Thursday 19 September 2019

माँ


जगदंबिका जगत जननी
समझ सकती हूँ  पीड़ा तेरी
इक दूजे के खून के प्यासे
दो भाईयोँ को देख
दर्द से तिलमिला उठी कोख मेरी
.
ममतामयी माँ हो तुम
रचना जो की जग की
महसूस कर सकती हूँ मै
तड़प तुम्हारे मन की
क्या गुज़रती होगी सीने में तुम्हारे
रक्त से सनी लाल धरा देख कर
बमों के धमाको से जब गूँजता आसमान
दम तोड़ती जब तेरी सन्तान
.
हे माँ अब सुन  पुकार
आज अपने गर्भ की दिखा दे ममता
आँसू पोंछ उनके खून बन जो टपक रहे
सुख की साँस ले सकें सब
फिर नीले अम्बर तले
घृणा आपस की मिटा कर
दिखा शक्ति  अपने प्रेम  की

रेखा जोशी

5 comments:

  1. सुन्दर
    मर्मस्पर्शी.

    पधारें- अंदाजे-बयाँ कोई और

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  3. सुन्दर लेख

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  4. सादर आभार आपका Onkar जी

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