Sunday 29 April 2018

बेरोज़गारी


बेरोज़गारी (लघुकथा)

एम काम की डिग्री हासिल करने के बाद सुधीर को आशा थी कि उसके दिन बदल जायेंगे ,एक अच्छी सी नौकरी मिल ही जाएगी,मां बाप ,पत्नी निशा  और अपने बच्चों की जिम्मेदारी वह अच्छी तरह निभा सकेगा ।वह एक के बाद एक इंटरव्यू देता रहा लेकिन केवल निराशा ही हाथ लगी ।दिन प्रतिदिन  वह अवसाद में  डूबता चला गया ,हालत यहां तक पहुंच गए कि उसने  आत्महत्या करने की ठान ली ।निशा उसकी परेशानी समझ रही थी ,उसने हिम्मत नहीं हारी और "स्टार्ट अप" शुरू करने के लिए लोन ले लिया और घर में ही पापड़ और आचार बनाने का काम शुरू कर दिया ,अपने पति के साथ मिल कर उसे केवलअवसाद से बाहर ही  नहीं निकला बल्कि उसकी बेरोज़गारी को अंगूठा दिखा दिया।

रेखा जोशी

Friday 27 April 2018

न है ज़िन्दगी में बहारें पिया

न  है ज़िन्दगी   में बहारें पिया
यहाँ  बीच में  है   दिवारें पिया
न  कोई गिला है किसी से हमें
किसे ज़िन्दगी में पुकारें  पिया

रेखा जोशी

Thursday 26 April 2018

मुसाफिर हूँ इक मै

मुसाफिर हूँ इक मै
ज़िन्दगी के सफर में 
थक चुका अब चलते चलते
कुछ पल ठहर कर
देखा जो पीछे
नीले अंबर ने बदल ली
चादर अपनी
काली स्याह धुआं धुआं सी
है अब छत अपनी
याद आता है वो प्यारा सा
खिलखिलाता बचपन
जब खेला करते थे हम
नीले गगन तले
खिलखिलाते थे वो
जवानी में
हँसी के गलियारे भी
देख रहे अब
चुपचाप खामोश से
धीमी हो गयी
अब कदमों की आहट
साँझ थी अब सामने
खड़ी बाहें पसारे
चलने लगा मै उस ओर
धीरे धीरे
हाथों में अपने ले कर
ज़िन्दगी का बुझता दिया
अपने जीवन सफर में
थरथरा रही लौ जिसकी
न जाने कब तक जले
और मिल जाये
इस सफर को मंज़िल

रेखा जोशी

मेरी नन्ही प्यारी गुड़िया


मेरी नन्ही
प्यारी  गुड़िया
भोली सूरत मासूम चेहरा
आँखों में चमक लिए
निहारती रहती
वोह चेहरा मेरा
जिज्ञासा से भरे
उसके नयन
खोजते रहते
है न जाने क्या
मोह लेती  निश्छल हसी
जब मुस्कुराती वो नन्ही परी
नन्ही नन्ही
उँगलियों से जब
छूती प्यार से चेहरे को मेरे
भर देती  तन मन में मेरे
इक नई उमंग इक नई तरंग
कभी खींच लेती
आँचल मेरा
कभी सो जाती
काँधे पे मेरे 
इस जिंदगी की शाम में
उसने आगमन
किया नव भोर का

रेखा जोशी

Wednesday 25 April 2018

जलने लगे चिराग जब रोशन हुआ जहान

जलने लगे चिराग तो रोशन हुआ जहान
तम हुआ दूर बुद्धि में प्रकाशित हुआ ज्ञान
,
बुद्धि हो जब प्रज्ज्वलित ज्ञान के दीपक से
सरल   हुए   रास्ते  चाहे  वह  हों  अंजान 
,
रात कितनी भी अँधेरी टिक नहीं पाये
दिवाकर आने से चमक उठे आसमान
,
जीवन में हो अँधेरा ज्ञान की ज्योति जला
तिमिर भगा उजाला कर जन जन का कल्याण
,
सत्‍य के दीपक से जगमगा उठा कण कण
सत्य के आगे  नतमस्तक हुआ भगवान

रेखा जोशी

Sunday 22 April 2018

टिक टिक टिक टिक (बाल कविता)


टिक टिक टिक टिक
चलती जाती घड़ी

सुबह सुबह
घड़ी की टिक टिक
हमें जगाती
उठने का नहीं करता मन
क्या करें
है वक्त हुआ
स्कूल जाने का
अनुशासन हमें सिखाती
टिक टिक टिक टिक
चलती जाती घड़ी

घड़ी की सुईयों से
बंधी ज़िन्दगी
हर काम समय पर
करना सिखलाती
टिक टिक टिक टिक
चलती जाती घड़ी

