Thursday 3 December 2015

सुनहरे पल

चाहतें चाहते हमारी चाहतें 
कुछ पूरी कुछ अधूरी 
गुज़र जाती पल पल ज़िंदगी 
लेकिन ज़िंदा रहती 
हमारी चाहतें 
मरता है हर पल
दे कर जन्म इक नए पल को
बदकिस्मत है हम जो
नही जानते मोल
इस सुनहरे पल का
गवां  देते है इसे व्यर्थ ही
छोटी सी ज़िंदगानी
यूँ ही गुज़र जायेगी
रफ्ता रफ्ता
सीने में लिये लाखों अरमान
नही हाथ आयेगा फिर यह पल
पूरी कर ले
अपनी सारी  चाहतें 
गुज़रने से पहले
इस सुनहरे  पल के 

रेखा जोशी

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