बाहर निकाला दीपू और राजू सहित वहाँ खडे सभी लोग हैरान थे की वह इतने भयंकर तूफान से कैसे बच गए दोनों ने उगते सूरज को प्रणाम किया, यह सुबह उनके जीवन की इक नव भोर थी उन्हें नया जीवन जो मिला था l

रेखा जोशी

Wednesday, 20 March 2024

आखिरी मुलाकात

कितनी खुश थी तुम
उस दिन
रस छलका रहीं थीं
बाते तुम्हारी
याद आ रही थी वो भूली बिसरी यादें
गुज़ारे थे जो पल हम दोनों में
मुझे याद है
वो आखिरी मुलाकात
जब बात करते करते तुम
चुप हो गई थी
सोचा था मैंने शायद तुम
सो गई हो
बिस्तर पर लेटते ही
लेकिन मुझे
कुछ चुभने लगी तुम्हारी
खामोशी
उठ कर देखा तो केवल तेरा
जिस्म पड़ा था सामने मेरे
और तुम
दूर जा चुकी थी सदा सदा
के लिए
छोड़ तन्हा मुझे आंसू बहाने के लिए

रेखा जोशी

होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं 

दिलों में प्यार लिएआज आई है होली
संग संग मस्ती चहुँ ओर लाई है होली
..
रंगों में उमंग औ उमंगो में है रंग
लाल,गुलाल ,नीले ,पीले बिखरे हैं रंग
..
बगिया सूनी लगे बिना फूलों के.जैसे
अधूरी है होली बिना गाली के वैसे
..
प्यार से भरी गाली ने किया वोह कमाल
हुए गोरे गोरे गाल लाल बिना गुलाल
..
 मौसम  फूल गुलाबों का बगिया बहार पे
कुहक रही कोयलिया ,अंबुआ की डाल पे
..
हो के बदरंग आज  रंगों  में लुभा  रहे
होली में थिरक रहें सभी हर्षौल्लास से 

रेखा जोशी 

Tuesday, 19 March 2024

आधार छंद गीतिका

1.
आधार छंद गीतिका 
2122 2122 2122 212

ऋतु सुहानी आ गई खिलती बहारें वादियाँ 
फूल उपवन खिल उठे फूलों भरी हैँ डालियाँ
गुनगुनाते साथ भौरे गीत कोयल गा रही 
मुस्कुराती आज बगिया खिलखिलाती तितलियाँ
2.
आधार छंद- गीतिका
विधान- 212 2 2 12 2 2122 212

आज अपनों से हमें वादा निभाना है यहां
साथ रह कर जिन्दगी में मुस्कुराना है यहां
जिन्दगी रूके नहीं है चार दिन की चाँदनी 
तोड़ के बंधन हमें सब छोड़ जाना है यहां

रेखा जोशी


Wednesday, 13 March 2024

उड़ते पंछी नील गगन पर

छंदमुक्त रचना 

उड़ते पंछी
नील गगन पर
उन्मुक्त इनकी उड़ान
.
दल बना उड़ते मिल कर 
संगी साथी 
देते इक दूजे का साथ
चहक चहक खुशियाँ बांटे
गीत मधुर स्वर में गाते
उड़ते पंछी
नील गगन पर
उन्मुक्त इनकी उड़ान
..
भरोसा है अपने
पंखों पर
नहीं मानते हार कभी 
हौंसलों में है इनके जान
थकते नहीं रुकते नहीं
लड़ते आँधियों तूफानों से
हैं मंज़िल अपनी पा लेते 
उड़ते पंछी
नील गगन पर
उन्मुक्त इनकी उड़ान

रेखा जोशी



Monday, 11 March 2024

मुक्तक

जय शिव शंकर भोलेनाथ दुख हरता
दर्द का  सागर  प्रतिदिन जाता भरता
हलाहल पीना तुम मुझे भी सिखा दो
कर जोड़  अपने  प्रार्थना  प्रभु करता
..
सारथी पार्थ के , गीता पाठ समझाया
राधा के साँवरे, था प्रेमरस छलकाया   
कान्हा के रंग में, रास रचाती गोपियाँ
नतमस्तक धनंजय,विराट रूप दिखलाया

