Friday 31 October 2014

तुम ही तुम हो


मेरे  गीत   के सुर  में  बसे   तुम ही  तुम  हो
ज़िंदगी  की  सुर लय  में बसे  तुम ही तुम हो
तुम   ही   तो  पार  लगाते  हो  बेड़ा  सब  का
इस धरा की  कण कण में बसे तुम ही तुम हो 
रेखा जोशी   

तुम ही तुम समाये हो मेरे मन मंदिर में


जब से  मेरे नैनो ने तुमको  देखा   है 
हर इंसान से बस प्रेम करना सीखा है 
तुम ही तुम समाये हो मेरे मन मंदिर में 
दिल की किताब में नाम बस तेरा लिखा है 

रेखा जोशी 

गीतिका

गीतिका

झूला झुलाये हिचकोले पवन के
जियरा  धड़काये  हिचकोले पवन के
.
आई बरसात यह संग लाये खुशियाँ 
उड़ाये चुनरियाँ हिचकोले पवन के
..
रिमझिम रिमझिम बरसे घटा सावन की
पड़े फुहार संग हिचकोले पवन के
..
चहुँ ओर बगिया में छाई हरियाली
नाचत  मोर संग हिचकोले पवन के
..
बादलो की ओट से निकला है चाँद
शर्माए  चांदनी हिचकोले पवन के

रेखा जोशी

चाह कर तुम को सजन हम यहाँ रोते रहे


दर्द दिल का जो सनम अब न जाने क्या करें 
प्यार  को  जब तुम  हमारे न माने  क्या करें 
चाह  कर  तुम को  सजन  हम  यहाँ रोते रहे 
तुम   बनाते  ही   रहे  सौ   बहाने   क्या करें 


रेखा जोशी 

Thursday 30 October 2014

क्षणिका

क्षणिका

यादों के समंदर
में
उठ रहा
है  बवण्डर
डूब रहा मन
उसमे
उथल पुथल
हो रही
लहर दर लहर
उमड़ती
भावनाओं की
फूट पड़ी
नयनों से
अश्रुधारा बन कर

रेखा जोशी

शक्तिपुंज


शक्तिपुंज
दिवाकर ने
जब खोले नयन
हुआ प्रकाशित
जग सारा
जंगल
हुआ हरा भरा
अरुण की रश्मियों से 
दी दस्तक जब धूप ने
फूल खिले बगिया में
उतरते रहे दिन
धूप की घाटियों में 
बिखरती रही खुशियाँ
सूरज के आगमन से
और जीवन
खेलता मचलता रहा 
धरा के आँचल में

रेखा जोशी 

तांका

तांका

ठंडी हवायें
कांपे तन  बदन
धूप सुहाये
है भाये गर्म चाय
मोज़े  पाँव गर्माये

रेखा जोशी 

लूट कर सब तुम हमारे चले गये



जाने  अब  कहाँ   नज़ारे   चले  गये
जीने   के   सभी    सहारे   चले  गये
.
ढल गया दिन भी और छुप गया चाँद
जाने    कहाँ  सब   सितारे  चले  गये
.
मालूम  था  तुम   ना  आओ  गे  यहाँ
फिर  भी  यूँ हि हम   पुकारे  चले गये
दर्द  इस  कदर   भी  सताये  गा  हमें 
अरमान  सब  सँग   तुम्हारे चले गये 
तेरे  बिन   सूना    हुआ  घर   हमारा 
लूट   कर   सब  तुम हमारे चले गये 

रेखा जोशी 

Wednesday 29 October 2014

शादी का लड्डू

बजने लगती
मधुर शहनाई
कानों में
और
सीने में उछलने लगते
प्यारे से कुछ हसीं अरमान
और
फिर खिल उठता
चेहरा
आ जाती मधुर सी
होंठो पर मुस्कान
मीठा सा
वो प्यारा लड्डू शादी का
नाम आते ही
खाने को बेचैन
हो जाता दिल
बाँवरा
लेकिन जो खा चुके
वह शादी का लड्डू
है पछताते
काश न खाया होता
उन्होंने
वह लड्डू
देखने में मीठा
लेकिन………………?
रेखा जोशी

समेट लो खुशिया जो बिखरी आस पास तुम्हारे है

मत तोड़ना दिल उनका जो रहते करीब हमारे है 
तोड़ देना दिलों के बीच जब आयें दीवारे है 
पल पल करवट ले रही है यह देखो समय की धारा 
समेट लो खुशिया जो बिखरी आस पास तुम्हारे है 

रेखा जोशी

लेकिन हमारे मन में है विश्वास इतना



दिल लगा कर पत्थर से हम जाते है भूल 
खाते  अक्सर  चोट   जैसे  चुभते   है शूल 
लेकिन हमारे  मन में है  विश्वास  इतना 
पाषाण  चट्टानों  में खिला  सकते  है फूल 

 रेखा जोशी 

बजने लगती मधुर शहनाई कानों में

बजने लगती
मधुर शहनाई
कानों में
और
सीने में उछलने लगते
प्यारे से कुछ हसीं अरमान
और
फिर खिल उठता
चेहरा
आ जाती मधुर सी
होंठो पर मुस्कान
मीठा सा
वो प्यारा लड्डू शादी का
नाम आते ही
खाने को बेचैन
हो जाता  दिल
बाँवरा
लेकिन जो खा चुके
वह शादी का लड्डू
है  पछताते
काश न खाया होता
उन्होंने
वह लड्डू
देखने में मीठा
लेकिन………………?

