Saturday 16 March 2024

गीतिका

गीतिका "लावणी छंद "

बसंत आया मधुरस छाया ,धरा पर मुस्कुराते दिन
अम्बुआ डार कोयल कुहकी , बाग में गुनगुनाते दिन
..
है महक रहे बाग बगीचे, बिखरी खुशबू यहाँ वहाँ 
इधर उधर नाचती तितलियाँ ,है उपवन महकाते दिन 
..
शीतल मदमस्त पवन बहती, है सहरा जाती तन मन
उड़ रही चुनरिया गोरी की, अंग अंग सहलाते दिन
..
रंग चुरा तितली फूलों का, कर रही सिंगार अपना,
पुष्प हवा संग लहरा रहे,फूलों को भी भाते दिन
..
 गुलाबी मौसम ऋतुराज का, पीली चहुँ ओर बहारें
खेत खलिहान पीले पीले, रंग पीला लुभाते दिन 

रेखा जोशी



Wednesday 13 March 2024

उड़ते पंछी नील गगन पर

छंदमुक्त रचना 

उड़ते पंछी
नील गगन पर
उन्मुक्त इनकी उड़ान
.
दल बना उड़ते मिल कर 
संगी साथी 
देते इक दूजे का साथ
चहक चहक खुशियाँ बांटे
गीत मधुर स्वर में गाते
उड़ते पंछी
नील गगन पर
उन्मुक्त इनकी उड़ान
..
भरोसा है अपने
पंखों पर
नहीं मानते हार कभी 
हौंसलों में है इनके जान
थकते नहीं रुकते नहीं
लड़ते आँधियों तूफानों से
हैं मंज़िल अपनी पा लेते 
उड़ते पंछी
नील गगन पर
उन्मुक्त इनकी उड़ान

रेखा जोशी



Monday 11 March 2024

मुक्तक

जय शिव शंकर भोलेनाथ दुख हरता
दर्द का  सागर  प्रतिदिन जाता भरता
हलाहल पीना तुम मुझे भी सिखा दो
कर जोड़  अपने  प्रार्थना  प्रभु करता
..
सारथी पार्थ के , गीता पाठ समझाया
राधा के साँवरे, था प्रेमरस छलकाया   
कान्हा के रंग में, रास रचाती गोपियाँ
नतमस्तक धनंजय,विराट रूप दिखलाया

रेखा जोशी 

Saturday 9 March 2024

ज़िन्दगी का अर्थ हमको है सिखाया आपने


आधार छंद- गीतिका 

2122 2122 2122 212

ज़िन्दगी का अर्थ हमको है सिखाया आपने 
दिल हमारे आस का दीपक जगाया आपने
..
ज़िन्दगी की  ठोकरों से टूट थे हम तो गए
फिर नया इक जोश सा हमको दिलाया आपने
..
मुस्कुराना ज़िन्दगी में भूल हम तो थे गए
आज जीवन की ख़ुशी से फिर मिलाया आपने
..
भर दिए वो ज़ख्म सारे जो दिए थे ज़िन्दगी 
प्यार में हमको पिया अपना बनाया आपने
..
फूल मुरझाये कभी थे प्यार के उपवन पिया
प्यार की बरसात ने उनको खिलाया आपने

रेखा जोशी 











Thursday 7 March 2024

जय महाकाल

हे शिव शम्भू
जय महाकाल 
पा कर सान्निध्य तेरा 
हुई धन्य मैं त्रिपुरारि 
..
जगत के हों पालनहार
शीश झुकाएं  तेरे द्वार 
और नहीं कुछ चाहिए 
तुम्हीं तो हो तारणहार 
नाम लेकर तेरा
हुई धन्य मैं, त्रिपुरारि
..
डम डम डम
जब डमरू बाजे
ताल पर इसकी हर कोई नाचे
सर्प हार गले पर साजे
शशिधरण का रूप निराला
आई शंभू मैं तेरे द्वार
पा कर सान्निध्य तेरा 
हुई धन्य मैं त्रिपुरारि
..
गरल पान करने वाले
दुखियों के दुख हरने वाले
भोले बाबा,भोले भण्डारी
कृपा करो कृपानिधान 
पाकर  आशीष  तेरा
हुई धन्य मैं,त्रिपुरारि 
..
हे शिव शम्भू
जय महाकाल 
पा कर सान्निध्य तेरा 
हुई धन्य मैं त्रिपुरारि 
..
 रेखा  जोशी 









रिसते ज़ख्म

रिस रहे  हैं ज़ख्म दिल में,
पर टूटा तो नहीं दिल अब तक मेराl 
जी रही हूँ असहनीय पीड़ा के साथ,
लेकिन न जाने क्यों,
आस और उम्मीद संजोये हूँ बैठी,
अभी भी. अपना दामन फैलाये 
इंतज़ार में तुम्हारीll

तुम आओगे फिर से बहार बन,
जिंदगी में मेरीl
थाम लोगे मुझे गिरने से तुम ll
लगा दोगे मलहम अपने हाथों से,
मेरे रिसते जख्मों परl
भर दोगे खुशियाँ फिर से मेरे जीवन में तुमll
काश आ जाओ प्रियतम,
कर दो मेरी बगिया गुलज़ार फिर सेl 
आस और उम्मीद संजोये हूँ बैठी,
अभी भी अपना दामन फैलाये 
इंतज़ार में तुम्हारीll

रेखा जोशी 





Wednesday 6 March 2024

दर्द का कोई धर्म नहीं होता



छंद मुक्त रचना 

हाँ होता है दर्द सबको जब लगती है चोट,
चोटिल हो पशु पक्षी भी कराहते हैं दर्द से,
क्योंकि दर्द का कोई धर्म नहीं होता l

लिया है जन्म जिसने इस धरा पे,
बहता है खून जिसकी भी रगों में,
तड़पता  है दर्द से  हर जीवधारी,
क्योंकि दर्द का कोई धर्म नहीं होता l

है कर सकता इंसान बयाँ,
अपने तन मन के दर्द को l
लेकिन उन मूक प्राणियों का क्या,
सुनी है कराह कभी उनके दर्द की,
देखे है आंसू क्या , बयाँ करते जो पीड़ा उनकी l
मासूम सहते पीड़ा चुपचाप
क्योंकि दर्द का कोई धर्म नहीं होता

रेखा जोशी