Tuesday 27 December 2016

है शाश्वत सत्य यही

परिवर्तनशील
इस जग में
नही कुछ भी यहां स्थिर
पिघल जाता 
है लोहा भी इक दिन
चूर चूर हो जाता 
पर्वत भी
बहा ले जाता 
समय संग अपने
सब कुछ
नहीं टिक पाता
समय के आगे
कुछ भी 
रह जाती  बस 
माटी ही माटी 
है शाश्वत  सत्य यही
समाया इक तू ही 
सृष्टि के कण कण में
छू नही
सकता जिसे 
समय  भी कभी

रेखा जोशी

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