Wednesday 31 May 2017

फूलों को बगिया में मुस्कुराते देखा

फूलों को  बगिया  में मुस्कुराते  देखा
भँवरों को भी गुन गुन गुनगुनाते देखा
कुहुक रही  कोयलिया यहाँ डार डार
तितली  को  भी उत्सव  मनाते  देखा

रेखा जोशी

Tuesday 30 May 2017

धड़कन बस में नहीं हमारी है


फ़ूलों से सजी आज क्यारी है
अँगना खिली आज फुलवारी है
छाई  मोहब्बत चहुँ ओर आज
धड़कन बस में नहीं हमारी है

रेखा जोशी

Monday 29 May 2017

दूर दोनों आज सबसे ,चलें हम उसपार

2122 2122, 2122 21
दूर दोनों आज सबसे ,चलें हम उसपार
अब खिलेगा ज़िन्दगी में,प्यार का संसार
,
चल रहे हम साथ ले कर, हाथ में अब हाथ
प्यार की हम पर यहाँ बरसे सदा बौछार
..
राह मुश्किल जान कर तुम ,रुकना मत आज
फिर करेगी आज हम पर   ,ज़िन्दगी उपकार
,
साथ मिल कर जब चले हम ,मीत रहना पास
कर लिया तेरी सजन अब,प्रीत को स्वीकार
,
तुम निभाना साथ मेरा, हम रहेंगे साथ
है खुशी अब ज़िन्दगी में,तुम देना अधिकार

रेखा जोशी

न जाने सजन क्यों खफा हो रहा है

122. 122. 122. 122

न जाने  सजन क्यों खफा हो रहा है
हमें दर्द दे कर जुदा हो रहा है
,
निभाई नही प्रीत  उसने कभी भी
किया प्यार उसने गुमा हो रहा है
,
सताये हमें याद तेरी कहाँ  हो
रहे जागते  क्या यहाँ हो रहा है
,
गये छोड़ हमको सजन तुम कहाँ पर
बिना प्यार जीवन सजा हो रहा है
,
रहे हम अकेले रहा प्यार तन्हा
किसी का नहीं अब भला हो रहा है

रेखा जोशी

Friday 26 May 2017

रिश्ते पनपते जहां प्यार हो आधार

रिश्ते  पनपते जहां  प्यार  हो आधार
बीत गये दिन कभी रिश्तों में था प्यार
रिश्तों  में उगने  लगी आज  नागफनी
जीवन का समझ मे आता है अब सार

रेखा जोशी

प्यार बिन नैन खोते हमारे

212 212 2122

प्यार   बिन  चैन  खोते हमारे
याद    में   नैन   रोते    हमारे
जी लिये चार दिन ज़िन्दगी के
काश   तुम   संग  होते  हमारे

रेखा जोशी

राजनीति करते नेता कैसे कैसे हमारे


राजनीति  करते  नेता  कैसे  कैसे हमारे
भाई भाई को  लड़ाते  यहाँ  कैसे सुधारें
अपने फायदे के लिये कराते दंगा फसाद
सोचे जनता अपने भारत को कैसे सँवारे

रेखा जोशी

Thursday 25 May 2017

ग़ज़ल

1222 1222

सजन इकरार कर लेना
हमारा प्यार पढ़ लेना
,
खिला उपवन रँगी मौसम
नज़ारे  यार  पढ़   लेना
,,
निगाहों में समाये तुम
हमें दिलदार पढ़ लेना
,,
लिखा है नाम हाथों पर
हिना के पार पढ़ लेना
,,
पुकारते कँगन तुम को
पिया इज़हार पढ़ लेना

रेखा जोशी

है संघर्ष यह जीवन


है संघर्ष यह जीवन 
कब गुज़रा बचपन
याद नही
आया होश जब से
तब  से
हूँ भाग रहा
संजों रहा खुशियाँ
सब के लिए
थे अपने कुछ थे पराये
उम्र के इस पड़ाव में
आज निस्तेज
बिस्तर पर पड़ा 
हूँ समझ रहा 
अपनों को और परायों को
था कल भी
हूँ आज भी
संघर्षरत
तन्हा सिर्फ तन्हा

