Tuesday 31 May 2016

नम आँखों से हम उन को देखते है


नम आँखों से हम उन को देखते है 
जहाँ वह गये  उस पथ को देखते है 
आखिर वह आये  जीवन  में हमारे 
कभी उनको कभी खुद को देखते है 

रेखा जोशी 

नामुमकिन को मुमकिन अब कर दिया हमने



शीश  अपना  
प्रभु  तुम्हारे चरणो में
हमने अब  रख  दिया 
प्रेम का  प्याला  
लब पर अपने 
अब धर  दिया
पा  ली भक्ति असीम    
तुम्हारी अनुपम  कृपा से 
नहीं चाहिये कुछ और अब 
जीवन में  हमें 
मिल गया सब कुछ हमे 
पाया जो प्यार  तुम्हारा 
नामुमकिन को मुमकिन
अब कर दिया हमने

रेखा जोशी 

Monday 30 May 2016

इक कहानी मगर अनकही रह गई

बात दिल की हमारे  धरी रह गई 
इक कहानी मगर  अनकही रह गई 
… 
दिल मचलता हुआ कब कहाँ खो गया 
प्यास दिल की अधूरी अभी  रह गई 
… 
यूँ  चले क्यों गये छोड़ कर तुम हमे 
मै सफर में  अकेली खड़ी   रह गई 
 … 
अब न जाना  हमें तड़पा' कर तुम कभी 
ज़िंदगी में अधूरी   ख़ुशी रह गई 
… 
वार दी अब सजन प्यार पर ज़िंदगी 
प्यार बिन कुछ नही ज़िंदगी रह गई 

रेखा जोशी 

सफलता और शुभकामनाएं [पूर्व प्रकाशित रचना ]

सफलता और असफलता ज़िंदगी के दो पहलू है ,लेकिन सफलता की राह में कई बार असफलता से रू ब रू भी होना पड़ता है ,बल्कि असफलता वह सीढ़ी है जो सफलता पर जा कर खत्म होती है ,प्रसिद्ध कवि श्री हरिवंशराय बच्चन जी की जोशीली पंक्तिया किसी में में जोश और उत्साह भर सकती है |
असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
जी हाँ कोशिश करते रहना चाहिए लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है उसके लिए उस व्यक्ति को एक बार फिर से अपनी सारी ऊर्जा एकत्रित कर अपने आप को एक बार फिर से संघर्ष के लिए तैयार करना पड़ता है | ऐसा देखा गया है जब एक बार इंसान भीतर से टूट जाता है तो उसे अपने को उसी संघर्ष के लिए फिर से तैयार करना बहुत कठिन हो जाता है | हम सब जानते है कि किसी भी व्यक्ति की सफलता के पीछे रहती है उसकी अनथक लग्न ,भरपूर आत्मविश्वास और सफलता पाने का दृढ संकल्प ,चाहे कार्य कुछ भी हो छोटा याँ बड़ा ,सफलता की चाह ही उसे उस मुकाम तक पहुंचाती है जहाँ वह पहुंचना चाहता है ,लेकिन कई बार उस मुकाम तक पहुंचने के लिए उसे कई परेशानियों और अड़चनों का सामना करना पड़ता है जिससे प्राय: उसका आत्मविश्वास डगमगा जाता है और वह अपनी मज़िल तक नहीं पहुंच पाता बल्कि वह निराशा और अवसाद की स्थिति में पहुंच जाता है | ऐसी स्थिति में आवश्यकता होती है उसके मनोबल और आत्मविश्वास को मज़बूत करने और जोश भरने की |
सदियों से हमारे देश की यह परम्परा रही है ,जब भी कोई राजा युद्ध के लिए जाता था उसकी रानी उसके माथे पर तिलक लगा कर ईश्वर से उसके लिए विजय हासिल करने की प्रार्थना किया करती थी .उसी परम्परा के चलते , जब अक्सर जब हम कोई परीक्षा देने जाते है तो हमारी माँ याँ दादी हमे दही खिला कर परीक्षा देने भेजती है , या हम अपने घर से किसी यात्रा के लिए निकलते है तो चाहे चीनी के दो दाने ही हो हमारी माँ ,दादी कुछ मीठा खिला कर ही हमे घर से विदा करती है ,तो प्रश्न यह उठता है की क्या मात्र दही खाने से हम परीक्षा में उत्तीर्ण हो सकते है ,याँ फिर चीनी के दो दाने खाने से हमारी यात्रा सफल हो जाती है ? मगर इस परम्परा के पीछे छुपी हुई है हमारे प्रियजनों के मन में हमारी सफलता के लिए शुभकामनायें .उस परमपिता से हमारी इच्छा पूर्ति की प्रार्थना ,जो हमे बल दे कर हमारे मनोबल को ऊँचा कर हमारे भीतर आत्मविश्वास पैदा करती है और इसी आत्मविश्वास के चलते हम ज़िंदगी में सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ पाते है
हमारी संस्कृति ने हमे सदा अपने माता पिता और बड़े बुज़ुर्गों का आदर करना सिखाया है ,उनके आशीर्वाद से हम ज़िंदगी में बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना आसानी से कर पाते है ,तो क्यों न अपनी संस्कृति की इस धरोहर का मान रखे हुए अपने बच्चों को भी इसका महत्व सिखायें और अपने बड़े बुज़ुर्गों की शुभकामनाएं और आशीर्वाद लेते हुए ज़िंदगी में सफलता की सीढियाँ चढ़ते जायें |

