Friday 29 December 2017

ग़ज़ल

ग़ज़ल
वज़न-2122/1122/1122/22
अरकान-फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन

छोड़ कर आप मिरा प्यार किधर जाओगे
हर तरफ तेज़ हवाएँ हैं बिखर जाओगे
,
प्यार में दर्द मिला चोट है खाई हमने
देख कर दर्द हमारा तुम डर जाओगे
,
चाँदनी रात पिया चाँद उतर आया अब
आज हम साथ चलें चाँद जिधर जाओगे
,
छोड़ना तुम न कभी हाथ हमारा साजन
प्यार में साथ निभाना संवर जाओगे
,
आसमां में चमका आज सितारा साजन
देखना है उसको रात ठहर जाओगे

रेखा जोशी

Thursday 28 December 2017

अलविदा 2017

सूरज की पहली
किरण
देती दिलासा
उम्मीद का
धीरे धीरे ढल जाती
खूबसूरत भोर
सुनहरी शाम में
सुबह शाम से बँधा
चलता रहता यह
जीवन चक्र
इस जीवन चक्र में
गुज़र गया
एक और वर्ष
कुछ खुशियाँ
और
कुछ ग़म देकर
यही तो है ज़िंदगी
रहती फिसलती
हाथों से
करते अब अलविदा
भुला कर सभी ग़म
और
संजो कर खूबसूरत यादें
गुज़रे साल की
अलविदा 2017
अलविदा 2017

रेखा जोशी



बेचैन निगाहें


बेचैन निगाहें

जनवरी का सर्द महीना था ,सुबह के दस बज रहे थे और रेलगाड़ी तीव्र गति से चल रही थी वातानुकूल कम्पार्टमेंट होने के कारण ठण्ड का भी कुछ ख़ास असर नही हो रहा था ,दूसरे केबिन से एक करीब दो साल का छोटा सा बच्चा बार बार ऋतु के पास आ रहा था ,कल रात मुम्बई सेन्ट्रल से ऋतु ने हज़रात निजामुदीन के लिए गोलडन टेम्पल मेल गाडी पकड़ी थी ”मै तुम्हे सुबह से फोन लगा रही हूँ तुम उठा क्यों नही रहे ”साथ वाले केबिन से किसी युवती की आवाज़ ,अनान्यास ही ऋतु के कानो से टकराई,शायद वह उस बच्चे की माँ की आवाज़ थी ,”समझ रहे हो न चार बजे गाडी मथुरा पहुँचे गी ,हा पूरे चार बजे तुम स्टेशन पहुँच जाना ,मुझे पता है तुम अभी तक रजाई में ही दुबके बैठे होगे , एक नंबर के आलसी हो तुम इसलिए ही तो फोन नही उठा रहे,बहुत ठण्ड लग रही है तुम्हे ” | वह औरत बार बार अपने पति को उसे मथुरा के स्टेशन पर पूरे चार बजे आने की याद दिला रही थी ,उसकी बातों से ऐसा ही कुछ प्रतीत हो रहा था ऋतु को | ”हाँ हाँ मुझे पता है तुम्हारा ,पिछली बार तुम चार बजे की जगह पाँच बजे पहुँचे थे ,पूरा एक घंटा इंतज़ार करवाया था मुझे ,इस बार मै तुम्हारा इंतज़ार बिलकुल नही करूँगी , अगर तुम ठीक चार बजे नही पहुँचे तो मै वहाँ से चली जाऊँ गी बस ,फिर ढूँढ़ते रहना मुझे , कहीं भी जाऊँ परन्तु तुम्हे नही मिलूँगी अरे मै अकेली कैसे आऊँ गी ,सामान है मेरे साथ ,गोद में छोटा बच्चा भी है ,आप कैसी बात कर रहे हो | ”ऐसा लग रहा था जैसे उसका पति उसकी बात समझ नही पा रहा हो i उसकी बाते सुनते सुनते और गाड़ी के तेज़ झटकों से कब ऋतु की आँख लग गई उसे पता ही नही चला ,आँख खुली तो मथुरा स्टेशन के प्लेटफार्म पर गाड़ी रूकी हुई थी ,घड़ी में समय देखा तो ठीक चार बज रहे थे ,उसने प्लेटफार्म पर नज़र दौड़ाई तो देखा वह औरत बेंच की एक सीट पर गोद में बच्चा लिए बैठी हुई थी और उसकी बगल में दो बड़े बड़े अटैची रखे हुए थे ,लेकिन उसकी बेचैन निगाहें अपने पति को खोज रही थी ,पांच मिनट तक ऋतु उसकी भटकती निगाहों को ही देखती रही ,तभी गाड़ी चल पड़ी और वह औरत धीरे धीरे उसकी नज़रों से ओझल हो गई | मालूम नही उसकी बेचैन निगाहों को चैन मिला या नही , उसका पति उसे लेने पहुँचा या नही ,जो कुछ भी वह फोन पर अपने पति से कह रही थी क्या वह तो सिर्फ कहने भर के लिए था ?