रेखा जोशी

गुड़ गुड़ हुक्का पीता ताऊ यहाँ पर

दूध   दही  जमाये   ताई   गांव  में
कूप  से  जल  लाये  ताई   गांव में
गुड़ गुड़ हुक्का पीता ताऊ यहाँ पर
चारपाई    बिछाये  ताई   गांव   में

रेखा जोशी

Monday 22 May 2017

क्षणिकाएँ

दूर से आई
शहर में तेरे
साँसें हुई तंग
उठ रहा
धुआँ धुआँ
,
रह गई दंग
देख चकाचौंध
जगमगाते मॉल
है रंगबिरंगा जीवन
शहर में
,
तेरे शहर में
है भीड़ ही भीड़
हर तरफ
फिर भी
है सब तन्हा तन्हा
,
भावनायें शून्य
पत्थर की बैसाखियाँ
लिये
घूमते रहते
दर ब दर
लोग यहां
शहर में

रेखा जोशी

कर खुद से अपनी पहचान

नारि   महिमा   तेरी     महान
करूँ इसका किस विधि बखान
महादेव   की    शिवा   हो  तुम
कर  खुद  से   अपनी  पहचान

रेखा जोशी

Thursday 18 May 2017

जानता है मुझे पहचानता नही

वो तो  मुद्दत से जानता है मुझे
जानता है मुझे  जानता है मुझे
जानता है मुझे  पहचानता नहीं
वो  तो मुद्दत से जानता है मुझे
,
रात  भर करवटे  हम बदलते रहे
तकिये में मुहं  छुपा सिसकते रहे
नही समझे वो मेरे जज़्बात कभी
नही अपना   वोह  मानता है मुझे
,
वो तो  मुद्दत से जानता है मुझे
जानता है मुझे  जानता है मुझे
जानता है मुझे  पहचानता नहीं
वो  तो मुद्दत  से जानता है मुझे
,
किया प्यार मिली नही मुहब्बत हमें
बीती ज़िन्दगी  यूँहि तड़प तड़प के
बहारों  में  क्यों मिली हमें है खिज़ा
जानता है   नही  समझता है   मुझे
,
वो तो  मुद्दत से जानता है मुझे
जानता है मुझे  जानता है मुझे
जानता है मुझे  पहचानता नहीं
वो  तो मुद्दत  से जानता है मुझे

रेखा जोशी


 छन्द [कुकुभ]

हे माखनचोर नन्दलाला ,है मुरली मधुर बजाये 
धुन सुन  मुरली की गोपाला ,राधिका मन  मुस्कुराये
चंचल नैना चंचल चितवन, राधा को मोहन  भाये  
कन्हैया से  छीनी मुरलिया  ,बाँसुरिया  अधर लगाये

मुक्तक 

हे माखनचोर नन्दलाला ,है मुरली मधुर बजाये 

धुन सुन  मुरली की गोपाला ,राधिका मन   मुस्कुराये 

चंचल नैना चंचल चितवन,  प्रीत लगी गोपाला से 

कन्हैया से छीनी मुरलिया  , बाँसुरिया अधर लगाये 

रेखा जोशी 

Sunday 14 May 2017

जन्म दिया हमें जगत में लाया माँ ने


अपने    खून  से   हमको बनाया   माँ  ने 
जन्म   दिया हमें   जगत   में लाया  माँ ने
मत करना कभी भी  अपमान उसका तुम 
गोद  में  अपनी    हमको   खिलाया माँ ने 

रेखा जोशी

माँ


ममता का अथाह सागर ''माँ ''

