प्राकृतिक पहाड़ों के
आँचल में खूबसूरत हरी भरी
सुनसान घाटीयां
शहर के शोर ओ गुल से दूर
है कर देती हैं तर ओ ताज़ा
दिल और दिमाग़ को
सादगी और सकून भरे
उन वीरान से रास्तों की चुप्पी से
लगता है अनजाना सा भय भी
दिल के किसी कोने में
इतने शांत और निर्मल वातावरण में भी
कभी कभी दूर बैठे कौवे की
कांव कांव भी
डरा जाती है भीतर तक
लेकिन फिर भी वीरान से रास्तों पर
चलना अच्छा लगता है
रेखा जोशी
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 04 जुलाई 2024 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
सुन्दर
ReplyDeleteइन वीरान रास्तों पर चलते हुए ही तो मिलता है अपना साथ...और अपने साथ होना तो अच्छा ही लगता है
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर...
वीराने में ख़ुद से मुलाक़ात ..
ReplyDelete