रेखा जोशी 

Sunday 29 May 2016

नारी शोषण

नारी सशक्तिकरण पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है और बहुत कुछ लिखा जा रहा है ,लेकिन नारी की स्थिति को लेकर आज भी कई सवाल है जिनका उत्तर समाज से अपेक्षित है ,इसमें कोई दो राय नही है कि आज की नारी घर की दहलीज से बाहर निकल कर शिक्षित हो रही है ,उच्च शिक्षा प्राप्त कर पुरुष के साथ कन्धे से कन्धा मिला कर सफलता की सीढियां चढ़ती जा रही है l आर्थिक रूप से अब वह पुरुष पर निर्भर नही है बल्कि उसकी सहयोगी बन अपनी गृहस्थी की गाड़ी को सुचारू रूप से चला रही है l बेटा और बेटी में भेद न करते हुए अपने परिवार को न्योजित करना सीख रही है ,लेकिन अभी भी वह समाज में अपने अस्तित्व और अस्मिता के लिए संघर्षरत है ,कई बार न चाहते हुए भी उसे जिंदगी के साथ समझौता करना पड़ता है| 
आज नारी की सुरक्षा को लेकर हर कोई चिंतित है  ,बलात्कार हो या यौन शोषण इससे पीड़ित न जाने कितनी युवतियां आये दिन आत्महत्या कर लेती है और मालूम नही कितनी महिलायें अपने तन ,मन और आत्मा की पीड़ा को अपने अंदर समेटे सारी जिंदगी अपमानित सी घुट घुट कर काट लेती है क्या सिर्फ इसलिए कि ईश्वर ने उसे पुरुष से कम शारीरिक बल प्रदान किया है |यह तो जंगल राज हो गया जिसकी लाठी उसकी भैंस ,जो अधिक बलशाली है वह निर्बल को तंग कर सकता है यातनाएं दे सकता है ,धिक्कार है ऐसी मानसिकता लिए हुए पुरुषों पर ,धिक्कार है ऐसे समाज पर जहां मनुष्य नही जंगली जानवर रहतें है |जब भी कोई बच्चा चाहे लड़की हो या लड़का इस धरती पर जन्म लेता है तब उनकी माँ को उन्हें जन्म देते समय एक सी पीड़ा होती है ,लेकिन ईश्वर ने जहां औरत को माँ बनने का अधिकार दिया है वहीं पुरुष को शारीरिक बल प्रदान किया ।
महिला और पुरुष दोनों ही इस समाज के समान रूप से जरूरी अंग हैं लेकिन हमारे धर्म में तो नारी का स्थान सर्वोतम रखा गया है , नवरात्रे हो या दुर्गा पूजा ,नारी सशक्तिकरण तो हमारे धर्म का आधार है । अर्द्धनारीश्वर की पूजा का अर्थ यही दर्शाता है कि ईश्वर भी नारी के बिना आधा है ,अधूरा है। । इस पुरुष प्रधान समाज में भी आज की नारी अपनी एक अलग पहचान बनाने में संघर्षरत है । जहाँ बेबस ,बेचारी अबला नारी आज सबला बन हर क्षेत्र में पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही है वहीं अपने ही परिवार में उसे आज भी यथा योग्य स्थान नहीं मिल पाया ,कभी माँ बन कभी बेटी तो कभी पत्नी या बहन हर रिश्ते को बखूबी निभाते हुए भी वह आज भी वही बेबस बेचारी अबला नारी ही है । शिव और शक्ति के स्वरूप पति पत्नी सृष्टि का सृजन करते है फिर नारी को क्यों मजबूर और असहाय समझा जाता है ।
अब समय आ गया है सदियों से चली आ रही मानसिकता को बदलने का और सही मायने में नारी को शोषण से मुक्त कर उसे पूरा सम्मान और समानता का अधिकार दिलाने का ,ऐसा कौन सा क्षेत्र है जहां नारी पुरुष से पीछे रही हो एक अच्छी गृहिणी का कर्तव्य निभाते हुए वह पुरुष के समान आज दुनिया के हर क्षेत्र में ऊँचाइयों को छू रही है ,क्या वह पुरुष के समान सम्मान की हकदार नही है ?तब क्यूँ उसे समाज में दूसरा दर्जा दिया जाता है ?केवल इसलिए कि पुरुष अपने शरीरिक बल के कारण बलशाली हो गया और नारी निर्बल।
हमे तो गर्व होना चाहिए कि इस देश की धरती पर लक्ष्मीबाई जैसी कई वीरांगनाओं ने जन्म लिया है ,वक्त आने पर जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति भी दी है और जीजाबाई जैसी कई माताएं भी हुई है जिन्होंने कई जाबाजों को जन्म दे कर देश पर मर मिटने की शिक्षा भी दी है ,नारी की सुरक्षा और सम्मान ही एक स्वस्थ समाज और मजबूत राष्ट्र का निर्माण कर सकती है ,जब भी कोई बच्चा जन्म लेता है तो वह माँ ही है जो उसका प्रथम गुरु बनती है ,अगर इस समाज में नारी असुरक्षित होगी तो हमारी आने वाली पीढियां भी सदा असुरक्षा के घेरे में ही रहेंगी और राष्ट्र का तो फिर भगवान् ही मालिक होगा |
रेखा जोशी 

आओ जी लें ज़िंदगी प्यार से

मिल कर रहें यहाँ सभी प्यार से
ख़ुशी  से   करें   बंदगी  प्यार से
गुणा  भाग  नहीं  जीवन  हमारा
आओ  जी  लें  ज़िंदगी  प्यार से

रेखा जोशी






Friday 27 May 2016

ओढ़ कर लाज का आँचल मुस्कुराया वह शर्मीला चाँद

बन प्रियतम  धरा पर उतर आया वह शर्मीला चाँद 
ओढ़ कर लाज का  आँचल मुस्कुराया वह शर्मीला चाँद 
खेल रहा चन्दा आँख मिचोली चाँदनी लिये संग मेरे 
बादलों के झरोखों से खिलखिलाया वह शर्मीला चाँद 

 रेखा जोशी 

Thursday 26 May 2016

आये न मोरे पिया

रिम झिम रिम झिम
पानी बरसे
गरजत बरसत
मेघा काले
आये न मोरे पिया
..
टप टप टिप टिप
बरस रही
बूंदे बारिश की
पिया गये परदेस सखी री
मोहे छोड़ अकेला
सूना अंगना बिन पिया
जले जिया
रिम झिम रिम झिम
पानी बरसे
गरजत बरसत
मेघा काले
आये न मोरे पिया
...
इक बरसे बदरिया
दूजे मोरे नयना
बिजुरी चमके
धड़के जिया घर आजा
मोरे सावरियाँ
रिम झिम रिम झिम
पानी बरसे
गरजत बरसत
मेघा काले
आये न मोरे पिया
...
चारो ओऱ
जलथल जलथल
तरसे प्यासे नयना
पीर न जाने
इस दिल की
धड़के मोरा जिया
रिम झिम रिम झिम
पानी बरसे
गरजत बरसत
मेघा काले
आये न मोरे पिया

रेखा जोशी

ज़िंदगी को मुस्कुराना आ गया

प्यार में दिल को लुभाना आ गया
आज फिर मौसम सुहाना आ गया 
...
तुम हमें जो मिल गये दुनिया मिली 
आज नैनों को लजाना आ गया 
...
रूठ  कर हमसे  न जाना तुम कहीं 
प्यार  से  साजन  मनाना आ गया 
.... 
मिल गई हमको ख़ुशी आये पिया 
ज़िंदगी  को  मुस्कुराना  आ गया 
.... 
तुम हमें जो मिल गये दुनिया मिली 
आज हमको खिलखिलाना आ गया 

रेखा जोशी 

Wednesday 25 May 2016

बचपन

हँसते आँसू
भोले नयन कोतूहल भरे
घूर रहे
बचपन मेरा
धुले कपड़े मेरे
..
जानता हूँ मै
पगडंडियों के रास्ते
उड़ती धूल से
बिखरते बाल मटमैले कपड़े
भागते बच्चे धूल उड़ाते

तपती दोपहरी
गुड़ियों से खेलना
लड़ना झगड़ना
रूठना  मनाना
याद आते वह हसीं पल
...
छुप गया वह चेहरा
अजनबी सा दूर कहीं
खो गया अपरिचित सा
मेरी पलकों में
तैर रहे
भोले नयन कोतूहल भरे
घूर रहे
बचपन मेरा
धुले कपड़े मेरे

यादों में मेरी
चिपका रहा चेहरा
वही
भोले नयन कोतूहल भरे
घूर रहे
बचपन मेरा
धुले कपड़े मेरे
.
रेखा जोशी

Tuesday 24 May 2016

झुकी झुकी डालियाँ फूलों की मन भाये

पीले   पीले  फूलों  से  लदे   अमलतास
गर्म मौसम में बसंत का मिले एहसास
झुकी झुकी डालियाँ फूलों की मन भाये
सजे  उपवन  ऐसे  जैसे  खिले मधुमास