कहते है ईश्वर सर्वव्यापक है ,जी हां वह  सब जगह है सबके पास है ''माँ ''के रूप में ,''माँ ''इक छोटा सा प्यारा शब्द जिसके गर्भ में समाया हुआ है सम्पूर्ण विश्व ,सम्पूर्ण सृष्टि और सम्पूर्ण ब्रह्मांड  और उस अथाह ममता के सागर में डूबी हुई  सुमि के मानस पटल पर बचपन की यादें उभरने लगी |”बचपन के दिन भी क्या दिन थे ,जिंदगी का सबसे अच्छा वक्त,माँ का प्यार भरा आँचल और उसका  वो लाड-दुलार ,हमारी छोटी बड़ी सभी इच्छाएँ वह चुटकियों में पूरी करने के लिए सदा तत्पर ,अपनी सारी खुशियाँ अपने बच्चों की एक मुस्कान पर निछावर कर देने वाली ममता की मूरत माँ का ऋण क्या हम कभी उतार सकते है ?हमारी ऊँगली पकड़ कर जिसने हमे चलना सिखाया ,हमारी मूक मांग को जिसकी आँखे तत्पर समझ लेती थी,हमारे जीवन की प्रथम शिक्षिका ,जिसने हमे भले बुरे की पहचान करवाई और इस समाज में हमारी एक पहचान बनाई ,आज हम जो कुछ भी है ,सब उसी की कड़ी तपस्या और सही मार्गदर्शन के कारण ही है ।

”सुमि  अपने सुहाने बचपन की यादो में खो सी गई ,”कितने प्यारे दिन थे वो ,जब हम सब भाई बहन सारा दिन घर में उधम मचाये घूमते रहते थे ,कभी किसी से लड़ाई झगड़ा तो कभी किसी की शिकायत करना ,इधर इक दूजे से दिल की बाते करना तो उधर मिल कर खेलना ,घर तो मानो जैसे एक छोटा सा क्लब हो ,और हम सब की खुशियों का ध्यान रखती थी हमारी प्यारी ''माँ '' ,जिसका जो खाने दिल करता माँ बड़े चाव और प्यार से उसे बनाती और हम सब मिल कर पार्टी मनाते” |

एक दिन जब सुमि खेलते खेलते गिर गई थी .ऊफ कितना खून बहा था उसके सिर से और वह कितना जोर जोर से रोई थी लेकिन सुमि के आंसू पोंछते हुए ,साथ साथ उसकी माँ के आंसू भी बह रहें थे ,कैसे भागते हुए वह उसे डाक्टर के पास ले कर गई थी और जब उसे जोर से बुखार आ गया  था तो उसके सहराने बैठी उसकी माँ सारी रात ठंडे पानी से पट्टिया करती रही थी ,आज सुमि को अपनी माँ की हर छोटी बड़ी बात याद आ रही थी और वह ज़ोरदार चांटा भी ,जब किसी बात से वह नाराज् हो कर गुस्से से सुमि ने अपने दोनों  हाथों से अपने माथे को पीटा था ,माँ के उस थप्पड़ की गूँज आज भी नही भुला पाई थी सुमि ,माँ के उसी चांटे ने ही तो उसे जिंदगी में सहनशीलता का पाठ पढाया था,कभी लाड से तो कभी डांट से ,न जाने माँ ने  जिंदगी के कई बड़े बड़े पाठ पढ़ा दिए थे सुमि को।

,यही माँ के दिए हुए संस्कार थे जिन्होंने उसके च्रारित्र का निर्माण किया है ,यह माँ के संस्कार ही तो होते है जो अपनी संतान का चरित्र निर्माण कर एक सशक्त समाज और सशक्त राष्ट्र के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान  करते  है ,महाराज छत्रपति शिवाजी की माँ जीजाबाई को कौन भूल सकता है ,  दुनिया की हर माँ अपने बच्चे पर निस्वार्थ ममता लुटाते हुए उसे भरोसा और सुरक्षा प्रदान करती हुई उसे जिंदगी के उतार चढाव पर चलना सिखाती है ।

