Tuesday 27 December 2016

चाँद आया उतर अब गगन में पिया

हाल दिल का सजन अब कहें  कम से कम

बात  दिल  की  न दिल में रहे कम से कम 

चाँद आया उतर अब गगन में पिया

चांदनी रात में हम मिलें  कम से कम

रेखा जोशी

है शाश्वत सत्य यही

परिवर्तनशील
इस जग में
नही कुछ भी यहां स्थिर
पिघल जाता 
है लोहा भी इक दिन
चूर चूर हो जाता 
पर्वत भी
बहा ले जाता 
समय संग अपने
सब कुछ
नहीं टिक पाता
समय के आगे
कुछ भी 
रह जाती  बस 
माटी ही माटी 
है शाश्वत  सत्य यही
समाया इक तू ही 
सृष्टि के कण कण में
छू नही
सकता जिसे 
समय  भी कभी

रेखा जोशी

Monday 26 December 2016

मिली सिर्फ उनसे हमको है बेवफाई


जिनके लिए हमने दिल औ जान लुटाई .

मिली  सिर्फ  उनसे हमको है  बेवफाई |

...............................................

सजदा किया उसका निकला वो हरजाई ,

मुहब्बत के बदले पायी  हमने रुसवाई |

...............................................

धडकता है दिले नादां सुनते ही शहनाई,

पर तक़दीर से हमने तो  मात  ही खाई |

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न भर नयन तू आग तो दिल ने है लगाई ,

धोखा औ फरेब फितरत में, दुहाई है दुहाई,|

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छोड़ गए क्यूँ तन्हां दे कर लम्बी जुदाई,

जी लेंगे बिन तेरे ,काट लेंगे सूनी तन्हाई |

रेखा जोशी

Sunday 25 December 2016

चले आओ तुम यहां

सातवें आसमान से
है आवाज़ आई
चले आओ तुम यहां
बना लो आशियाँ

ख़ुशी की लहर पे
होकर सवार
है चलती कश्तियाँ
मुस्कुराती हर शह यहां
नाचती  तितलियाँ
बिखेर कर रंग अपने
हर्षाती ह्रदय को
लुभाते झरने
झर झर बहते पर्वतों की
श्रंखलाओं से नीचे
मधुर तान छेड़ कर
संगीत अलौकिक  ने
घोल दिया कानो में
अनुपम स्वर
चले आओ तुम यहां
बना लो आशियाँ

टिमटिमाते सितारे
उतर आये ज़मीं पे
जगमगाने लगा
आँचल भी धरा का
मुस्कुराती वसुधा ने
हर लिये सभी गम
चले आओ तुम यहाँ
बना लो आशियाँ

सुघन्दित पुष्पों से भरी
पुकारे वादियां
चले आओ तुम यहां
बना लो आशियाँ

रेखा जोशी

Tuesday 20 December 2016

मुक्तक

मुखर

मिलजुल कर रहे सदा आपस  में प्यार लिखें
मुखर हो कर हम सब प्यार का इज़हार  लिखें
प्रेम से हर पल बीते हर  लें पीर सबकी
सँवार लें  ज़िंदगी ख़ुशी भरा सँसार लिखें
,,
मौन
हे प्रभु सर पे मेरे सदा तेरा हाथ रहे
हर मुश्किल में  हमें मिलता तेरा साथ रहे
हूँ मौन फिर भी सुन लेते तुम पुकार मेरी
भरे  सभी की झोली कृपा तेरी नाथ रहे

रेखा जोशी

Friday 16 December 2016

रिमझिम रिमझिम बरस रही काली घटायें


झूला  झूलती  सखियाँ  लो  आया सावन 
बरसात  लाई  खुशियाँ  लो  आया सावन 
रिमझिम रिमझिम बरस रही काली घटायें 
धड़काये   मेरा  जिया   लो  आया  सावन 

रेखा जोशी 

Thursday 15 December 2016

जानी कभी न तुमने रीत प्रीत की पिया

रोती   रही   हसरते   टूट  गये   अरमान
अहम  में  डूबे  तुम  करते  रहे अपमान
जानी कभी न तुमने  रीत प्रीत की पिया
लो आज  सजन हम दूर  ले चले सामान

