Sunday 30 November 2014

कहाँ से खेल सीखा यह

कभी तुम पास आते हो 
कभी तुम दूर जाते हो 
कहाँ से खेल सीखा यह 
हमे तुम क्यों सताते हो 
रेखा जोशी 

मदमस्त पवन संग झूमता तन मन

लो आज धरा पर उतर आया  चाँद
महकती  चाँदनी  संग  भाया  चाँद
मदमस्त  पवन संग झूमता तन मन
उमंग   ज़िंदगी  में  अब लाया चाँद

रेखा जोशी 

चाँद सी सुन्दर काया भी ढल जाती इक दिन


लुभाती हम सभी को सुन्दर सलोनी है काया 
लेकिन  देखो तो वक्त की यह कैसी है माया 
चाँद सी सुन्दर काया भी ढल जाती इक दिन 
चार  दिन की चांदनी  फिर  अन्धेरा  है छाया 

रेखा जोशी 

Saturday 29 November 2014

जल है जीवन

आओ सखी नीर भर लें 
बरसा रहे तीरअग्नि के
सूरज देव के नैन  
बेहाल गर्मी से सब 
सूख रहे है कंठ 
प्यासी धरती 
प्यासे पंछी 
प्यासा है जन जन 
अमृत की बूँद बूँद से 
घट भर लें 
जल है जीवन 
संरक्षण 
इसका कर लें 
आओ सखी  नीर भर लें 

रेखा जोशी 

सिसकियाँ सुलग रही

पतंग सी
उड़ती आकाश में
पल में कटी
धरा पे आन गिरी

बंद कमरों  में
दीवारों से टकराती
सिसकियाँ सुलग रही

अंगना में
बरस रही बदरी
भीतर
उठती ज्वाला सी
भीग रहे नयन
सीने में बुझाती रही
अश्रुधारा से चिंगारी

बाहर
फूल खिले गुलशन  में
मुस्कान ओढे
लब पे
हँसती गुनगुनाती रही

पतंग सी
उड़ती आकाश में
पल में कटी
धरा पे आन गिरी

रेखा जोशी

Friday 28 November 2014

भीगे नयन मेरे देख तेरे आँसू


मोतियों  से  बहते देख तेरे आँसू 
दर्द उठता दिल में  देख तेरे आँसू
है रुलाया तुम्हे ज़ालिम ज़माने ने
भीगे   नयन मेरे  देख  तेरे  आँसू 

रेखा जोशी 

सिर्फ उसकी ही रज़ा से यह ज़िंदगी चल रही है

सागर की लहरों जैसे ज़िंदगी मचल रही है
ख़ुशी और गम लिये धारा वक्त की बह रही है
उस ईश्वर के आगे झुकाते है हम सर अपना
सिर्फ उसकी ही रज़ा से यह ज़िंदगी चल रही है
रेखा जोशी

Thursday 27 November 2014

आओ चले प्रियतम क्षितिज के उस पार

हो कर
बादलों के रथ पे सवार
आओ चले
प्रियतम
क्षितिज के उस पार
ले रहा आगोश में
जहाँ
सूरज को सागर
कर रहे अभिवादन
जहाँ
पंछी गगन  में
खूबसूरत नज़ारे
जहाँ
करते इंतज़ार
आओ चले
प्रियतम
क्षितिज के उस पार

रेखा जोशी 

तुमने कभी हमारे इस प्यार की न कद्र की


तुम गर हमे न समझो तो हम किसे  पुकारे 
समझा न  दर्द हमसे फिर कर लिये  किनारे 
तुमने  कभी हमारे इस प्यार की न  कद्र की
कब  तक  सहे   अकेले   दे  दो  हमें   सहारे 
रेखा जोशी 

तारों संग नभ पे मुस्कुराता है चाँद

गीतिका

बादलों  की  ओट से झांकता है चाँद
पानी  की  लहरों  पे  चमकता  है चाँद
.....................................................
आ गये हम तो यहाँ परियों के देश में
यहाँ चाँदनी पथ पे   बिखेरता  है चाँद
…………………………………
दीप्त  हुआ  चाँदनी   से  चेहरा  तेरा
रोशनी का आलम अब महकता है चाँद
........................................... ..........
आये तेरी महफ़िल में अब हम भी सनम
तारों   संग संग नभ  पे  हँसता    है चाँद
…………………………………
सुंदर  नज़ारों को बसा लिया पलकों में
अब देख कर हमे यहां  खिलता  है चाँद

रेखा जोशी

Wednesday 26 November 2014

घबराते नही कभी तूफ़ानो से

लगा कर अपने  पँख ख़्वाबों को हम 
छू लेंगे इक दिन आसमान को  हम
घबराते   नही   कभी   तूफ़ानो   से
छोड़   देंगे  पीछे  आँधियों  को  हम 

रेखा जोशी 

हवाओं ने बिखेरी महक फ़िज़ा में

कल्पनाओं  ने  हमारी  भर  के   उड़ान
नाम  लिखा  हमने  बादलों पे अनजान
हवाओं   ने   बिखेरी   महक   फ़िज़ा  में
है जग गये लाखों इस दिल में अरमान

रेखा जोशी 

Tuesday 25 November 2014

धधक उठी सीने में लपटे ज्वाला की


धर  चंडी का
विकराल रूप
जल रही थी वह
बदले की आग में
कब तक
करती सहन वह
अपमान
तन  मन आत्मा का
झेल रही थी वह
क्रूरता की परकाष्ठा
थी सुलग रही
भीतर ही भीतर
अब पोंछ लिए
 नैनों से आँसू अपने
अंगारों से लगे
दहकने  दो नयन उसके
क्रोध की अग्नि से
धधक उठी  सीने में
लपटे ज्वाला की
कर स्वाहा बुझेगी
यह अग्नि  नैनों की
जब  फूट पड़ेगी बन
जलधारा नैनो की

रेखा जोशी




हर घड़ी हर पल

है बदल रही
ज़िंदगी
हर घड़ी हर पल

मिला जो अब
शायद
न मिले कल हमे
ढल रही हर सुबह
शाम में
जी लें भरपूर
ज़िंदगी
हर घड़ी हर पल

यह वक्त
जो है हमारा
अब
कल रहे न रहे
नैनो  में भर लो
अपने
ज़िंदगी के खूबसूरत रंग
संजो ले
यह हसीन यादे
पलकों में अपनी
हर घड़ी हर पल