रेखा जोशी

Monday 25 December 2017

आदमी

जिंदगी  भर  ताने   बाने  बुनता  रहता  आदमी
कैसे  कैसे  धोखे    यहाँ  करता  रहता  आदमी
दुनिया दो दिन का मेला दो दिन की जिंदगी यहाँ
न जाने क्यों  पाप का घड़ा भरता रहता आदमी
,
ख़ुद  को  रब  का  बंदा है कहता आदमी
हिंदु  मुस्लिम  सिख ईसाई  बना  आदमी
जाति  धर्म  के  बंधन में जकड़े सभी जन
मानव न  कभी भी यहां बन सका आदमी

रेखा जोशी

Thursday 21 December 2017

सौभाग्य का प्रतीक आपके घर का प्रवेश द्वार 

सौभाग्य का प्रतीक आपके घर का प्रवेश द्वार 

वास्तु टिप्स
१ घर का मुख्य द्वार पूर्व  अथवा उत्तर दिशा में शुभ माना गया है |
२ द्वार के दो पल्ले होने चाहिए |
३ द्वार खोलने और बंद करने पर आवाज़ नही होनी चाहिए |
४ द्वार पर मंगल चिन्ह लगाना शुभ होता है |
५ मुख्य प्रवेश द्वार ईशान की ओर से पूर्व दिशा के मध्य में होना चाहिए

रेखा जोशी

मत आना बहकावे में


सबकी बात न माना कर
सही गलत को जाना कर
मत  आना  बहकावे  में
सच को भी पहचाना कर

रेखा जोशी

Wednesday 20 December 2017

भर ली परिंदों ने ऊंची उड़ान है

बाहें फैला बुला रहा आसमान है
भर ली  परिंदों ने ऊंची उड़ान है
,
नीले आसमां में विचरते लहरा कर
चहकती नील नभ में उनकी ज़ुबान है
,
इक दूजे का वह बनते  सदा सहारा
साथियों पर करें वह जान कुर्बान है
,
मिलजुल कर उड़ते नहीं डरते किसी से
आये चाहे फिर कितने भी तूफान हैं
,
मधुर गीत गाते मिल कर सभी गगन में
देख कर उनको लब पर आती मुस्कान है

रेखा जोशी

Monday 18 December 2017

सर्दी के मौसम में कंपकंपाती है ज़िन्दगी

सर्दी के मौसम में कंपकंपाती है ज़िन्दगी
घने कोहरे में भी तो मुस्कुराती है ज़िन्दगी
मिलती है गर्माहट यहां आलाव के ताप से
दोस्तों के संग फिर यहां खिलखिलाती है ज़िन्दगी

रेखा जोशी

Friday 8 December 2017

प्रेम होना चाहिए


वक्त के
आँचल तले
बीत रही है जिंदगी
चार दिन की चांदनी
है यहाँ
लम्हा लम्हा, हर पल
रेत सी हाथों से
फिसल रही है ज़िन्दगी
बीते लम्हे
लौट कर न आए फिर दुबारा
कभी ज़िंदगी में
आओ जी ले यहां 
हर पल
कर के प्यार सभी से
संवार दें जीवन यहां
दुख और गम से
भरी जिंदगी में सबकी
प्रेम  होना चाहिए