रेखा जोशी

Tuesday 28 October 2014

''दिखावे की ज़िंदगी ''

साहिल एक पढ़ा लिखा होनहार नवयुवक था ,उसकी अच्छी खासी गुज़ारे लायक नौकरी भी लग गई थी ,माँ बाप ने सही समय जान कर एक अच्छे परिवार की लडकी सुमि से उसकी शादी कर दी| सुमि एक खुले दिलवाली बिंदास लड़की थी ,जो अपनी ज़िन्दगी में सब कुछ जल्दी जल्दी हासिल कर लेना चाहती थी ,एक सुंदर सा सब सुख सुविधाओं से भरपूर बढ़िया आरामदायक घर ,खूबसूरत फर्नीचर और एक महंगी लम्बी सी कार ,जिसमें बैठ कर वह साहिल के साथ दूर लम्बी सैर पर जा सके ,वहीं साहिल के अपने भी कुछ सपने थे ,इस तकनीकी युग में एक से एक बढ़ कर मोबाईल फोन,लैपटॉप और न जाने क्या क्या आकर्षक गैजेट्स मार्किट में लोन पर आसानी से उपलब्ध थे ,जिसकी कीमत धीरे धीरे आसन किश्तों में चुकता हो जाती थी ,दोनों पति पत्नी जिंदगी का भरपूर लुत्फ़ उठाना चाहते थे

अन्य लोगों की देखा देखी उपरी चमक दमक  से चकाचौंध करने वाली रंग बिरंगी दुनिया आज के युवावर्ग को अपनी ओर ऐसे आकर्षित करती है जैसे लोहे को चुम्बक अपनी तरफ खींच लेती है | पैसा भी लोन पर आसानी से मिल जाता है ,बस एक अच्छी सी सोसाईटी देख कर साहिल ने बैंक से लोन ले कर फ्लैट खरीद लिया,उसके बाद तो दोनों ने आव देखा न ताव धड़ाधड़ खरीदारी करनी शुरू कर दी ,क्रेडिट कार्ड पर पैसा खर्च करना कितना आसान था ,कार्ड न हुआ जैसे कोई जादू की छड़ी उनके हाथ लग गई ,एक के बाद एक नई नई वस्तुओं से उनका घर भरने लगा , और जब पूरा विवरण पत्र हाथ में आया तो दोनों के होश उड़ गए ,अपने फायदे के लिए क्रेडिट कार्ड चलाने वाली कम्पनियों के पास इसका भी हल है ,बस कम से कम पैसा चुकता करते जाओ और मूल धनराशी के साथ साथ ब्याज पर ब्याज का क़र्ज़ भी अपने सिर के उपर चढ़ाते जाओ और अंत में पैसा चुकता करने के चक्कर में अपना घर बाहर सब कुछ बेच बाच कर कंगाल हो जाओ |

सही ढंग से क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल न करने के कारण आज न जाने कितने लोग क़र्ज़ के बोझ तले झूठी शानोशौकत भरी ज़िन्दगी जी रहे है हजारो नौजवान क़र्ज़ को वापिस लौटाने की चिंता पाले हुए हर रोज़ अवसाद के शिकार हो रहे है ,आत्महत्या तक कर रहें है | झूठी चकाचौंध भरी जिंदगी जीने की चाह उन्हें एक ऐसे भंवर में पकड़ लेती है जिससे निकलना उनके लिए बहुत ही मुश्किल हो जाता है |

|इस झूठी चकाचौंध के भंवर में फंस रही कई जिंदगियां अंत में थक हार कर डूब ही जाती है और यही हुआ साहिल और सुमि के साथ क्रेडिट कार्ड के क़र्ज़ को चुकाते चुकाते उनके घर के सामान के साथ साथ उनका फ्लैट भी बिक गया और वह एक बार फिर से किराए के मकान में लौट कर आ गए |अगर देखा जाए तो वक्त बेवक्त क्रेडिट कार्ड बहुत काम आता है ,इसलिए समझदारी यही है कि क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल तो करो परन्तु सोच समझ कर कहीं ऐसा न हो साहिल और सुमि की तरह इस झूठी चकाचौंधके भंवर में डूबते ही जाओ और फिर कभी बाहर निकल ही न पाओ |

रेखा जोशी 

जब धोखा और फरेब हो उसकी फितरत में

अब  दिल  में  हमारे  कोई अरमान  नही है
प्यार मुहब्बत निभाना भी आसान  नही है
जब धोखा और फरेब हो उसकी फितरत में
ऐसे   दगाबाज  का  कोई  सम्मान  नही  है

रेखा जोशी

Monday 27 October 2014

कहलाता मूर्ख साधू यहाँ

है देखा
दुःख ही दुःख
जीवन में
जलता है हृदय
जब अपमानित
होता  सत्य यहाँ
और सम्मानित
होता असत्य यहाँ
कहलाता
मूर्ख साधू यहाँ
और बुद्धिमान
कपटी यहाँ
कठिन
होता जीना यहाँ
है शूल सा
कुछ चुभता दिल में
जब मनाती
बुराई खुशियाँ यहाँ
और
रोती अच्छाई  यहॉं  

रेखा जोशी

लिखी जा चुकी है किताब ए ज़िंदगी तो पहले ही

अंजान सफर ज़िंदगी का हम सब तय कर रहे है 
दरअसल हम सब भुगत अपने कर्मों का फल रहे है 
लिखी जा चुकी है किताब ए ज़िंदगी तो पहले ही 
उस किताब के पन्ने ही तो पलट बस  हम  रहे है 

रेखा जोशी

प्रेम से फैले उजाला मिटे अँधेरा

काली रात थी चहुँ  ओर गहन अँधेरा 
दिनकर के आगमन से होता  सवेरा 
आओ मिल इक दीप प्रेम का रोशन करें 
प्रेम  से  फैले  उजाला  मिटे  अँधेरा 

रेखा जोशी 

Sunday 26 October 2014

खिली खिली सी धूप है उसकी प्यारी मुस्कुराहट

बेटी बन इक नन्ही परी मेरे अंगना में आई 
महक उठा घर जब से वो मेरे अंगना में आई 
खिली खिली सी धूप है उसकी प्यारी मुस्कुराहट 
भर दिया उजाला जब से मेरे अंगना में आई 

रेखा जोशी

गज़ब मुहब्बत निभा रहे तुम

नज़र मिला कर झुका रहे तुम
झुकी निगाहें उठा रहे तुम 
अभी अभी तो सनम मिले हो
गज़ब मुहब्बत निभा रहे तुम
रेखा जोशी

महके गा चमन फिर से

टूट कर
बिखर गए सब पत्ते
छोड़ अपना अस्तिव
ऐसी चली हवा
ले उड़ी संग उन्हें
देख रहा
असहाय सा पेड़
है इंतज़ार
नव बहार का
फिर
होगा फुटाव
नव कोपलों का
फिर से
हरी भरी शाखाओं
पर
खिलें गे फूल
महके गा
चमन फिर से