आनंद से भरपूर
यादों के प्याले से
 पीते रहें
जाम खुशियों  के
हर घड़ी हर पल

रेखा जोशी


प्रभु मोरे अंगना दरस दिखा जा

”नारायण नारायण ”बोलते हुए नारद मुनि जी अपने प्रभु श्री हरि को खोजते खोजते पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगा कर भू लोक में आ विराजे ,लेकिन उन्हें श्री हरि कहीं भी दिखाई नही दिए ,”पता नहीं प्रभु कहाँ चले गए ,अंतर्ध्यान हो के कहाँ गायब हो गए मेरे प्रभु ”यह सोच सोच कर बेचारे नारद मुनि जी परेशान हो रहे थे |उन्होंने श्री हरि को इस धरती के कोने कोने में जा करके कहाँ कहाँ नही ढूंढा,.हिमालय पर्वत की बर्फीली गुफाओं में ,कंदराओं में ,सारी दुनिया के विभिन्न विभिन्न मंदिरों में  ,दर ब दर भटकते हुए मक्का मदीना भी घूम आये ,उनकी तलाश में वह दुनिया भर की मस्जिदों में भी अपनी हाजरी लगा कर आगये ,लेकिन श्री हरिके दरस उन्हें कहीं पर नहीं हुए ,सोचने लगे,” क्यों न मै उन्हें गिरिजाघर में भी जा कर देख लूँ ,क्या पता वह गिरिजाघर में ही विश्राम कर रहें हो ,”जल्दी से नारद मुनि जी विभिन्न विभिन्न गिरिजाघरों में भी उन्हें तलाश कर के वापिस उसी स्थान पर आ गए ,इतना घूम घूम कर बेचारे थक गए लेकिन उन्हें श्री हरि को पाने लग्न उन्हें विश्राम करने नही दे रही थी ,बहुत ही चिंतित हो रहे थे |

चलते चलते उन्हें एक पेड़ दिखाई दिया ,वहां पर अपनी थकान मिटाने के लिए वह उसके नीचे बैठ गए ,पास में ही एक गुरुदुवारा था जहां से लाउडस्पीकर से आवाज़ आ रही थी ,”एक नूर से सब जग उपजया,कौन भले कौन मंदे |” लाउडस्पीकर की आवाज़ सुनते ही नारद मुनि जी वहां से उठे ओर उनके पाँव गुरुदुवारे की ओर चल पड़े यह सोचते हुए कि गुरुदुवारे के अंदर भी तो उसी परमात्मा के बन्दे बैठे हुए है शायद प्रभु उनका हालचाल पूछने वहां चले गयें हो ,भीतर जा कर देखा सभी भक्त उस प्रभु का नाम ले रहे है | 

 नारायण नारायण ,वाह प्रभु यह कैसी माया ,आप तो सभी धर्मस्थलों से नदारद और पूरी दुनिया बस आप का ही जप कर रही है ,”नारद मुनि जी के मुख से यह शब्द अन्नान्यास ही निकल पड़े |अपने प्रभु को कहीं भी न पा कर हताश हो कर नारद मुनि जी वापिस उसी पेड़ के नीचे आ कर बैठ गए,थकावट के मारे उनका अंग अंग दर्द करने लगा था इसलिए वह अपनी आँखें मूंद कर उसी पेड़ के नीचे लेट कर सुस्ताने लगे ,लेकिन उनके मन में हरि से मिलने की प्रबल इच्छा उन्हें आराम नही करने दे रही थी ,तभी कुछ शोर सुन कर उन्होंने आँखे खोली तो देखा सामने एक छोटा बच्चा उनकी नींद में विघ्न डाल रहा था ,वह छोटा सा बच्चा नारद मुनि जी को देख उन्हें अपना मुहं बना बना कर चिढ़ाने लगा,उस नन्हे से बालक पर मुनि को क्रोध आ गया और वह उसे मारने को दौड़े और वह बालक खिलखिला के हंसने लगा ,”अरे यह क्या हुआ ,यह प्यारी हंसी तो मेरे प्रभु की है ,”उन्होंने आस पास सब जगह अपनी नजर दौडाई ,हतप्रभ रह गए नारद मुनि ,उन्हें तो हर ओर श्री हरि ही दिखाई दे रहे थे ,घबरा कर उन्होंने आँखे बंद कर ली,आत्मविभोर हो उठे नारद मुनि जी ,बंद आँखों से उन्होंने अपने भीतर ही प्रभु श्री हरि के साक्षात दर्शन कर लिए थे ,प्रभु को देखते ही नतमस्तक हो गए नारद मुनि जी और परम आनंद में झूमते हुए बोल उठे ,”नारायण नारायण |”

रेखा जोशी 

बजने लगी शहनाईयाँ दिल में


जब से  तुम्हारा  दीदार  हो  गया
यह मौसम भी खुशगवार हो गया
बजने  लगी  शहनाईयाँ   दिल में
जीवन  से हमे अब  प्यार हो गया

रेखा जोशी


Monday 24 November 2014

मत बैठो अपने पँख लपेटे

है होता दुःख
देख तुम्हे कैद
दीवारों में
जो बना रखी
खुद तुमने
अपने ही हाथों
खुद को
कैद कर लिया
क्यों पिंजरे में
मुहँ छिपाये
मत बैठो
अपने पँख लपेटे
कब तक
बुनते रहोगे जाल
अपने इर्द गिर्द
तोड़ दो अब
बंधन सब
भर लो उड़ान
फैला कर अपने पँख
उन्मुक्त
दूर ऊपर आकाश में
विश्वास
है तुम्हे खुद पर
जानते हो तुम
मंज़िल तुम्हारी
है उड़ान
उड़ना है तुम्हे
उठो
फैलाओं  पँख अपने
और
निकल पड़ो फिर से
ज़िंदगी की
इक
लम्बी उड़ान भरने

रेखा जोशी







साहस

मेरी एक पुरानी रचना [साहस ]

नील नभ पर 
उड़ चले
पंछी ,इक लम्बी उड़ान
संग साथी लिए 
निकल पड़े सब
तलाशने 
अपनी मंजिल अनजान 
अनदेखी राहों में हुआ
सामना
आगे था भयंकर तूफ़ान
घिर गए चहुँ ओर से 
फंस  गए वो सब ,
इक चक्रव्यूह में 
अभिमन्यु की तरह 
था निकलना 
मुश्किल 
पर बुलंद हौंसलों ने 
कर दिया नवसंचार 
थके हारे पंखो में
भर दी जान 
इक नया जोश लिए 
उस 
कठिन घड़ी में 
मिलकर उन सब ने 
अपने 
पंखों के दम पे
टकराने का तूफान से 
था साहस दिखलाया
अपने
फडफडाते परों से
था तूफ़ान को हराया 
हिम्मत और जोश लिए
बढ़ चले वह  
फिर से इक 
अनजान डगर पे |

