Monday 7 September 2020

संस्मरण

बात जून 1980 की है जब मेरे पति की श्रीनगर में नई नई बदली हुई थी, उनका आफिस एक बहुत ही पुरानी ईमारत में था और वहाँ उन्हें आफिस के साथ रहने के लिए ऊपर की मंजिल पर दो कमरे मिले हुए थे बाकी सारी बिल्डिंग वीरान और बंद पड़ी हुई थी, नीचे की मंजिल पर चौकीदार रहता थाl गर्मी की छुट्टियों में मैं भी अपने छोटे छोटे दो बेटों को लेकर वहाँ पहुंच गई l मेरे पति ने वहां नया नया चार्ज लिया था इसलिए वह देर रात तक फाइलें चेक कर रहे थे रात के 12 बज रहे कि अचानक ऊपर से किसी उतरने की आवाज सुनाई दी, लकड़ी की सीढ़ियां होने के कारण ठक ठक पांवों की आवाज ने मुझे जगा दिया, आवाज सुन कर मेरे पति भी आफिस से बाहर आ गए और उन्होंने सीढियों पर जा कर देख कि एक बहुत बड़ी काले रंग की बिल्ली सीढियों पर खड़ी थी, मेरे पति हंसते हुए कमरे में आ गए और बोले, "अरे रेखा वह तो एक बिल्ली थी, तुम आराम से सो जाओ" l उनकी बात सुन मैं भी सो गई, और बात खत्म हो गई l

कई सालों बाद हम दोनों उस किस्से को याद कर रहे थे कि अचानक मैं डर गई क्योंकि बिल्लियों के चलने की तो आवाज ही नहीं होती उनके पंजों के नीचे तो पैड होते हैं यानि कि उनके पंजे गद्देदार होते हैं तो फिर वह ठक ठक करके कौन सीढ़ियां उतर रहा था l

रेखा जोशी

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