रेखा जोशी 

माता पिता का सम्मान आजकल बढ़ाती है बेटियाँ

बेटों से बढ़ कर आजकल नाम  कमाती  हैं बेटियाँ
घर  अंगना हम सभी का आज महकाती हैं बेटियाँ
कभी डाक़्टर टीचर पायलट बन नाम करती रोशन
माता पिता का सम्मान आजकल बढ़ाती है बेटियाँ

 रेखा जोशी

आन बान पर देश की लाखों हुए शहीद

भारत सीमा पर खड़े तन कर वीर जवान 
आँच न  आये देश  पर  हो  जाते कुरबान 
आन  बान पर देश की  लाखों हुए  शहीद
मर मिटते वतन पर वह देकर अपने प्राण 

रेखा जोशी 

निखरा निखरा रूप सलोना कंचन सा तन

काली कुन्तल घनी ज़ुल्फ़ें लहराती जायें
घिर घिर आई चेहरे पर काली घटायें
निखरा निखरा रूप सलोना कंचन सा तन
देख तुम्हे चाँद की चाँदनी भी शर्माये
रेखा जोशी

Monday 23 May 2016

रात दिन तड़पे यहाँ पर ज़िंदगी तेरे लिये

दर्द दिल का ज़िंदगी में हम दबा लेते कहीं 
नैन में जज़्बात अपने हम  छिपा लेते कहीं
.. 
ज़ख्म इस दिल के दिखायें हम किसे जानिब यहाँ
शाम होते ही सजन महफ़िल सजा लेते कहीं 
....
अब सुनायें हाल दिल का ज़िंदगी में हम किसे
टीस  उठती है जिगर में हम  मिटा लेते कहीं
.....
तोड़ कर दिल को हमारे तुम सदा आबाद हो
दिल हमारे को सजन समझा बुझा लेते कहीँ
....
 रात दिन तड़पे यहाँ पर ज़िंदगी तेरे लिये
काश हम फिर ज़िंदगी तुमको मना लेते कहीँ

रेखा जोशी 

किसे अब चाहिये दौलत जहाँ में

हमारे आज अँगना चाँद आया
बहारें प्यार खुशियाँ साथ लाया
...
मिली है ज़िंदगी जब प्यार में अब
हमें तब  प्यार का अंदाज़ भाया
....
खिली बगिया यहाँ आई बहारें
हवा ने भी हमें झूला झुलाया
...
चलो हम  डूब जायें प्यार में अब
मिले जब  आप तो  संसार पाया 
.... 
किसे अब चाहिये दौलत जहाँ में 
हमें तुमसे यहाँ रब ने मिलाया  

रेखा जोशी 

Sunday 22 May 2016

है जीना यहाँ हमें खुद के लिये

 होता नहीं अपना कोई ज़िंदगी में 
लेकिन होती है अपनी यह ज़िंदगी 
क्यों रोते  रहें हम  दूसरों के  लिये 
है  जीना  यहाँ  हमें  खुद  के लिये 

रेखा जोशी 

चाह तेरी इस कदर रुला गई

दिल हमारा अब बहलने से रहा 
चाँद  आँगन  में उतरने  से रहा 
चाह  तेरी  इस  कदर  रुला गई 
नीर   नैनों   से  बहने    से रहा 

रेखा जोशी 

साधू के भेष में शैतान

मिताली ट्रेन चलने के करीब आधा   घंटा पहले ही रेलवे प्लेटफार्म पर पहुँच  गई थी । प्लेटफार्म पर बने बेंच पर बैठ कर वह  गाडी के आने का इंतज़ार करने लगी । छत पर चल रहे पंखे की गर्म हवा के थपेड़े उसे परेशान कर रहे थे ।  उसने अपने  बैग  से  पानी की बोतल निकाली और पानी  पी कर ठंडी साँस ली । उसकी निगाहें प्लेटफार्म पर इधर उधर दौड़ रही थी ,तभी  उसके सर के  ऊपर से दो तीन  कबूतर उड़ कर चले गए लेकिन जैसे ही उसने नीचे देखा तो एक कबूतर  ज़मीन पर फड़फड़ाता हुआ चल रहा था ,शायद उसे कुछ चोट लगी  थी ,वह शायद अपने साथियों से बिछुड़ गया था और उसके पीछे  पीछे भगवे वस्त्र पहने हुए ,काँधे पर भगवे ही रंग का एक बड़ा सा झोला लटकाये हुए एक साधू   जैसा दिखने वाला व्यक्ति चल रहा था । उसकी निगाहें बेचारे निरीह खग पर थी , लग रहा था वह व्यक्ति उस खग को पकड़ने  चक़्कर में था और वह  प्राणी अपने बचाव में एक बेंच के नीचे जा   गया ,लेकिन वह उस  क्रूर नज़रों से  नहीं पाया ,आख़िर कर उस व्यक्ति ने उस खग को  दबोच  ही लिया । उसे पकड़ कर वह प्लेटफार्म के बाहर निकल गया लेकिन मिताली के कोमल  मन में उथल पुथल मचा गया । वह साधू  के भेष में  शैतान से  कम नहीं था,क्या करेगा उस खग का ,शायद उस निरीह खग  को मार कर खा  जाये गा ,तभी गाडी की छुक छुक ने उसकी विचारधारा को भंग   कर दिया । उसकी गाडी प्लेटफार्म  पर आ चुकी थी । मिताली ने बैग उठाया और  गाडी के दरवाज़े की ओर बढ़ गई ।

रेखा जोशी 

मिलेगी मंज़िल तुम्हे देर सवेर

राहें  कठिन  हो  चाहे चलता  चल
लक्ष्य  पाने  की खातिर बढ़ता चल
मिलेगी  मंज़िल  तुम्हे   देर   सवेर
उजाला कर बन दीपक जलता चल

रेखा जोशी 

Saturday 21 May 2016

यशोदा मैया वारी जाये

 यशोदा मैया वारी जाये
गोपियों संग रास रचाये  बंसी अधर लगाये
मोर पँख पीतांबर सोहे  मुरली मधुर  बजाये
ग्वालों संग खेलत खेलें कालिया नाग भगाये
गोपियों को वह  सतायें राधा को मोहन भाये
बरखा  से गोकुल  बचाये गोवर्धन को  उठाये
माखनचोर  नंदकिशोर  मैया  बलिहारी जाये
धन्य धन्य यशोदा मैया ब्रहमांड दरस दिखाये

रेखा जोशी


न मिलने दिया ज़माने ने हमे

माना कि प्यार निस्वार्थ तुम्हारा
था माँगा  हमने तो   हाथ तुम्हारा
न   मिलने  दिया  ज़माने  ने हमे
न पाया हमने कभी साथ तुम्हारा

रेखा जोशी 

Friday 20 May 2016

देती दुहाई सूखी धरा

देती दुहाई सूखी धरा
करती रही पुकार
आसमाँ पर सूरज फिर भी
रहा बरसता अँगार
सूख गया अब रोम रोम
खिच गई लकीरें तन पर
तरसे जल को प्यासी धरती
सबका हुआ बुरा हाल
है प्यासा तन मन
प्यासी सबकी काया
क्षीण हुआ सबका श्वास
सूख गया है जन जीवन
सूख गया संसार
बाँध डोर से खींच
उमड़ घुमड़ ले आऊं
आसमान के बदरा काले
होगा जलथल चहुँ ओर फिर से
जन्म जन्म की प्यासी धरा पे
नाचेंगे मोर फिर से
हरी भरी धरा का फिर से
लहरायें गा रोम रोम
बरसेंगी अमृत की बूदें नभ से
होगा धरा पर नव सृजन
नव जीवन से
अंतरघट तक प्यासी धरा
फिर गीत ख़ुशी के गायेगी
हरियाली चहुँ ओर छा जायेगी
हरियाली चहुँ ओर छा जायेगी