रेखा जोशी 

हाइकु

है लहराती 
दामन पहाड़ का 
बहती चली 
…………… 
चमचमाती 
पहाड़ से लिपटी 
नदी बहती 
…………. 
आकाश पर
चाँद और सूरज
रहे विचर
…………
है आते जाते
खेलें आँख मिचोली
सूरज चाँद

रेखा जोशी

साँसों की डोर प्रभु हाथ तेरे

हूँ  उड़ती  पतंग   नील गगन मै
लहराती   जाऊँ   संग  पवन  मै
साँसों  की  डोर  प्रभु   हाथ  तेरे
नित गाती जाऊँ यहाँ  भजन मै

रेखा जोशी 

Sunday 23 November 2014

मुहब्बत दिल में पर लाखों बन गये फ़साने


ज़िंदगी  में   हम  सदा   गाते  तेरे   तराने 
प्यार  है  तुमसे  और तुम्ही  रहे  अनजाने 
कोई नही जाने अब यह हाल ए दिल हमारा 
है  दिल में  मुहब्बत  पर  लाखों बने फ़साने 

रेखा जोशी 

अन्नपूर्णा

''ट्रिग ट्रिन ''दरवाज़े की घंटी के बजते ही मीता ने खिड़की से  झाँक कर देखा तो वहां उसने अपनी ही पुरानी इक छात्रा अनन्या को दरवाज़े के बाहर खड़े पाया ,जल्दी से मीता  ने दरवाज़ा खोला तो सामने खड़ी वही मुधुर सी  मुस्कान ,खिला हुआ चेहरा और हाथों में मिठाई का डिब्बा लिए अनन्या खड़ी थी । ''नमस्ते मैम ''मीता को सामने देखते ही उसने कहा ,''पहचाना मुझे आपने।  ''हाँ हाँ ,अंदर आओ ,कहो कैसी हो ''मीता ने उसे अपने घर के अंदर सलीके से सजे ड्राइंग रूम में बैठने को कहा । अनन्या ने टेबल पर मिठाई के डिब्बे को रखा और बोली ,''मैम आपको एक खुशखबरी देने आई हूँ मुझे आर्मी में सैकिड लेफ्टीनेंट की नौकरी मिल गई है ,यह सब आपके आशीर्वाद का फल है ,मुझे इसी सप्ताह जाईन करना है सो रुकूँ गी नही ,फिर कभी फुर्सत से आऊं गी ,''यह कह कर उसने मीता के पाँव छुए और हाथ जोड़ कर उसने विदा ली ।
 अनन्या के जाते ही मीता के मानस पटल पर भूली बिसरी तस्वीरे घूमने लगी, जब एक दिन वह बी एस सी अंतिम वर्ष की कक्षा को पढ़ा रही थी तब उस दिन अनन्या क्लास में देर से आई थी और मीता  ने उसे देर से कक्षा में आने पर डांट  दिया था और क्लास समाप्त होने पर उसे मिलने के लिए बुलाया था । पीरियड खत्म होते ही जब मीता स्टाफ रूम की ओर जा रही थी तो पीछे से अनन्या ने आवाज़ दी थी ,''मैम ,प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो ,''और उसकी आँखों से मोटे मोटे आंसू टपकने लगे । तब मीता उसे अपनी प्रयोगशाला में ले गई थी ,उसे पानी पिलाया और सांत्वना देते हुए उसके रोने की वजह पूछी ,कुछ देर चुप रही थी वो ,फिर उसने अपनी दर्द भरी दास्ताँ में उसे भी शरीक कर लिया था  उसकी कहानी सुनने के बाद मीता की आँखे भी नम  हो उठी थी ।उसके पिता  का साया उठने के बाद उसके सारे रिश्तेदारों ने अनन्या की माँ और उससे छोटे दो भाई बहनों से मुख मोड़ लिया था ,जब उसकी माँ ने नौकरी करनी चाही तो उस परिवार के सबसे बड़े बुज़ुर्ग उसके ताया  जी ने उसकी माँ के सारे सर्टिफिकेट्स फाड़ कर फेंक दिए,यह कह कर कि उनके परिवार की बहुएं नौकरी नही करती। हर रोज़ अपनी आँखों के सामने अपनी माँ  और अपने भाई बहन को कभी पैसे के लिए तो कभी खाने के लिए अपमानित होते देख अनन्या का खून खौल  उठता था ,न चाहते हुए भी कई बार वह अपने तथाकथित रिश्तेदारों को खरी खोटी भी सुना दिया करती थी और कभी अपमान के घूँट पी कर चुप हो जाती थी ।
पढने  में वह एक मेधावी छात्रा  थी  ,उसने पढाई के साथ साथ एक पार्ट टाईम नौकरी भी कर ली थी ,शाम को उसने कई छोटे बच्चों को  ट्यूशन भी देना शुरू कर दिया था और वह सदा अपने छोटे भाई ,बहन की जरूरते पूरी करने  की कोशिश में रहती थी ,कुछ पैसे बचा कर माँ की हथेली में भी रख दिया करती थी ,हां कभी कभी वह मीता के पास आ कर अपने दुःख अवश्य साझा कर लेती थी ,शायद उसे इसी से कुछ मनोबल मिलता हो । फाइनल परीक्षा के समाप्त होते ही मीता को पता चला कि उनका परिवार कहीं और शिफ्ट कर चुका है ।धीरे धीरे मीता भी उसको भूल गई थी ,लेकिन आज अचानक से उसके आने से मीता को उसकी सारी बाते उसके आंसू ,उसकी कड़ी मेहनत सब याद आगये और मीता  का सिर  गर्व से ऊंचा हो गया उस लडकी ने अपने नाम को सार्थक कर दिखाया अपने छोटे से परिवार के लिए आज वह अन्नपूर्णा  से कम नही थी

रेखा जोशी |

मन जीते जग जीत ,मन के हारे हार

मन ,जी हाँ मन ,एक स्थान पर टिकता ही नही पल में यहाँ तो अगले ही पल न जाने कितनी दूर पहुंच जाता है ,हर वक्त भिन्न भिन्न विचारों की उथल पुथल में उलझा रहता है ,भटकता रहता है यहाँ से वहाँ और न जाने कहाँ कहाँ ,यह विचार ही तो है जो पहले मनुष्य के मन में उठते है फिर उसे ले जाते है कर्मक्षेत्र की ओर । जो भी मानव सोचता है उसके अनुरूप ही कर्म करता है ,तभी तो कहते है अपनी सोच सदा सकारात्मक रखो ,जी हां ,हमें मन में उठ रहे अपने विचारों को देखना आना चाहिए ,कौन से विचार मन में आ रहे है और हमे वह किस दिशा की ओर ले जा रहे है ,कहते है मन जीते जग जीत ,मन के हारे हार ,यह मन ही तो है जो आपको ज़िंदगी में सफल और असफल बनाता है ।