रेखा जोशी



Thursday 1 December 2016

अब हमारा यह ज़माना हो गया

आज फिर मौसम सुहाना  हो  गया 
प्यार में दिल यह दिवाना  हो गया
...
रूठ  कर हमसे  न जाना तुम कहीं 
प्यार  में घर का बसाना हो गया 
.... 
मिल गई हमको ख़ुशी आये पिया 
ज़िंदगी  का  मुस्कुराना  हो गया 
.... 
तुम हमें जो मिल गये दुनिया मिली 
घर हमारे का ठिकाना हो गया 
.... 
चाह अब हम को नहीं है किसी की 
अब हमारा यह ज़माना हो  गया 

रेखा जोशी 

Monday 28 November 2016

तारों की छाया मेँ मिल के ,आ दूर कहीं अब चल दें हम

प्रदत्त छंद - पदपादाकुलक चौपाई (राधेश्यामी)


जब चाँद छुपा है बादल मेँ, तब रात यहॉं खिल जाती है
घूँघट ओढ़ा है अम्बर मेँ, चाँदनी यहाँ शर्माती है
तारों की छाया मेँ मिल के ,आ दूर कहीं अब चल दें हम
हाथों में हाथ लिये साजन,ज़िन्दगी बहुत अब भाती है
रेखा जोशी

जीवन भर का यह रिश्ता निभायें हम तुम

धरती  अम्बर  पर  उड़ते  साथी हम  तुम 
मिल जुल कर  बाते करते साथी  हम तुम 
गाना   गा   इक  दूजे  का   दिल  बहलाते 
है   पंछी   इक   दूजे  के  साथी  हम  तुम
....
नील  नभ में भरते  उडारी सँग  हम तुम 
ठंडी  हवा  के सँग  सँग  खेलते  हम तुम 
आओ    नाचें   गायें  अब    धूम  मचायें 
जीवन भर का यह रिश्ता निभायें हम तुम 
रेखा जोशी 

Sunday 27 November 2016

मन ही देवता मन ही ईश्वर[पूर्व प्रकाशित रचना ]

मन ही देवता मन ही ईश्वर

मन ,जी हाँ मन ,एक स्थान पर टिकता ही नही पल में यहाँ तो अगले ही पल न जाने कितनी दूर पहुंच जाता है ,हर वक्त भिन्न भिन्न विचारों की उथल पुथल में उलझा रहता है ,भटकता रहता है यहाँ से वहाँ और न जाने कहाँ कहाँ ,यह विचार ही तो है जो पहले मनुष्य के मन में उठते है फिर उसे ले जाते है कर्मक्षेत्र की ओर । जो भी मानव सोचता है उसके अनुरूप ही कर्म करता है ,तभी तो कहते है अपनी सोच सदा सकारात्मक रखो ,जी हां ,हमें मन में उठ रहे अपने विचारों को देखना आना चाहिए ,कौन से विचार मन में आ रहे है और हमे वह किस दिशा की ओर ले जा रहे है ,कहते है मन जीते जग जीत ,मन के हारे हार ,यह मन ही तो है जो आपको ज़िंदगी में सफल और असफल बनाता है ।

ज़िंदगी का दूसरा नाम संघर्ष है ,हर किसी की ज़िंदगी में उतार चढ़ाव आते रहते है लेकिन जब परेशानियों से इंसान घिर जाता है तब कई बार वह हिम्मत हार जाता है ,उसके मन का विशवास डगमगा जाता है और घबरा कर वह सहारा ढूँढने लगता है ,ऐसा ही कुछ हुआ था सुमित के साथ जब अपने व्यापार में ईमानदारी की राह पर चलने से उसे मुहं की खानी पड़ी ,ज़िंदगी में सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ने की जगह वह नीचे लुढ़कने लगा ,व्यापार में उसका सारा रुपया डूब गया ,ऐसी स्थिति में उसकी बुद्धि ने भी सोचना छोड़ दिया ,वह भूल गया कि कोई उसका फायदा भी उठा सकता ,खुद पर विश्वास न करते हुए ज्योतिषों और तांत्रिकों के जाल में फंस गया ।

जब किसी का मन कमज़ोर होता है वह तभी सहारा तलाशता है ,वह अपने मन की शक्ति को नही पहचान पाता और भटक जाता है अंधविश्वास की गलियों में । ऐसा भी देखा गया है जब हम कोई अंगूठी पहनते है याँ ईश्वर की प्रार्थना ,पूजा अर्चना करते है तब ऐसा लगता है जैसे हमारे ऊपर उसका सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है लेकिन यह हमारे अपने मन का ही विश्वास होता है । मन ही देवता मन ही ईश्वर मन से बड़ा न कोई ,अगर मन में हो विश्वास तब हम कठिन से कठिन चुनौती का भी सामना कर सकते है |
रेखा जोशी 

