Tuesday 4 February 2014

खिला सकते हो तुम फूल ही फूल

वक्त
रुकता नही
कभी
चलती है
ज़िंदगी
संग इसके
तुम अकेले
क्यूँ
खड़े हो
रुके हो
क्यूँ तुम
रुकता नही
सूरज
और
न ही
चाँद सितारे
फिर तुम
किसका
इंतज़ार
कर रहे हो
रुकना तो
मृत्यु है
उठो चलो
समझो
अपने
होने का
अस्तित्व
बह जाओ  तुम
संग धारा के
खिला सकते
हो तुम
फूल ही फूल
महका सकते
हो तुम
वन उपवन

रेखा जोशी


No comments:

Post a Comment