बहुत करीब से देखा है तुम्हें
जिंदगी
बच्चों के पेट की खातिर
देखा है माँ को मजबूर होते हुए
न चाहते हुए भी बिक जाती वो
बहुत करीब से देखा है तुम्हें
जिंदगी
..
देखा है नन्हें नन्हें हाथों को
पुस्तकों की जगह
ढो रहे बोझ अपने घर का
किसी को हँसाती और किसी को
रुलाती
किसी के हिस्से बांटे खुशिया
किसी के नसीब में ग़मों का साया
बहुत करीब से देखा है तुम्हें
जिंदगी
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteदेखा और स्वीकार किया...
ReplyDeleteलाजवाब पोस्ट
ReplyDelete