Saturday 26 November 2016

न मिलने का बहाना और ही था

1222 1222 122

तिरा साजन  फ़साना और ही था 
न मिलने का बहाना और ही था 
.. 
चले तुम छोड़ कर महफ़िल हमारी 
कभी  फिर रूठ जाना और ही था 
... 
रही हसरत अधूरी प्यार में अब 
वफ़ा हम को दिखाना और ही था 
.... 
शमा जलती रही है रात भर अब
मिला जो वह दिवाना और ही था 
... 
न बदला रूप अपना ज़िन्दगी ने  
जिया  दिल से  ज़माना  और ही था 

रेखा जोशी 

ग़ज़ल

ग़ज़ल

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
1222 1222 122
 काफिया आना
रदीफ़ और ही था

तिरा साजन  फ़साना और ही था
न मिलने का बहाना और ही था
..
न जाना छोड़ कर महफ़िल हमारी
तिरा फिर रूठ जाना और ही था
...
रही हसरत अधूरी प्यार में अब
वफ़ा हमसे निभाना और ही था
....
शमा जलती नही है रात भर अब
हमारा वह  ज़माना और ही था
...
बदल कर रूप अपना ज़िन्दगी अब
हमारे  पास  आना  और ही था

रेखा जोशी

Tuesday 22 November 2016

प्रेम कर ले ज़िन्दगी वरदान है



प्रेम करले ज़िंदगी वरदान  है 
प्रीत सबसे जो करें इंसान है 
..... 
ज़िंदगी में सुख  मिले दुख भी मिले 
नाम प्रभु का जो जपे वह ज्ञान है 
..... 
दीन दुखियों की यहाँ सेवा  करें 
जान वह   प्रभु की यहाँ संतान है 
....... 
ज़िंदगी की डोर उसके हाथ में 
वह निभाता साथ हम  अंजान है 
.......  
हाथ जोडे हम करें वंदन यहाँ 
मुश्किलें जो  समझता भगवान है 

रेखा जोशी 




Friday 18 November 2016

दर्द ऐ दिल के सिवा कुछ न मिला हमें

खूब  दिया  तुमने  प्यार  का सिला हमें
नहीं  तुमसे  कोई  भी  अब  गिला  हमें 
चैन  न  मिला  साजन  खाते   रहे चोट 
दर्द ऐ दिल के सिवा  कुछ न मिला हमें

रेखा जोशी 

Thursday 17 November 2016

बनी अब राख पत्थर का किला है



खिली कलियाँ यहाँ उपवन खिला है
जहाँ में प्यार साजन  अब मिला है
... 
मिला जो प्यार में अब साथ तेरा
नहीं  अब  प्यार  से कोई  गिला है
..
दिखायें दर्द अपना अब किसे हम
हमारे दर्द का यह सिलसिला है
..
रहो पास' हमारे रात  दिन तुम
ज़मीं के संग  अम्बर  भी हिला है
....
लगा दी  आग सीने में हमारे
बनी अब  राख  पत्थर का किला है

रेखा जोशी 

तुम मेरे पास रहो

थे कर रहे इंतज़ार
तुम्हारा
न जाने कब से
आये हो मुद्दतों के बाद
तो आओ बैठों
कुछ अपनी कहो
कुछ मेरी सुनो
तड़पते रहे
बिन तुम्हारे हम
है चाहत यही
बंध जाएँ हम दोनों
प्रेम की डोर से
सदा सदा के लिए
और
जीवन भर के लिए
मै तेरे पास रहूँ
और
तुम मेरे पास रहो
.
रेखा जोशी

मचलने लगे कई ख़्वाब नैनों में मेरे

हूँ धरती पर मै
चाँद आसमाँ पर
लेती अंगड़ाईयाँ
लहराती  चांदनी
झूम रही नाच रही
सागर की मचलती
लहरों पर
अमृत रस बरसा रही
शीतल चाँदनी  गगन से
ठंडी हवा के झोंकों से
सिहरने लगा
नाचने लगा आज
तन मन यहाँ पर
लेने लगी अंगड़ाइयाँ
मन में मेरे
मचलने लगे कई ख़्वाब
नैनों में मेरे
लहरों के संग संग

