Wednesday 16 September 2020

शून्य है मानव

पूछा मैने
सूरज और
चाँद सितारों से
हस्ती क्या तुम्हारी
विस्तृत ब्रह्मांड के
विशाल महासागर में
जिसमे है समाये
असंख्य तुम जैसे
सूरज आग उगलते
साथ लिए अपने
अनेक चाँद
टिमटिमा रहे जिसमे
अनेकानेक तारे
निरंतर घूम रही जिसमे
असंख्य आकाशगंगाएँ
देख पाती नही जिसे
आाँखे हमारी
रहस्यमय अनगिनत जिसमे
विचर रहे पिंड
और
इस घरती पर
मूर्ख मानव
झूठे गरूर में लिप्त 
अभिमान में डूबा हुआ
कर रहा प्रदर्शन
अपनी शक्ति का
अपने अहम का
अपनी सत्ता का
कर रहा पाप अनगिनत
देखता है आकाश रोज़
नही समझ पाया
अपनी हस्ती
शून्य है मानव
विशाल महासागर में

रेखा जोशी

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