ज़िंदगी का दूसरा नाम संघर्ष है ,हर किसी की ज़िंदगी में उतार चढ़ाव आते रहते है लेकिन जब परेशानियों से इंसान घिर जाता है तब कई बार वह हिम्मत हार जाता है ,उसके मन का विशवास डगमगा जाता है और घबरा कर वह सहारा ढूँढने लगता है ,ऐसा ही कुछ हुआ था सुमित के साथ जब अपने व्यापार में ईमानदारी की राह पर चलने से उसे मुहं की खानी पड़ी ,ज़िंदगी में सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ने की जगह वह नीचे लुढ़कने लगा ,व्यापार में उसका सारा रुपया डूब गया ,ऐसी स्थिति में उसकी बुद्धि ने भी सोचना छोड़ दिया ,वह भूल गया कि कोई उसका फायदा भी उठा सकता ,खुद पर विशवास न करते हुए ज्योतिषों और तांत्रिकों के जाल में फंस गया ।

जब किसी का मन कमज़ोर होता है वह तभी सहारा तलाशता है ,वह अपने मन की शक्ति को नही पहचान पाता और भटक जाता है अंधविश्वास की गलियों में । ऐसा भी देखा गया है जब हम कोई अंगूठी पहनते है याँ ईश्वर की प्रार्थना ,पूजा अर्चना करते है तब ऐसा लगता है जैसे हमारे ऊपर उसका सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है लेकिन यह हमारे अपने मन का ही विशवास होता है । मन ही देवता मन ही ईश्वर मन से बड़ा न कोई ,अगर मन में हो विशवास तब हम कठिन से कठिन चुनौती का भी सामना कर सकते है |

रेखा जोशी 

संवारी हमने खुद ही तक़दीर अपनी

नसीब में हमारे खुशियाँ नहीं थी मगर 
हमने  तो अपनी  खुद ही ढूंढ ली डगर 
संवारी  हमने  खुद  ही  तकदीर अपनी 
आने लगी हमें  सुहानी ज़िन्दगी नज़र 

रेखा जोशी 

Saturday 22 November 2014

'साडा चिड़ियाँ दा चम्बा वे

जब मै बचपन में अपनी माँ की उंगली पकड़ कर चला करती थी ,बात तब की है ,हमारे पडोस में एक बूढी अम्मा रहा करती थी ,उन्हें हम सब नानी बुलाते थे | जब भी मेरी माँ उनसे मिलती ,वो उनके पाँव छुआ करती थी और नानी उन्हें बड़े प्यार से आशीर्वाद देती और सदा यही कहती ,''दूधो नहाओ और पूतो फलो ''|उस समय मेरे बचपन  का भोला मन इस का अर्थ नहीं समझ पाया था ,लेकिन धीरे धीरे इस वाक्य से मै परिचित होती  चली गई, ''पूतो फलो '' के  आशीर्वाद को भली भाँती समझने लगी |  क्यों देते है ,पुत्रवती भव का आशीर्वाद ,जब की एक ही माँ की कोख से पैदा होते है पुत्र और पुत्री ,क्या किसी को पुत्री की कोई चाह नहीं ? 

मैने अक्सर देखा है बेटियां ,बेटों से ज्यादा भावनात्क रूप से अपने माता पिता से जुडी होती है |एक दिन अपनी माँ के साथ मुझे अपने पडोस में एक लडकी की शादी के सगीत में जाने का अवसर प्राप्त हुआ ,वहां कुछ महिलायें 'सुहाग 'के गीत गा रही थी ,''साडा चिड़ियाँ दा चम्बा वे ,बाबल असां उड़ जाना |''जब मैने माँ से इस गीत का अर्थ पूछा तो आंसुओं से उसकी आखे भीग गई | यही तो दुःख है बेटियों को पाल पोस कर बड़ा करो और एक दिन उसकी शादी करके किसी अजनबी को सोंप दो ,बेटी तो पराया धन है , उसका कन्यादान भी करो,साथ मोटा दहेज भी दो उसके बाद उसे उसके ससुराल वालों के भरोसे छोड़ दो,माँ बाप का फर्ज़ पूरा हो गया ,अच्छे लोग मिले या बुरे यह उसका भाग्य ,बेटी चाहे वहा कितनी भी दुखी हो ,माँ बाप उसे  वहीं रहने की सलाह देते रहेगे ,उसे सभी ससुराल के सदस्यों से मिलजुलकर रहने की नसीहत देते रहे गे

 |माना की हालात पहले से काफी सुधर गये है लेकिन अभी भी समाज के क्रूर एवं वीभत्स  रूप ने बेटी के माँ बाप को डरा कर रखा हुआ है | बलात्कार ,दहेज़ की आड़ में बहुओं को जलती आग ने झोंक देना ,घरेलू हिंसा ,मानसिक तनाव इतना कि कोई आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाए ,इस सब के चलते  समाज के इस कुरूप चेहरे ने बेटियों के माँ बाप के दिलों को हिला कर रख दिया है ,उनकी मानसिकता को ही बदल दिया है,विक्षिप्त   कर दिया है |तभी तो समाज और परिवार के दबाव से दबी,आँखों में आंसू लिए एक माँ अपनी नन्ही सी जान को कभी  कूड़े के ढेर पर तो कभी गंदी नाली में फेंक कर,याँ पैदा होने से पहले ही उसे मौत की नीद सुलाकर सदा के लिए अपनी ही नजर में अपराधिन बना दी  जाती है |ठीक ही तो सोचते है वो लोग '',ना रहे गा बांस और ना बजे गी बासुरी ''उनके विक्षिप्त मन   को क्या अंतर पड़ता है ,अगर लडकों की तुलना में लडकियां कम भी रह जाएँ ,उन्हें तो बस बेटा ही चाहिए ,चाहे वह बड़ा हो कर कुपूत ही निकले ,उनके  बुढापे की लाठी बनना तो दूर ,लेकिन उनकी चिता को अग्नि देने वाला होना चाहिए |जब तक सिर्फ बेटों की इच्छा और  कन्याओं की हत्या करने वाले माँ बाप के विक्षिप्त मानसिकता का सम्पूर्ण बदलाव नहीं होता तब तक बेचारी कन्याओं की इस सामाजिक परिवेश में बलि चढती ही रहे गी |

