Friday 29 September 2017

Happy Dussehra


रावण रहता हर गली,सीता दुखी अपार
राम आज आओ यहां ,कर  रावण संहार

रेखा जोशी

Thursday 28 September 2017

मुक्तक


ज़िन्दगी  देती  रहे दुख  दर्द  जब इंसान को
बेचता  यूं  ही  नहीं   है  आदमी  ईमान   को
भूख से  देखा  तड़पते आदमी को जब यहां
रख दिया इंसान ने फिर ताक पर सम्मान को

रेखा जोशी

Wednesday 27 September 2017

विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएं


हर साल
जलाते रावण हम
क्यों मनाते खुशियां
उसे जला कर
पूर्ण ज्ञानी शिव भक्त
था रावण
लेकिन
मरता नहीं वह कभी
अमृत नाभि में है उसके अभी
बार बार जी उठता वह
मानते उसे प्रतीक बुराई का
लेकिन
नहीं मिटा पाते 
बुराई अपने भीतर की
जलाना है रावण
तो
आओ मिटाएं बुराई
जला कर अपने
अंतस का रावण

रेखा जोशी

बेरोज़गारी

बेरोज़गारी

एम काम की डिग्री हासिल करने के बाद सुधीर को आशा थी कि उसके दिन बदल जायेंगे ,एक अच्छी सी नौकरी मिल ही जाएगी,मां बाप ,पत्नी निशा  और अपने बच्चों की जिम्मेदारी वह अच्छी तरह निभा सकेगा ।वह एक के बाद एक इंटरव्यू देता रहा लेकिन केवल निराशा ही हाथ लगी ।दिन प्रतिदिन  वह अवसाद में  डूबता चला गया ,हालत यहां तक पहुंच गए कि उसने  आत्महत्या करने की ठान ली ।निशा उसकी परेशानी समझ रही थी ,उसने हिम्मत नहीं हारी और "स्टार्ट अप" शुरू करने के लिए लोन ले लिया और घर में ही पापड़ और आचार बनाने का काम शुरू कर दिया ,अपने पति के साथ मिल कर उसे केवलअवसाद से बाहर ही  नहीं निकला बल्कि उसकी बेरोज़गारी को अंगूठा दिखा दिया।

रेखा जोशी

Tuesday 26 September 2017

प्यार किया है हमने तुमसे


दिल हमारा दुखाया न करो
नज़रें  पिया  चुराया न करो
प्यार  किया  है हमने तुमसे
तुम  हमें यूं सताया  न करो

रेखा जोशी

मिथ्या है यह बन्धन सारे तोड़ जाना इक दिन


बहुत सोये जीवन भर अब तो जाओ तुम जाग
जीवन अपना  ऐसे   जियो   लगे  न कोई दाग
मिथ्या है यह बन्धन सारे तोड़  जाना इक दिन
करते  रहना  सतकर्म  तुम  ह्रदय में धर विराग

रेखा जोशी 

Monday 25 September 2017

संस्मरण

तीन घंटे तीन घटनाएं (संस्मरण)

वैसे तो मै ऐसी बातों को मानती नहीं हूं,लेकिन हाल ही में मेरे साथ कुछ अजीब सी घटनाएं हुई,22 सितम्बर 2017 को मै झेलम एक्सप्रेस से पठानकोट जा रही थी ,सुबह  होने को थी कि अचानक मेरी नींद खुली,समय देखने के लिए पर्स से मोबाईल निकालने को बंद आंखों से पर्स खोजने लगी तो पर्स नदारद ,जल्दी से उठ कर पूरा बिस्तर झाड़ दिया लेकिन पर्स वहां होता तो मिलता ,वह तो चोरी हो चुका था,मैने जोर जोर से शोर मचाना शुरू कर दियाऔर अपने कैबिन से बाहर की ओर भागी ,"मेरा पर्स चोरी हो गया,मेरा पर्स कोई उठा कर ले गया,"तभी देखा बाहर दो लड़के खड़े थे,मुझे देखते ही बोले ,"आंटी एक पर्स टायलट में तंगा हुआ है ,हम यही सोच रहे थे कि टी टी को सूचित कर देते है "।मैभाग कर टायलट में गई तो देखा कि मेरा पर्स खूंटी पर टंगा हुआ है ,जल्दी से उसे टटोला तो पाया कि कुछ रुपए जो बाहर की पाकेट में ऊपर के खर्च के रखे थे वाह गायब थे ,बाकी सारा सामान ज्यों का त्यों था ,वापिस अपनी सीट पर आईं तो वह दोनो लड़के गायब थे।मै खुश हो गई कि ज्यादा नुकसान नहीं हुआ ।