रेखा जोशी

Monday 14 November 2016

जी रहे लेकर अनबुझी प्यास ज़िन्दगी में


तड़पते  रहे  लेने  को साँस ज़िन्दगी में
जी रहे  जीने के लिये आस ज़िन्दगी में
....
बुझ गये दिये जले थे जो पलकों में कभी
टूटते रहे   मेरे   एहसास  ज़िन्दगी में
...
उड़ गये पत्ते शाख से टूट कर यहाँ वहाँ
ठूठ  खड़ा  निहार रहा उदास ज़िन्दगी में
...
खो गये जज़्बात है  जीवन आधा अधूरा
जी रहे लेकर अनबुझी प्यास ज़िन्दगी में
....
रुकने को है साँस देख ली दुनिया यहाँ
नैन बिछाये मौत खड़ी पास ज़िन्दगी में
...

रेखा जोशी


सिलसिला प्यार का न टूटे अब

याद तेरी  सता रही है मुझे 
ज़िन्दगी अब बुला रही है मुझे 

चोट खाते  रहे  यहाँ साजन 
पीड़  दिल की जला  रही है मुझे 

छिप गये हो कहाँ जहाँ में तुम 
याद फिर आज आ रही है मुझे 
.. 
सिलसिला प्यार का न टूटे अब 
मौत जीना सिखा  रही है मुझे 
... 
आ मिला कर चलें कदम हम तुम 
चाह तेरी  लुभा रही है मुझे 

रेखा जोशी 

Monday 7 November 2016

हाइकु [प्रदूषण ]

.
काला गगन
धुआं धुआं शहर
जलें नयन
.....
प्रदूषण ये
लेगा जान सबकी
रूकती सांसे
....
जलते नैन
अखियों  में लालिमा
मिले न चैन
.....
आतिशबाज़ी
ज़हरीली हवायें
है धुंध छाई
......
पर्यावरण
स्वच्छ रहे धरती
वातावरण
.....
रेखा जोशी


Friday 4 November 2016

हाइकु

हाइकु

दिवाली आई 
लक्ष्मी गणेश पूजा 
खुशियाँ लाई 
.... 
रंगोली सजी 
दीप जगमगाया 
रोशनी हुई 
.... 
सूरज छष्ठी
है छठ महापर्व
मइया छठी
....
पूजा करती
सूरज आराधना
खुशिया आती
....
है भाई दूज
सजे माथे तिलक
रिश्ता विशेष
..
रेखा जोशी


यूँ तो नही किया है इन्कार ज़िन्दगी से

यूँ तो नही किया है इन्कार ज़िन्दगी से
हमने किया सजन अब इकरार ज़िन्दगी से
शिकवा नही शिकायत भी तो नही हमें अब
तुम जो मिले मिला हम को प्यार ज़िन्दगी से
रेखा जोशी

हद से ज्यादा सुन्दर उसने बनाई यह दुनिया

हद से ज्यादा सुन्दर उसने बनाई यह दुनिया
विभिन्न रंगों से फिर उसने सजाई यह दुनिया
भरे क्यों फिर उसमें उसने ख़ुशी और गम के रँग
हर किसी को उसकी नज़र से दिखाई यह दुनिया
रेखा जोशी

Monday 31 October 2016

एक पैग़ाम वीर जवानों के नाम

एक पैग़ाम वीर जवानों के नाम 
उरी में आतंकी हमले के बाद भारत के देशवासियों का खून खौल उठा था ,सोये हुए सैनिको को दरिंदों ने मार  दिया ,उन शहीदों की शहादत पर भारत की ओर  से सर्जिकल स्ट्राइक ने भारतवासियों का ही नहीं ,पूरे सैन्य बल का मनोबल  बढ़ाया।
 देश की सुरक्षा के लिए सीमा पर तैनात सिपाहियों की वीरता पर आज हम सब देशवासियों को गर्व है ,हम सब सुरक्षित हैं तो उन वीर जवानों के कारण ,यह पैगाम है उन वीरों के नाम  जो अपने घरों से दूर हम सब की रक्षा के लिए सीमा पर तैनात है ,''हम जानते है ,हर एक सिपाही अपनी मातृ भूमि पर मिटने के लिए सौ दुश्मन सिपाहियों के बराबर है ,उनके देश भक्ति के इस जज़्बे को हम सब सलाम करते है । 
यह हम सबके लिए बहुत शर्म की बात हैकि विभिन्न राजनीतिक पार्टियां इस पर राजनीति कर रहीं है ।यह वक्त है कि हम सब एकजुट हो कर अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाएं ताकि वह वीरता और बहादुरी से दुश्मन के छक्के छुड़ा कर  देश की सुरक्षा के लिए जी जान की बाजी लगा सकें ।

