Tuesday 30 June 2015

सपनो का संसार



रेनू ,सीमा के बचपन की सखी ,एक अत्यंत सरल स्वभाव और सात्विक विचारों वाली प्यारी सी लडकी थी । सीमा को बहुत ही आश्चर्य होता था जब भी रेनू कोई भी सपना देखती थी वह सदा सच हो जाता था ।आने वाली घटनाएं कैसे रेनू को सपनो में ही अनूभूति हो जाती थी ? ऐसे देखा गया है कि पूर्वाभास कई लोगों को हो जाता है परन्तु कितनी विचित्र बात है यह ,जो अभी घटित हुआ ही नही है उसका आभास पहले कैसे हो सकता है ।क्या हमारी जिंदगी की किताब पहले से ही लिखी जा चुकी और हम अपने आने वाले कल का केवल पन्ना पलट कर पढ़ रहें है। 

 ”सपनो की दुनिया भी कितनी अजीब होती है ,सपने में सपना जैसा कुछ लगता ही नही ,बिलकुल ऐसा महसूस होता है जैसे सब सचमुच में घटित हो रहा हो । अपने विचारों में खोई सीमा की कब आँख लग गई उसे पता ही नही चला ”,उफ़ ,कितना भयानक सपना था ,अच्छा हुआ नींद खुल गई ”डरी हुई सीमा बिस्तर छोड़ ,बाथरूम में जा कर मुहं धोने लगी ,उसके सीने में अभी भी दिल जोर जोर से धडक रहा था और सांस फूली हुई थी |अक्सर हम सब के साथ ऐसा ही कुछ होता है जब भी हम कभी कुछ ऐसा ही भयानक सा सपना देखतें है ,और जब कभी बढ़िया स्वप्न आता है तो नींद से जागने की इच्छा ही नही होती ,हम जाग कर भी आँखे मूंदे उसका आनंद लेते रहते है |
सीमा बार बार उसी सपने के बारे में सोचने लगी ,तभी उसे अपनी साइकालोजी की टीचर की क्लास याद आ गई ,जब वह बी .एड कर रही थी ,सपनो पर चर्चा चल रही थी,”हमारी जागृत अवस्था में हमारे मस्तिष्क में लगातार विभिन्न विभिन्न विचारों का प्रवाह चलता रहता है ,और जब हम निंदिया देवी की गोद में चले जातें तो वह सारे विचार आपस में ठीक वैसे ही उलझ जाते है जैसे अगर ऊन के बहुत से धागों को हम इकट्ठा कर एक स्थान पर रख दें और बहुत दिनों बाद देखें तो हमें वह सारे धागे आपस में उलझे हुए मिलें गे , ठीक वैसे ही जब हम सो जाते है हमारे सुप्त मस्तिष्क के अवचेतन भाग में वह उलझे हुए विचार एक नयी ही रचना का सृजन कर स्वप्न का रूप ले कर हमारे मानस पटल पर चलचित्र की भांति दिखाई देते है | फ्रयूड के अनुसार हम अपनी अतृप्त एवं अधूरी इच्छायों की पूर्ति सपनो के माध्यम से करते है ,लेकिन दुनियां में कई बड़े बड़े आविष्कारों का जन्म सपनो में ही हुआ है ,जैसे की साइंसदान कैकुले ने छ सांपो को एक दूसरे की पूंछ अपने मूंह में लिए हुए देखा,और बेन्जीन का फार्मूला पूरी दुनिया को दिया |

 अनेक साईकालोजिस्ट्स ने सपनो की इस दुनिया में झाँकने की कोशिश की, लेकिन इस रहस्यमयी दुनिया को जितना भी समझने की कोशिश की जाती रही है ,उतनी ही ज्यादा यह उलझाती रही है |हमें सपने क्यों आते है ?कई बार सपने आते है और हम उन्हें भूल जातें है ?हमारी वास्तविक दुनिया में सपनो का कोई योगदान है भी यां नही ,और कई बार तो हमारे सपने सच भी हो जाते है |अनगिनत सवालों में एक पहलू यह भी है ,जब हम सो जाते है तब हमारा जागृत मस्तिष्क आराम की स्थिति में चला जाता है और उस समय मस्तिष्क तरंगों का कम्पन जिसे फ्रिक्युंसी कहते है ,जागृत अवस्था की मस्तिष्क तरंगो की अपेक्षा घट कर आधी रह जाती है ,उस समय हमारी बंद आँखों की पुतलिया घूमने लगती है जिसे आर ई एम् कहते है ,मस्तिष्क की इसी स्थिति में हमे सपने दिखाई देते है |एक मजेदार बात यह भी उभर के आई कि जब हम ध्यान की अवस्था में होते है तो उस समय भी मस्तिष्क तरंगों की कम्पन कम हो जाती है और हम जागृत अवस्था में भी आर ई एम की अवस्था में पहुंच सकते है ,अगर उस समय हम जागते हुए भी कोई सपना देखते है तो उसे हम पूरा कर सकते है | 

सीमा के मानस पटल पर बार बार रेनू का चित्र उभर कर आ रहा था ,शायद वह हमेशा ध्यानावस्था में ही रहती हो ,इसी कारण उसके मस्तिष्क के तरंगों की फ़्रिक्युएन्सी कम ही रहती हो और वह जो भी सपना देखती है वह सच हो जाता हो । सीमा के मस्तिष्क में भी अनेक विचार घूम रहे थे और वह बिस्तर पर लेट कर ध्यान लगाते हुए अपने सपनो के संसार में पहुंचना चाह रही थी ताकि वह भी अपने सपनो को सच होते देख सके ।

रेखा जोशी 

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