कैबिन बैठे सभी यात्री इस घटना पर चर्चा का ही रहे थे तभी खिड़की के परदे की राड मेरे सर पर गिरी लेकिन मुझे कोई चोट नहीं आई, बाते करते करते मेरे मुख से यह निकला ,"पता नहीं  आज का दिन कैसा निकला , बातें करते स्टेशन आ गया और मै गाड़ी से उतर गई ।

मुझे पठानकोट से नूरपुर अपने भाई के घर जाना था अपने वयोवृद्ध पापा को देखन मैने एक लड़के से पूछा की नूरपुर की बस कहां से मिलती है तो उसने कहा कि उसे भी उसी तरफ जाना है  ,यहां से रेलवे फाटक क्रास कर के बस मिल जाएगी ,मै उसके साथ चलने लगी ,लेकिन रेलवे फाटक वाला रास्ता बन्द था सो उसने कहा कि साइड से रेलवे लाइनस क्रास कर लेते है ,जैसे ही मै उस तरफ बढ़ी ,रास्ता पथरीला होने के कारण मेरा पांव किसी पत्थर पर  पड़ा मै अपना संतुलन खो  बैठी और गिर गई मेरे मुंह और घुटनों पर हलकी चोटें आईं लेकिन मेरा बायां पांव बुरी तरह से मुड़ गया था और पूरा सूज गया था जिसके कारण मै खड़ी भी नहीं हो पा रही थी ,उस लड़के ने मुझे उठाया और धीरे धीरे बस अड्डे ले गया, मुझे बस मेंबिठाया और नूरपुर मेरे भाई के पास छोड़ कर  आया । बस में बैठे  सब यात्री मुझे देख कर  अपनी अपनी राय दे रहे थे ,""बच गई  कोई भारी ग्रह आया था ,टल गया"। तीन घंटों में तीन घटनाएं ,क्या सचमुच यह किसी ग्रह की साज़िश थी या मात्र संयोग ?,इन घटनाओं ने मुझे भी आश्चर्यचकित कर दिया।

रेखा जोशी

Wednesday 20 September 2017

मत खेलो अब प्रकृति से मानव तुम


नीला   आसमान   मैला   हुआ   है
प्रदूषण   चहुं  ओर  फैला  हुआ  है
मत खेलो अब प्रकृति से मानव तुम
जल भी अब  यहां  कसैला हुआ है

रेखा जोशी

Sunday 17 September 2017

जादुई कलम

जादुई कलम ने
मेरी
कर दिया कमाल
लिखते ही
पूरे होने लगे
मेरे ख्वाब
रंगीन तितलियों सी
उड़ती रंग बिरंगी
अनेक ख्वाहिशें
मंडरा कर
सिमटती गई
कलम में मेरी
और
धीरे धीरे
महकाने लगी मेरा आंगन
पुष्पित उपवन
नभ पर विचरते पंछी
गाने लगे नवगीत
संग संग
और
खिल उठी मै भी
लिए हाथ में 
अपनी जादुई कलम