रेखा जोशी

Saturday 2 December 2017

तन्हा तन्हा  बीता हर पल


चाहत हो मेरी कहना था
दिल में मेरे वह रहता था
,
मेरी गलियों में आ जाना
रस्ता वह तेरे घर का था
,
कोई पूछे टूटे दिल से
किस की खातिर दिल रोया था
,
बहते थे आँखों से आँसू
तड़पा  के ज़ालिम हँसता था
,
खुश हूँ जीवन में तुम आये
बिन तेरे सब कुछ सूना था
,
तन्हा तन्हा  बीता हर पल
जीवन सूना ही गुज़रा था
,
तेरी सूरत लगती प्यारी
पर दिल तेरा तो काला था
,
ग़ैरों को अपना कर तुमने
क्यों तोड़ा अपना वादा था

रेखा जोशी

Wednesday 29 November 2017

हाइकु


हाइकु

खुशी के गीत
कुहुकती कोयल
जगाती  प्रीत
,
जगाती प्रीत
सजन अलबेला
मन का मीत
,
मन का मीत
बहुत तड़पाये
जाने न प्रीत
,
जाने न प्रीत
समझ नहीं पाता
प्रीत की रीत

रेखा जोशी

Tuesday 28 November 2017

पिंजरे का पंछी

बचपन में माँ एक कहानी सुनाया करती थी कि एक राक्षस किसी देश की राजकुमारी को उठा कर ले गया था लेकिन कहानी का अंत बहुत सुखद होता था, कोई राजकुमार बहुत सी कठिनाइयाँ झेल कर राजकुमारी को राक्षस के चुंगल से बचा लिया करता था l

आज न जाने कितने महीने गुज़र गये मीना को अपने राजकुमार का इंतज़ार करते हुए, उफ़ कितनी भयानक रात थी जब वह रात को आफिस से घर लौट तब किसी राक्षस ने उसे पकड़ लिया था, कितना चीखी थी मीना लेकिन तब से वह उस ज़ालिम की केद में तड़प तड़प कर दिन गुज़ार रही थी, कब इस बंद पिंजरे से उसे आज़ादी मिलेगी, लेकिन आज़ादी उसके नसीब में नहीं थी, नही जानती थी कि उसके राजकुमार ने ही मीना को बेच दिया था उस राक्षस को l

रेखा जोशी

Sunday 26 November 2017

बादलों की ओट मुख दिखाता है चाँद

बादलों की ओट मुख दिखाता है चाँद
पानी की लहरों पे लहराता है चाँद
..
आ गये हम तो यहाँ परियों के देश में
यहाँ चाँदनी पथ पे बिखेरता है चाँद
..
दीप्त हुआ चाँदनी से चेहरा तेरा
रोशन हुआ आलम जगमगाता है चाँद
..
आये तेरी महफ़िल में अब हम भी सनम
तारों संग नभ पे मुस्कुराता है चाँद
.?

सुंदर नज़ारों को बसा लिया पलकों में
अब देख कर हमे यहाँ शर्माता है चाँद

रेखा जोशी

Friday 24 November 2017

लहर  लहर  लहराते  गाते  नदिया  में  प्रेम  के गीत

हंस  हंसिनी का जोड़ा  निर्मल जल में लगा झूमने
चाँद सा मुखड़ा देख हंसिनी का लगा हंस चहकने
,
कमल खिले खुशियों के तब जैसे खिले कलियों से फूल
मिले  इक  दूजे  के  दिल  लगे  संग  संग वोह  धड़कने
,
लहर  लहर  लहराते  गाते  नदिया  में  प्रेम  के गीत
प्रियतम से मिल लिखी प्रेम कहानी  प्रीत लगी मचलने
,
बना  रहे  स्नेह सदा आती  रहें  बहारें ज़िन्दगी में
देख प्यार दोनों का तरंगिनी भी अब लगी बहकने
,
इक दूजे का बन  सहारा   जीते  इक  दूजे  को देख
हाथ जोड़  भगवन  से मांगे जन्‍म जन्‍म का साथ बने

रेखा जोशी 

Thursday 23 November 2017

याद तेरी सता रही है मुझे


याद तेरी  सता रही है मुझे 
ज़िन्दगी अब बुला रही है मुझे 

चोट खाते  रहे  यहाँ साजन 
पीड़  दिल की जला  रही है मुझे 

छिप गये हो कहाँ जहाँ में तुम 
याद फिर आज आ रही है मुझे 
.. 
सिलसिला प्यार का न टूटे अब 
मौत जीना सिखा  रही है मुझे 
... 
आ मिला कर चलें कदम हम तुम 
चाह तेरी  लुभा रही है मुझे 