नारी सशक्तिकरण के लिए कितने ही कानून बने ,जो अपराधियों को उनके किये की सजा देते रहते है,भले ही  आँखों पर पट्टी बंधी होने के कारण कभी कभी  कानून भी उन्हें अनदेखा कर देता है |  समाज की विक्षिप्त  मानसिकता में बदलाव लाना हमारी ज़िम्मेदारी है  ,जागरूकता हमे ही लानी है ,लेकिन कब होगा यह ? हमारे समाज में बेटी जब मायके से विदा हो कर ससुराल में बहू के रूप में कदम रखती है तो उसका एक नया जन्म होता है ,रातों रात  एक चुलबुली ,चंचल लड़की ,ससुराल की एक ज़िम्मेदार बहू बन जाती है ,और वो पूरी निष्ठां से उसे निभाती भी है ,क्यों की बचपन से ही उसे यह बताया जाता है की ससुराल ही उसका असली घर है ,वहीउसका परिवार है ,लेकिन क्या ससुराल वाले उसे बेटी के रूप में अपनाते है ? बेटी तो दूर की बात है ,जब तक वो बेटे की माँ नहीं बनती उसे बहू  का दर्जा भी नहीं मिलता |  अभी हाल ही में हमारे पड़ोसी के बेटे की शादी हुयी ,नयी नवेली दुल्हन की मुख दिखाई में मै भी  उसे आशीर्वाद देने पहुंची ,जैसे ही उसने मेरे पाँव छुए ,मेरे मुख से भी यही निकला ,''पुत्रवती भव '' |

रेखा जोशी 

उतर धरती पर मानो खुदा आया


थाम अपनी उंगल चलना सिखाया
है पग  पग आपने  रास्ता दिखाया 
माँ  बाप  की गोद में बीता बचपन 
उतर  धरती  पर मानो  खुदा आया 
रेखा जोशी 


चुपचाप कहीं छुप गया वह मनोहर सा सुंदर चेहरा

बिछुड़  गये वह  मीत  मेरे  जीवन  पथ  पर संग  चले थे 

बीत गये अब वह मधुर क्षण जब तुम संग हम भी चले थे 

चुपचाप  कहीं  छुप  गया  वह  मनोहर  सा  सुंदर चेहरा 

सूनी  है  आज  यह  राहें  जहाँ  पर  कभी  फूल  खिले  थे 

रेखा जोशी 

Friday 21 November 2014

ज़िंदगी में आई खुशियाँ मिला स्नेह अपार

झंकृत  हुआ  मन  होंठो ने गुनगुनाया गीत
वक्त आने पर सदा काम तुमसा आया मीत
ज़िंदगी  में आई खुशियाँ मिला स्नेह अपार 
हूँ  खुशनसीब बहुत  मैने तुमसा पाया  मीत

रेखा जोशी

चोका

दुर्गम पथ 
मौसम सुहावना 
चलें पैदल 
ऊँचे ऊँचे पहाड़ 
सुन्दर बाला
पीठ पर बालक 
ओढ़े दुशाला
हृदय में विश्वास  
करें चढ़ाई 
तैनात बर्फ पर
पहरेदार
ग्लेशियर पिघले 
नदी नाले बहते 

रेखा जोशी 


Thursday 20 November 2014

प्यार से उनके सदा मिलती दुआयें ज़िन्दगी में


तुम  सदा  अपने  बड़ों का  ख्याल रख कर मान करना 
बात  यह अनमोल  इसका  तुम  सदा  ही ध्यान करना 
प्यार  से   उनके  सदा  मिलती  दुआयें   ज़िन्दगी   में 
दिल दुखा कर फिर कभी उनका न तुम अपमान करना 

रेखा जोशी 


घूमता रहता पहिया सदा काल के रथ का

थमती नही है कभी बस चलती यह ज़िंदगी 
है खुशियों को तलाशती रहती यह ज़िंदगी 
घूमता रहता पहिया सदा काल के रथ का 
सुख दुःख सब पीछे छोड़ बहती यह ज़िंदगी 

रेखा जोशी 

हूँ खुशनसीब बहुत मैने तुमसा पाया मीत

झंकृत हुआ मन होंठो  ने गुनगुनाया गीत
है  दूर   देश  से आज  मेरा आया मनमीत
जीवन में  पाई खुशियाँ  मिला तेरा सहारा
हूँ खुशनसीब बहुत मैने तुमसा पाया  मीत

रेखा जोशी 

Wednesday 19 November 2014

एक कदम स्वच्छता की ओर

 एक कदम स्वच्छता की ओर 

दो अक्तूबर 2014 राष्ट्रपिता महात्मा ग़ांधी जी का जन्म दिवस को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने ऐतिहासिक दिवस बना दिया ,एक सार्वजनिक कार्यक्रम में सफाई को लेकर भारत के देशवासियों को उन्होंने शपथ दिलाई , ‘मैं स्वच्छता को लेकर प्रतिबद्ध रहूंगा और इसको समय दूंगा… मैं कभी गंदगी नहीं फैलाऊंगा और न ही किसी को ऐसा करने दूंगा।’’ सरकार ने अपने सभी कर्मचारियों और अधिकारियों से इसी के अनुरूप शपथ लेने को कहा गया था | नरेंद्र मोदी सरकार की योजना महात्मा गांधी के 150वें जन्म दिवस दो अक्तूबर 2019 तक देश को पूरी तरह स्वच्छ बनाने की है। दो अक्तूबर को दिलाई गई शपथ के प्रारूप में लिखा गया है कि महात्मा गांधी ने एक ऐसे भारत का सपना देखा था जो न केवल आजाद हो बल्कि स्वच्छ और विकसित भी हो।उन्होंने कहा ,”महात्मा गांधी जी ने भारत माता को आजाद करवाया और अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि देश को स्वच्छ बनाकर हम भारत माता की सेवा करें और हम भारतवासियों की तरफ से ”स्वच्छ भारत ” को महात्मा गांधी जी की 150 वी वर्षगांठ पर उन्हें उपहार स्वरूप दे |
ऐसी बात नही है की हम भारतवासियों को स्वच्छता का महत्व पहले पता नही था ,हम जानते है की हमारी दादी परदादी रसोईघर में ,जहां भोजन सदैव हाथ धो कर बहुत ही सफाई एवं स्वच्छता से बनाया जाता था, वहां जूते ,चप्पलें न तो वह स्वयं पहनती थी ओर न ही किसी को भी जूतो सहित रसोई घर में जाने की इजाज़त देती थी ,ताकि जहां भोजन बनता है वहां जूतो के साथ कीटाणु न जाने पाये , हमारे रहनसहन में भी स्वच्छता की ओर बहुत ध्यान दिया जाता था ,यहां तक कि हमारी पूजा अर्चना में भी स्वच्छता का पूरा पूरा ध्यान रखा जाता था .हमारे पूर्वज जानते थे कि जहां स्वच्छता होती है उस स्थान से बीमारी कोसों दूर रहती है ओर जहां बीमारी नही होती वहां सदा लक्ष्मी का वास होता है | हमारे देश में अधिकतर लोग गावों में रहते है ओर शौच के लिए वह खेतों में ,खुले में जाया करने के आदी है ,लेकिन समय के चलते शहरीकरण हो रहा है गावों के लोग शहरों में आ कर बस रहे है ओर स्वच्छ शौचालयों के महत्व को समझ रहे है ,स्वच्छता अभियान में जुड़े इस तथ्य को नकारा नही जा सकता और यह हम सबका कर्तव्य है कि स्वच्छ शौचालयों के बारे में देशवासियों को जागरूक करें |
इसने कोई दो राय नही है कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कि के मन की बात आज जन जन के मन की बात बन चुकी है ,स्वच्छता अभियान में आज नेता ,अभिनेता , अभिनेत्रियां अफसर ,,क्या शहर क्या गाँव ,बच्चे ,युवा युवतियां बुज़ुर्ग ,कालेज स्कूल के विद्धार्थी सभी को स्वच्छता का अर्थ समझ में आ गया है ओर इस अभियान में देश के कोने कोने से लोग जुड़ रहे है | हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी कि सोच स्पष्ट है कि अगर देश का हर व्यक्ति स्वच्छता के बारे में जागरूक है तो इसमें कोई शक नहीं कि एक दिन हमारा भारत स्वच्छता के नए आयाम छू लेगा और हम भारतवासी बापू जी के 150 वें जन्मदिवस पर स्वच्छ भारत उन्हें उपहार में दे पाएंगे |

