Monday, 24 March 2025

आखिरी मुलाक़ात

आखिरी मुलाक़ात (लघुकथा)

जब से सुधा को पता चला उसे ब्लड कैंसर है, वह खामोश रहने लगी, अस्पताल में उसका इलाज चलने लगा, सारा दिन बिस्तर पर लेटे लेटे छत को निहारती रहती, अशोक उसका पति जी जान से उसकी सेवा में लगा रहता, वह सुधा को खुश रखना चाहता था लेकिन सुधा की मुस्कुराहट तो उसके चेहरे से हमेशा के लिए गायब हो चुकी थी, "लीजिए जनाब गरमागरम  चाय पीजिये," कहता हुआ अशोक कमरे में दाखिल हुआ l
आज अशोक को देखते ही सुधा के चेहरे पर हलकी सी मुस्कुराहट आ गई, अशोक ने चाय की ट्रे को पास के मेज पर रखा और प्यार से सुधा का हाथ अपने हाथों में ले लिया, अशोक सुधा का खिला चेहरा देख बहुत खुश था, तभी सुधा के होंठ हिले, बोली, "याद है जब हम पहली बार मिले थे, कितने प्यारे दिन थे, वह दोनों अपने भूले बिसरे दिनों को यादों में फिर से जीने लगे l अचानक आँखें बंद करके सुधा ने गहरी सांस ली और बात करते करते वह चुप हो गई l न जाने अशोक को वह चुप्पी खलने लगी, उसके हाथ में अभी भी सुधा का हाथ था, अशोक ने उसे हिलाया लेकिन सुधा के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई l अशोक के सामने सुधा का जिस्म पड़ा था लेकिन वह उसे तन्हा छोड़ कर बहुत दूर जा चुकी थी सदा सदा के लिए l

रेखा जोशी 

Thursday, 30 January 2025

खिलौना (लघुकथा )

खिलौना 

मीनू और अजय अपनी छोटी सी गुड़िया दीप्ती के साथ घर का कुछ जरूरी सामान लेने डी मार्ट स्टोर पहुँच गए वहां एक रैक में बहुत आकर्षक ढंग से खिलौने सज रहे थे जिन्हें देखते ही दीप्ती की आँखें चमक उठी, वह वहीं खड़ी होकर एक एक खिलौने को अपने नन्हें नन्हें हाथों से छू कर देखने लगीl

अजय की नौकरी छूट जाने के कारण आजकल उनका हाथ कुछ तंग था इसलिए वह एक ट्रॉली में घर में इस्तेमाल होने वाला बहुत ही जरूरी सामान सोच समझ कर रख रहे थेl घर के हालात से बेखबर दीप्ती एक छोटी सी लाल रंग कार जिसे बच्चे खुद चलाते हैँ लेने की ज़िद्द करने लगीl. अजय नें बड़े प्यार से उसे गोद में उठा लिया और समझाने की कोशिश करने लगा कि अगले महीने उसे वह बहुत बढ़िया गाड़ी खरीद देगा, लेकिन बाल हठ कहाँ कुछ सुनता है l वह उस कार को लेने के लिए और भी मचल उठी और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी l वह मीनू और अजय की बात ही नहीं सुन रही थी बस रोये जा रही थीl 

मीनू रोती हुई दीप्ती को खींचते हुए स्टोर से बाहर आ गई और अजय सामान के बिल का भुगतान करने लगा l स्टोर से बाहर आते ही अजय नें नन्ही सी लाल रंग की चाबी से चलने वाली कार अपनी प्यारी बिटिया के हाथ में थमा दी उसे देखते ही दीप्ती के मासूम चेहरे पर मुस्कान आ गई और अजय नें भी राहत की सांस ली l