रेखा जोशी 

Tuesday 21 November 2017

शादी जी हाँ शादी

शादी जी हाँ शादी
था सुना करते
यह तो है बरबादी
,
कहते थे बड़े बुजुर्ग
कर लो मौज अभी
पता चलेगा
आटे दाल का भाव
जब होगी शादी
मत पड़ना इस चक्कर में
यह तो है बरबादी
,
लेकिन नहीं माना मन
ललचा गया
बेताब हो उठा
खा ही लिया शादी का लड्डू
बंध गए विवाह के बंधन में
सोचा अब तो पड़ेगा पछताना
क्योकि
यह तो है बरबादी
,
नहीं सोचा था कभी
खूबसूरत प्यारे इस बँधन से
मिलेंगी खुशियाँ हज़ार  हमेँ
बदल देगा दुनिया हमारी
मिला जीवन साथी इक प्यारा
बना वह सुख दुख का सहारा
वह तो निकला
जन्‍म जन्‍म का साथी
कर दी सुबह और शाम
हमने उसके नाम
नहीं समझे जो
प्यारे इस बँधन को
वोही है कहते
यह तो है बरबादी

रेखा जोशी

Saturday 18 November 2017

नहीं मुश्किल नदी के पार होना

नहीं मुश्किल नदी के पार होना
रहे माँझी  अगर बेदार होना
,
हमारे ख्वाब है पूरे हुए अब
कहो उनसे न फिर मिस्मार होना
,
कहें कैसे  सजन से बात दिल की
झुकी आँखें कहें है आर होना
,
सहारा कौन देता इस जहां में
उठो खुद ही न फिर बेगार होना
,
रखा हमने छुपा कर प्यार दिल में
निगाहों से बयां हैं प्यार होना
,
सितारों से सजी महफिल यहां पर
किसी का आज  है दीदार होना

रेखा जोशी

अधजल गगरी छलकत जाये

है मौन बहती
सरिता गहरी
उदण्ड बहते निर्झर
झर झर झर झर
करते भंग मौन
पर्वत पर
उछल उछल कर
शोर मचाये
अधजल गगरी छलकत जाये

ज्ञानी रहते मौन
यहाँ पर
ज्ञान बाँचते
पोंगें पंडित
कुहक कुहक कर
रसीले मधुर गीत
कोयलिया गाये
पंचम सुर में
कागा बोले
राग अपना ही
अलापता जाये
अधजल गगरी छलकत जाये

मिलेंगे यहाँ
हज़ारों इंसान
आधा अधूरा  ज्ञान लिये
गुण अपने करते बखान
कौन इन्हे अब समझाये 
अधजल गगरी छलकत जाये

रेखा जोशी

Thursday 16 November 2017

बीत जायेगा समां यह


फूल बगिया में खिलेंगे
ग़म न कर दिन यह फिरेंगे
बीत जायेगा समां यह
फिर खुशी के पल मिलेंगे

रेखा जोशी

Thursday 9 November 2017

ढूंढते तुम्हें हर द्वार प्रिय


हृदय में बसा लिया प्यार प्रिय
ढूंढते तुम्हें हर द्वार प्रिय
,
है व्याकुल नयन तेरे बिना
सुन लो मेरी तुम पुकार प्रिय
,
राह में तेरी पलकें बिछा
करते तेरा इंतज़ार प्रिय
,
सूनी गलियाँ सूना आंगन
तरसते तेरा दीदार प्रिय
,
पलकों को मधुरिम ख़्वाबों से
भर देते हो बार बार प्रिय

रेखा जोशी

Sunday 5 November 2017

टूटते  रिश्ते  यहां  पत्थरों  के  शहर  में

दुनिया की भीड़ में  देखे  बिखरते रिश्ते
ज़िंदगी की भाग दौड़ में सिसकते रिश्ते
टूटते  रिश्ते  यहां  पत्थरों  के  शहर  में
प्रेम  प्रीति  से  ही  तो  हैं  संवरते  रिश्ते