भारत माता की जय ,जय हिन्द 

रेखा जोशी 

नमन कर शहीदों के नाम इक दीप जलायें

आओ   हम सब ऐसी दिवाली आज मनायें
याद  करें  सीमा  पर जिन्होंने प्राण गवायें
मर मिटे सिपाही जो अपने देश की खातिर
नमन  कर शहीदों के नाम इक दीप जलायें

रेखा जोशी 

प्रेम के दीपक के जलने से उजियारे हुए

जीवन में जब  भी कभी  अपने न हमारे हुए
टूट  जाता  दिल  फिर  तो  दर्द ही सहारे हुए  
रूकती नही कभी भी ज़िंदगी किसी के बिना
प्रेम का इक  दीप  जलाने   से  उजियारे हुए
 
रेखा जोशी 

Wednesday 26 October 2016

माटी के खूबसूरत दीये

जगमगायें गे
माटी के खूबसूरत दीये
दीपावली की रात
और
जगमगाये गा
पूरा हिदुस्तान
दीपावली की रात

अब के बरस
सजाये गी लक्ष्मी माँ
घर गरीब का
पूरे होंगे अरमान
हमारी लाडली के
देगी दुश्मन को मात
सोंधी माटी देश की
जगमगाये गा
पूरा हिदुस्तान
दीपावली की रात
….
लेते प्रण आज
हम सब भारतवासी
रौशन करेंगे अपना घर
और
जगमगायें गे
माटी के खूबसूरत दीये
दीपावली की रात
और
जगमगाये गा
पूरा हिदुस्तान
दीपावली की रात

रेखा जोशी

दूरियाँ नज़दीक लाये रेलगाड़ी

छुक छुक छुक चलती जाये रेलगाड़ी
दूरियाँ     नज़दीक    लाये    रेलगाड़ी
आये  जायें  भीड़ भड़कम  में फिर भी
सबके    मन   को    हर्षाये   रेलगाड़ी

रेखा जोशी

खिलती धूप सी तुम्हारी मुस्कुराहट

जलने   से  दीपक  रौशनी  हो  जैसे
रात  में   बिखरती  चांदनी  हो  जैसे
खिलती धूप सी तुम्हारी मुस्कुराहट
शीतल  पवन  सी  सुहावनी हो जैसे
रेखा जोशी


Tuesday 25 October 2016

खिली है धूप आंगन में हमारे अब

सजन मिल आशियाना अब बसाना है
हमें   तो  प्यार  तुमसे  ही  निभाना है 
खिली  है  धूप  आंगन  में  हमारे अब 
मिली है ज़िन्दगी तो  मुस्कुरायें  अब 

रेखा जोशी 

अँधेरा / उजाला

अँधेरा 

काली रात थी सभी  ओर तम घनेरा 
दिनकर के आगमन से होता  सवेरा 
आओ मिल इक दीप प्रेम का रोशन करें 
प्रेम  से  फैले  उजाला  मिटे  अँधेरा 
.... 
उजाला 

अकेले  मत   बैठो   अँधेरे  में  तुम
खोल कर खिड़की देखो नज़ारे तुम
पट  खुलते  ही फैला  देk
जीवन  में  निहारो अब बहारे तुम

रेखा जोशी 

Monday 24 October 2016

तमसो मा ज्योतिर्गमय [पूर्व प्रकाशित रचना ]