रेखा जोशी 

Tuesday 18 November 2014

झकझोर कर यह रख देती दिल के तारों को

हाल ऐ  दिल अपना बयान  करती  है कविता 
दिल के अनकहे जज़्बात भी कहती है कविता 
झकझोर  कर यह  रख  देती दिल के तारों को 
कभी कभी तो कहर बन कर गिरती है कविता 

रेखा जोशी 

जख्म भर गए थे हरे हो गए है

हुई शाम साये बड़े हो गए है
छोटे थे हमसे बड़े हो गए है

पैसे की देखो करामात कैसी
बुरे अब दूध के धुले हो गए है

सिक्के जो खरे थे बने  आज खोटे
जो खोटे थे अब खरे हो गए है

कोई बात भूली याद आ गई है
जख्म भर गए थे हरे हो गए है

महेन्द्र का जीना कैसा है जीना
कई साल उसको बुझे हो गए है

महेन्द्र जोशी

इतने भी सनम तुम मगरूर क्यों हो

मुहब्बत में  इतने  मजबूर  क्यों हो
पास रह  कर भी हमसे  दूर  क्यों हो
हमने  तो तुमसे बस माँगी थी वफ़ा
इतने भी सनम तुम मगरूर क्यों हो

रेखा जोशी

ज़िंदगी भर तुम्हारा इंतज़ार कर लूँगा

मै  मुहब्बत  का तुमसे इकरार कर लूँगा
फूल  राह में  बिछा कर इज़हार कर लूँगा
आ कर महका दो मेरे जीवन की बगिया
ज़िंदगी भर  तुम्हारा  इंतज़ार कर  लूँगा

रेखा जोशी 

मिलजुल कर रहेंगे ज़िंदगी में हम सदा

काँटों सँग  फूल बाग़  में खिलते रहेंगे 
सुख और दुःख जीवन में मिलते रहेंगे 
मिलजुल कर रहेंगे ज़िंदगी में हम सदा 
जीवन   की राह  में साथ  चलते  रहेंगे 

रेखा जोशी 

दिन का सुकून और रातों की नींद उड़ गई

तुम्हारी चाहत लिये   हम पल पल मरते रहे
पथ   में  पलक   बिछाये  इंतज़ार करते  रहे
दिन  का सुकून और रातों  की नींद  उड़ गई
अनजान बने  तुम्ही इस दिल में धड़कते रहे

रेखा  जोशी

Monday 17 November 2014

पग चूमती नव उषा किरण तुम्हारे

जो बीत गया उसे भूल जाओ तुम
छू लो आज ऊँचे आसमां को तुम
पग चूमती नव उषा किरण तुम्हारे
सुनहरे वह पंख आज ढूँढ़ लो तुम

रेखा जोशी 

Sunday 16 November 2014

छलकाते जाते प्रेम रस



अक्सर 
खाते है चोट 
प्रेम पथ पर चलने वाले 
पकड़ विश्वास की डोर
बंद कर नयन अपने 
सादगी से 
हो जाते समर्पित 
प्रेम में अपने 
जीवन भर के लिये 
दीवानी मीरा जैसे 
पागल प्रेम में
हँसते हँसते 
पी जाते ज़हर भी 
अक्सर 
आस्था का दीपक लिये 
हाथों में 
खा कर गहरी चोट भी 
नही रुकते बाँवरे 
उजियारा करने की चाह में 
बढ़ते जाते प्रेम पथ पर 
और 
छलकाते जाते प्रेम रस 
उन्ही 
प्रेम की राहों में 

रेखा जोशी 





मिल जायेंगी मंज़िले तुम्हे

राह चाहे कठिन बहुत हो तो 
छूना गर  आसमाँ  चाहो तो 
मिल  जायेंगी  मंज़िले तुम्हे 
खुद पर अगर भरोसा हो तो

रेखा जोशी 

जगमगाने लगी यह चाँद सूरज सी दुनिया

ज़मीन पर उतर आये  सितारे मेरे  लिये
बगिया में खिल उठी अब बहारें  मेरे लिये
जगमगाने लगी यह चाँद सूरज सी दुनिया
लाये  संग  तुम  यह सब नज़ारे मेरे लिये

रेखा जोशी 

प्यारी माँ मेरी तुमसा कोई नही

प्यारी माँ मेरी
तुमसा कोई नही
इस जहां में
...................
लोरी दे कर
तुम मुझे सुलाती
करे दुलार
..................
मेरे मुख पे
वो प्रथम मुस्कान
तुम्हारी ही थी
..................
मेरे सपने
संजोये थे तुमने
तेरे नैनो ने
..................
ईश्वर तुम
पूजा करूं तुम्हारी
तुझको नमन
.................
रेखा जोशी 