रेखा जोशी

Friday 3 November 2017

जीवन में धीरज रखना सीख

उड़ना चाहूँ आसमान  में
पाँव पड़ी  जंजीर 
जो चाहूँ वो न पाऊँ
यह कैसी मिली तकदीर 
रहे  अधूरे  सपने  
देखे  जो  मेरी चाहतों  ने  
भाग्यविधाता क्यों लिख दी
मेरे भाग्य में पीर

थी यही तमन्ना
जीवन में कुछ करने की
सपनों पर अपने
पड़ती रही धूल ही धूल
फूलों की चाहत में
मिले हमें शूल ही शूल
लेकिन
आई दिल से आवाज़
न छोड़ना कभी आस
अधूरे सपनें होंगे पूरे
न हो तुम अधीर

छू लोगे तुम
आसमां इक दिन
पंख मिलेंगे ख़्वाबों को
गर खुद पर हो विश्वास
अवश्य होगे कामयाब
बस जीवन में
धीरज रखना सीख

रेखा जोशी







 रेखा जोशी

Thursday 2 November 2017

मुक्तक

समाये   तुम   पिया  दिल में  हमारे
चले    आओ    पुकारे    हैं   बहारें
मिले जो तुम हमें दुनिया मिली अब
खिला  उपवन  हमें  साजन  पुकारे

रेखा जोशी

Wednesday 1 November 2017

कभी रूठती कभी हम को मनाती

है  लाडो  हमारी  सब को  नचाती
कभी रूठती कभी हम को मनाती
खेलती कूदती घर अँगना  बिटिया
बचपन सुहाना  मुझे  याद दिलाती

रेखा जोशी

Monday 30 October 2017

जय माँ गंगे हर हर गंगे

कल कल शोर मचाती
नाचती इठलाती
उतरी हिमालय की गोद से
आई भारत की धरा पर
जीवन दाती
भागीरथी को करते नमन
है पावन नीर बहती धारा
छलकता अमृत
बूंद बूंद  में इसकी
नदी नहीं यह मैया हमारी
करते माँ  गंगा  को नमन 
इसके लहराते आँचल में
बस रहा हमारा वतन
उगल रही सोना धरती
जाये जहां
निर्मल इसका जल
जय माँ गंगे हर हर गंगे
सदियों तक तुम बहती जाना
जय माँ गंगे हर हर गंगे
देश हमारा समृध्द बनाना
जय माँ गंगे हर हर गंगे
जय माँ गंगे हर हर गंगे

रेखा जोशी

क्या रिश्ता था तुमसे

क्या रिश्ता था तुमसे
एक पड़ोसी ही तो थे तुम
लेकिन
माँ की आवाज़ सुनते ही
भाग आते थे घर हमारे
कभी तरकारी कभी दही
भाग भाग कर लाते थे तुम
और माँ भी न
झट से बुला लेती थी तुम्हें
कोई काम हो
नहीं पूरा होता बिन तुम्हारे
आखिर
क्या रिश्ता था तुमसे
एक बेनाम रिश्ता
फिर भी इतना अपनापन
नहीं नहीं
न होते हुए भी
रिश्ता था तुमसे
आखिर
खून का रिश्ता न होते हुए भी
रक्षाबंधन पर
एक अनमोल रिश्ते में
बाँध लिया तुम्हें
कलाई पर तुम्हारी
नेह की डोर से
एक बेनाम रिश्ते को
नाम दे कर
निभा रहे हो जिसे तुम
अब तक

रेखा जोशी

Sunday 29 October 2017

अब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई
दिल मचलता रहा पर उनसे ना मुलाकात हुई
,
रिमझिम बरसती बूंदों से है नहाया तन बदन
आसमान से आज फिर से जम कर बरसात हुईं
,
काली घनी  घटाओं संग चले शीतल हवाएँ
उड़ने लगा मन मेरा ना  जाने क्या बात हुई
,
झूला झूलती सखियाँ अब पिया आवन की आस
बीता दिन इंतज़ार में अब तो सजन रात हुईं
,
चमकती दामिनी गगन धड़के हैं मोरा जियरा
गर आओ मोरे बलम तो  बरसात सौगात हुईं

