Tuesday 31 May 2022

मेरी कुछ अधूरी ख्वाहिशें

उड़ रही,रंग बिरंगी तितलिया

मेरी ख़्वाहिशों की बगिया में

झूला रही मदमस्त पवन

फूलों से लदी डालियाँ

महकने लगी 

मेरी  कुछ अधूरी ख्वाहिशें

,,

ठिठकती कभी पेड़ों की झुरमुट पे

पूरा होने पर

थिरकती कभी  नाचती अँगना में 

ख्वाहिशें मेरी ख्वाहिशें

चूमती श्रृंखलाएं कभी पर्वत की

लौट आती कहीं पर  छोड़ गूंज अपनी

मेरी कुछ अधूरी ख्वाहिशें

,

बादलों सी गरजती कभी

बरसती बरखा सी कभी

भिगो जाती तन मन मेरा

बिखर जाती धरा पर कभी

नित नई ख्वाहिशें

बुनती रहती ताना बाना

रंग भरती, रस बरसाती

जीवन में मेरे

मेरी कुछ अधूरी ख्वाहिशें

रेखा जोशी

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