रेखा जोशी

Thursday 14 September 2017

मुक्तक


बीती रात कब  यह  खबर न हुई
तुम  न आये तो क्या सहर  न हुई
मिला न  साथ  तेरा  ज़िन्दगी   में
आओ तुम पास  वो पहर  न  हुई

रेखा जोशी

                                  

Wednesday 13 September 2017

आंचल  में  भरे  है  सुनहरी   रंग


आंचल  में  भरे  है  सुनहरी   रंग
रूप  देखा  वसुधा  का   हुई  दंग
स्वर्णिम  आभा है  बिखरी बिखरी
रंग  दे   बादल  को  तूलिका  संग

रेखा जोशी

ख्वाबों में तेरे सो गई आंखें


ख्वाबों में तेरे सो गई आँखे
तुझको सोचा तो खो गई आँखे
,
पाया जो तुमको जहान पा लिया
सपनो  में देखो खो गई आँखे
,
समाया  तेरी  निगाहों में प्यार
प्यार में पिया लो खो गई आँखे
,
सताती हमे अब  यादें तुम्हारी
यादों में अब तो खो गई आँखे
,
बिठाया तुमको पलकों पे  हमने
चाहत में अब जो खो गई आँखे

रेखा जोशी

Tuesday 12 September 2017

रूप मां का धर आये भगवान धरा पर

मां की आंखों में छिपा असीम प्यार पढ़ो
ममता  स्नेह   अनुराग  का  भंडार   पढ़ो
रूप मां  का  धर  आये भगवान धरा पर
समाया  हृदय   में   सारा    संसार   पढ़ो

रेखा जोशी

Monday 11 September 2017

ग़ज़ल


2122 2122 2122 212

काफिया  आ
रदीफ़  लेते कहीं

दर्द दिल का ज़िंदगी में हम बता देते नहीं  
नैन में जज़्बात अपने हम  छिपा लेते कहीं
.. 
ज़ख्म इस दिल के दिखायें हम किसे जानिब यहाँ
शाम होते ही सजन महफ़िल सजा लेते कहीं 
...
अब सुनायें हाल दिल का ज़िंदगी में हम किसे
टीस  उठती है जिगर में हम दबा लेते कहीं
.....
तोड़ कर दिल को हमारे तुम सदा आबाद हो
दिल हमारे को सजन समझा बुझा लेते कहीँ
....
 रात दिन तड़पे यहाँ पर ज़िंदगी तेरे लिये
काश हम फिर ज़िंदगी तुमको मना लेते कहीँ

रेखा जोशी

कितने ईमानदार है हम?

कितने ईमानदार है हम ?इस प्रश्न से मै दुविधा में पड़ गई ,वह इसलिए क्योकि अब ईमानदार शब्द पूर्ण तत्त्व न हो कर तुलनात्मक हो चुका है कुछ दिन पहले मेरी एक सहेली वंदना के पति का बैग आफिस से घर आते समय कहीं खो गया ,उसमे कुछ जरूरी कागज़ात ,लाइसेंस और करीब दो हजार रूपये थे ,बेचारे अपने जरूरी कागज़ात के लिए बहुत परेशान थे |दो दिन बाद उनके  घर के बाहर बाग़ में उन्हें अपना बैग दिखाई पड़ा ,उन्होंने उसे जल्दी से उठाया और खोल कर देखा तो केवल रूपये गायब थे बाकी सब कुछ यथावत उस  बैग में वैसा ही था ,उनकी नजर में चोर तुलनात्मक रूप से ईमानदार था ,रूपये गए तो गए कम से कम बाकी सब कुछ तो उन्हें मिल ही गया ,नही तो उन्हें उन कागज़ात की वजह से काफी परेशानी उठानी पड़ती|

