आखिरी मुलाक़ात (लघुकथा)
जब से सुधा को पता चला उसे ब्लड कैंसर है, वह खामोश रहने लगी, अस्पताल में उसका इलाज चलने लगा, सारा दिन बिस्तर पर लेटे लेटे छत को निहारती रहती, अशोक उसका पति जी जान से उसकी सेवा में लगा रहता, वह सुधा को खुश रखना चाहता था लेकिन सुधा की मुस्कुराहट तो उसके चेहरे से हमेशा के लिए गायब हो चुकी थी, "लीजिए जनाब गरमागरम चाय पीजिये," कहता हुआ अशोक कमरे में दाखिल हुआ l
आज अशोक को देखते ही सुधा के चेहरे पर हलकी सी मुस्कुराहट आ गई, अशोक ने चाय की ट्रे को पास के मेज पर रखा और प्यार से सुधा का हाथ अपने हाथों में ले लिया, अशोक सुधा का खिला चेहरा देख बहुत खुश था, तभी सुधा के होंठ हिले, बोली, "याद है जब हम पहली बार मिले थे, कितने प्यारे दिन थे, वह दोनों अपने भूले बिसरे दिनों को यादों में फिर से जीने लगे l अचानक आँखें बंद करके सुधा ने गहरी सांस ली और बात करते करते वह चुप हो गई l न जाने अशोक को वह चुप्पी खलने लगी, उसके हाथ में अभी भी सुधा का हाथ था, अशोक ने उसे हिलाया लेकिन सुधा के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई l अशोक के सामने सुधा का जिस्म पड़ा था लेकिन वह उसे तन्हा छोड़ कर बहुत दूर जा चुकी थी सदा सदा के लिए l
रेखा जोशी