Sunday 7 April 2013

मै बांसुरी बन जाऊं प्रियतम

मै बांसुरी बन जाऊं  प्रियतम
और फिर इसे तुम अधर धरो
.............................................
.धुन मधुर बांसुरी की सुन मै
 पाऊं कान्हा को राधिका बन
..........................................
रोम रोम यह कम्पित हो जाए
तन मन में कुछ ऐसा भर दो
............................................
प्रेम नीर भर आये नयनों में
शांत करे जो ज्वाला अंतर की
..........................................
फैले कण कण में उजियारा
और हर ले मन का अँधियारा
.........................................
मै बांसुरी बन जाऊं  प्रियतम
और फिर इसे तुम अधर धरो

14 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर वंदना,आभार.

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद राजेन्द्र जी

      Delete
  2. प्यार हो तो राधा-कृष्ण सा निश्छल ...बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका हार्दिक आभार ,धन्यवाद

      Delete
  3. यशोदा जी ,आपका हार्दिक आभार ,नई पुरानी हलचल में मेरी रचना शामिल करने पर हार्दिक धन्यवाद

    ReplyDelete
  4. सुन्दर रचना ..........प्रेमरस की अनुभूति

    ReplyDelete
  5. संध्या जी ,मेरी साईट पर आने के लिए और रचना पसंद करने पर आपका हार्दिक आभार

    ReplyDelete
  6. मैं बांसुरी ......अधर धरो --बहुत सुन्दर
    LATEST POSTसपना और तुम

    ReplyDelete
  7. आपका हार्दिक आभार

    ReplyDelete
  8. हृदयस्पर्शी स्तुति .....

    ReplyDelete
    Replies
    1. मोनिका जी ,उत्साहवर्धन हेतु आपका आभार ,मेरीsite पर आने के लिए हार्दिक धन्यवाद

      Delete
  9. बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें

    ReplyDelete
  10. मदन मोहन जी आपका हार्दिक आभार ,ऐसे ही उत्साह बढ़ाते रहिये

    ReplyDelete
  11. ब्रिजेश जी ,आपका हार्दिक धन्यवाद ,ऐसे ही उत्साह बढाते

    ReplyDelete