रेखा जोशी

दीवाना दिल अब तुम्हे बुलाये

सुंदर    नजारे     ठंडी    हवाये
है  चंचल  नैना  शोख    अदायें
चले आओ साजन तुम भी यहाँ
दीवाना  दिल अब  तुम्हे बुलाये

रेखा जोशी 

नहीं है चाह दौलत की हमे अब

सजन हम प्यार में तुम को पुकारे  
हमें  अब  ज़िंदगी  तुम  दो  सहारे 
नहीं  है  चाह  दौलत  की हमे अब  
कभी  तो  पास  तुम  आओ हमारे 


रेखा जोशी 

Thursday 19 May 2016

आज तो हद से गुज़रने की तमन्ना की है


आप को  अपना बनाने की तमन्ना की है
आज तो  हद से गुज़रने  की तमन्ना की है
...
खिल गई बगिया बहारें जो चमन में आई
गुल खिलें  दिल ने महकने की तमन्ना की है
दिल हमारे की यहाँ धड़कन लगी है बढ़ने
क्या करें दिल ने मचलने की तमन्ना की है
देखते ही आपको यह क्या हुआ साजन अब
खुद इधर दिल ने बहकने की तमन्ना की है
लो शर्म से अब सनम आँखे झुका ली हमने
नैन में अपने बसाने की तमन्ना की है

रेखा जोशी 

घर आजा तू मेरे सनम

गीत 
मुखड़ा --मात्रा भार --15 
अंतरा ---मात्रा भार --15 

रात  चाँदनी  शीतल पवन
घर  आजा  तू  मेरे  सनम

तुम्हे  बुलाये  ठंडी हवाये 
आँचल मेरा उड़  उड़  जाये 
शीतल पवन अगन लगाये
घर  आजा तू   मेरे  सनम

सूने नैना तुम  बिन सजन
राह  निहारे  पागल  नयन
अब तो तू आ भी जा बलम
घर  आजा  तू   मेरे  सनम

रात  चाँदनी   शीतल पवन
घर  आजा  तू   मेरे  सनम

रेखा जोशी 

Wednesday 18 May 2016

मौत के साये में

कहते है जिंदगी जिंदादिली का नाम है मुर्दा दिल क्या ख़ाक जीते है ,जी हाँ जिंदा दिल इंसान तो भरपूर जिंदगी का मज़ा लेते हुए उसे जीते है लेकिन वह लोग जिन्हें अपने सामने केवल मृत्यु ही नजर आती है वह कैसे अपने जीवन का एक एक पल सामने खड़ी मौत को देख कर जीतें है |हर क्षण करीब आ रही मौत की उस घड़ी का वह अहसास किसी को भी भयभीत कर सकता है | मेरी मुलाकात कई ऐसे बुजुर्गों से हुई है जो अपनी जिंदगी असुरक्षा से घिरी हुई , सिर्फ मौत की इंतजार में गुज़ार रहें है,कुछ लोग तो ऐसे है जिनका हर पल हर क्षण मौत से साक्षात्कार होता है |ऐसे असंख्य लोग है जो किसी न किसी गंभीर या लाइलाज रोग से ग्रस्त हो कर पल पल रेंग रही ज़िन्दगी के दिन काटने पर मजबूर है |

ऐसे ही कैंसर से पीड़ित एक सज्जन से मेरी हाल ही में मुलाकात हुई जिनका कुछ महीने पहले राजीव गाँधी अस्पताल में इलाज चल रहा था |उनकी तबियत कुछ ज्यादा ही खराब होने पर डाक्टर ने उन्हें आई सी यू में दाखिल कर दिया था ,वहां उनके साथ तीन और मरीज़ भी आई सी यू में थे ,उसी रात की बात है कि वहां उन सज्जन के पास वाले बिस्तर पर एक कैंसर से पीड़ित मरीज़ की मौत हो गई जो उनके भीतर तक एक ठंडी सी मृत्यु की सिहरन पैदा कर गई ,अभी वह उस मौत की सोच से उभरे भी न थे कि अगली रात एक दूसरे बिस्तर वाले सज्जन पुरुष भी परलोक सिधार गए ,और तीसरी रात तीसरा मरीज भी भगवान को प्यारा हो गया |एक के बाद एक लगातार तीन दिनों में उनके सामने उसी कमरे में हुयी तीन तीन मौतों ने उन्हें अंदर से झकझोर कर रख दिया और वह चौथी रात मृत्यु से भयभीत अकेले बिस्तर पर करवटें बदलते हुए पूरी रात जागते रहे ,हर क्षण यही सोचते हुए कि शायद वह रात उनकी जिंदगी की आखिरी रात न बन जाए |मौत को इतने करीब से देखने के बाद वह हर पल असुरक्षित रहने लगे है और मौत के भय ने उन्हें रात दिन चिंतित कर रखा है|

हम सब जानते है ,मृत्यु एक शाश्वत सत्य है और हम सब धीरे धीरे उसकी ओर बढ़ रहें है| किसी की ओर मृत्यु तेज़ी से बढ़ रही है तो कोई मृत्यु की ओर बढ़ रहा है ,एक न एक दिन हम सबको इस दुनिया से जाना ही है फिर भी जिस किसी का भी मृत्यु से साक्षात्कार होता है वह इस शाश्वत सत्य से भयभीत हो उठता है वह मरना नही चाहता परन्तु उसके चाहने से तो कुछ हो नही सकता फिर वह क्यों भयभीत हो जाता है ?शायद उनके द्वारा जाने अनजाने किये गये पाप कर्म ही उसके डर का कारण होते है यां सदा के लिए अपनों से बिछड़ने का गम उन्हें डराता है यां फिर अज्ञात से वह भयभीत है |उनके डर का कारण चाहे कुछ भी हो लेकिन एक न एक दिन इस दुनिया को छोड़ कर सब ने जाना ही है ,फिर विस्मय इस बात पर होता है कि क्यों इंसान इतने उलटे सीधे धंधे कर पैसे के पीछे सारी जिंदगी भागता रहता है,मोह माया की दल दल में फंस कर रह जाताहै , जब कि सब कुछ तो यही रह जाता है |जीवन और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू है ,आज जीवन है तो कल मृत्यु ,क्यों न हम ईश्वर से प्रार्थना करें जब भी हमारी जिंदगी की अंतिम घड़ी आये तो वह सबसे खूबसूरत और सुंदर अनुभूति लिए हुए हो |
रेखा जोशी

Tuesday 17 May 2016

क्षमा का मोल बहुत जीवन में

है अभिशाप नफरत जीवन  में
प्रेम  करना  व्यक्त   जीवन में
गिरह अपने ह्रदय की खोल दो
क्षमा का मोल बहुत जीवन  में

 रेखा जोशी 

Monday 16 May 2016

नहीं छोड़ना बीच रास्ते सजन

छन्द -वाचक भुजंगी 
 122 122 122 12
कभी अाँख में नीर देना नहीं  
कभी प्यार में पीर देना नहीं 
नहीं छोड़ना बीच रास्ते सजन  
जियें हम सदा प्रीत वास्ते सजन 
रेखा जोशी 