Saturday 15 November 2014

छलकता है प्यार हवाओं में

हो जाती 
आँखे नम
मुहब्ब्त की मज़ार पर
छलकता है प्यार
हवाओं में
यहाँ पर

जाने वाले राही
लेता जा सन्देशा
इश्क में डूबे
उन प्रेमियों
के नाम
न छोड़ना कभी साथ
इक दूजे का
सुबह हो याँ शाम
रहना साथ
सुख हो याँ दुःख
न छोड़ना कभी हाथ
जीना साथ
और
मरना साथ

रेखा जोशी

हुआ दीप्त आशियाना मेरा


सातवें आसमान से 
उतर आया
नभ पर 
सात घोड़ों पर सवार 
हुआ प्रकाशित 
जहान
अलौकिक लालिमा से
चमकती  सुनहरी धूप
और थिरकती
अरूण की रश्मियाँ
आई मेरे अंगना
हुआ झंकृत
मेरा तन मन
हुआ दीप्त
आज फिर
आशियाना मेरा

रेखा जोशी


छोड़ जाना था आये क्यों ज़िंदगी में

भूल गये कसमें सब तोड़ दिये वादे
भूल  हुई  हमसे जो न समझे इरादे
छोड़ जाना था आये क्यों ज़िंदगी में
तुम्ही बताओ अब तुम्हे कैसे भुला दे

रेखा जोशी 

Friday 14 November 2014

आवारा दिल धडकता है यादों में

तुम तो  न आये बस तेरी  यादें  है  पास 

बीते हुये   लम्हों की सजन  बातें है पास

आवारा  दिल  धडकता  है  यहाँ  यादों में 

आज वही  सुहाने  महकते  लम्हे है  पास

रेखा जोशी 

याद आते है अक्सर प्यारे पल छिन


बातो  बातो  में  गुज़र  जाते यह पल 

गिले शिकवे भी मुहब्बत भरे वह पल 

घंटों  खोये  रहते  जहाँ  पर  हम तुम 

छाये  अब यादों में मिलन के वह पल  


रेखा जोशी 
 "महिला अपराध: घर-बाहर की चुनोतियाँ-समस्या और समाधान" 


हमारे धर्म में नारी का स्थान सर्वोतम रखा गया है ,नवरात्रे हो या दुर्गा पूजा ,नारी सशक्तिकरण तो हमारे धर्म का आधार है | अर्द्धनारीश्वर की पूजा का अर्थ यही दर्शाता है कि ईश्वर भी नारी के बिना आधा है ,अधूरा है | वेदों के अनुसार भी ‘जहाँ नारी की पूजा होती है ‘ वहाँ देवता वास करते है परन्तु इसी धरती पर नारी के सम्मान को ताक पर रख उसे हर पल अपमानित किया जाता है | इस पुरुष प्रधान समाज में भी आज की नारी अपनी एक अलग पहचान बनाने में संघर्षरत है | जहाँ बेबस ,बेचारी अबला नारी आज सबला बन हर क्षेत्र में पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही है वहीं अपने ही परिवार में उसे आज भी यथा योग्य स्थान नहीं मिल पाया ,कभी माँ बन कभी बेटी तो कभी पत्नी या बहन हर रिश्ते को बखूबी निभाते हुए भी वह आज भी वही बेबस बेचारी अबला नारी ही है | शिव और शक्ति के स्वरूप पति पत्नी सृष्टि का सृजन करते है फिर नारी क्यों मजबूर और असहाय हो जाती है और आखों में आंसू लिए निकल पड़ती है अपनी ही कोख में पल रही नन्ही सी जान को मौत देने | क्यों नहीं हमारा सिर शर्म से झुक जाता ,कौन दोषी है ?,
सही मायने में नारी अबला से सबला तभी बन पाए गी जब वह अपनी जिंदगी के निर्णय स्वयम कर पाये गी | इसमें कोई दो राय नही है कि आज की नारी घर की दहलीज से बाहर निकल कर शिक्षित हो रही है ,उच्च शिक्षा प्राप्त कर पुरुष के साथ कन्धे से कन्धा मिला कर सफलता की सीढियां चढ़ती जा रही है l आर्थिक रूप से अब वह पुरुष पर निर्भर नही है बल्कि उसकी सहयोगी बन अपनी गृहस्थी की गाड़ी को सुचारू रूप से चला रही है l बेटा और बेटी में भेद न करते हुए अपने परिवार को न्योजित करना सीख रही है ,लेकिन अभी भी वह समाज में अपने अस्तित्व और अस्मिता के लिए संघर्षरत है ,कई बार न चाहते हुए भी उसे जिंदगी के साथ समझौता करना पड़ता है ,वह इसलिए कि हमारे समाज में अभी भी पुत्र और पुत्री में भेदभाव किया जाता है ,पुत्र के पैदा होने पर घर में हर्षौल्लास का वातावरण पैदा हो जाता है और बेटी के आगमन पर घरवालों के मुहं लटक जाते है ,”चलो कोई बात नही लक्ष्मी आ गई है ”ऐसी बात बोल कर संतोष कर लिया जाता है 
शादी के समय'' दहेज ''रूपी दानव न जाने कितनी लड़कियों को खा जाता है ,आये दिन अखबारों  में बहुओं को ज़िंदा जलाने की खबरें हम पढ़ते है ,घरेलू हिंसा आज हर घर की कहानी है ,कुछ कहानियाँ अखबारों की सुखियों में आ जाती है और अधिकतर ''घरेलू मामला है ''यह कह कर घर में ही ऐसी बातों को दबा दिया जाता है ।सबसे मुख्य बात यह है कि चाहे घर हो याँ बाहर ,हमारे समाज में औरत को सदा दूसरा दर्जा ही नसीब हुआ है । यह लिखते हुए मुझे बहुत कष्ट हो रहा है कि हमारे समाज में बच्चियाँ  लडकियाँ औरते जब खुले घूमते हुए विक्षिप्त मानसिकता वाले दरिंदों  का  शिकार हो जाती है ।
भले ही समाज में खुले घूम रहे मनुष्य के रूप में जानवर उसकी प्रगति में रोड़े अटका रहे है ,लेकिन उसके अडिग आत्मविश्वास को कमजोर नही कर पाए l हमारे देश को श्रीमती इंदिरा गांधी ,प्रतिभा पाटिल जी ,कल्पना चावला जैसी भारत की बेटियों पर गर्व है ,ऐसा कौन सा क्षेत्र है जिस में आज की नारी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन न कर पा रही हो | आज नारी बदल रही है और साथ ही समाज का स्वरूप भी बदल रहा है ,वह माँ बेटी ,बहन पत्नी बन कर हर रूप में अपना कर्तव्य बखूबी निभा रही है | मेरा निवेदन है भारतीय नारी से की वह देश की भावी पीढ़ी में अच्छे संस्कारों को प्रज्ज्वलित करें ,उन्हें सही और गलत का अंतर बताये ,अपने बच्चो में देश भक्ति की भावना को प्रबल करते हुए एक सशक्त समाज का निर्माण करने की ओर एक छोटा सा कदम उठाये ,मुझे विशवास है नारी शक्ति ऐसा कर सकती है और निश्चित ही एक दिन ऐसा आयेगा जब भारतीय नारी द्वारा आज का उठाया यह छोटा सा कदम हमारे देश को एक दिन बुलंदियों तक ले जाए गा | |
विश्व से पर्वत सी टकरा सकती है महिला
विश्व को फूल सा महका सकती है महिला
विश्व के प्रांगण में वीरांगना लक्ष्मी है महिला
विश्व फिर भी कहता है अबला है महिला

