Saturday 30 November 2019

शर्मनाक घटना

मैं जल रही हूँ जिंदा
रो रही हूँ चीख रही हूँ 
कहाँ हो तुम 
माँ डर लगता है 
बहुत बहुत डर लगता है 
मन आहत, तन आहत आत्मा भी आहत 
नहीं सुन रहा मेरी पुकार कोई
सो गया है आज ईश्वर भी
राक्षसों का संहार करने वाला कोई नहीं 
टूट पड़ा है कहर मुझ पर 
एक नहीं दो नहीं 
चार चार वहशी दरिंदों ने किया 
हरण  मेरे तन का, लड़ी बहुत लड़ी मैं 
नहीं बचा पाई  अपनी अस्मिता 
माँ मैं हार गई, नहीं बता सकती व्यथा अपनी 
कैसा जीवन मिला है मुझे 
अंग अंग जल रहा है आज मेरा 
दर्द दर्द दर्द बस दर्द ही दर्द की 
असहनीय पीड़ा से गुजर रही 
लाडो तेरी 
जा रही हूँ दूर बहुत दूर तुझसे 
जानती हूँ तुम भी तड़प रही हो  दर्द से 
और तुम रोती रहोगी  सारी उम्र 
याद कर के मुझे 
याद रखना सदा मेरी दर्दनाक मौत को 
करना संघर्ष तुम इसके लिए 
कोई भी बेटी इस देश की 
न गुजरे इस पीड़ा से कभी 
न गुजरे इस पीड़ा से कभी 

रेखा जोशी 


Tuesday 26 November 2019

जाम ए ज़िन्दगी तो पीना है यारों


न जाने यह ज़िन्दगी की राह कब कहाँ ले जाये गी
आज गम है तो कल इस जीवन में खुशी भी आये गी 
इस ज़िन्दगी में सुख और दुख तो सब है समय का फेर 
न हो उदास रात के बाद सुबह भी जरूर आये गी 

जाम ए ज़िन्दगी तो पीना है यारों
हमने  सदियों  कहां जीना है यारों
,
इबादत करें खुदा की मिली ज़िन्दगी
मानो  यह रब का  मदीना है यारों
,
साज बजाओ ज़िन्दगी में प्यार भरा
ज़िन्दगी मधुर  स्वर वीणा है यारों
,
भर लो दामन में अपने खुशियां यहां
ज़िन्दगी अनमोल नगीना है यारों
,
न जाने कब छोड़ दें यह संसार हम
पर्दा  मौत  का  तो झीना है यारों

रेखा जोशी

Thursday 21 November 2019

जिंदगी के सफर में

करता रहा सामना

मुश्किलों का

जिंदगी के सफर में

और

मैं चलता ही गया

.

रुका नहीं, झुका नहीं

ऊँचे पर्वत गहरी खाई

मैं लांघता गया

और

मैं चलता ही गया

.

कभी राह में मिली खुशी

मिला गले उसके

कभी दुखों का टूटा पहाड़

रोया बहुत पर

खुद को संभालता गया

और

मैं चलता ही गया

.

जीवन के सफर में

कई साथी मिले चल रहे हैं साथ कुछ

यादें अपनी देकर कुछ छोड़ चले गए

और

बंधनों से घिरा

मैं चलता ही गया

चलता ही जा रहा हूँ

और

चलता ही रहूँगा

जीवन के सफर में

अंतिम पड़ाव आने तक

अंतिम पड़ाव आने तक

रेखा जोशी

ये रात बहुत भारी है

अंधेरे सुनसान रास्ते

कोई भी नहीं संग हमारे

किसे पुकारें

ये रात बहुत भारी है

..

शांत मौन पर्वत

डूबता सूरज

धड़कन बढ़ाती ख़ामोशियाँ

दूर कहीं झोंपड़ी में

जलती लालटेन

रुक गया हो वक्त जैसे

कैसे कटे

ये रात बहुत भारी है

सुबह की इंतजार में

गुम हुई चांदनी

पेड़ों के पीछे आहट सी

किसी जंगली जानवर का एहसास

इस डर के माहौल में

ये रात बहुत भारी है

ये रात बहुत भारी है

रेखा जोशी

Tuesday 12 November 2019

आवारा हूँ मै बादल

आवारा हूँ मै बादल

हवा के संग संग घूमता रहता हूँ मैं

आज यहां कल कहीं और

चला जाता हूँ मैं

नहीं कोई मंजिल नहीं कोई राह

मन हुआ जहां

बरस जाता हूँ वहाँ

लेकिन

खत्म हो जाता है अस्तित्व मेरा

जल की धारा बन कर

आवारा हूँ तो क्या हुआ

भिगोकर आँचल अवनी का

हरियाली चहुँ ओर

फैलाता हूँ मैं 

खेत खलियान, पेड़ पौधे

आशीष सबका पाता हूँ मैं

आवारा हूँ मै बादल

खुशियां धरा पर

बरसाता हूँ मैं

रेखा जोशी