रेखा जोशी 

Saturday 25 October 2014

मचलती लहरों का लहराना

मदमस्त
उछलना
ऊपर नीचे
लहराना मचलती
लहरों का

शोर मचाती
बढ़ रही
बेताबी से
मेरी ओर
और
भिगो कर
मेरा
तन बदन
फिर लौट
जाना
लहरों का

बस गया
दिल में मेरे
वह मधुर
संगीत
लहरों का

सागर के 
स्वर्णिम सीने पर 
झूल रही नैया मेरी 
गुनगुना रहे लब मेरे 
है झूम रहा
पगला मन 
लेता हिचकोले 
लहरों सा

रेखा जोशी




न जाने क्यों बिन तुम्हारे सूनी सूनी सी है हर डगर


न  जाने क्यों  बिन तुम्हारे सूनी सूनी  सी है हर डगर 
यूं  तो चलते हुये  कट ही जाये  गा ज़िन्दगी का सफर 
मिल भी  जायें गे  हजारों  साथी यूँ  ही  चलते  चलते 
मजा तो तबहै जब सफर में साथ हो इक हसीं हमसफर

 रेखा जोशी 

हाल ऐ दिल हमारा उनसे न कहा गया

हाल ऐ दिल हमारा उनसे न कहा गया
आँखों में  है आँसू  लब से न कहा गया 
अरमान  दिल  के रहे दिल में ही हमारे 
इज़हार ऐ मुहब्बत हमसे  न कहा गया 

रेखा जोशी 

Friday 24 October 2014

ज़िन्दगी यूँ ही सजन बरबाद कर दी जब


खूब पाया प्यार का हमने सिला तुमसे
चाह कर दिल से सनम अब क्या मिला तुमसे
ज़िन्दगी यूँ ही सजन बरबाद  कर दी जब
मुहब्बत में अब  बलम कैसा गिला तुमसे

रेखा जोशी



सभी मित्रों को गोवर्धन पूजा की हार्दिक शुभकामनायें

सभी मित्रों को गोवर्धन पूजा की हार्दिक शुभकामनायें

हे श्याम साँवरे  गौ मात के रखवाले तुम ।
गौ रक्षा कर गोवर्धन पर्वत उठाने वाले तुम ।
दया करो दया करो सुनो फिर मूक पुकार तुम ।
कटती बुचड़खाने में आ कर करो उद्धार  तुम ।।

हे श्याम साँवरे खाने को मिले  घास  नही ।
खा रही कूड़ा करकट कोई उसके पास नही ।
डोलती है  लावारिस कोई उनका वास नही।
दीनदयाला अब तेरे सिवा कोई आस नही ।।

हे  श्याम साँवरे सुनो  पुकार कामधेनु की।
संवारों तुम ज़िन्दगी माँ तुल्य कामधेनु की।
जर्जर  काया  बह रहे  आँसू  तुम्हे  पुकारें ।
याद आयें धुन मधुर बंसी की तुम्हे पुकारें ।।

रेखा जोशी 

Thursday 23 October 2014

हे माता शैलपुत्री

रचना हूँ मै
रचयिता हो तुम 
हे माता शैलपुत्री 
.....................
पूजते तुम्हे 
जगत की जननी
गौरजा दुर्गा 
....................
नव दिन है 
नवरात्री पूजन
कन्या की पूजा
..................
कन्या भ्रूण की
किसलिए आखिर
घोंट दी सांस
.................
बिना आवाज़
बेरहम समाज
मार दी गई
.................
रचना हूँ मै
रचयिता हो तुम 
हे माता शैलपुत्री 

रेखा जोशी 

न छोड़ना कभी साथ इक दूजे का

हो
जाती है
आँखे नम
मुहब्ब्त की
मज़ार पर
छलकता
है प्यार
हवाओं में
यहाँ पर

जाने वाले
राही
लेता जा
सन्देशा
उन प्रेमियों
के नाम
न छोड़ना
कभी साथ
इक दूजे का
सुबह हो
याँ शाम
रहना साथ
सुख हो
याँ दुःख
न छोड़ना
कभी हाथ
जीना साथ
और
मरना साथ

रेखा जोशी

Wednesday 22 October 2014

आओ मनायें आज दिवाली


दीप जलाये सबने है रोशन जहान
सज रही सब गलियाँ सजा अब हिन्दुस्तान 
एक दीप तो जलाओ अपने अंतस में 
फैैले  उजियारा  करे दीप्त हर स्थान 

रेखा जोशी 

Monday 20 October 2014

सभी  मित्रों को  दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें 


रहे माँ लक्ष्मी का वास सदा आपके घर में

वास्तु टिप्स

१इस बात का सदा ध्यान रखें कि आपके घर के किसी भी नल से पानी बहना याँ  टपकना नही चाहिए वह इसलिए कि पानी का बहने  याँ टपकने से आपकी जेब हल्की हो  सकती है ,अपने घर के सभी नल ठीक करवा ले |
२ अगर आपका व्यवसाय होटल याँ भोजन ,भोजन सामग्री के साथ जुड़ा हुआ है तो वहां का प्रवेश दुवार का मुख दक्षिण दिशा में होना चाहिए |
३ अगर आपका व्यवसाय मनोरंजन याँ खेलकूद से जुड़ा हुआ है तो वहां के मुख्य प्रवेश दुवार का मुख पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए
४ अन्य व्यवसायों के लिए प्रवेश दुवार का मुख उत्तर दिशा में शुभ माना जाता है |
५ अपने घर का कीमती समान ओर तिन्जोरी ऐसी अलमारी में रखे जो सदा पश्चिम याँ दक्षिण की दीवार की तरफ लगी होनी चाहिए ताकि उसके दरवाज़े खुले वह पूर्व याँ उत्तर दिशा की तरफ खुले

रेखा  जोशी 

क्षणिका [लिखे थे हमने भी खत तुम्हे]