अपने बचपन के वो छोटे छोटे पल याद कर सुमि की आँखे भर आई , माँ के साथ जिंदगी कितनी खूबसूरत थी और उसका बचपन महकते हुए फूलों की सेज सा था | बरसों बाद  आज  सुमि भी जिंदगी के एक ऐसे मुकाम पर पहुँच चुकी है जहां पर कभी उसकी माँ थी ,एक नई जिंदगी उसके भीतर पनप रही है  और अभी से उस नन्ही सी जान के लिए उसके दिल में प्यार के ढेरों जज्बात उमड़ उमड़ कर आ रहे है  ,यह केवल सुमि के जज़्बात ही नही है  ,हर उस  माँ के है जो इस दुनिया में आने से पहले ही अपने बच्चे के प्रेम में डूब जाती है,यही प्रेमरस अमृत की धारा बन प्रवाहित होता है उसके सीने में ,जो बच्चे का पोषण करते हुए माँ और बच्चे को जीवन भर के लिए अटूट बंधन में बाँध देता है |आज भी जब कभी सुमि अपनी माँ के घर जाती है तो वही बचपन की खुशबू उसकी नस नस को महका देती है ,वही प्यार वही दुलार और सुमि फिर से एक नन्ही सी बच्ची बन अपनी माँ के आँचल में मुहं छुपा कर डूब जाती है ममता के उस अथाह सागर में।

रेखा जोशी

Saturday 13 May 2017


आज   तेरी   हमे   जरूरत  है
प्यार  का  यह   हसीं महूरत है 
क्या पता कल कहाँ रहे हम तुम
ज़िन्दगी  आज   खूबसूरत   है

रेखा जोशी

Thursday 11 May 2017

आह

दिल में यह हसरत थी कि कांधे पे उनके
रख के मै सर ,ढेर सी बाते करूँ ,बाते
जिसे सुन कर वह गायें,गुनगुनायें
बाते जिसे सुन वह हसें ,खिलखिलायें
बाते जिसे सुन प्यार से सहलाये
तभी उन्होंने कहना शुरू किया और
मै मदहोश सी उन्हें सुनती रही
वह कहते रहे ,कहते रहे और मै
सुबह शाम उन्हें सुनती रही
दिन महीने साल गुजरते गये
अचानक मेरी नींद खुली और
ज़िन्दगी की शाम में
वह ढेर सी बातें शूल सी चुभने लगी
उमड़ उमड़ कर लब पर मचलने लगी
समय ने दफना दिया जिन्हें  सीने में
हूक सी उठती अब इक कसक औ तडप भी
लाख कोशिश की होंठो ने भी खुलने की
जुबाँ तक ,वो ढ़ेर सी बाते आते आते थम गयी
होंठ हिले ,लब खुले ,लकिन मुहँ से निकली
सिर्फ इक आह ,हाँ ,सिर्फ इक आह

रेखा जोशी

चाँदनी की छटा मतवारी है

फ़ूलों से सजी आज क्यारी है
अँगना खिली आज फुलवारी है
,
है आये  अँगना  पिया हमारे
चाँदनी की छटा मतवारी है
,
नाचते झूम झूम मोर बगिया
कुहुके कोयल डारी डारी है
,
गुन गुन गुंजित भँवरे फूलों पर
चूमते  सुमन   बारी बारी है
,
छाई मदहोशी चहुँ ओर आज
धड़कन बस में नहीं हमारी है

रेखा जोशी

Wednesday 10 May 2017

है सबसे निराली यह किताबों की दुनिया

है सबसे निराली
यह किताबों की दुनिया

बचपन मे हमने
थी किताबों से देखी
तस्वीर ज़िन्दगी की
ओ से जानी ओखली हमने
स से देखी तस्वीर सांप की
पढ़ते पढ़ते बीता जीवन
ज्ञान का भरा भंडार
है किताबों की दुनिया

