Thursday, 21 March 2024

नव भोर

शीर्षक  नव भोर

"आज भी कोई मछली जाल में नही आई "राजू ने उदास मन से अपने साथी दीपू से कहा l दोनों मछुआरे अपनी छोटी सी नाव में सवार सुमुद्र में मछलियाँ पकड़ने सुबह से  ही घर से निकले हुए थे l उनके  पास थोड़ा सा खाना और पीने का पानी था, जो शाम होते होते खत्म हो चुका था, तभी राजू को सुमुद्र में फैंके जाल में हलचल महसूस हुई और जाल भारी भी लगा, उसके चेहरे पर ख़ुशी की लहर आ गई l वह जोर से चिल्लाया,"दीपू हमारी मेहनत सफल हो गई, लगता है जाल में काफी मछलियाँ फंस गई हैँ, आओ दोनों मिलकर जाल ऊपर खींचते हैँ l मछलियों को देख दोनों ख़ुशी से उछल पड़े, लेकिन जैसे उनकी ख़ुशी को किसी की नज़र लग गई, आसमान में घने बादल छा गए, तेज होती हवाओं से उनकी नाव लड़खड़ाने लगी और उनकी ज़िन्दगी में तूफान दस्तक दे चुका था, शाम ढलने को थी,लहरों पर तेज़ी से झूलती नाव हिचकोले खाने लगी और कश्ती  में सुमुद्र  का का पानी भरने लगा, राजू और दीपू के चेहरे की रंगत बदल गई, आज उनकी परीक्षा की घड़ी थी l दोनों बाल्टी से नाव में भरते पानी को निकाल सुमुद्र में फेंक रहे थे और जी जान से नाव को संभालने की कोशिश करने लगे, लेकिन प्रकृति के आगे उनके हौसले कमजोर पड़ गए l वह दिशा भटक गए थे, अँधेरी रात, बारिश, दिशाहीन लड़खड़ाती नाव और तेज तूफान में वह दोनों फंस चुके थे l उसी आंधी तूफान में दीपू को दूर एक चमकीली रोशनी दिखाई दी, सुमुद्र की ऊँची ऊँची लहरों के थपेड़ों से उनकी कश्ती चरमराने लगी थी, फिर भी दीपू ने दम लगा कर नाव का रुख उस "लाइट हाउस" की ओर मोड़ दिया, दोनों बुरी तरह से थक चुके थे, हार कर उनके हाथ से पतवार छूट गई  उस भयंकर तूफान से लड़ते लड़ते वह दोनों बेहोश हो गए, कब रात बीती कब सुबह हुई, वह दोनों बेखबर नाव में ही गिर हुए थे l तेज सूरज की रोशनी से जब राजू की आँख खुली तो उनकी नाव सुमुद्र के किनारे पर थी और तूफान थम चुका था, कुछ लोग उनकी नाव के पास खडे थे, उन लोगों ने उन्हें उस टूटी नाव से बाहर निकाला दीपू और राजू सहित वहाँ खडे सभी लोग हैरान थे की वह इतने भयंकर तूफान से कैसे बच गए दोनों ने उगते सूरज को प्रणाम किया, यह सुबह उनके जीवन की इक नव भोर थी उन्हें नया जीवन जो मिला था l

रेखा जोशी

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