है याद
लिखे थे हमने भी
खत तुम्हे
महकते हुए
खतों में
थी बयाँ दास्तान
हमारे प्यार की
देखते ही उन्हें
है याद आ  जाते
बीते हुए
वोह मधुर क्षण
जो फिर से
महका जाते
है हमारी
ज़िंदगी

रेखा जोशी


क्षणिका [पटक दिया क्यों हमे ज़मीं पर ]


दिया था 
दिल 
हाथों में तुम्हारे 
उड़ चले 
हम 
तितली से 
दूर 
आकाश में 
 बस 
तुम्हारे सहारे 
पटक दिया क्यों
हमे ज़मीं पर 
न जाने क्यों 
तुमने दी सज़ा हमे 
कर दिया 
दिलो जिगर का खून मेरे  
दिल रो रहा 
और 
बरस रहे 
नयन मेरे 

रेखा जोशी 

Sunday 19 October 2014

मंजिलें मिलें गी आगे बहुत मिले गी तुम को नयी राह

माना गम की रात लम्बी है सो जा तू चादर को तान 
उषा किरण सुबह को जब आये  बदल जाये समय की धार  
थक कर कहीं तुम रुक न जाना न समझना जीवन को भार 
मंजिलें मिलें गी आगे बहुत मिले गी तुम को नयी राह 

रेखा जोशी 

माँ तुझे प्रणाम

वही चिरपरिचित
पैरों की थाप
छनकती पायल
नेह भरी मुस्कान
चेहरे पर
भरी दोपहरी
नीर भरी मटकी
सिर पर
समर्पित जीवन
सुबह से शाम
वही पगडंडियां
मुड़ मुड़ आती
उसी द्वार
माँ तुझे प्रणाम
माँ तुझे प्रणाम

रेखा जोशी 

Friday 17 October 2014

छोड़ देंगे पीछे यहाँ तूफान हम

कर  लेंगे   पूरे  अपने  अरमान हम
छू लेंगे इक दिन यहाँ आसमान हम
बदल देंगे हम रुख आँधियों का  भी  
छोड़   देंगे  पीछे   यहाँ  तूफान  हम 

रेखा जोशी 





लम्हा लम्हा फिसल रही हाथों से ज़िंदगी

जीवन के संग कदम बढ़ाता चला जाऊँगा 
रस्म ऐ उल्फ़त सदा निभाता चला जाऊँगा 
लम्हा लम्हा फिसल रही हाथों से ज़िंदगी 
खुशियाँ हर ओर सदा लुटाता चला जाऊँगा

रेखा जोशी

आओ छुपा लूँ दिल में जिसे भिगोतें है तेरे आँसू

आँखों  से जब  मोतियों  से  बहते   है  तेरे आँसू
टीस  उठती  सीने में जब  टपकते   है  तेरे आँसू
बहुत  रुलाया  तुम्हे ज़ालिम  जमाने के तानो ने
आओ छुपा लूँ दिल में जिसे भिगोतें है तेरे आँसू

रेखा जोशी

शायद मेरी आयु पूर्ण हो चुकी

शायद मेरी आयु पूर्ण हो चुकी


देहरादून की सुंदर घाटी में स्थित प्राचीन टपकेश्वर मन्दिर , शांत वातावरण और उस पावन स्थल के पीछे कल कल बहती अविरल पवित्र जल धारा, भगवान आशुतोष के इस निवास स्थल पर दूर दूर से ,आस्था और विशवास  लिए ,पूजा अर्चना करने हजारो लाखों श्रदालु हर  रोज़ अपना शीश उस परमेश्वर के आगे झुकाते है और मै इस पवित्र स्थान के द्वार पर सदियों से मूक खड़ा हर आने जाने वाले की श्रधा को नमन कर रहा हूँ |लगभग पांच सौ साल से साक्षी बना मै वटवृक्ष इसी स्थान पर ज्यों का त्यों खड़ा हूँ |आज मेरी शाखाओं से लटकती ,इस धरती को नमन करती हुई ,मेरी लम्बी लम्बी जटायें जो समय के साथ साथ मेरा स्वरूप बदल रहीं है , मुझे  अपना बचपन याद दिला रही है ,उस बीते  हुए समय की,जब इस पवित्र भूमि का सीना चीर कर ,मै अंकुरित हुआ था ,अनगिनत आंधी तूफानों ,जेष्ठ आषाढ़ की तपती गर्मियों और  सर्दियों की लम्बी ठंडी सुनसान रातों की  सर्द हवाओं के थपेड़े सहते सहते  मै आज भी वहीँ पर,चारो ओर ,अपनी लम्बी जड़ों के सहारे ,टहनियां फैलाये हर आने जाने वाले भक्तजन को ,चाहे तपती धूप हो यां बारिश हो ,कैसा भी मौसम हो ,उनको अपनी घनी शाखाओं की  ठंडी छाया देता हुआ अटल सीना ताने खड़ा हूँ |मैने माथे पर बिंदिया लगाये ,सजी धजी उन  सुहागनों की पायल की झंकार के साथ वह हर एक  पल जिया था जिन्होंने अपने सुहाग की दीर्घ आयु की कामना करते हुए भोले बाबा के इस मंदिरमें  नतमस्तक होकर भगवान शंकर का आशीर्वाद प्राप्त किया था और आज भी पायल की सुरीली धुन पर अनगिनत सुंदर सजीले चेहरे मेरे सामने अपने आंचल में श्र्धाकुसुम लिए छम छम  करती  'ॐ नमः शिवाय 'के उच्चारण  से इस शांत स्थल को गुंजित कर मंदिर के भीतर जाने के लिए एक एक सीढ़ी उतरते हुए उस पभु ,जो देवों के देव महादेव है उनके चरणों में अर्पित कर अपनी सारी मनोकामनाएं पूर्ण करने का आशीर्वाद लेते देख रहा हूँ |कोई नयी नवेली दुल्हन अपने पति संग ,अपनी होने वाली संतान की आस लिए और कोई अपने प्रियतम को पाने की आस लिए ,हर कोई अपने मन में कल्याण स्वरूप भगवान विश्वनाथ की  छवि को संजोये उस प्राचीन मंदिर के पावन शिवलिंग पर टपकती बूंद बूंद जल के साथ दूध और जल अर्पित कर विशवास और आस्था को सजीव होते हुए मै सदियों से देख रहा हूँ |आज जब मै बूढ़ा हो रहा हूँ ,एक एक कर मेरी शाखाओं के हरेभरे पत्ते दूर हवा में उड़ने लगे है, और वह दिन दूर नही जब मै धीरे धीरे सिर्फ लकड़ी का एक ठूठ बन कर रह जाऊं गा और पता नही कब तक मे अपनी चारों तरफ  फैलती जड़ों के सहारे जीवित रह सकूँ गा   ,शायद अब मेरी आयु पूरी हो चली है लेकिन मुझे इस बात का गर्व है कि मैने अपनी जिंदगी  के पांच सौ वर्ष  इस पवित्र ,पावन प्राचीन शिवालय कि चौखट पर एक प्रहरी बन कर जिए है ,मेरा रोम रोम आभारी है उस परमपिता का जिन्होंने मुझे सदियों तक अपनी दया दृष्टि में रखा ,मुझे पूर्ण विश्वास  है कि सबका कल्याण करने वाले भोलेनाथ बाबा एक बार फिर से मुझे अपने चरणों में स्थान देने की असीम कृपा करेंगे |