रेखा जोशी

बेनाम रिश्ता


रिश्ता तेरा मेरा
है कुछ अजीब सा
अरसा हुआ बिछड़े हुए
लेकिन
रहा आज तक
बेनाम
चाह थी मेरी उसे
इक नाम दूं
प्यार या फिर दोस्ती का
देखो तो विडम्बना
न रहा प्यार न दोस्ती
गुम हो गये कहीं हम
अतीत की गहरे कोहरे में
न कोई अपनापन
न उसका एहसास
सर्द ठंडे बेनाम रिश्ते में
शायद थी कोई चिंगारी
जो तुम याद आये
थी कोई नेह की डोर
बाँध रखा है जिसने
हमारे बेनाम रिश्ते को

रेखा जोशी

बेवफा  प्यार व्यार क्या जाने

2122 1212 22

बेवफा  प्यार व्यार क्या जाने
दर्द दिल का नहीं पिया जाने
,
साथ लेकर हमें चलो साजन
क्या पता कब मिलें खुदा जाने
,
खूबसूरत यहां नज़ारे अब
छा रहा क्यों पिया नशा जाने
,
बात दिल की हमें कहो साजन
कल बहारे न हों  खुदा जाने
,
मुस्कुरा ले यहां घड़ी भर तू
पल मिलें फिर न क्या पता जाने
,
चांदनी है खिली खिली साजन
मुस्कुरा चाँद क्यों रहा जाने

रेखा जोशी

Thursday 26 October 2017

समझ नहीं पाओ गे तुम


आलीशान बंगलों में बैठ
करते हो बात गरीबों की
नहीं समझ सकते तुम
पेट की आग को
कुलबुलाती है भूख जब
गरीब के पेट में
सु्‍सज्जित मेज़ पर
लज़ीज़  व्यंजन खाते वक्त
नहीं समझ सकते तुम
हालात गरीबों के
क्योंकि तुम्हारी राहों में
बिछे रहते सदा मखमल के कालीन
शान ओ शौकत के
समझ भी नहीं पाओगे तुम
क्योंकि
तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते

रेखा जोशी

Monday 23 October 2017

करें  हम  याद  तुमको हर घड़ी हर पल

1222 1222 1222

नहीं  कोई   यहां  दीवार  अब साजन
किया हमने  पिया इकरार अब साजन
,
जिया  लागे  न  सजना अब बिना तेरे
चले  आओ  पुकारे  प्यार अब साजन
,
बहारे  है खिला  उपवन  पिया आ जा
नज़ारों  से न कर  इनकार अब साजन
,
किसे साजन सुनाएँ हाल दिल का हम
चलो  लेकर  हमें  उस पार अब साजन
,
करें  हम  याद  तुमको हर घड़ी हर पल
यहां  पर  ज़िंदगी  संवार  अब   साजन

रेखा जोशी

Friday 20 October 2017

मुक्तक


ज़िन्दगी में बहुत कुछ  है धन माना
सबको   नाच  नचाता  है धन जाना
रिश्तों  के ऊपर  अब है दौलत यहाँ
करे  हर   किसी  को दौलत दीवाना

रेखा जोशी

मुक्तक


कान्हा   के रूप में ईश्वर ने  लिया अवतार
जन्म लिया धरती पर पैदा हुआ तारणहार
वासुदेव ने सर  धर कान्हा  गोकुल पहुँचाया
देवकी ने जाया उसे यशोदा से मिला  दुलार
..
हे माखनचोर नन्दलाला ,मुरली मधुर है बजाये 
धुन सुन  मुरली की गोपाला ,राधिका मन मुस्कुराये 
चंचल नैना चंचल चितवन, गोपाला से प्रीति हुई
कन्हैया से छीनी मुरलिया  , बाँसुरिया अधर लगाये 

रेखा जोशी 

रेखा जोशी

खुशी लाती दिवाली जले नेह का दीप


दीप जलाये सबने रोशन हुआ जहान
सज रही सभी गलियाँ अब सजा हिन्दुस्तान 
,
एक दीपक तो जलाओ अपने अंतस में 
फैैलाओ  उजाला करो दीप्त हर स्थान 
,
घर   घर  हो   उजियारा  दूर  हो अंधेरा
जात पात का भेद मिटे सब जन एक समान
,
जगमग जगमग दीप जले आई दिवाली
खुशियाँ बरसे घर घर ऎसा मिले वरदान
,
खुशी लाती दिवाली जले नेह का दीप
मानवता परम धर्म जगत में बाँट ज्ञान