रेखा जोशी 


Thursday 13 November 2014

आधुनिकता की अंधी दौड़

शिखा और समीर इक्सिवीं सदी के युवा दोनों अपने अपने घर से दूर दिल्ली में नौकरी कर रहे  थे ,पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित ,लगभग चार वर्ष से दिल्ली की एक पौश कालोनी में किराए पर जगह ले कर लिव इन रिलेशनशिप में रहना शुरू कर दिया था  ,बिना शादी के इस तरह रहना आजकल फैशन बनता जा रहा है ,न जाने कितने युवक ,युवतियां शादी जैसा अपनी जिंदगी का अहम फैसला लेना ही नही चाहते ,वह इसलिए क्योकि आजकल जब बिना शादी के वह एक दूसरे से अपने सम्बन्ध स्थापित कर सकते है तो शादी कर उन्हें जिम्मेदारियां उठा कर कष्ट करने की क्या जरूरत ,अब आधुनिकता के नाम पर पुरुष और स्त्री के  बीच किसी भी प्रकार के शारीरिक संबंध जब विकसित होते  हैं तो उन्हें मात्र नैसर्गिक संबंधों की ही तरह देखा जाने लगा है ,लेकिन समाज इसे व्यक्तिगत मामला  कह कर नही टाल सकता ,वह इसलिए कि आज भी हम  अपनी संस्कृति ,परम्पराओं और नैतिक  समाजिक मान्यता  को प्राथमिकता देते है |

आज की महिला भले ही पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर जीवन के हर क्षेत्र में प्रगति कर रही है लेकिन महिला का पुरुष से शारीरिक रूप से कमज़ोर होने के साथ साथ  उनकी सोच में भी बहुत अंतर है ,वह कई फैसले विवेक से नही बल्कि भावना में बह कर ले लेती है चाहे बाद में उसे पछताना ही पड़े ,ऐसा ही फैसला भावना में बह कर शिखा ने भी ले लिया था ,इसी आशा में कि समीर उसके साथ शादी कर लेगा ,लेकिन ऐसा हो नही पाया ,इसके लिए उसने कोर्ट का दरवाज़ा भी खटखटाया परन्तु उसके हाथ निराशा ही लगी |आज जब कभी महिला और पुरुष विवाह से पूर्व सेक्स करते है तो उसे हमारा समाज कभी भी मान्यता नही दे पाता ,उसे सदा अनैतिक ही समझा जाता है | हमारे समाज में कोई भी पुरुष  ऐसी महिला को कभी भी अपनीजीवनसंगिनी नहीं बनाना चाहे गा जिसने विवाह से पहले किसी अन्य पुरुष के साथ सेक्स किया हो यां उसका कौमार्य भंग हो चुका हो,ऐसे में वर्जिनिटी की अवधारणा को समाप्त करना यां युवाओं को सेक्स की खुली छूट देने का कोई औचित्य ही नही रहता |

भगवान् राम की इस पावन भूमि पर तो सीता माँ को भी अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ा था ,आज भी उसी धरती पर मैला आँचल लिए उस स्त्री के लिए हमारे इस समाजिक परिवेश में  कोई भी स्थान नही है ,और न ही उसे कभी स्वीकारा जाए गा  | हमारे समाज में विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है ,जिसका मूल आधार आपसी  प्रेम और विश्वास  है ,ऐसे में कैजुअल सेक्स आदि जैसे संबंधो को कभी भी मान्यता नही मिल सकती वह इसलिए कि यह सरासर प्रहार है हमारी संस्कृति पर ,सामजिक और पारिवारिक मूल्यों पर | इस पर कोई दो राय नही है  कि विवाह से पहले या बाद में  पुरुष चाहे कितने भी अनैतिक संबंध बना ले लेकिन वह किसी का भी जवाबदेह नहीं होता वहीं पर  अगर किसी महिला का आंचल जाने अनजाने  किसी भी कारणवश चाहे उसकी सहमती से मैला हुआ हो यां फिर वह बलात्कार की पीड़िता हो ,उसका तो पूरा जीवन एक अभिशाप बन कर रह जाता है ,उसके सारे सपने टूट कर बिखर जाते है ,और तो और समाज के कई जाने माने एवं अनजाने लोगों द्वारा  उसका यौन शौषण भी होने लगता है |

 हमारे समाज में  माता पिता बचपन से ही सदा लड़कियों और औरतों को अपनी मर्यादा में रहने शिक्षा देते  है ,परन्तु शिखा जैसी लड़किया आधुनिकता का जामा ओढ़े यां कैजुअल सेक्स में लिप्त स्त्रियाँ अनैतिक रिश्ते बना तो लेती है लेकिन इस दल दल में फंसने के बाद उनके पास  में सिर्फ हाथ मलने के सिवाय  और कोई विकल्प नही बचता , |ऐसे में अपना परिवार बनाना तो बहुत दूर कि बात है ,वह समाज से भी कटी कटी सी रहती है  और वह अपनी सारी जिंदगी पछतावे के साथ घुट घुट कर गुज़ार देती है |आज जब पूरी दुनिया सिमटती जा रही है ,हमारे देश में भी पाश्चात्य सभ्यता धीरे धीरे अपने पाँव जमा रही है ऐसे में हम सबका यह  कर्तव्य है कि हम अपनी मर्यादा की  सीमा को ध्यान में रखते हुए, अपने मूल्यों एवं संस्कारों को दुनिया में हो रही प्रगति के साथ साथ जीवित रख सके न कि आधुनिकता की अंधी दौड़ में अपनी जिंदगी ही बर्बाद कर लें |

 रेखा जोशी