छंदमुक्त रचना
तुम तो न आए पिया
तेरे इंतज़ार में
खोई रही मैं यादों में तेरी
सुबह से लेकर अब शाम हो गई
घर आजा सजन प्रीत मैंने निभाई
दीपक प्यार का भी बुझने लगा है
अब तो अंधेरा भी छाने लगा है
गगन की लालिमा दे रही दुहाई
दिख रही मुझसे
दूर होती मेरी ही परछाई
डूब रहा सूरज ढल रही शाम
क्षतिज का सूरज भी जाने लगा है
आ भी जाओ सजन
अब तो अंधेरा भी छाने लगा है
रेखा जोशी
सुंदर रचना
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteसब्र का इम्तेहां खूब लेते हैं महबूब ...
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