रेखा जोशी 

Saturday, 9 March 2024

ज़िन्दगी का अर्थ हमको है सिखाया आपने


आधार छंद- गीतिका 

2122 2122 2122 212

ज़िन्दगी का अर्थ हमको है सिखाया आपने 
दिल हमारे आस का दीपक जगाया आपने
..
ज़िन्दगी की  ठोकरों से टूट थे हम तो गए
फिर नया इक जोश सा हमको दिलाया आपने
..
मुस्कुराना ज़िन्दगी में भूल हम तो थे गए
आज जीवन की ख़ुशी से फिर मिलाया आपने
..
भर दिए वो ज़ख्म सारे जो दिए थे ज़िन्दगी 
प्यार में हमको पिया अपना बनाया आपने
..
फूल मुरझाये कभी थे प्यार के उपवन पिया
प्यार की बरसात ने उनको खिलाया आपने

रेखा जोशी 











Thursday, 7 March 2024

जय महाकाल

हे शिव शम्भू
जय महाकाल 
पा कर सान्निध्य तेरा 
हुई धन्य मैं त्रिपुरारि 
..
जगत के हों पालनहार
शीश झुकाएं  तेरे द्वार 
और नहीं कुछ चाहिए 
तुम्हीं तो हो तारणहार 
नाम लेकर तेरा
हुई धन्य मैं, त्रिपुरारि
..
डम डम डम
जब डमरू बाजे
ताल पर इसकी हर कोई नाचे
सर्प हार गले पर साजे
शशिधरण का रूप निराला
आई शंभू मैं तेरे द्वार
पा कर सान्निध्य तेरा 
हुई धन्य मैं त्रिपुरारि
..
गरल पान करने वाले
दुखियों के दुख हरने वाले
भोले बाबा,भोले भण्डारी
कृपा करो कृपानिधान 
पाकर  आशीष  तेरा
हुई धन्य मैं,त्रिपुरारि 
..
हे शिव शम्भू
जय महाकाल 
पा कर सान्निध्य तेरा 
हुई धन्य मैं त्रिपुरारि 
..
 रेखा  जोशी 









रिसते ज़ख्म

रिस रहे  हैं ज़ख्म दिल में,
पर टूटा तो नहीं दिल अब तक मेराl 
जी रही हूँ असहनीय पीड़ा के साथ,
लेकिन न जाने क्यों,
आस और उम्मीद संजोये हूँ बैठी,
अभी भी. अपना दामन फैलाये 
इंतज़ार में तुम्हारीll

तुम आओगे फिर से बहार बन,
जिंदगी में मेरीl
थाम लोगे मुझे गिरने से तुम ll
लगा दोगे मलहम अपने हाथों से,
मेरे रिसते जख्मों परl
भर दोगे खुशियाँ फिर से मेरे जीवन में तुमll
काश आ जाओ प्रियतम,
कर दो मेरी बगिया गुलज़ार फिर सेl 
आस और उम्मीद संजोये हूँ बैठी,
अभी भी अपना दामन फैलाये 
इंतज़ार में तुम्हारीll

रेखा जोशी 





Wednesday, 6 March 2024

दर्द का कोई धर्म नहीं होता



छंद मुक्त रचना 

हाँ होता है दर्द सबको जब लगती है चोट,
चोटिल हो पशु पक्षी भी कराहते हैं दर्द से,
क्योंकि दर्द का कोई धर्म नहीं होता l

लिया है जन्म जिसने इस धरा पे,
बहता है खून जिसकी भी रगों में,
तड़पता  है दर्द से  हर जीवधारी,
क्योंकि दर्द का कोई धर्म नहीं होता l

