Sunday 22 March 2015

साँवली सलोनी बाई


पाजेब की छम  छम
सुनते ही
ख़ुशी की इक लहर
दौड़ने लगती 
मन में
मिलता सकून
उसके आने की
आहट से
कैसे लिख पाती
कुछ 
अगर आज वह न आती
मुस्कुराती हुई
साँवली  सलोनी
के घर में घुसते ही 
खिल उठा मेरा मन
क्यों न करें 
धन्यवाद उसका 
बुहारती हमारा घर आंगन
हमारे हाथों का
करती काम 
तभी निकल  पाते
हम बाहर घर से
वह और कोई नही
है वह मेरे घर की
साँवली  सलोनी
बाई

रेखा जोशी

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