तमसो मा ज्योतिर्गमय

मेरे पड़ोस में एक बहुत ही बुज़ुर्ग महिला रहती है ,उम्र लगभग अस्सी वर्ष होगी ,बहुत ही सुलझी हुई ,मैने न तो आज तक उन्हें किसी से लड़ते झगड़ते देखा  और न ही कभी किसी की चुगली या बुराई करते हुए सुना है ,हां उन्हें अक्सर पुस्तकों में खोये हुए अवश्य देखा है| गर्मियों के लम्बे दिनों की शुरुआत हो चुकी थी ,चिलचिलाती धूप में घर से बाहर निकलना मुश्किल सा हो गया था ,लेकिन एक दिन,भरी दोपहर के समय मै उनके घर गई और उनके यहाँ मैने एक छोटा सा  सुसज्जित  पुस्तकालय देखा,जिसमे करीने से रखी हुई अनेक पुस्तकें थी   |उस अमूल्य निधि को देखते ही मेरे तन मन में प्रसन्नता की एक लहर दौड़ने लगी ,''आंटी आपके पास तो बहुत सी पुस्तके है ,क्या आपने यह सारी पढ़ रखी है,''मेरे  पूछने पर उन्होंने कहा,''नही बेटा ,मुझे पढने का शौंक है ,जहां से भी मुझे कोई अच्छी पुस्तक मिलती है मै खरीद लेती हूँ और जब भी मुझे समय मिलता है ,मै उसे पढ़ लेती हूँ ,पुस्तके पढने की तो कोई उम्र नही होती न ,दिल भी लगा रहता है और कुछ न कुछ नया सीखने को भी मिलता  है ,हम बाते कर ही रहे थे कि उनकी  बीस वर्षीय पोती हाथ में मुंशी प्रेमचन्द का उपन्यास' सेवा सदन' लिए हमारे बीच आ खड़ी हुई ,दादी क्या आपने यह पढ़ा है ?आपसी रिश्तों में उलझती भावनाओं को कितने अच्छे से लिखा है मुंशी जी ने |आंटी जी और उनकी पोती में पुस्तकों को पढ़ने के इस जज़्बात को देख बहुत अच्छा लगा  |

मुझे महात्मा गांधी की  लिखी पंक्तियाँ याद आ गयी ,'' अच्छी पुस्तके मन के लिए साबुन का काम करती है ,''हमारा आचरण तो शुद्ध होता ही है ,हमारे चरित्र का भी निर्माण होने लगता है ,कोरा उपदेश या प्रवचन किसी को इतना प्रभावित नही कर पाते जितना अध्ययन या मनन करने से हम प्रभावित होते है | अच्छी पुस्तकों के पास होने से हमें अपने प्रिय मित्रों के साथ न रहने की कमी नही खटकती |जितना हम अध्ययन करते है ,उतनी ही अधिक हमें उसकी विशेषताओं के बारे जानकारी मिलती है | हमारे ज्ञानवर्धन के साथ साथ अध्ययन से हमारा  मनोरंजन भी होता है |हमारे चहुंमुखी विकास और मानसिक क्षितिज के विस्तार के लिए अच्छी  पुस्तकों ,समाचार पत्र आदि का बहुत महत्वपूर्ण  योगदान है |ज्ञान की देवी सरस्वती की सच्ची आराधना ,उपासना ही हमे अज्ञान से ज्ञान की ओर ले कर जाती है |हमारी भारतीय संस्कृति के मूल धरोहर , एक उपनिषिद से लिए गए  मंत्र  ,''तमसो मा ज्योतिर्गमय   '',अर्थात हे प्रभु हमे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो  | इस समय मै अपनी पड़ोसन आंटी जी के घर के प्रकाश पुँज रूपी पुस्तकालय में खड़ी पुस्तको की उस अमूल्य निधि में से पुस्तक रूपी अनमोल रत्न की  खोज में लगी हुई थी ताकि गर्मियों की लम्बी दोपहर में मै  भी अपने घर पर बैठ कर आराम से उस अनमोल रत्न के प्रकाश से  अपनी बुद्धि को प्रकाशित कर सकूं |

रेखा जोशी

Saturday 22 October 2016

साथी गये हमारे दूर ,हमें गये साजन अब भूल

मेरे  पिया गये परदेस,  बीच रास्ते में हमें छोड़
देकर गये जिया में पीर  ,सजन दिल को हमारे  तोड़
.....
साथी गये हमारे दूर ,हमें गये साजन अब भूल
लिये सुगन्ध प्रेम की संग ,पथ में रहे  शूल ही शूल