आज भी समाज में ऐसे लोगों की कमी नही है जिसके दम पर सच्चाई टिकी हुई है | वंदना अपनी नन्ही सी बेटी रीमा की ऊँगली थामे जब बाज़ार जा रही थी तभी उसे रास्ते में चलते चलते एक रूपये का सिक्का जमीन पर पड़ा हुआ मिल गया,उसकी बेटी रीमा ने  झट से उसे उठा कर ख़ुशी से उछलते हुए  वंदना से कहा ,''अहा,मम्मी मै तो इस रूपये से टाफी लूंगी,आज तो मज़ा ही आ गया ''| अपनी बेटी के हाथ में सिक्का देख वंदना उसे समझाते हुए बोली  ,''लेकिन बेटा यह सिक्का तो तुम्हारा नही है,किसी का इस रास्ते पर चलते हुए गिर गया होगा  ,ऐसा करते है हम  मंदिर चलते है और इसे भगवान जी के चरणों में चढ़ा देते है ,यही ठीक रहे गा ,है न मेरी प्यारी बिटिया ।

'वंदना ने अपनी बेटी को  ईमानदारी का पाठ तो पढ़ा इस देश में ईमानदारी और नैतिकता जैसे शब्द खोखले,  निरर्थक और अर्थहीन हो चुके है,एक तरफ तो हम अपने बच्चों से  ईमानदारी ,सदाचार और नैतिक मूल्यों की बाते करते है और दूसरी तरफ जब उन्हें समाज में पनप रही अनैतिकता और भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है तब  हमारे बच्चे ,इस देश के भविष्य निर्माता टूट कर बिखर जाते है ,अपने परिवार  से मिले आदर्श संस्कार उन्हें अपनी ही जिंदगी में आगे बढ़ कर समाज एवं राष्ट्र हित के लिए कार्य करने में मुश्किलें पैदा कर देते है  और कुछ लोग सारी जिंदगी घुट घुट कर जीते है | 

हमारे देश में हजारों , लाखों युवक और युवतिया बेईमानी ,अनैतिकता ,घूसखोरी के चलते क्रुद्ध ,दुखी और अवसादग्रस्त हो रहे है ,लेकिन क्या नैतिकता के रास्ते पर चल ईमानदारी से जीवन यापन करना पाप है ?

  रेखा जोशी

Sunday 10 September 2017

आज तेरी याद हमें फिर आईं है

आज तेरी याद हमें फिर आईं है
सपनों में महफ़िल हमने सजाई है
,
दिल ओ जान से हमने चाहा उनको
मिली हमें तो उनसे रुसवाई है
,
हमने सदा साथ तेरा है निभाया
न करना कभी हमसे बेवफ़ाई है
,
तड़पना है हमें तो प्यार में तेरे
मिली प्यार में हमको तो तन्हाई है
,
आदत है तेरी हमें तड़पाने की
दे दी हमको उम्र भर की जुदाई है

रेखा जोशी

Friday 8 September 2017

अमृतपान

मंद्रांचल पर्वत पर
नाग वसूकी लिपटा कर
सुरों और असुरों के बीच
था हुआ क्षीर सागर का मंथन
छिडी  दोनों में जंग
रत्नों का भंडार मिला
आया शिव के हिस्से हलाहल
अंत में निकला अमृत रस
पाने की थी  होड़ दोनों में
बैठे असुर लगाये  घात
किया विष्णु ने असुरों से छल
तुम डाल डाल हम पात पात
रूप मोहिनी का धर
दे  दी उनको मात
कराया असुरों को रूपरस  पान
देवताओं को कराया अमृत पान

रेखा जोशी

Thursday 7 September 2017

यमुना के तट पर मनमोहन गोपाला

यमुना के तट पर मनमोहन गोपाला
गोकुल में कान्हा संग गेंद खेलत ग्वाला

खेलत गेंद मोहन नटखट नंदलाला
थी आगे चली गेंद पीछे भागत ग्वाला
..
छवि नाग की देख गेंद फेंक यमुना में
फिर यमुना के पानी में कूदत गोपाला
..
जा पहुँचे पाताल मनमोहन कन्हैया
था जहाँ पे भयंकर नाग सोवत कालिया
..
था हुआ घमासान तभी जल के भीतर
नाग कालिया ने ज़हरीली भरत फुंकार
..
काला हुआ जल कान्हा श्याम कहलाये
मर्दन कर कालिया का गेंद आवत लाये
..
बँसी की मधुर धुन पर फिर हुआ चमत्कार
कृष्ण प्रेम की जयकार से गूँजत संसार