रेखा जोशी 

Wednesday, 22 January 2025

उनकी यादों से कहो


बहार आई मेरे उपवन , फूल खिलाते रहिए 
उनकी यादों से कहो ह्रदय,को महकाते रहिए
..
साथ तेरा जो मिला हमको,पा लिया जहां हमनें 
गम नहीं कोई सजन हमको, यूँहि बुलाते रहिए
.
साज़ बजने लगेअब दिल के,आप आए हो यहाँ 
चाँद की चाँदनी में साजन, यूँहि नहाते रहिए 
..
यूँहि चलते रहे दोनों अब , लेकर हाथ में हाथ
साथ छूटे न कभी अपना , कदम मिलाते रहिए 
..
खुशियाँ घर बरसी अपने,अब रोशन है दुनिया
जगमगाये घर अँगना दीप ,यूँहि जलाते रहिए

रेखा जोशी 



 


Tuesday, 31 December 2024

हैप्पी न्यू ईयर

जश्न मनाएं खुशियाँ मनाएं हम
गत वर्ष को कभी ना भुलाएं हम 

संजोये रखें वह सुखद पल सदा
उन स्मृतियों को ना कहना अलविदा

है जीवंत मन में खूबसूरत पल
बंद पलकों में है साकार सकल

है जीत भी मिली संग मिली हार
मिला जो भी उसे किया स्वीकार 

बीते वर्ष ने बहुत कुछ दिया हमें
कैसे भुला सकते है हम सब उसे

नवल वर्ष नवल सूरज अभिनन्दन 
आदित्य की प्रथम किरण का वंदन 

नववर्ष 2025 की आप सभी को हार्दिक मंगलकामनाएं 🌹🌹


Thursday, 26 December 2024

हमारी धूप छांव जैसी जिंदगी

"हमारी धूप छांव जैसी जिंदगी"

यहां सुख दुःख से है भरी जिंदगी
हर वक्त इम्तिहान लेती जिंदगी

जीत मिलती कभी मिलती यहां हार
हमारी धूप छांव जैसी जिंदगी

रुकता नहीं वक्त किसी के. वास्ते
लम्हा लम्हा हाथों से फिसलती जिंदगी

हैं खुशियाँ कहीं सन्नाटा मौत का
आँसू बहाती कहीं हँसती जिंदगी

दो दिन का मेला जीवन इक खेला
न ग़म कर फूल सी महकती जिंदगी

रेखा जोशी
 

कर्म गति टाले नहीं टलती

शीर्षक :कर्म गति टाले नहीं टलती 

वक्त कब गुज़र जाता है
पता ही नहीं चलता, कैसे बंधी है
हमारी ज़िन्दगी
घड़ी की टिक टिक के साथ 
सुबह से शाम , रात से दिन
बस घड़ी की टिक टिक के संग
हम सब चलते जा रहे हैं 
समय को तो आगे ही 
चलते जाना है, 
जिंदगी का हर पल अनमोल है 
लेकिन कर्मो का बहुत झोल है 
हमारी जीत हमारी हार 
है कर्म ही सबका आधार 
जैसे कर्म करेंगे वैसे ही मिलेगा फल 
कर्म गति टाले नहीं टलती ।

रेखा जोशी

Wednesday, 25 December 2024

यह शहर अपना है धुआँ धुआँ

छंदमुक्त रचना 

यह शहर अपना है धुआँ धुआँ 
हवाओं में जहर है भरा हुआ

नैनों से पानी की बूंदे टपक रही
सांसे हम सबकी है उखड़ रही
जीना हुआ अब यहाँ मुश्किल 
खांस खांस हुआ हाल बेहाल 
यह शहर अपना है धुआँ धुआँ 
हवाओं में जहर है भरा हुआ

प्रदूषण फैला धरा से अंबर तक 
मैला मैला सा आवरण धरा का 
भटक रहे धूमिल गगन में पंछी
छटपटाहट में वसुधा पर जीवन 
कैसे बचें रोगों से अब हम सब 
यह शहर अपना है धुआँ धुआँ 
हवाओं में जहर है भरा हुआ

रेखा जोशी