है कर सकता इंसान बयाँ,
अपने तन मन के दर्द को l
लेकिन उन मूक प्राणियों का क्या,
सुनी है कराह कभी उनके दर्द की,
देखे है आंसू क्या , बयाँ करते जो पीड़ा उनकी l
मासूम सहते पीड़ा चुपचाप
क्योंकि दर्द का कोई धर्म नहीं होता

रेखा जोशी 




Wednesday, 28 February 2024

प्यार का सफर

अथवा- 2122 1212 22
आधार छन्द- पारिजात

समांत अर
पदाँत - साजन 

ज़िन्दगी प्यार का सफर साजन 

चल  पड़े  प्यार की डगर साजन

नाच सागर रही किरण झिलमिल

चमक सूरज  लिए  प्रखर साजन 

हाथ   में   हाथ  ले  चले   दोनों

प्यार  अपना  रहे अमर  साजन

हम  नहीं  प्यार  को  कभी  भूलें 

प्यार  तुमसे  बहुत  मगर  साजन

आज   पूरे   हुए   पिया   सपनें 

लग न  जाए कहीं  नज़र साजन 

रेखा जोशी 

Sunday, 25 February 2024

हूँ आस का दीपक

मैं जलता रहा हरेक के अंतस में
हूँ आस का दीपक

हारे जो जीवन से अपने
टूटे हो जो जिनके सपने 
मैं फैला कर रौशनी अपनी
जगा कर उम्मीद की इक किरण
बिखेर देता हूँ सुनहरी रश्मियाँ कभी कभी
जीवन में उनके
मैं जलता रहा हरेक के अंतस में
हूँ आस का दीपक

बुझे निराश मन को झकझोर कर
प्रयास करता हूँ मैं हर पल 
नवीन उत्साह भरने का 
जीवन की मुश्किलें हल करने का
मैं जलता रहा हरेक के अंतस में
हूँ आस का दीपक

रेखा जोशी 


गीत



विधा-गीत
आधार छंद चौपाई
मात्रा 16
मुखड़ा समान्त अने पदाँत आले
अंतरा 1 समान्त ऐ अपदांत 
अंतरा 2समान्त ऐरी अपदांत

उड़ान  ऊँची भरने  वाले
नभ पर  पंछी उड़ने वाले
.
झूमते  संग  संग हवा  के
मनभावन मधुर गीत गाते
सुंदर अपना रूप सजा के
सब के मन को हरने वाले
नभ  पर पंछी  उड़ने वाले
.
काया  रंग   बिरंगी   तेरी 
बोली मीठी  मीठी    तेरी
फुदक रहे हो बगिया मेरी
डाली बैठ  चहकने  वाले
नभ  पर पंछी उड़ने वाले
.
उड़ान  ऊँची  भरने वाले
नभ पर पंछी उड़ने वाले
.
रेखा जोशी 

Wednesday, 21 February 2024

गीत

गीत 

रूठो ना हमसे तुम प्रियतम,आज साजन क्या हो गया

निभाई प्रीत दिल से हमने ,हाल.अपना क्या कर लिया

..

हैं बहारें खिली मधुबन में ,मौसम आज तड़पा रहा

गा रही हवाएं गीत मधुर, दिलअपना बस तुम्हारा रहा 

बादल अँगना घिर घिर आया, छमाछम मींह बरसाया

निभाई प्रीत दिल से हमने ,हाल.अपना क्या कर लिया 

..

जान चाहे ले लो हमारी, मगर दिल न तोड़ना कभी 

तुम बिन जियें कैसे पिया, दूर हमसे  जाना ना कभी

छोड़कर हमें चले कहां प्रियतम, दर्द इतना दे क्यों दिया

निभाई प्रीत दिल से हमने ,हाल.अपना क्या कर लिया 

रेखा जोशी

Sunday, 18 February 2024

गीत


गीत 
आधार छंद --चौपैया (मात्रिक)
शिल्प विधान -30 मात्राएँ (10,8,12 पर यति) अंत में गागा अनिवार्य । 
मुखड़ा ,
समांत आएं, पदांत हैँ
अंतरा 1
समांत इये,पदांत तेरी
अंतरा 2
समांत आए अपदांत