रेखा जोशी 

उगल दिया लावा उसने

क्षणिका

भरी धरा
पापियों से
मन ने भरा 
आक्रोश
धधक रही भीतर
ज्वाला
सहती रही
अवनी
असहनीय पीड़ा
अंतस की
उगल दिया लावा
उसने
फूट गई
जवालामुखी बन
रेखा जोशी 


Thursday 16 October 2014

गुनगुनाने लगी है बहारें


पल पल हम तुम्हे  है निहारें
संग  संग   तुम  लाये  बहारें
..........................................
चूमे   मेरा   चाँदनी   आँचल 
सुहानी पवन बह रही शीतल
मन में मचलती हलचल मेरे
दिल   दीवाना  तुम्हे   पुकारे
..........................................
तुम जो मिले हमसे पल दो पल
महकने लगे गुलाब खिल खिल
अँगना   महकाती    है    हवायें
गुनगुनाने    लगी     है    बहारें
..........................................
पल पल हम तुमको है निहारें
आये जो  तुम संग आई बहारें

रेखा जोशी

खुदा बचाये इस नामुराद मुहब्बत से हमे

न चाहते हुये भी हमे उनसे प्यार हो गया 
लब खुले भी नही आँखों से इज़हार हो गया 
खुदा बचाये इस नामुराद मुहब्बत से हमे
न जाने कैसे दिल फिर इसका शिकार हो गया

रेखा जोशी

मुस्कुराती चांदनी

रात अँधेरी 
आसमान में 
आज
तन्हा है चाँद 
उसकी
चांदनी बिखर कर 
छिटक गई 
दूर
उसे छोड़  अकेला
नभ पर 
भर दिया उसने 
आंचल धरा का 
पर
तन्हा हो कर भी 
नही है तन्हा 
चाँद 
विचर रहा आसमान में 
ले कर 
संग संग अपने
मुस्कुराती 
चांदनी 

रेखा जोशी 

Wednesday 15 October 2014

सीख लिया चलना काँटों भरी राह पर हमने

क्या  पाया ज़िन्दगी  में तुम्हे चाह कर हमने 
दुख ही दुख दिये यहाँ हमे इस राह पर तुमने
ज़ख्म जो दिये हमे बन चुके है नासूर अब वो
सीख लिया  चलना  काँटों भरी राह पर हमने

रेखा जोशी 

मिल गई हैं मुझे सभी खुशियाँ


प्यार के ये सुमन खिले जब से
हाथ में हाथ सॅंग चले जब से
मिल गई हैं मुझे सभी खुशियाँ
ज़िंदगी में सजन मिले जब से 
.
रेखा जोशी 

रख विश्वास खुद पर

हुआ दुःख 
जब मुरझाये 
कुछ फूल बगिया के
लेकिन है आस 
खिलेंगे
फूल और भी 
मत हो उदास 
जीवन में 
रुक जाना नही
कहीं पर 
है और भी
दूर कई मंज़िलें
रख विश्वास 
खुद पर
है ज़िंदगी
तो मिले गी ख़ुशी
और भी


रेखा जोशी

न्याय की देते दुहाई

न किसी ने
उन लोगों को
उस घर में आते देखा
न किसी ने
उन लोगों को
वहां से जाते देखा
रात ही में
उस लडकी ने
कर आत्महत्या ली
सुबह सवेरे
कोहराम मचा
रो रहे थे माँ बाप
हुई इकट्ठी
भीड़ वहां पर
आई पुलिस भी वहां
मीडिया भी
शोर मचा शहर में
आक्रोश था
गली गली में
सहानुभूति जताने
कुछ लोग वहां
शामिल थे भीड़ में
घडयाली आंसू लिए
भेड़िये थे
इंसान के रूप में
न्याय की देते दुहाई

रेखा जोशी 

Tuesday 14 October 2014

जीवन में भी हलचल रहती

लहरें   बढ़ती  लहरें   घटती
लहरें  उठती  लहरें   गिरती
सुख दुख  भी तो आते जाते
जीवन में भी हलचल रहती

रेखा जोशी

बहुत रोये इस जहान में उनकी खातिर


प्यार  में मुहब्बत का  इकरार होता है
प्यार  में  दर्द का भी  एहसास होता है
बहुत रोये इस जहान में उनकी खातिर
हमारे  लबो  पर  उनका नाम  होता है

