Sunday 29 April 2018

बेरोज़गारी


बेरोज़गारी (लघुकथा)

एम काम की डिग्री हासिल करने के बाद सुधीर को आशा थी कि उसके दिन बदल जायेंगे ,एक अच्छी सी नौकरी मिल ही जाएगी,मां बाप ,पत्नी निशा  और अपने बच्चों की जिम्मेदारी वह अच्छी तरह निभा सकेगा ।वह एक के बाद एक इंटरव्यू देता रहा लेकिन केवल निराशा ही हाथ लगी ।दिन प्रतिदिन  वह अवसाद में  डूबता चला गया ,हालत यहां तक पहुंच गए कि उसने  आत्महत्या करने की ठान ली ।निशा उसकी परेशानी समझ रही थी ,उसने हिम्मत नहीं हारी और "स्टार्ट अप" शुरू करने के लिए लोन ले लिया और घर में ही पापड़ और आचार बनाने का काम शुरू कर दिया ,अपने पति के साथ मिल कर उसे केवलअवसाद से बाहर ही  नहीं निकला बल्कि उसकी बेरोज़गारी को अंगूठा दिखा दिया।

रेखा जोशी

No comments:

Post a Comment