दीप जलाएं अब , ख़ुशी मनाएं, अंगना सजाएँ हैँ 
घर हमारे आज, भगवान राम,धाम अवध आएं हैँ
..
आरती उतारूं, शीश झुकाऊँ, दया चाहिए तेरी 
आशीष मिले प्रभु, सुन लो पुकार ,कृपा चाहिए तेरी
मन मंदिर प्रभु जी ,आन बसो तुम, हम शीश झुकाएं हैं
घर हमारे आज, भगवान राम,धाम अवध आएं हैँ
..
मिल कर रहें सभी,तुम्हीं सहारे,कष्ट न कोई पाए 
सर ऊपर प्रभु का, रहे हाथ जब, दुख दर्द मिटा जाए
राम कृपा करना, सब दुख हरना, सुधबुध  बिसराए हैँ
घर हमारे आज, भगवान राम, धाम अवध आएं हैँ
..
दीप जलाएं अब , ख़ुशी मनाएं, अंगना सजाएँ हैँ 
घर हमारे आज, भगवान राम,धाम अवध आएं हैँ
..
रेखा जोशी 


 
  

Thursday, 15 February 2024

आया ऋतुराज

आया ऋतुराज मौसम बहारों का

हौले हौले बह रही संगीतमय लहर

दे रही हिलोरे मदमस्त बसंती पवन

झूम रहे धरा पर पीले पीले फूल.

.

मन में उमंग लिये

उपवन में मुस्कुराते गुनगुना रहे भँवरे

लहराते धरा पर

खिलखिला रहे पीले पीले फूल

.

मौसम ने ली अंगड़ाई

छाया चहुँ ओर रंग बसंती 

कुहक रही कोयलिया अंबुआ की डाल पे

खेतों खलिहानों में नाच उठी सरसों

इतरा रहे धरा पर पीले पीले फूल

.

मधुरस बिखेरता आया मधुमास

लहराये चुनरिया

पिया मिलन की आस

गोरी के आँचल तले

शरमा रहे पीले पीले फूल

.

रेखा जोशी

गीतिका


गीतिका 

फूलों से लदे गुच्छे लहराते डार डार
है खिल खिल गए उपवन महकाते संसार
,
सज रही रँग बिरँगी पुष्पित सुंदर वाटिका
है भँवरें पुष्पों पर मंडराते बार बार
,
सुन्दर गुलाब खिले महकती है खुशी यहां
संग संग फूलों के यहां मिलते है खार
,
है मनाती उत्सव रंग बिरंगी तितलियां
चुरा कर रंग फूलों का कर रही सिंगार
,
अंबुआ की डाली पे कुहुकती कोयलिया
खिले जीवन यहां जैसे बगिया में बहार

रेखा जोशी

Wednesday, 14 February 2024


बहु और बेटी

बहु और बेटी ,क्या हम दोनों को एक समान देखते है ? कहते तो सब यही है कि बहु हमारी बेटी जैसी है लेकिन हमारा व्यवहार क्या दोनों के प्रति एक सा होता है ? नही ,बहु सदा पराई और बेटी अपनी ,बेटी का दर्द अपना और बहु  तो बहु है अगर सास  बहु को सचमुच में अपनी बेटी मान ले तो निश्चय ही बहु  के मन में भी अपनी सास के प्रति प्रेमभाव अवश्य ही पैदा हो जायेगा|अपने माँ बाप भाई बहन सबको छोड़ कर जब लड़की ससुराल में आती है तो उसे प्यार से अपनाना ससुराल वालों का कर्तव्य होता है ।