रेखा जोशी 

मुट्ठी  भर   दाने  अपने  आँगन  में  बिखेरता हूँ

मुट्ठी  भर   दाने  अपने  आँगन  में  बिखेरता हूँ
मैं उन चिड़ियों को अक्सर दाना दुनका  देता हूँ
,
एक से बढ़कर एक लुभाती सुंदर चिड़िया अंगना
चहकती   फुदकती  दाने   चुगते  उन्हें देखता  हूँ
,
चहचहाने  से  उनके  चहक  उठता  आंगन मेरा
वीरान  नैनों   में  भर  खुशियाँ यहां  समेटता  हूँ
,
सुबह शाम  करें कलरव मधुर रस कानों में घोले
मधुर गीतो से  झोली में फिर   जिंदगी  भरता हूँ
,
रिश्ता उनसे अनोखा मेरा है हर रिश्ते से ऊपर
कभी कभी दिल की बातें भी उनसे कर लेता हूँ

रेखा जोशी

Wednesday 18 October 2017

फुलवारी


अँगना खिली आज फुलवारी है
फ़ूलों  से  महकी अब क्यारी  है
नाचते  झूम  झूम   मोर  बगिया
कुहुके   कोयल   डारी  डारी  है

रेखा जोशी

Sunday 15 October 2017

सवाल


आज सालों दिनों बाद प्रिया ने कैफे में कदम रखा, बीस साल पहले उसकी यहां से बदली हो गई थी, फिर वह घर गृहस्थी के चक्कर में ही फंस कर रह गई , टेबल पर बैठते ही बीते दिनों की यादों में खो गई l क्या दिन थे जब वह रवि के साथ यहां अक्सर आया करती था, घंटों दोनों यहां  वक्त गुज़ारा करते थे l प्रिया को रवि पर बहुत गुस्सा था, उसने शादी से इंकार क्यों कर दिया था l तभी उसे एक जानी पहचानी सी आवाज़ सुनाई दी l प्रिया ने घूम कर देखा, उसके सामने रवि था l
" "अरे, तुम यहाँ? क्या इत्तेफ़ाक़ है," कहते हुए उसने हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाया ।

कैफे में साथ वाली टेबल से जब उसे किसी ने पुकारा तो उसने आवाज़ की दिशा में सिर घुमा कर देखा ।

बीस साल..... एक ही शहर में रहते हुए इतने लंबे अंतराल के पश्चात यह मुलाक़ात....

अपरिचितों से भरे कैफे के शोरो-गुल के बीच दिमाग़ जैसे सुन्न हो गया । अचंभित हो दोनों एक दूसरे को देखते रह गये ।

क्या है ईश्वर की इच्छा, सोचते हुए वो अतीत की यादों में गुम हो गये....."
कभी दोनों ने जीने मरने की कसमें भी खाई थीं, दोनों एक दूसरे को देखते रह गए लेकिन निशब्द, आँखों से आँखे मिली,प्रिया ने उसे नीचे से ऊपर तक देखा उसकी नज़र रवि के लड़खड़ाते हुए  कदमों  पर रुक गई रवि ने अपनी सीट के पास रखी छड़ी  उठाई और लंगड़ाते हुए धीरे  धीरे दरवाज़े से बाहर चला गया l प्रिया को अपने सवाल का जवाब मिल गया था l

रेखा जोशी

Saturday 14 October 2017

दोहे


1
मीत प्रीत जाने नहीं, समझे न प्रेम प्यार
मन से जोगी जोगड़ा, सब से प्रीत अपार
2
सूरज निकला है गगन, पंछी करते शोर
जागो तुम अब नींद से, चहक उठी है भोर

रेखा जोशी

Friday 13 October 2017

काश मिलती तुम हमें जिंदगी

अर्कान= फाइलातुन् फाइलातुन् फाइलुन्
तक्तीअ= (मापनी) 2122 2122 212
.
काश  मिलती तुम हमें ज़िन्दगी
प्यार  तेरे   संग करते  ज़िन्दगी
...
मुस्कुराते संग दोनों फिर सजन
साथ  रोते  साथ हँसते ज़िन्दगी
....
पास  आते तुम हमारे तो कभी
हम दिखाते प्यार से ये जिंदगी
....
जा रहे हम दूर तुमसे अब सजन
अब आखिरी इज़हार ले जिंदगी
....
अब हमारी इल्तिज़ा सुन लो पिया
देख  लो  जी  भर हमें  ए जिंदगी

