छंद मुक्त रचना
चोटिल हो पशु पक्षी भी कराहते हैं दर्द से,
क्योंकि दर्द का कोई धर्म नहीं होता l
लिया है जन्म जिसने इस धरा पे,
बहता है खून जिसकी भी रगों में,
तड़पता है दर्द से हर जीवधारी,
क्योंकि दर्द का कोई धर्म नहीं होता l
है कर सकता इंसान बयाँ,
अपने तन मन के दर्द को l
लेकिन उन मूक प्राणियों का क्या,
सुनी है कराह कभी उनके दर्द की,
देखे है आंसू क्या , बयाँ करते जो पीड़ा उनकी l
मासूम सहते पीड़ा चुपचाप
क्योंकि दर्द का कोई धर्म नहीं होता
रेखा जोशी
बेहतरीन
ReplyDeleteआभार आदरणीय
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteआभार आदरणीय
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआभार आदरणीय
Deleteसादर आभार आदरणीय 🙏
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