रेखा जोशी 

Monday 13 October 2014

महात्मा गाँधी के सपनो का भारत

मर्यादा पुरुषोत्तम राम जिसकी गाथा 'रामायण ' भारत के कोने कोने में गाई और सुनी जाती है ,जिसकी हम भारतवासी पूजा करते है ऐसे राजा राम के राज्य की मिसाल भी दी जाती है ,जहाँ अमीर और गरीब में कोई भेदभाव नही रखा जाता था , हर किसी को यथोचित न्याय मिलता था ,उनके राज्य में कोई चोरी डकैती नही हुआ करती थी ,उनके राज्य में प्रजा सुख ,चैन और शांति से रहा करती थी ,ऐसा ही सपना हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इस देश के लिए देखा था ,लेकिन अफ़सोस वह पूरा नही हो पाया ,आज हर कोई पैसे के पीछे भाग रहा है ,चाहे वह नेता हो याँ कोई आम आदमी ,चाहे पैसा सफेद हो या काला ,अपना घर भरते चले जाओ । अमीर और गरीब का फासला दिन प्रतिदिन बढ़ता ही चला जा रहा है ।
रामायण में लिखा गया है कि जब ऋषि विश्वामित्र के आश्रम में असुरों ने उत्पात मचा रखा था तब ऋषि विश्वामित्र दोनों राजकुमारों राम और लक्ष्मण को अपने आश्रम असुरों का नाश करने के लिए ले गए थे ,तब दोनों भाई गुरु के पीछे पीछे अपने रथ और घोड़े पीछे छोड़ते हुए पद यात्रा करते हुए उनके आश्रम गए थे और राक्षसों का संहार कर वहां शांति स्थापित की थी | पद यात्रा का महत्व यह है कि जनसाधारण को करीब से देखना तथा उनकी समस्याओं का समावेश कर राज्य में सुख समृद्धि को स्थापित करना | महात्मा गांघी जी ने भी पदयात्रा करते हुए रास्ते में जन साधारण को सत्याग्रह का सन्देश देते हुए डांडी मार्च किया था । गांधी जी के अनुसार राजा को प्रजा के बीच जा कर उनके दुःख और दर्द को समझना चाहिए, कहने का तात्पर्य यह है कि महात्मा गाँधी के सपनो के भारत में राम राज्य की स्थापना तभी संभव हो सकती है जब हमारे नेता आम आदमी और गरीब की जिंदगी को करीब से देखे और उनकी समस्याओं को समझे और उन्हें सुलझा सकें ,लेकिन नही ,यहाँ ऐसा नही हो सकता , यह मात्र एक सुखद स्वप्न के अतिरिक्त कोई मायने नही रखता |
हमारे देश के हालात दिन प्रतिदिन बिगड़ते जा रहे है ,हमारी संस्कृति के मूल्य ,संस्कार सब पीछे छूटते जा रहे है ,लोग संवेदनशून्य होते जा रहे है ,औरतों की अस्मिता खतरे में साँसे ले रही है ,हमारे नेता नित नये विवादों के घेरे में उलझ रहे है ,कमरतोड़ महंगाई आम आदमी को रोटी से उपर कुछ सोचने नही दे रही और इस देश का युवावर्ग भ्रमित सा दिशाविहीन हो रहा है .मेरा ऐसा मानना है , भारतीय नारी अगर भावी पीढ़ी में अच्छे संस्कारों को प्रज्ज्वलित करें ,अपने बच्चो में देश भक्ति की भावना को प्रबल करते हुए राम राज्य के सुखद सपने को साकार करने की ओर एक छोटा सा कदम उठाये तो निश्चित ही एक दिन ऐसा आयेगा जब भारतीय नारी द्वारा आज का उठाया यह छोटा सा कदम हमारे देश को एक दिन बुलंदियों तक ले जाए गा |  
रेखा जोशी

Sunday 12 October 2014

वोह प्यारे ख़्वाब हमारे


इंद्रधनुषी रंगों से
सजाया  था हमने
महकता हुआ गुलशन
ख़्वाबों में अपने
गुलज़ार थी जिसमे
हमारी ज़िंदगी
दुनिया से दूर
मै और तुम
बाते किया करते
थे आँखों से अपनी
कुहकती थी कोयलिया भी
बगिया में हमारी
गाती थी वो भी
प्रेम तराने
टूट गए सब सपने
खुलते ही आँखे
बिखर गए सब रंग
और हम
भरते ही रह गए
ठंडी आहें
काश सच हो पाते
वोह प्यारे
ख़्वाब हमारे

रेखा जोशी

पर काँटों से हमने यहाँ कर ली यारी


जीवन के  पथ पर राही  मिलते  रहेंगे 
फूल भी  यहाँ  उपवन  में खिलते रहेंगे 
पर  काँटों से हमने यहाँ  कर ली  यारी 
दर्द   में   सबका   सहारा  बनते  रहेंगे 

रेखा जोशी 

Saturday 11 October 2014

हास्य रचना

जब
सुबह सुबह 
गर्मागर्म 
चाय का प्याला 
हमारी
प्यारी श्रीमती जी ने 
मुस्कुराते हुए
हमारे
हाथ में  थमाया
उनकी प्रेम भरी
आँखों  में
हमे
कुछ नज़र आया
तभी उन्होंने
हमारे हाथ में
बिजली का बिल
थमाया
देखते ही उसे
हमे ज़ोरों का
झटका आया
यह क्या
इतना ज्यादा बिल
कैसे आया
सारी सारी
रात आपनेश्रीमती जी
ए सी क्यों चलाया
जब न हो इस्तेमाल
तब पंखा बिजली
क्यों नही
बंद करवाया
महँगाई के आलम में
क्यों
हमारा
सर मुंडवाया

रेखा जोशी

Friday 10 October 2014

करवा चौथ पर्व की हार्दिक शुभकामनायें 

है उपवास 
सदा सुहागन हो 
करवा चौथ 
……… 
इंतजार है 
आसमान में चाँद 
हो लम्बी आयु 
………। 
मेहंदी रची
खनकती चूड़ियाँ
सिंदूरी मांग

रेखा जोशी

सभी मित्रों को करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनायें

सभी मित्रों को करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनायें

जीवन की राहों में ले हाथों में हाथ
साजन मेरे चल रहे हम अब साथ साथ

अधूरे  है हम  तुम बिन सुन साथी  मेरे
आओ जियें जीवन का हर पल साथ साथ

हर्षित हुआ  मन देख  मुस्कुराहट तेरी
खिलखिलाते रहें दोनों सदा  साथ साथ

आये कोई मुश्किल कभी जीवन पथ पर
सुलझा लेंगे  मिल कर दोनों साथ साथ

तुमसे बंधी हूँ मै  साथी यह मान ले
निभायें गे इस बंधन की हम साथ साथ

छोड़ न जाना तुम कभी राह में अकेले
अब जियेंगे और मरेंगे हम साथ साथ

रेखा जोशी

Wednesday 8 October 2014

शर्मीला चाँद

लो चाँद
उतर आया
मेरे अंगना
खेल रहा
आँख मिचोली
मेरे संग
है चांदनी रात
पिया मिलन
हाथों में हाथ
ओढ़े आँचल
हया का
खिड़की से
मुस्कुराया
वह 
शर्मीला चाँद