साथी मिला सबसे अच्छा
जीवन मे हमको
तनहाई हर लेती पल भर में
अच्छे बुरे का ज्ञान सिखाती
जीने की भी रीत बताती
यह किताबों की दुनिया
ज्ञान का बादशाह बनाती
यह किताबो की दुनिया

है सबसे निराली
यह किताबों की दुनिया

रेखा जोशी

Tuesday 9 May 2017

ज़िन्दगी आज ख़ूबसूरत है

2122  1212  22

आज   तेरी   हमे   जरूरत  है
प्यार  का  यह   हसीं महूरत है
क्या पता कल कहाँ रहे हम तुम
ज़िन्दगी  आज   खूबसूरत   है

रेखा जोशी

विक्षिप्त मानसिकता

सुमन आज बहुत दुखी थी ,उसकी जान से भी प्यारी सखी दीपा के घर पर आज मातम छाया हुआ था |कोई ऐसे कैसे कर सकता है ,इक नन्ही सी जान,एक अबोध बच्ची , जिसने अभी जिंदगी में कुछ देखा ही नही ,जिसे कुछ पता ही नही ,एक दरिंदा अपने वहशीपन से उसकी पूरी जिंदगी कैसे  बर्बाद कर सकता है |दीपा की चार वर्षीय कोमल सी कली के साथ दुष्कर्म,यह सोच कर भी काँप उठी थी सुमन ,कैसा जंगली जानवर था वह दरिंदा ,जिसे उस छोटी सी बच्ची में अपनी बेटी दिखाई नही दी |सुमन का बस चलता तो उस  जंगली भेड़िये को जान से मार देती ,गोली चला देती वह उस पर |आज वह नन्ही सी कली मुरझाई हुई अस्पताल में बेहोश अधमरी सी पड़ी है |बलात्कार जैसी बेहद घिनौनी और अमानवीय घटनाएं  तो न मालूम कब से हमारे समाज में चली आ रही है लेकिन बदनामी के डर इस तरह की घटनाओं पर परिवार वाले ही पर्दा  डालते रहते है |

आज लोग नैतिकता को तो भुला ही चुकें है ,कई बार अख़बारों  की सुर्ख़ियों में अक्सर बाप द्वारा अपनी ही बच्ची के साथ बलात्कार ,भाईओं दवारा अपनी ही बहनों का यौन शोषण ,पति अपनी अर्धांगिनी की दलाली खाने के समाचार छपते रहते है  और उनके कुकर्म का पर्दाफाश न हो सके ,इसके लिए बेचारी नारी को यातनाये दे कर,ब्लैकमेल कर के उसे अक्सर दवाब में जीने पर मजबूर कर देते है| हमारी संस्कृति ,जीवन शैली ,विचारधारा ,जिंदगी जीने के आयाम सब में बड़ी तेज़ी से परिवर्तन हो रहा है ,आज इस बदलते परिवेश में जहां भारत पूरी दुनिया के साथ हर क्षेत्र में प्रगति  कर रहा है ,वहां सिमटती हुई दुनिया में आधुनिकता की आड़ लिए कई भारतीय महिलाओं ने भी पाश्चात्य सभ्यता का अंधाधुन्द अनुसरण कर छोटे छोटे कपडे पहनने , स्वछंदता , रात के समय घर से बाहर निकलना, अन्य पुरुषों के संपर्क में आना ,तरह तरह के व्यसन पालना ,सब अपनी जीवन शैली  में शामिल कर लिया है और जो उनके अनुसार कथित आधुनिकता के नाम पर गलत नही है परन्तु यह कैसी आधुनिकता जिसने  तो हमारे संस्कारों  की धज्जिया ही उड़ा दी है ,एक तो वैसे ही समय के अभाव के कारण और हर रोज़ की आपाधापी में जी रहे  माँ बाप अपने बच्चों को अच्छे  संस्कार नही दे पा रहे उपर से टी वी ,मैगजींस ,अखबार के  विज्ञापनों में भी नारी के जिस्म की अच्छी खासी नुमाईश की जा रही  है ,जो विकृत मानसिकता वाले लोगों के दिलोदिमाग में विकार पैदा करने में कोई कसर नही छोडती ,''एक तो करेला दूसरा नीम चढ़ा'' वाली बात हो गई | 

