Thursday 9 April 2015

रंग बिरंगा पुष्पित संसार

झील के उस पार
दूर गगन को
चूम रही अरुण की
सुनहरी रश्मियाँ 
आँचल उसका 
रंग सिंदूरी चमक रहा 
आसमां भरा गुलाल
अनुपम सौंदर्य
बिखरा धरा पर
हो कर सवार कश्ती पर
आओ सजन निहारें
रंग बिरंगा पुष्पित संसार
तृप्त हो मन
देख अलौकिक छटा
जो समाई कण कण में
उसकी सृष्टि में

रेखा जोशी 

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