मै तोड़ दीवारें सीमा की सब

सुदूर   देश  से उड़   कर  आया  हूँ
संदेश  अमन   का    संग लाया हूँ
मै   तोड़   दीवारें   सीमा  की  सब
झोली  में  अब  प्यार भर लाया हूँ

रेखा जोशी 

आज महकता उपवन हम से

तुम और मै
दोनों
फूल एक उपवन के
सींचा और सँवारा
माली ने
एक समान हमे
आज
भरा जीवन हम में
आज
महकता  उपवन हम से
कल क्या होगा
मालूम नही
होंगे कहीं सज रहे
किसी के सुंदर केश में
या
बन गुलदस्ता
महकता होगा किसी का घर
या
प्रभु  के चरणो से लिपट
होगा जीवन सफल
या
रौंद दिये जायें गे
पांव तले किसी के
लेकिन
छोडो यह सब
आज
भरा जीवन हम में
आज
महकता  उपवन हम से

रेखा जोशी






Tuesday 7 October 2014

आ गये हम तो यहाँ परियों के देश में

बादलों  की  ओट से  झांकता है चाँद
पानी  की  लहरों  पे  लहराता है चाँद
आ गये हम तो यहाँ परियों के देश में
चांदनी  सागर  पे   बिखेरता  है चाँद

रेखा जोशी 

छज्जू का चौबारा

छज्जू का चौबारा

पड़ोस में कहीं बहुत ऊँची आवाज़ में ऍफ़ एम् रेडियो बज रहा था ”यह गलियाँ यह चौबारा यहाँ आना न दोबारा” गाना सुनते ही आनंद के मौसा जी परेशान हो गए ,”अरे भई कैसा अजीब सा गाना है ,हम कहीं भी जाए ,दुनिया के किसी भी कोने में जाए लेकिन आना तो वापिस अपने घर ही में होता है , हूँअ ,भला यह कोई बात हुई यहाँ आना न दोबारा ,अरे भाई अपने घर अंगना ना ही जाएँगे तो कहाँ जाएँगे |अब हमी को ले लो बबुआ ,देखो तो हफ्ता हुई गवा तोरे यहाँ पड़े हुए ,लेकिन अब हम वापिस अपने घर को जाएँ गे क्यों कि हमे अपने घर की बहुतो याद आ रही है ,अहा कितनी सान्ती थी अपनी उस छोटे से घर में |”यह कहते कहते आनंद के मौसा जी ने अपना सामान बांधना शुरू कर दिया |”अरे अरे यह क्या कर रहें है आप ,कहीं नही जाएँ गे ,आप की तबीयत ठीक नही चल रही और वहां तो आपकी देखभाल करने वाला भी कोई नही है  ,”कहते हुए आनंद ने उनका सामान खोल कर एक ओर रख दिया |
 मौसा जी चुपचाप कुर्सी पर बैठ गए ,”अब का बताये तुम्हे बबुआ ,हमार सारी जिन्दगी उह छोटे से घर में कट गई ,अब कहीं भी जावत है तो बस मन ही नाही लगत,पर अब इस बुढ़ापे की वजह से परेसान हुई गवे है ,ससुरा इस सरीर में ताकत ही न रही ,का करे कछु समझ न आवे,का है ,बहुत समझाया आनंद ने अपने बूढ़े मौसा जी को ,लेकिन वह तो टस से मस नही हुए अपनी जिद पर अड़े रहे और वापिस अपने गाँव चले गए |
मौसा जी तो चले गए लेकिन आनंद को उसके माता पिता की याद दिला गए ,|एक तो बुढ़ापा उपर से बीमारी ,दोनों यथासंभव एक दूसरे का ध्यान भी रखते थे परन्तु आनंद उन्हें भला कैसे तकलीफ में देख सकता था ,उन दोनों को वह जबरदस्ती शहर में अपने घर ले आया ,कुछ दिन तक तो सब ठीक चलता रहा ,फिर वह दोनों वापिस गाँव जाने की जिद करने लगे ,वह इसलिए कि उनका आनंद के यहाँ मन ही नही लगा ,आनंद और उनकी बहू सुबह सुबह काम पर चले जाते और शाम ढले घर वापिस आते ,हालाँकि बहू और बेटा दोनों उनका पूरा ध्यान रखते थे ,लेकिन वह दोनों भी जिद कर के वापिस अपने गाँव चले गए और एक दिन हृदय गति के रुक जाने से आनंद के पिता का स्वर्गवास हो गया |
हमारे बुज़ुर्ग क्यों नही छोड़ पाते उस स्थान का मोह जहां उन्होंने सारी उम्र बिताई होती है ,शायद इसलिए कि हम सब अपनी आदतों के गुलाम बन चुके है और अपने आशियाने से इस कदर जुड़ जाते है कि उसी स्थान पर ,.उसी स्थान पर ही क्यों हम अपने घर के उसी कोने में रहना चाहते है जहां हमे सबसे अधिक सुकून एवं शांति मिलती है ,चाहे हम पूरी दुनिया घूम ले लेकिन जो सुख हमे अपने घर में और घर के उस कोने में मिलता है,वह कहीं और मिल ही नही पाता,तभी तो कहते है ”जो सुख छज्जू दे चौबारे ओ न बलख न बुखारे ” |
रेखा जोशी 

अपनापन [लघु कथा ]