रेखा जोशी

Thursday 19 April 2018

मेरी नन्हीं परी

मेरी नन्ही
प्यारी  गुड़िया
भोली सूरत मासूम चेहरा
आँखों में चमक लिए
निहारती रहती
वोह चेहरा मेरा
जिज्ञासा से भरे
उसके नयन
खोजते रहते
है न जाने क्या
मोह लेती  निश्छल हसी
जब मुस्कुराती वो नन्ही परी
नन्ही नन्ही
उँगलियों से जब
छूती प्यार से चेहरे को मेरे
भर देती  तन मन में मेरे
इक नई उमंग इक नई तरंग
कभी खींच लेती
आँचल मेरा
कभी सो जाती
काँधे पे मेरे 
इस जिंदगी की शाम में
उसने आगमन
किया नव भोर का

रेखा जोशी

Tuesday 17 April 2018

खुशियों के रंग अब जीवन में भर लें


भूल  गए  हम नहीं  है यहाँ ठिकाना
चलो  गायें  हम मिलकर नया तराना
खुशियों के रंग अब जीवन में भर लें
यूँही    बुनते  रहे  हम   ताना   बाना

रेखा जोशी

Sunday 15 April 2018

बाल गीत

आई  है   बिटिया  अँगना  में  मेरे
घर   की  दीवारें  लगी  है  महकने

देखती  हूँ   मै  जब नन्ही परी  को  
बचपन   झूमें  फिर   नैनों   में  मेरे
पापा  की प्यारी  मम्मी  की दुलारी
लौटा  के लाई  वो पल छिन  प्यारे
..
वो  चोटी  लहराये   पहन के साड़ी
चहके  मटके  वो  अँगना   में खेले
माँ  के  दुपट्टे  से  खुद  को  सजाये
सुबह और शाम वह सबको नचाये

भरी  दोपहर  वो अँगना  में  छुपना
गुडिया के संग वो  घर  घर  खेलना
चहकने  लगा  है  घर   आँगन  मेरा
मधुर हंसी से जब वो  खिलखिलाये

आई   है   बिटिया  अँगना  में   मेरे
घर   की  दीवारें   लगी  है  महकने

रेखा जोशी 

Thursday 12 April 2018

हसीन यादें

लहर पर लहर आती रही,
तुम्हारी हसीन यादें लिए।
देती रही ये दर्द दिल को ,
मगर तुम्ही न आये वहां  ।
कुछ तो बोलो हमदम मेरे,
तुम न जाने कहाँ खो गए ।
चुपके से लिख जाते तुम ,
कोई गजल ख़्वाबों में मेरे ।
मचलती लहरों का संगीत ,
समुंद्र की  तरंगों पर गीत ।
इन तन्हाइयों में चुपके से ,
चांदनी रात समुंद्र किनारे ।
मुस्कराती हुई वह झलक  ,
काफी थी दीदारे यार की   ।
मेरे महबूब थी क्या खता  ,
जो रुसवा हुई चाहतें मेरी  ।
साथ होते जो तुम यादों में ,
आज कुछ और बात होती ।

Wednesday 11 April 2018

अजब है प्रकृति की माया

खिल  ही  जाते हैं फूल
सूखी चाहे हो धरा
अजब है प्रकृति की माया
हैं रँग इसके निराले
विषम प्रस्थितियों में भी
जीवंत हो उठता है जीवन
हो जाता है फूटाव पौधों का
चीर के सीना
कड़ी से कड़ी चट्टानों का भी
अंत महकेगा सफर जीवन का
संघर्ष है जीवन हमारा
सिखलाती प्रकृति हमें
संघर्ष से ही खिलेगा
हर लम्हा जीवन का

रेखा जोशी

Monday 9 April 2018

माँ

माँ

है बरकत माँ के हाथों में
भर देती अपने बच्चों की झोली
खुशियों से
रह जाती सिमट कर दुनिया सारी
उसकी अपने बच्चों में
करती व्रत अपने परिवार के
कल्याण के लिए
चाहती सदा उन्नति उनकी
लेकिन अक्सर नहीं समझ पाते
बच्चे मां के प्यार को
जो चाहती सदा भलाई उनकी
नहीं देखा भगवान को कभी
लेकिन रहता माँ के दिल में
वोह

रेखा जोशी

Saturday 7 April 2018

हो रहा गरीबों  पर यह अत्याचार है
आरक्षण के दरअसल वो हकदार है
पीढ़ी दर  पीढ़ी  ले रहे जो आरक्षण
बनते  जा  रहे   भारत  में दमदार है
,
हुआ जहां नारी का सम्मान है
बसा उस घर मे तो भगवान है
दे सँस्कार  परिवार  को  नारी
परिवार नारी  का अभिमान है

रेखा जोशी