ऐसी विक्षिप्त घटिया मानसिकता वाले  पुरुष अपनी दरिंदगी का निशाना उन सीधीसादी कन्याओं पर यां भोली भाली निर्दोष बच्चियों को इसलिए बनाते है ताकि वह अबोध बालिकाएं उनके दुवारा किये गए कुकर्म का भांडा न फोड़ सकें और वह जंगली भेड़िये आराम से खुले आम समाज घूमते रहें और मौका पाते ही किसी  भी अबोध बालिका अथवा कन्या को दबोच  लें | सुमन की सहेली दीपा ने पुलिस स्टेशन में जा कर '' एफ आई आर'' भी दर्ज़ करवा दी  ,पर क्या पुलिस उस अपराधी को पकड़ पाए गी ?क्या कानून उसे सजा दे पाए गा ?कब तक न्याय मिल पाये गा उस कुम्हलाई हुई कली को ?ऐसे अनेक प्रश्न सुमन के मन में रह रह कर उठ रहे थे |इन सब से उपर सुमन उस नन्ही सी बच्ची को लेकर परेशान थी ,अगर जिंदगी और मौत में झूल रही वह अबोध बच्ची बच भी गई तो क्या वह अपनी बाक़ी जिंदगी समान्य ढंग से जी पायेगी

रेखा जोशी

Monday 8 May 2017

ज़िंदगी आस है

आधार छंद विमोहा

मापनी २१२,२१२

ज़िन्दगी आस है
अनबुझी प्यास है
,
मर मिटे हम पिया
डूबती  श्वास   है
,
फूल मुरझा गये
अब न मधुमास है
,
दीप भी बुझ गये
चाँद  निश्वास है
,
रुक जाओ सजन
रात यह खास है

रेखा जोशी

,

Sunday 7 May 2017

नही सरल जीवन का हर पहर यहाँ

पीते हम सब अमृत संग जहर यहाँ
मिलता चैन  कभी  टूटे  कहर यहाँ
मिलती धूप  छाया  जीवन  में  हमें
नहीं सरल जीवन का हर पहर यहाँ

रेखा जोशी

Friday 5 May 2017

प्यार खिलता रहे सदा अपना

गर्म हवाओं से पेड़ पर झूलते फूल गुलमोहर के
लाल अंगार धरा पर बिखरते फूल गुलमोहर के
है हर्षित मन देख लाल फूलों से सुसज्जित उपवन
तपती दोपहरी में भी खिलते फूल गुलमोहर के
,
आज  पूरा हुआ सजन सपना
प्यार खिलता रहे सदा  अपना
आज  आई   बहार  अँगना में
ज़िन्दगी में खुशी मिली सजना

रेखा जोशी

Thursday 4 May 2017

बहती  तरंगिनी  के संग  संग  हम सभी बहे
समय  की  बहती  धारा  हमें सत्य यही कहे
पल पल बदल रही धरा बदलता रहता गगन
बदला ना  अपने  आप  को  जो थे वही रहे

रेखा जोशी

Wednesday 3 May 2017

सबसे कर ले प्यार

सबसे करना प्रेम
यही एक
है शाश्वत सत्य
प्रेम ही ईश्वर
प्रेम ही मोक्ष का द्वार
लिया जन्म इस दुनिया मे
प्रेम के लिये
बाँटा प्रेम बुद्ध ने
नीर भर नैनो में
स्नेह का
था बचाया हंस
गोद मे ले उसे
था किया प्यार दुलार
नही मिटती घृणा
घृणा से
है मिट जाती घृणा
प्रेम से
प्रेम का मानव को
दिया ईश्वर ने
वरदान
सबसे करके प्यार
जीवन अपना ले
सँवार