Sunday 15 May 2016

अंतर्राष्ट्रीय परिवार -दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

अंतर्राष्ट्रीय परिवार -दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

घर अँगना
रहता खुशहाल
नेह प्यार से
.......
सबकी सुनो
है सम्बल मिलता
अपनी कहो
……
मिलता प्यार
माता पिता का
स्नेह अपार
……
है दादी मेरी
कहानियाँ सुनाती
लगती प्यारी
.......
सुन्दर मेरा
अपना परिवार
सबसे न्यारा

रेखा जोशी

भरता रहे रब झोलियाँ सर हाथ हो प्रभु का सदा

चमके सदा सब दीप अब सज्जित रहें घर अंगना
मिलते रहें सब प्यार से शोभित रहे घर अंगना
भरता रहे रब झोलियाँ सर हाथ हो प्रभु का सदा
करते रहें हम वंदना भूषित रहें घर अंगना

रेखा जोशी

Friday 13 May 2016

देश अपने में छिपे हुए दुश्मनों को आज

जागो युवा देश  के इसे हमे बचाना है 
सोये हुए  लोगों को नींद से जगाना है 
देश अपने में छिपे हुए दुश्मनों को आज 
मिलकर साथ हमने बुराई को मिटाना है 

रेखा जोशी 

करें नमन हम नगरी उज्जैन को

महाकाल शँकर शम्भू त्रिपुरारी
चरणो  में शिव के दुनिया सारी
करें  नमन हम  नगरी उज्जैन को
धन्य क्षिप्रा जिसमें  डुबकी मारी

 रेखा जोशी

Thursday 12 May 2016

मुस्कुराना यहाँ ज़िंदगी आज फिर

चाह  तेरी  हमें  खींच  लाई सजन 
याद  तेरी   हमे    रुसवाई   सजन 
मुस्कुराना यहाँ ज़िंदगी आज फिर 
आस  दिल में हमारे  समाई सजन 

 रेखा जोशी 

Wednesday 11 May 2016

हर ताल तेरी पर करतब दिखाऊँ

हे  ईश जितना नचा  नाचूँगा मै
डुगडुगी पर प्रभु सदा नाचूँगा मै
हर ताल तेरी पर करतब दिखाऊँ
गर  तेरी  यही  रज़ा  नाचूँगा मै
रेखा  जोशी 

ऐ हवाओं साथ देना मेरा तुम

भर मुट्ठी मेघ मै ले जाऊँ वहाँ
प्यासी धरा की प्यास बुझाऊँ वहाँ
ऐ हवाओं साथ देना मेरा तुम
उड़ा घन संग मेह  बरसाऊँ वहाँ

रेखा जोशी

दे दो हमे आशीष प्रभु रहना हमारे साथ


छन्द - गीता
मापनी -2212 2212 2212 221

दे दो हमे आशीष प्रभु रहना हमारे साथ
भगवन हमारे कर कृपा तुम आज दीनानाथ
हम हाथ अपने जोड़ कर तुम को पुकारे आज
रखना  दया करना  सदा पूरे हमारे काज

रेखा जोशी 

Tuesday 10 May 2016

पर्वतों से उतर मिलने प्रियतम से

मदमस्त निर्मल धारा की कहानी 
उतरी  धरा पर जोशीली  जवानी  
पर्वतों से उतर मिलने प्रियतम से 
सागर से   मिलने  पगली दीवानी 

रेखा  जोशी 









फैला उजाला अँगना मेरे आने से उसके

नन्ही  परी  के आने से खत्म  हुई तन्हाईयाँ 
गुनगुनाने  लगी गीत मधुर मेरी खामोशियाँ 
फैला  उजाला  अँगना  मेरे  आने  से  उसके 
गूँजने  लगी घर  में मेरे उसकी किलकारियाँ 

रेखा जोशी 

Sunday 8 May 2016

माँ का प्यार भरा आँचल

आप सभी को मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

माँ ”इक छोटा सा प्यारा शब्द जिसके गर्भ में समाया हुआ है सम्पूर्ण विश्व ,सम्पूर्ण सृष्टि और सम्पूर्ण ब्रम्हांड और उस अथाह ममता के सागर में डूबी हुई सुमि के मानस पटल पर बचपन की यादें उभरने लगी |”बचपन के दिन भी क्या दिन थे ,जिंदगी का सबसे अच्छा वक्त,माँ का प्यार भरा आँचल और उसका वो लाड-दुलार ,हमारी छोटी बड़ी सभी इच्छाएँ वह चुटकियों में पूरी करने के लिए सदा तत्पर ,अपनी सारी खुशियाँ अपने बच्चों की एक मुस्कान पर निछावर कर देने वाली ममता की मूरत माँ का ऋण क्या हम कभी उतार सकते है ?हमारी ऊँगली पकड़ कर जिसने हमे चलना सिखाया ,हमारी मूक मांग को जिसकी आँखे तत्पर समझ लेती थी,हमारे जीवन की प्रथम शिक्षिका ,जिसने हमे भले बुरे की पहचान करवाई और इस समाज में हमारी एक पहचान बनाई ,आज हम जो कुछ भी है ,सब उसी की कड़ी तपस्या और सही मार्गदर्शन के कारण ही है |

सुमि अपने सुहाने बचपन की यादो में खो सी गई ,”कितने प्यारे दिन थे वो ,जब हम सब भाई बहन सारा दिन घर में उधम मचाये घूमते रहते थे ,कभी किसी से लड़ाई झगड़ा तो कभी किसी की शिकायत करना ,इधर इक दूजे से दिल की बाते करना तो उधर मिल कर खेलना ,घर तो मानो जैसे एक छोटा सा क्लब हो ,और हम सब की खुशियों का ध्यान रखती थी हमारी प्यारी ”माँ ” ,जिसका जो खाने दिल करता माँ बड़े चाव और प्यार से उसे बनाती और हम सब मिल कर पार्टी मनाते” | एक दिन जब सुमि खेलते खेलते गिर गई थी .ऊफ कितना खून बहा था उसके सिर से और वह कितना जोर जोर से रोई थी लेकिन सुमि के आंसू पोंछते हुए ,साथ साथ उसकी माँ के आंसू भी बह रहें थे ,कैसे भागते हुए वह उसे डाक्टर के पास ले कर गई थी और जब उसे जोर से बुखार आ गया था तो उसके सहराने बैठी उसकी माँ सारी रात ठंडे पानी से पट्टिया करती रही थी ,आज सुमि को अपनी माँ की हर छोटी बड़ी बात याद आ रही थी और वह ज़ोरदार चांटा भी ,जब किसी बात से वह नाराज् हो कर गुस्से से सुमि ने अपने दोनों हाथों से अपने माथे को पीटा था ,माँ के उस थप्पड़ की गूँज आज भी नही भुला पाई थी सुमि ,माँ के उसी चांटे ने ही तो उसे जिंदगी में सहनशीलता का पाठ पढाया था,कभी लाड से तो कभी डांट से ,न जाने माँ ने जिंदगी के कई बड़े बड़े पाठ पढ़ा दिए थे सुमि को,यही माँ के दिए हुए संस्कार थे जिन्होंने उसके च्रारित्र का निर्माण किया है |