रेखा जोशी

Thursday 12 October 2017

काश सच हो पाते

इंद्रधनुषी रंगों से
सजाया था हमने
महकता हुआ गुलशन
ख़्वाबों में अपने
गुलज़ार थी जिसमे
हमारी ज़िंदगी
दुनिया से दूर
मै और तुम
बाते किया करते
थे आँखों से अपनी
सपने ही सपने
कुहकती थी कोयलिया भी
बगिया में हमारी
गाती थी वो भी
प्रेम तराने
टूट गए सब सपने
खुलते ही आँखे
बिखर गए सब रंग
और हम
भरते ही रह गए
ठंडी आहें
काश सच हो पाते
वोह प्यारे
ख़्वाब हमारे

रेखा जोशी

जल रहे दीपक से जगमगाना सीख ले

जो गिर गए हैं उनको उठाना सीख ले
जल रहे दीपक से जगमगाना सीख ले

महकती बगिया खिले रंग बिरंगे फूल
संग संग फूल के मुस्कुराना सीख ले
,
गीत गा रहे आज भँवरे उपवन उपवन
संग संग गीत तुम गुनगुनाना सीख ले
,
मचल रहे आज हमारे दिल के अरमान
हमें आज तुम अपना बनाना सीख ले
,
बांट ले अब खुशियाँ सबको गले लगाकर
मिल सभी अपनों से खिलखिलाना सीख ले

रेखा जोशी

हाले दिल यार को लिखूं कैसे


रहते हो दिल में प्रियतम कहूं कैसे
बात  प्यार  की  आज  करूं  कैसे
उमड़  रहे  जज़्बात दिल में साजन
हाले   दिल   यार   को  लिखूं कैसे

रेखा जोशी

Wednesday 11 October 2017

तिरा फिर रूठ जाना और ही था


तिरा फिर रूठ जाना और ही था 
न मिलने का बहाना और ही था 
चले तुम छोड़ कर महफ़िल हमारी
वफ़ा हम को दिखाना और ही था 

रेखा जोशी 

Tuesday 10 October 2017

मंदिर मन

मन मुदित
पर्वत की शृंखला
नीरव घाटी
,
प्रभु दर्शन
शांत वातावरण
मंदिर मन
,
स्नेह निश्छल
दीपक प्रज्ज्वलित
मन उज्ज्वल

रेखा जोशी

मुक्तक

दिल  तुमको अपना बनाना चाहता है
तुम पर  पिया जान लुटाना  चाहता है
रूठे रूठे क्यों  हो तुम  प्रियतम हमसे
दर्द   अब   तेरा  अपनाना  चाहता  है

रेखा जोशी

Monday 9 October 2017

अब हम जियेंगे और मरेंगे साथ साथ

जीवन की राहों में ले हाथों में हाथ
साजन मेरे अब हम चल रहे साथ साथ

अधूरे  है हम  तुम बिन सुन साथी  मेरे
आओ जीवन का हर पल जिएं साथ साथ

हर्षित हुआ  मन देख  मुस्कुराहट तेरी
दोनों सदा खिलखिलाते रहें साथ साथ

आये कोई मुश्किल कभी जीवन पथ पर
मिल कर दोनों सुलझा लेंगे साथ साथ

तुमसे बंधी हूँ मै  साथी यह मान ले
प्रेम बँधन में बंधे हम चलें साथ साथ

छोड़ न जाना तुम कभी राह में अकेले
आरज़ू है यही जिएं और मरें साथ साथ

रेखा जोशी

Saturday 7 October 2017

मुक्तक


प्रीत  की लौ जलाने की बात कर
साजन  प्यार निभाने की बात कर
अाई  है  चमन  में  बहार   साजन
अब  गीत  गुनगुनाने की बात कर

रेखा जोशी

Friday 6 October 2017

मुक्तक


दो दिन की है ज़िन्दगी यहां,दो दिन ही साथ निभाना है
प्रेम  कर ले  सभी है अपने,दुख दर्द सबका  मिटाना है
किस बात का करते हो यहां,तुम अहंकार बता ओ बन्दे
है माटी के पुतले हम  सब ,माटी  में  ही मिल जाना है

रेखा जोशी