रेखा जोशी

प्रेम ईश्वर प्रेम ही ,है मोक्ष का द्वार
प्यार सभी से हम करें,ज़िन्दगी लें सँवार

रेखा जोशी


याद तेरी हमें पिया आने लगी 
मधुर गीत अब ज़िन्दगी गाने लगी
चाँद ने ली आज अंगड़ाई सजन 
चाँदनी अब  यहाँ मुस्कुराने  लगी 
,
जब चाँद छुपा है बादल मेँ, तब रात यहॉं खिल जाती है
घूँघट ओढ़ा है अम्बर मेँ, चाँदनी यहाँ शर्माती है
तारों की छाया मेँ मिल के ,आ दूर कहीं अब चल दें हम
हाथों में हाथ लिये साजन,ज़िन्दगी बहुत अब भाती है

रेखा जोशी



Tuesday 2 May 2017

चाँद ने ली आज अंगड़ाई सजन


याद तेरी हमें पिया आने लगी 
मधुर गीत अब ज़िन्दगी गाने लगी
चाँद ने ली आज अंगड़ाई सजन 
चाँदनी अब  यहाँ मुस्कुराने  लगी 

रेखा जोशी

अधूरे  सपने   अधूरी  ज़िंदगी 
जाने  कब पायें  पूरी   ज़िंदगी
यूँ ही जिये जा रहे हम यहाँ पर
है व्यर्थ ही यह  गुज़री ज़िंदगी

रेखा जोशी 

छन्द- स्रग्विणी

छन्द- स्रग्विणी 
मापनी - 212 212 212 212

और  देगी हमे  क्या दगा ज़िन्दगी
प्यार  से  ले गले  तू लगा जिन्दगी
गम बहुत है मिले ज़िन्दगी  से हमें
हैं   बहुत से गिले  ज़िन्दगी से हमें

रेखा जोशी

Monday 1 May 2017


भगवददर्शन

श्री कृष्ण भगवान् ने जिस विराट रूप का दर्शन अर्जुन को करवाया था वही दर्शन पा कर श्रद्धावान पाठक आनंद प्राप्त करें गे ।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत 
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यह
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् 
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे '

श्री कृष्ण नमो नम:

[श्री मद भगवदगीता अध्याय 11 का पद्यानुवाद ]

अर्जुन ने कहा 

1 अध्यात्म परम गूढ़ कहा मुझ पर कर दया ,
आप के इस वचन पर मोह मेरा मिट गया । 

2 भूतों का लय उदभव है सुना विस्तार से ,
औ sमाहात्म्य आप का ,कमलाक्ष आप से । 

3 जैसा कहा आपने ,आप हो हे ईश्वर ,
देखना मे चाहता रूप अव्यय ऐश्वर ।

4 यदि समझो हे प्रभु मै देख सकता हूँ उसे,
योगेश्वर दिखाओ रूप अव्यय वह मुझे।

5 देखो पार्थ सैंकड़ों औ हजारों रूप ये ,
नाना वर्ण आकृति दिव्य बहु विध रूप ये ।

6 देखो आदित्य वसु रूद्र ,मरूतगण दो अश्विनी ,
आश्चर्य देखो अर्जुन ,जो न देखे कभी ।

7 देखो मेरी देह में एकस्थ जग चर अचर ,
देख लो और अर्जुन देखना चाहो अगर ।

8 अपने इन चक्षुओं से ,न देख सकोगे मुझे ,
देख सको योग ऐश्वर ,दिव्य चक्षु दूँ तुझे ।  

 क्रमश :

प्रो महेंद्र जोशी

आई पिया बहार हमें प्यार मिल गया

221  2121  1221  212

आई   पिया   बहार   हमें प्यार मिल गया
तुम जो मिले सजन यह  संसार मिल गया
इस प्यार में  मिला तुमसा मीत  ओ सजन
साथी  मिला हमें  अब  दिलदार मिल गया

रेखा जोशी