यह माँ के संस्कार ही तो होते है जो अपनी संतान का चरित्र निर्माण कर एक सशक्त समाज और सशक्त राष्ट्र के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान करते है ,महाराज छत्रपति शिवाजी की माँ जीजाबाई को कौन भूल सकता है , दुनिया की हर माँ अपने बच्चे पर निस्वार्थ ममता लुटाते हुए उसे भरोसा और सुरक्षा प्रदान करती हुई उसे जिंदगी के उतार चढाव पर चलना सिखाती है , अपने बचपन के वो छोटे छोटे पल याद कर सुमि की आँखे भर आई , माँ के साथ जिंदगी कितनी खूबसूरत थी और उसका बचपन महकते हुए फूलों की सेज सा था | बरसों बाद आज सुमि भी जिंदगी के एक ऐसे मुकाम पर पहुँच चुकी है जहां पर कभी उसकी माँ थी ,एक नई जिंदगी उसके भीतर पनप रही है और अभी से उस नन्ही सी जान के लिए उसके दिल में प्यार के ढेरों जज्बात उमड़ उमड़ कर आ रहे है ,यह केवल सुमि के जज़्बात ही नही है ,हर उस माँ के है जो इस दुनिया में आने से पहले ही अपने बच्चे के प्रेम में डूब जाती है,यही प्रेमरस अमृत की धारा बन प्रवाहित होता है उसके सीने में ,जो बच्चे का पोषण करते हुए माँ और बच्चे को जीवन भर के लिए अटूट बंधन में बाँध देता है |आज भी जब कभी सुमि अपनी माँ के घर जाती है तो वही बचपन की खुशबू उसकी नस नस को महका देती है ,वही प्यार वही दुलार और सुमि फिर से एक नन्ही सी बच्ची बन अपनी माँ के आँचल में मुहं छुपा कर डूब जाती है ममता के उस अथाह सागर में |
रेखा जोशी

धूप मेरे अँगना फिसलती रही

धूप   मेरे  अँगना  फिसलती  रही
कभी धूप कभी छाँव मिलती  रही
बना  कर ताल  मेल धूप  छाँव में
ज़िंदगी  यूँही   सदा  चलती   रही

रेखा जोशी 

तू तू मै मै


बहू और बेटी ,क्या हम दोनों को एक समान देखते है ? कहते तो सब यही है कि बहू हमारी बेटी जैसी है लेकिन हमारा व्यवहार क्या दोनों के प्रति एक सा होता है ? नही ,बहू सदा पराई और बेटी अपनी ,बेटी का दर्द अपना और बहू तो बहू है | अगर सास बहू को सचमुच में अपनी बेटी मान ले तो निश्चय ही बहू के मन में भी अपनी सास के प्रति प्रेमभाव अवश्य ही पैदा हो जायेगा|अपने माँ बाप भाई बहन सबको छोड़ कर जब लड़की ससुराल में आती है तो उसे प्यार से अपनाना ससुराल वालों का कर्तव्य होता है ,लेकिन ऐसा हो नही पाता,यह सोच मोहन बाबू बहुत परेशान है |

आज तो सुबह सुबह ही घर में लड़ने झगड़ने की जोर जोर से आवाजें आने लगी ,लो जी आज के दिन की अच्छी शुरुआत हो गई सास बहू की तकरार से ,मोहन बाबू अपना माथा पकड़ कर बैठ गए ,ऐसा क्यों होता है जिस बहू को हम इतने चाव और प्यार से घर ले कर आते है फिर पता नही क्यों और किस बात से उसी से न जाने किस बात से नाराजगी हो जाती है |जब मोहन बाबू के इकलौते बेटे अंशुल की शादी एक ,पढ़ी लिखी संस्कारित परिवार की लड़की रूपा से हुई थी तो घर में सब ओर खुशियों की लहर दौड़ उठी थी ,मोहन बाबू ने बड़ी ईमानदारी और अपनी मेहनत की कमाई से अंशुल को डाक्टर बनाया ,मोहन बाबू की धर्मपत्नी सुशीला इतनी सुंदर बहू पा कर फूली नही समा रही थी लेकिन सास और बहू का रिश्ता भी कुछ अजीब सा होता है और उस रिश्ते के बीचों बीच फंस के रह जाता है बेचारा लड़का ,माँ का सपूत और पत्नी के प्यारे पतिदेव ,जिसके साथ उसका सम्पूर्ण जीवन जुड़ा होता है ,कुछ ही दिनों में सास बहू के प्यारे रिश्ते की मिठास खटास में बदलने लगी ,आखिर लडके की माँ थी सुशीला ,पूरे घर में उसका ही राज था ,हर किसी को वह अपने ही इशारों पर चलाना जानती थी और अंशुल तो उसका राजकुमार था ,माँ का श्रवण कुमार ,माँ की आज्ञा का पालन करने को सदैव तत्पर ,ऐसे में रूपा ससुराल में अपने को अकेला महसूस करने लगी लेकिन वह सदा अपनी सास को खुश रखने की पूरी कोशिश करती लेकिन पता नही उससे कहाँ चूक हो जाती और सुशीला उसे सदा अपने ही इशारों पर चलाने की कोशिश में रहती ,कुछ दिन तक तो ठीक रहा लेकिन रूपा मन ही मन उदास रहने लगी , जब कभी दबी जुबां से अंशुल से कुछ कहने की कोशिश करती तो वह भी यही कहता ,”अरे भई माँ है ”और वह चुप हो जाती |

देखते ही देखते एक साल बीत गया और धीरे धीरे रूपा के भीतर ही भीतर अपनी सास के प्रति पनप रहा आक्रोश अब ज्वालामुखी बन चुका था , अब तो स्थिति इतनी विस्फोटक हो चुकी थी कि दोनों में बातें कम और तू तू मै मै अधिक होने लगी |अस्पताल से घर आते ही माँ और रूपा की शिकायतें सुनते सुनते परेशान हो जाता बेचारा अंशुल ,एक तरफ माँ का प्यार और दूसरी ओर पत्नी के प्यार की मार, अब उसके लिए असहनीय हो चुकी थी ,आखिकार एक हँसता खेलता परिवार दो भागों में बंट गया और मोहन बाबू के बुढापे की लाठी भी उनसे दूर हो गई |बुढापे में पूरे घर का बोझ अब मोहन बाबू और सुशीला के कन्धों पर आ पड़ा |उनका शरीर तो धीरे धीरे साथ देना छोड़ रहा था,कई तरह की बीमारियों ने उन्हें घेर लिया था , उपर से दोनों भावनात्मक रूप से भी टूटने लगे ,दिन भर बस अंशुल की बाते ही करते रहते ओर उसे याद करके आंसू बहाते रहते ,उधर बेचारा अंशुल भी माँ बाप से अलग हो कर बेचैन रहने लगा, यहाँ तक कि अपने माता पिता के प्रति अपना कर्तव्य पूरा न कर पाने के कारणखुद अपने को ही दोषी समझने लगा और इसी कारण से पति पत्नी के रिश्ते में भी दरार आ गई |समझ में नही आ रहा था की आखिकार दोष किसका है ?

