Thursday, 7 March 2024

रिसते ज़ख्म

रिस रहे  हैं ज़ख्म दिल में,
पर टूटा तो नहीं दिल अब तक मेराl 
जी रही हूँ असहनीय पीड़ा के साथ,
लेकिन न जाने क्यों,
आस और उम्मीद संजोये हूँ बैठी,
अभी भी. अपना दामन फैलाये 
इंतज़ार में तुम्हारीll

तुम आओगे फिर से बहार बन,
जिंदगी में मेरीl
थाम लोगे मुझे गिरने से तुम ll
लगा दोगे मलहम अपने हाथों से,
मेरे रिसते जख्मों परl
भर दोगे खुशियाँ फिर से मेरे जीवन में तुमll
काश आ जाओ प्रियतम,
कर दो मेरी बगिया गुलज़ार फिर सेl 
आस और उम्मीद संजोये हूँ बैठी,
अभी भी अपना दामन फैलाये 
इंतज़ार में तुम्हारीll

रेखा जोशी 





No comments:

Post a Comment