Monday 24 September 2012

सनम बेवफा

इतने मिले जख्म कि जख्म ही दवा बने 
न पाई ख़ुशी में ख़ुशी न रोये गम में हम 
दिल और यह दिमाग सब शून्य हो गये 
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है मुहब्बत इक फरेब औ प्यार इक धोखा 
साये में है जिसके  बस आंसूओं का सौदा 
चोट पर चोट दिल पे हम खाते चले गये
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वफा को जो न समझे तुम सनम बेवफा हो
रहें गैरों की बाहों में और सिला दो वफा का 
मेरे सपनो की तस्वीर के टुकड़े हुए तुम्ही से 
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इधर दिल टूटा हमारा गूंजी सदा वादियों में 
शोर हुआ हर गली गली  अंजान रहे तुम्ही 
खामोश रही धड़कन न बनी जुबां दिल की

2 comments:

  1. वाह माँ वाह बेहद खुबसूरत रचना है बधाई स्वीकारें

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  2. धन्यवाद अरुण बेटा ,आभार

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