हम सब अपने बेटे की शादी के लिए पढ़ी लिखी संस्कारित परिवार की लड़की दूंढ कर लाते हैं,जिसके आने से पूरे घर में खुशियों की लहर दौड़ उठती है ,लेकिन सास और बहु का रिश्ता भी कुछ अजीब सा होता है और उस रिश्ते के बीचों बीच फंस के रह जाता है बेचारा लड़का ,माँ का सपूत और पत्नी के प्यारे पतिदेव ,जिसके साथ उसका सम्पूर्ण जीवन जुड़ा होता है ,कुछ ही दिनों में सास बहु  के प्यारे रिश्ते की मिठास खटास में बदलने लगती है और सास का  बेटा तो किसी राजकुमार से कम नही होता और माँ का श्रवण कुमार ,माँ की आज्ञा का पालन करने को सदैव तत्पर ,ऐसे में बहु  ससुराल में अपने को अकेला महसूस करने लगती है,और बेचारा लड़का  ,एक तरफ माँ का प्यार और दूसरी ओर पत्नी के प्यार की मार, उसके लिए असहनीय  बन जाती है और  आखिकार एक हँसता खेलता परिवार दो भागों में बंट जता है,लेकिन यह इस समस्या का समाधान नही है ,परन्तु आख़िरकार दोष किसका है?

दोष तो सदियों से चली आ रही परम्परा का है ,दोष सास बहु के रिश्ते का है ,सास बहु को बेटी नही मान सकती और बहु सास को माँ का दर्जा नही दे पाती ।सास को अपना ज़माना याद रहता है जब वह बहु  थी और उसकी क्या मजाल थी कि वह अपनी सास से आँख मिला कर कुछ कह भी सके ,लेकिन वह भूल जाती है  कि उसमे और उसकी बहु में  एक पीढ़ी का अंतर आ चुका है ,उसे अपनी सोच बदलनी होगी ,बेटा तो उसका अपना है ही वह तो उससे प्यार करता ही है ,और अगर वह अपनी बहु को माँ जैसा प्यार दे , अपनी सारी दिल की बातें बिना अपने बेटे को  बीच में लाये सिर्फ अपनी बहु  के साथ बांटे , उसका शारीरिक ,मानसिक और भावनात्मक रूप से  साथ दे तो  बहु  को भी बेटी बनने में देर नही लगेगी।

रेखा जोशी

मेरा  संक्षिप्त परिचय संलग्न है


परिचय
रेखा जोशी
जन्म : 21 जून 1950 ,अमृतसर
शिक्षा :एम् एस सी [भौतिक विज्ञान ]बी एच यू
आजीविका :अध्यापन ,के एल एम् डी एन कालेज फार वीमेन ,फरीदाबाद
हेड आफ डिपार्टमेंट ,भौतिकी विभाग [रिटायर्ड ]
कार्यकाल में आल इण्डिया रेडियो ,रोहतक  से विज्ञान पत्रिका के अंतर्गत
अनेक बार वार्ता प्रसारण ,कई जानी मानी हिंदी की मासिक पत्रिकाओं में लेख
एवं कहानियों का प्रकाशन।
अन्य गतिविधिया :
1जागरण जंक्शन .काम पर ब्लॉग लेखन
२ ओपन बुक्स आन लाइन पर ब्लॉग लेखन
३  गूगल ओशन आफ ब्लीस  पर रेखा जोशी .ब्लाग स्पॉट .काम पर लेखन
४ कई इ पत्रिकाओं में प्रकाशन

पता :
Rekha Joshi
565,Sector 16A
Faridabad
121002
Haryana

Saturday, 10 February 2024

गीतिका 

फूल उपवन सदा मुस्कुराते रहे
संग मधुकर यहाँ गुनगुनाते रहे
..
चल पड़े साथ राहें अलग थी मगर 
ज़िन्दगी  साथ  तेरा  निभाते  रहे
..
गम भरी ज़िन्दगी में ख़ुशी भी मिली
पोंछ आंसू यहाँ खिलखिलाते रहे
..
ज़िन्दगी की यहाँ शाम ढलने लगी
आस का दीप हम  तो जलाते रहे
..
पास आओ कभी हाल अपना कहें
ज़िन्दगी भर नज़र क्यों चुराते रहे

रेखा जोशी 



..