रूपा अपने ससुराल से अलग हो कर भी दुखी ही रही ,यही सोचती रहती अगर मेरी सास ने मुझे दिल से बेटी माना होता तो हमारे परिवार में सब खुश होते, उधर सुशीला अलग परेशान ,वह उन दिनों के बारे सोचती जब वह बहू बन कर अपने ससुराल आई थी ,उसकी क्या मजाल थी कि वह अपनी सास से आँख मिला कर कुछ कह भी सके ,लेकिन वह भूल गई थी कि उसमे और रूपा में एक पीढ़ी का अंतर आ चुका है ,उसे अपनी सोच बदलनी होगी ,बेटा तो उसका अपना है ही वह तो उससे प्यार करता ही है ,उसे रूपा को माँ जैसा प्यार देना होगा अपनी सारी दिल की बाते बिना अंशुल को बीच में लाये सिर्फ रूपा ही के साथ बांटनी होगी| उसे रूपा को अपनाना होगा , शारीरिक ,मानसिक और भावनात्मक रूप से उसका साथ देना होगा ,देर से आये दरुस्त आये ,सुशीला को अपनी गलती का अहसास हो चुका था और वह अपने घर से निकल पड़ी रूपा को मनाने |

रेखा जोशी 

Thursday 5 May 2016

इन्कार नहीं करते है प्यार हमें तुमसे

यह प्यार  हमें  साजन  है रास नहीं आया 
जब प्यार किया करना इकरार नहीं आया  
इन्कार  नहीं  करते  है  प्यार  हमें  तुमसे 
पर  साथ  निभाने  का  अंदाज़ नहीं आया 

रेखा जोशी 


Wednesday 4 May 2016

बिन पँख' आज उड़ने लगे

गीतिका 

तुम मिले आज अपने लगे 
बिन पँख' आज उड़ने लगे 
.... 
बज उठे तार दिल के पिया 
आज फिर साज़  बजने लगे 
… 
छा गई रोशनी अब यहाँ 
रात में दीप जलने  लगे
....
माँग कर साथ तेरा सजन 
आज अरमान सजने लगे 

प्यार है ज़िंदगी में जहाँ 
फिर ख़ुशी संग चलने लगे 

रेखा जोशी 

यादों के पिटारे से


यादों के पिटारे में झांक के देखा तो मानस पटल पर कुछ वर्ष पहले की तस्वीरें उभरने लगी | मौसम करवट बदल रहा था ,सुहावनी सुबह थी और हल्की ठंडी हवा तन मन को गुदगुदा रही थी | गरमागर्म चाय की चुस्कियों के साथ हाथ में अखबार लिए मै उसे बरामदे में बैठ कर पढने लगी | मौसम इतना बढ़िया था कि वहां से उठने का मन ही नहीं हो रहा था ,घडी पर नज़र डाली तो चौंक पड़ी ,आठ बज चुके थे ,”अरे बाबा नौ बजे तो मेरा पीरियड है ”मन ही मन बुदबुदाई ”|जल्दी से उठी और कालेज जाने कि तैयारी में जुट गई |

 प्रध्यापिका होने के नाते हमे कालेज पहुंच कर सब से पहले प्रिंसिपल आफिस में हाजिरी लगानी पडती थी ,जैसे ही मै वहां पहुंची तो प्रिंसिपल के आफिस के बाहर काला बुरका पहने एक महिला खड़ी थी | एक सरसरी सी नजर उस पर डाल मै आफिस के भीतर जाने लगी ,तभी उसने पीछे से मेरे कन्धे को थपथपाया | मैने मुड कर उसकी ओर देखा ,उसने अपना सिर्फ एक हाथ जिसमे एक पुराना सा कागज़ का टुकड़ा था मेरी ओर बढाया,मैने उससे वह कागज़ पकड़ा ,उसमे टूटी फूटी हिंदी में लिखा हुआ था ,”मै बहुत ही गरीब हूँ ,मुझे पति ने घर से निकल दिया है ,मेरी मदद करो ” मैने वह कागज़ का टुकड़ा उसे लौटाते हुए उसे उपर से नीचे तक देखा ,वह ,पूरी की पूरी काले लबादे में ढकी हुई थी ,उसके पैरों में टूटी हुई चप्पल थी ,जिस हाथ में कागज़ था ,उसी हाथ की कलाई में हरी कांच की चूड़िया झाँक रही थी |

मै उसे बाहर कुर्सी पर बिठा कर ,आफिस के अंदर चली आई| आफिस के अंदर लगभग सभी स्टाफ मेमबर्ज़ मौजूद थे | वहां खूब जोर शोर से चर्चा चल रही थी ,विषय था वही पर्दानशीं औरत ,हर कोई अपने अपने अंदाज़ में उसकी समीक्षा कर रहा था | किसी की नजर में वह असहाय थी ,किसी की नजर में शातिर ठग,कोई उसे कालेज से बाहर निकालने की बात कर रहा था तो कोई उसकी मदद करने की राय दे रहा था | अंत में फैसला हो गया ,उसे स्टाफ रूम में ले जाया गया और उसके लिए चाय नाश्ता मंगवाया गया ,पता नहीं बेचारी कितने दिनों की भूखी हो ,सभी स्टाफ मेमबर्ज़ से बीस बीस रूपये इकट्ठे किये गए और उन्हें एक लिफ़ाफ़े में डाल उसके हाथ में थमा दिया गया |तभी एक प्रध्यापिका ने उनके चेहरे से पर्दे को उठा दिया ,यह कहते हुए ,”हम लेडीज़ के सामने यह पर्दा कैसा ”| उनका चेहरा देखते ही सब अवाक रह गये ,”अरे यह तो डा: मसेज़ शुक्ला है |

पूरे स्टाफ की नजरें उनके चेहरे पर थी ,उनकी आँखों में थी शरारत और होंठो पर हसीं,”हैपी अप्रैल फूल ,कहो कैसा रहा मेरा तुम सबको फूल बनाने का अंदाज़ | उन्होंने बुरका उतार कर एक ओर रख कर दिया और वो खिलखिला के हंस पड़ी और उनके साथ साथ हम सब भी खिसियाए हुए हंसने लगे | डा मिसेज़ शुक्ला हमारी सहयोगी और अंग्रेजी विभाग की एक सीनियर प्रध्यापिका थी | उन्होंने उसी लिफ़ाफ़े में से बीस बीस के कई नोट निकाले और कंटीन में चाय पकौड़ों की पार्टी के आयोजन के लिए फोन कर दिया| वो सारा दिन हमने खूब मौज -मस्ती में गुज़ारा ,गीत संगीत के साथ गर्मागर्म चाय और पकौड़ों ने हम सब को अप्रैल फूल बना कर के भी आनंदित किया |डा मिसेज़ शुक्ला भले ही कुछ वर्ष पूर्व रिटायर हो चुकी है लेकिन उनका पूरे स्टाफ को ,”फूल” बनाना हम सब को हमेशा याद रहे गा खासतौर पर अप्रैल की पहली तारीख को |

रेखा जोशी 

ठंडक दिल को तब मिले हमारे

आम राजा फलों का यह माना
है प्यास अपनी को गर बुझाना
ठंडक  दिल को तब  मिले हमारे
भरपेट  तरबूज़  को जब खाना

रेखा जोशी 

जब से देखा तुम्हे समाये दिल में हमारे

जब से तुम मिले गम सारे किनारे हो गये
खूबसूरत   पल  ज़िंदगी  के  हमारे हो गये
जब  से  देखा तुम्हे समाये  दिल  में हमारे
दोनों  यहाँ   इक  दूजे  के   सहारे हो   गये

