Tuesday 5 August 2014

अनकही कहानी पूरा होना चाह रही

साँसों की डोर से
बंधी
मेरी यह ज़िंदगी
है चलती जा रही

ज़िंदगी की धुन पर
थिरकती
मेरी सारी हसरतें
है गीत गा रही


वह इच्छाएँ
बरसों  से जिन्हे
था दबा रखा मैने
न जाने क्यों
मचल मचल कर सीने में
पूरा होना
है अब चाह रही

न जाने कब टूट जाये
यह साँसों की डोर
और
बिखर जाये सारे सुर
ज़िंदगी की धुन के
और
रह जायें यूँही
मेरी चाहते अधूरी
इससे पहले मेरी
अनकही कहानी
पूरा होना
है अब चाह रही

रेखा जोशी





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