Monday 26 February 2018

श्मशान

चार कंधो पर सवार
फिर आया कोई
श्मशान
उठ रही लपटें बनती राख
चिता पर आज फिर सोया कोई
देखते श्मशान में हर रोज़
सुंदर रूप सत्य का
फिर भी
भेद  इसका न जान  पाया  कोई
राजा रंक अंत सबका एक समान
तन माटी का माटी में मिल जाना
इक दिन
है सत्य श्मशान
माटी के पुलते सत्य को पहचान
हो जाता है जीवन अर्पण
इक दिन
श्मशान के नाम

रेखा जोशी

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