रेखा जोशी

खुशी हो या गम जियेंगे मरेंगे हम सदा साथ साथ

संग  संग  रहेंगे  सदा अब  यह  कहानी हमारी है
तोता-मैना   बहुत   सुने अब   तेरी -मेरी  बारी है
,
खुशी हो या गम जियेंगे मरेंगे हम सदा साथ साथ
हमारे कदमों तले अब साजन यह दुनिया सारी है
,
राहें कभी भी न जुदा हो हमारी जीवन में प्रियतम
सूरज की तपिश मिले या घटा घिरे कारी कारी है
,
साथ साथ अब हम दोनों चले मिलाकर  कदम से कदम
बहका बहका मौसम  कुहुके कोयलिया हर डारी है
,
गुंजित भंवरे तितली मुस्कुराती फूल खिले उपवन
साथ हमें पिया का मिला महकने लगी फुलवारी है

रेखा जोशी

दोहे

दोहे

नभ पर बादल गरजते ,घटा घिरी घनघोर ।
रास रचाये दामिनीे  ,मचा  रही  है शोर ॥
,
आँचल लहराती  हवा ,ठंडी पड़े फुहार ।
उड़ती जाये चुनरिया ,बरखा की बौछार ||
,
सावन बरसा झूम के ,भीगा तन मन आज ।
पेड़ों पर झूले पड़े ,बजे मधुर है साज़ ॥
,              
भीगा सा मौसम यहाँ  ,भीगी सी है रात ।
भीगे से अरमान है ,आई है बरसात ॥
      
कुहुक रही कोयल यहां ,अँबुआ की हर डार।
हरियाली छाई रही,है चहुँ ओर बहार।।

रेखा जोशी

कर लो सबसे तुम अब प्यार


कर लो सबसे तुम अब प्यार
जीवन अपना लो संवार
,
सेवा कर ले बन कर दास
होगा प्रभु का फिर दीदार
,
मिलता उनको है भगवान
तोड़ें नफरत की दीवार
,
हम को रहती तेरी आस
कर दो मेरी नैया पार
,
छोड़ो मत तुम प्रभु का हाथ
करते पूजा बारम्बार

रेखा जोशी

Wednesday 6 September 2017

जाम ए ज़िन्दगी तो पीना है यारों


जाम ए ज़िन्दगी तो पीना है यारों
हमने  सदियों  कहां जीना है यारों
,
इबादत करें खुदा की मिली ज़िन्दगी
मानो  यह रब का  मदीना है यारों
,
साज बजाओ ज़िन्दगी में प्यार भरा
ज़िन्दगी मधुर  स्वर वीणा है यारों
,
भर लो दामन में अपने खुशियां यहां
ज़िन्दगी अनमोल नगीना है यारों
,
न जाने कब छोड़ दें यह संसार हम
पर्दा  मौत  का  तो झीना है यारों

रेखा जोशी

Tuesday 5 September 2017

मुक्तक


देख  उन्हें  नयन  हमारे  खिल  जाते है
जीवन  के  हसीं पल हमें  मिल जाते है
संग संग चले मिला कर कदम से कदम
मचलते अरमान जब मिल दिल जाते है

रेखा  जोशी

Friday 1 September 2017

प्रभु को तू कर के याद


प्रभु को तू करके याद
कर ले ज़िन्दगीआबाद
बाबाओं  के चक्कर में
मत कर ज़िन्दगी बर्बाद

रेखा जोशी