Friday 21 December 2012

प्रभु मोरे अंगना दरस दिखा जा

 ''नारायण नारायण ''बोलते हुए  नारद मुनि  जी अपने प्रभु श्री हरि को खोजते खोजते पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगा कर भू लोक में आ विराजे ,लेकिन उन्हें श्री हरि कहीं भी दिखाई नही दिए ,''पता नहीं प्रभु कहाँ चले गए ,अंतर्ध्यान हो के कहाँ गायब हो गए मेरे प्रभु ''यह सोच सोच कर बेचारे नारद मुनि जी परेशान हो रहे थे |उन्होंने श्री हरि को इस धरती के कोने कोने में जा करके कहाँ कहाँ नही ढूंढा,.हिमालय पर्वत  की बर्फीली गुफाओं में ,कंदराओं में ,सारी दुनिया के विभिन्न विभिन्न मंदिरों में ,कभी वह देवी माँ के मंदिरों  में खोजते तो कभी स्वयंभू की शरण में जाते ,कभी श्री राम के मंदिर में खोजते तो कभी संकटमोचन हनुमान जी के दर पर पहुंच जाते ,दर ब दर भटकते हुए मक्का मदीना भी घूम आये ,उनकी तलाश में वह दुनिया भर की मस्जिदों में भी अपनी हाजरी लगा  कर आगये ,लेकिन श्री हरिके दरस उन्हें कहीं पर नहीं हुए ,सोचने लगे,'' क्यों न मै उन्हें गिरिजाघर में भी जा कर देख लूँ उस परमात्मा ने ही तो यह सृष्टि बनाई है ,क्या पता वह गिरिजाघर में ही विश्राम कर रहें हो ,''जल्दी से नारद मुनि जी विभिन्न विभिन्न गिरिजाघरों में भी उन्हें तलाश कर के वापिस उसी स्थान पर आ गए ,इतना घूम घूम कर बेचारे थक गए लेकिन उन्हें श्री हरि को पाने लग्न उन्हें विश्राम करने नही दे रही थी ,बहुत ही  चिंतित हो रहे थे वह उनके लिए ,चलते चलते उन्हें एक पेड़ दिखाई दिया ,वहां पर अपनी थकान मिटाने के लिए वह  उसके नीचे  बैठ गए ,पास में ही एक गुरुदुवारा था जहां से लाउडस्पीकर से आवाज़ आ रही थी ,''एक नूर से सब जग उपजया,कौन भले कौन मंदे |''  लाउडस्पीकर की आवाज़ सुनते ही नारद मुनि जी वहां से उठे ओर उनके  पाँव गुरुदुवारे की ओर चल पड़े  यह  सोचते हुए कि गुरुदुवारे के अंदर भी तो उसी परमात्मा के बन्दे बैठे हुए है शायद प्रभु उनका हालचाल पूछने वहां चले  गयें हो |भीतर जा कर देखा सभी भक्त उस प्रभु का नाम ले रहे है ,ऐसा ही कुछ उन्होंने उन सभी धर्मस्थलों पर देखा था ,पूरी धरती पर सम्पूर्ण मानव जन उसी ईश्वर को याद कर रहे थे लेकिन अलग  अलग नामो से |'' नारायण नारायण ,वाह प्रभु यह कैसी माया ,आप तो सभी धर्मस्थलों से  नदारद और पूरी दुनिया बस आप का ही जप कर रही है ,''नारद मुनि जी के मुख से यह शब्द अन्नान्यास ही निकल पड़े |अपने प्रभु  को कहीं भी न पा कर हताश हो कर नारद मुनि जी वापिस उसी पेड़ के नीचे आ कर बैठ गए,थकावट के मारे उनका अंग अंग दर्द करने लगा था इसलिए वह अपनी आँखें मूंद कर उसी पेड़ के नीचे लेट कर सुस्ताने लगे ,लेकिन उनके मन में  हरि से मिलने की प्रबल इच्छा उन्हें आराम नही करने दे रही थी ,तभी कुछ शोर सुन कर उन्होंने आँखे खोली तो देखा सामने एक छोटा बच्चा उनकी नींद में विघ्न डाल रहा था ,वह छोटा सा बच्चा नारद मुनि जी को देख उन्हें अपना मुहं बना बना कर चिढ़ाने लगा,उस नन्हे से बालक पर मुनि को क्रोध आ गया और वह उसे मारने को दौड़े और वह बालक खिलखिला के हंसने लगा ,''अरे यह क्या हुआ ,यह प्यारी हंसी  तो मेरे प्रभु की है ,''उन्होंने आस पास सब जगह अपनी नजर दौडाई ,हतप्रभ रह गए नारद मुनि ,उन्हें तो हर ओर श्री हरि ही दिखाई दे रहे थे ,घबरा कर उन्होंने आँखे बंद कर ली,आत्मविभोर हो उठे नारद मुनि जी ,बंद आँखों से उन्होंने अपने भीतर ही प्रभु श्री हरि के साक्षात दर्शन कर लिए थे ,प्रभु को देखते ही नतमस्तक हो गए नारद मुनि जी और परम आनंद  में झूमते हुए बोल उठे ,''नारायण नारायण |''

2 comments:

  1. बिलकुल सही हम सारे में ढूंढते हैं जबकि प्रभु हमारे मन में ही होते हैंबिलकुल सही हम सारे में ढूंढते हैं जबकि प्रभु हमारे मन में ही होते हैं

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    1. शालिनी जी ,इतने बढ़िया कमेन्ट पर आपका हार्दिक धन्यवाद ,आभार

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