रेखा जोशी 

हे श्याम साँवरे

हे श्याम साँवरे गौ मात के रखवाले तुम ।
गौ रक्षा कर गोवर्धन पर्वत उठाने वाले तुम ।
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दया करो दया करो सुनो फिर मूक पुकार तुम ।
कटती बुचड़खाने में आकर करो उद्धार तुम ।।
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हे श्याम साँवरे खाने को मिले घास नही ।
खा रही कूड़ा करकट कोई उसके पास नही ।|
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डोलती है लावारिस कोई उनका वास नही।
दीनदयाला अब तेरे सिवा कोई आस नही ।।
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हे श्याम साँवरे सुनो पुकार कामधेनु की।
संवारों तुम ज़िन्दगी माँ तुल्य कामधेनु की।|
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जर्जर काया बह रहे आँसू तुम्हे पुकारें ।
याद आयें धुन मधुर बंसी की तुम्हे पुकारें ।।
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रेखा जोशी

टेढ़ा है पर मेरा है

टेढ़ा है पर मेरा है 

यह जिंदगी भी कितनी अजीब होती है खासतौर पर लड़कियों के लिए ,जन्म देने वाले माता पिता ,पालपोस और पढ़ा लिखा कर अपनी बेटी को अपने ही हाथों किसी पराये पुरुष के हाथ सौंप कर निश्चिन्त हो जाते है ,बस उनका कर्तव्य पूरा हुआ ,बेटी अपने घर गई गंगा नहाए |मीनू ने भी अपने माँ बाप का घर छोड़ कर अपने ससुराल में जब कदम रखा तो उसका स्वागत करने उसकी सासू माँ दरवाज़े पर खड़ी थी हाथ में आरती की थाली लिए ,उसकी आरती उतारी गई ,अपने पाँव से चावल से भरे लोटे को उल्टाने के बाद मीनू ने आलता भरे पावों से घर के दरवाज़े के अंदर कदम रखा ,घर के भीतर कदम रखते ही उसने दरवाज़े की तरफ देखा ,”अरे यह क्या घर का मुख्य दरवाज़ा टेढ़ा ”| 

उसे क्या पता था कि उसका अब कितने टेढ़े लोगों से पाला पड़ने वाला है ,ख़ैर जब शादी के बाद की सारी रस्मे पूरी हो गई तो प्रेम उसे घुमाने मनाली की सुंदर वादियों में ले गया ,अल्हड़ जवान लडकी की भाँती कल कल करती ब्यास नदी ने उसका मन मोह लिया और उपर से शहद से भी मीठा प्रेम का प्रेम रस ,ऐसा लगने लगा जैसे अनान्यास ही सारी खुशियाँ उसकी झोली में आन पड़ी हो ,परन्तु यह सब खुशियाँ कुछ ही दिनों की मेहमान थी ,ससुराल में पतिदेव ,सास ससुर के साथ साथ बड़े भैया , भाभी ,नन्द ,छोटा देवर ,सबको खुश रख पाना मीनू के लिए एक चुनौती भरा कार्य था ,एक जन खुश होता तो दूसरा नाराज़ ,सब की सोच अलग ,खानपान अलग,उसे कभी किसी के ताने सुनने पड़ते तो कभी किसी की डांट फटकार ,लेकिन एक बात तो थी उसके पति प्रेम सदा एक मजबूत ढाल बन कर उसके आगे खड़े हो जाते,और बंद हो जाती सबकी बोलती ,किन्तु मीनू के लिए इस सबसे भी कठिन था अपने प्यारे पतिदेव प्रेम को समझना ,उसे पता ही नही चल पाता कि उसकी किस बात से उसके पिया रूठ जाते और उन्हें मनाना तो और भी मुश्किल |

दिन महीने साल गुजर गए अब मीनू इस घर के हर सदस्य को अच्छी तरह जान चुकी थी ,बहुत मुश्किलों से गुजरना पड़ा था उसे अपने ससुराल में सबके साथ सामंजस्य स्थापित करने में ,लेकिन अपने पतिदेव को समझ पाना उफ़ माँ अभी तक उसके लिए टेढ़ी खीर थी , भगवान् ही जाने ,सीधे चलते चलते कब किस दिशा करवट मोड़ ले ,मीनू इसे कभी समझ नही पाई ,चित भी अपनी और पट भी अपनी ,खुद ही अपना सामान रख कर भूल जाना तो उनकी पुरानी आदत है ,चलो आदत है तो मान लो ,लेकिन नहीं प्रेम जैसा सम्पूर्ण व्यक्तित्व वाला इंसान गलती करे ,ऐसा तो कभी हो ही नही सकता ,पूरी दुनिया में कुछ भी घटित हो जाए उस सबके लिए ज़िम्मेदार है तो सिर्फ और सिर्फ मीनू ,लेकिन दुनिया में जो सबसे प्यारी है तो वह भी तो सिर्फ और सिर्फ मीनू | 
  
प्रेम मीनू की हर बात को लेता ,वह कुछ भी कहती तो प्रेम ठीक उसके विपरीत बात कहता ,कहीं से भी वह उसके साथ तालमेल नहीं बिठा पाती ,हार कर चुप हो जाती ,शायद यह उसका अहम था यां फिर कुछ और , परन्तु जैसा जिसका स्वभाव होता है उसे शायद ही कोई बदल पाता हो |प्रेम दिल का बहुत अच्छा इंसान होते हुए भी पता नही क्यों मीनू के जज़्बात को नही समझ पाया ,वह मीनू से बहुत प्यार करता था लेकिन अपने ही तरीके से |काश प्रेम मीनू को समझ पाता,उसके मन में उमड़ते प्रेम के प्रति बह रहे प्यार के सैलाब को देख पाता। 

आज पच्चीस साल हो गए उनकी शादी को, वैसा ही प्रेम और वैसा ही उसका स्वभाव ,अबतो घर में बहू भी आ गई जिसने भी आते ही प्रेम से कहा ,”पापा इस घर के टेढ़े दरवाज़े को बदलवा दो ,यह देखने में अच्छा नही लगता ,”|चौंक पड़ी मीनू ,हंस कर कहा ,”बेटा,कोई बात नही ,यह टेढ़ा है पर हमारा अपना है ”

रेखा जोशी 

Tuesday 3 May 2016

कैसे होगा उत्थान बढ़ती जब महँगाई

अमीर और गरीब के बीच की यह खाई
सूखी रोटियों से क्या कहीं यह भर पाई
मासूम  चेहरा  उलझे  बाल  करें सवाल
कैसे  होगा उत्थान बढ़ती जब महँगाई

रेखा जोशी 

कृष्ण सुदामा सा मीत

आते ही 
इस दुनिया में 
बंध  जाते हम 
अनगिनत रिश्ते नातों में  
रह जाती फिर 
उलझ कर ज़िंदगी 
इन रिश्ते नातों  में 
शुक्रिया तेरा भगवन 
मिलाया मनचाहे मीत से 
आने से जिसके 
खुशियाँ आई जीवन में  
साथ निभाता जो 
वक्त आने पर 
जीवन की धूप छाँव में 
बिन मांगे देता स्नेह अपार 
पा कर उसका साथ 
झंकृत हो उठा मेरा मन 
है खुशनसीब वो 
मिला जिनको 
कृष्ण सुदामा सा मीत  

रेखा जोशी