सूअर के बच्चे ,कितना बड़ा पेट है तुम्हारा ,अभी अभी तो खाना खाया था तुमने ,फिर से भूख लग गई तुम्हे ,पेट है याँ कुँआ , कभी भरता ही नही और यह क्या ,कितना गंद फैला रखा है तुमने पूरे घर में ,कौन साफ़ करेगा इसे , मै क्या सारा दिन घर में बस पोछा ही लगाती रहूँ गी ,और कोई कामधाम नही करना है मुझे,जब देखो भूख ही लगी रहती है |”एक ही सांस में सुमि ने अपने बेटे आदि को न जाने क्या क्या सुना दिया | आँखों में आँसू लिए डरते डरते आदि ने फिर से एक बार हिम्मत करके कहा ,”माँ सच में बहुत भूख लगी है ,कुछ खाने को दे दो न |” आदि की ओर देखते ही सुमि का गुस्सा तो बस सातवें आसमान पर पहुंच गया ,उसने आव देखा न ताव ,गुस्से में अपने दांत भीचते हुए, ,झूट से अपने पैर से चप्पल उतारी ओर आदि को जोर से दो चार लगा दी और वह बेचारा रोता हुआ सोफे के एक कोने में दुबक कर बैठ गया | ट्रिन ट्रिन ट्रिन तभी दरवाज़े की घंटी जोर से बज उठी ,सुमि ने दरवाज़ा खोला तो सामने उसकी सखी मीता खड़ी थी | मीता को देखते ही सुमि के चेहरे के भाव बदल गए ,बड़े प्यार से उसने मीता को सोफे पर बिठाया और वहाँ कोने में बैठे आदि की तरफ देख कर वह पुचकारते हुए आदि से बोली ,”अरे अरे मेरे प्यारे बेटे को भूख लगी है बताओ बच्चे तुम क्या खाओ गे ,मैगी बनाऊँ याँ सैंडविच खाओगे ,जो मेरा राजा बेटा खायेगा मै अपने बेटे के लिए वही बनाती हूँ ‘यह कहते हुए सुमि रसोईघर में चलने को हुई | उसके पीछे पीछे उसकी सहेली मीता भी चल दी ,”सुमि तुमने पराये बच्चे को कितनी जल्दी अपना लिया है ,सौतेला बेटा होते हुए भी तुम्हारे प्यार में कितना अपनापन है |”
रेखा जोशी

Monday 6 October 2014

हर साँस तुम्हे पुकारे चले आइये

छाई    सब    ओर    बहारें   चले   आइये
है     खूबसूरत     नज़ारे      चले   आइये
बस पल दो पल का  जीवन है यहाँ सनम
हर   साँस    तुम्हे    पुकारे    चले  आइये

रेखा जोशी 

मुस्कुरा दो अगर तुम

मुस्कुरा दो अगर तुम
काले अँधेरे
फिर सितारों में बदल जाएँ
मुस्कुरा दो अगर तुम
................................
मुस्कुरा दो अगर तुम
ये बूढ़े पतझर
नव बहारों में बदल जाएँ
मुस्कुरा दो अगर तुम
................................
मुस्कुरा दो अगर तुम
तूफ़ान भयानक
खुद किनारों में बदल जाएँ
मुस्कुरा दो अगर तुम
................................
मुस्कुरा दो अगर तुम
मायूसियां मेरी
 इंतजारों में बदल जाएँ
मुस्कुरा दो अगर तुम

[प्रो महेन्द्र जोशी ]

इंतज़ार में बैठी अपने साजन की

तस्वीर उनकी अपने दिल में बसा कर
नैनो  में अपने  लौ  दिये की  जला कर
इंतज़ार  में   बैठी  अपने   साजन   की
राह में उनके अपनी पलके  बिछा  कर

रेखा जोशी 

Sunday 5 October 2014

छूट गये कहीं थे जो कभी अपने

भागती दौड़ती
यह ज़िन्दगी
भीड़ ही भीड़ जहाँ देखा
हर कोई भाग रहा
मंज़िल कहाँ मालूम नही
है अंतहीन यह दौड़
इच्छाओं की
चाहतों और तृष्णाओं की
रूकती नही कभी
बस
है भागती जाती
भाग रहे सब
अपनी धुन में
परवाह नही
किसी को किसी की
है खो  गये कहीं
इस भागमभाग में
अनमोल रिश्ते नाते
छूट गये कहीं
थे जो कभी अपने

रेखा जोशी



दिया दर्द हमे प्यार ने तुम्हारे

बहुत समझाया मगर दिल ना माना
मुहब्बत  का  दुश्मन  बनता ज़माना
दिया   दर्द   हमे   प्यार   ने   तुम्हारे
दर्द  से  ही   अब   है  रिश्ता  निभाना

रेखा जोशी 

दौड़ रहां वह

दौड़ रहां वह
इस दुनिया में
अंतहीन दौड़
लेकिन तन्हा
पूरे करने उसे
सपने जो
देखे उसके पिता  ने
खरा उतरना है उसे
उम्मीदों पर अपनी माँ
पत्नी और बच्चों की
लेकिन अपने सपने
दफन है सीने में
उसके
थक कर हांफने लगा
लेकिन
वक्त नही है रुकने का
जीतनी है जंग
उसे ज़िंदगी की
क्योंकि
उसे प्यार है उन सबसे
अपने सपनो से भी
ज्यादा

रेखा जोशी

Saturday 4 October 2014

हसरत

दिल में यह हसरत थी कि कांधे पे उनके
रख के मै सर ,ढेर सी बाते करूँ ,बाते
जिसे सुन कर वह गायें,गुनगुनायें
बाते जिसे सुन वह हसें ,खिलखिलायें
बाते जिसे सुन प्यार से मुझे सह्लायें
तभी उन्होंने कहना शुरू किया और
मै मदहोश सी उन्हें सुनती रही
वह कहते रहे ,कहते रहे और मै
सुनती रही ,सुनती रही सुनती रही
दिन महीने साल गुजरते गए
अचानक मेरी नींद खुली और मेरी
वह ढेर सी बातें शूल सी चुभने लगी
उमड़ उमड़ कर लब पर मचलने लगी
समय ने दफना दिया जिन्हें  सीने में ही
हूक सी उठती अब इक कसक औ तडप भी
लाख कोशिश की होंठो ने भी खुलने की
जुबाँ तक ,वो ढ़ेर सी बाते आते आते थम गयी
होंठ हिले ,लब खुले ,लकिन मुहँ से निकली
सिर्फ इक आह ,हाँ ,सिर्फ इक आह

रेखा जोशी