रेखा जोशी 

Wednesday 19 October 2016

मित्रों को करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनायें

सभी मित्रों को करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनायें

जीवन की राहों में ले हाथों में हाथ
साजन अब हम चल रहे दोनों साथ साथ

अधूरे  है हम  तुम बिन सुन साथी  मेरे
आओ जियें जीवन का हर पल साथ साथ

हर्षित हुआ  मन देख  मुस्कुराहट तेरी
खिलखिलाते रहें दोनों सदा  साथ साथ

आये कोई मुश्किल कभी जीवन पथ पर
सुलझा लेंगे  मिल कर दोनों साथ साथ

तुमसे बंधी हूँ मै  साथी यह मान ले
निभायें गे इस बंधन की हम साथ साथ

छोड़ न जाना तुम कभी राह में अकेले
अब जियेंगे और मरेंगे हम साथ साथ

रेखा जोशी

Sunday 16 October 2016

है बहाया है खून वीरों ने हम सब करें उनको प्रणाम

आतँकवाद दुश्मन हमारा कर दें उसका काम तमाम
है  बहाया है खून वीरों ने हम सब करें उनको प्रणाम
बहुत  खेली  खून  की होली अब पाठ पढाना है उन्हें
जो  साथ  दे रहे  है  उनका   देते  उनको यह पैगाम

रेखा जोशी 







छल कपट हमसे क्यों किया तुमने

माना   अपना  तुम्हे   पिया  हमने
छल कपट हमसे क्यों किया तुमने
तोड़ा   दिल  और चल  दिये जनाब
धोखा   हमको   यहाँ   दिया  सबने

रेखा जोशी

Thursday 13 October 2016

आतँकवाद दुश्मन हमारा ,कर दें उसका काम तमाम



दुश्मन के नापाक इरादे, क्रोधित भारत का आवाम 
कफन ओढ़ कर सो रहे कई, बात अब यह हो गई आम
.....
है राजनीति करते अनेक ,सिपाहियों  के बलिदान पर
बहाया है खून वीरों ने ,यह  घर में  करते   आराम
.....
सीमा पर जाबाज़ सिपाही,है लड़ने को सब तैयार
जान की बाजी लगाते वो ,हम सब करें उनको  प्रणाम
....
मानवता का दुश्मन है वह ,मारते वह निर्दोषों को
आतँकवाद  दुश्मन हमारा ,कर दें  उसका  काम तमाम
....
बहुत खेली खून की होली ,अब  पाठ उन्हें भी  पढाना
है साथ दे रहे  जो उनका ,देते अब  उनको  पैगाम

रेखा जोशी

गुजर जाता है दिन तो मगर शाम को सजन

सुबह शाम हम तुमको याद किया करते है
तेरे ही सपनों में हम खोये रहते है
गुजर जाता है दिन तो मगर शाम को सजन
संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते है
रेखा जोशी

Wednesday 12 October 2016

हे राम आओ संहार रावण का करने

सदियों पहले
रावण को मारा राम ने
वह तो जिंदाहो रहा
 बार बार मर के
कभी  पकड़ता निर्भया
कभी गुड़िया
रावण ने डाले 
है जगह जगह पर डेरे
है रूप अनेक
बदल  शोषण  कर रहा
फेंकता तेज़ाब कभी
इज्ज़त  हर रहा
चीख रही सीता
आंसू भर नैनो में 
हे राम आओ 
संहार रावण का करने

रेखा जोशी 

बन आग टूट पड़े करें बरबाद दुश्मन को



अपनी   अपनी  बोल  रहे  होकर  सब   बेहाल
आओ मिलकर हम सभी बदले वतन का हाल
बन   आग  टूट  पड़े  करें  बरबाद  दुश्मन  को
है   काफी   इक   चिंगारी  जलाने  को  मशाल

रेखा जोशी

Tuesday 11 October 2016

ज्ञान रहता जहाँ पर फूल महकते है वहाँ पर

हे  माँ  सरस्वती  वीणावादिनी हमें  ज्ञान  दो 
हाथ जोड़ शीश नवायें  ज्ञान  का हमें  दान दो 
ज्ञान रहता जहाँ पर फूल महकते है  वहाँ पर
हे  माँ शारदे  आज ज्ञान  का  हमें वरदान दो

रेखा जोशी 

Monday 10 October 2016

ज्ञान की तू देवी

हे
माता
शारदे
सरस्वती
वीणावादिनी
ज्ञान की तू देवी
नमन   हम  करें
....
माँ
अम्बे
भवानी
जगदम्बे
सिंह सवारी
असुर सँहारे
चुनरी लाल ओढ़े

रेखा जोशी





Sunday 9 October 2016

अबला से सबला तक

अबला से सबला तक 

हमारे धर्म में नारी का स्थान सर्वोतम रखा गया है। नवरात्रे हो या दुर्गा पूजा ,नारी सशक्तिकरण तो हमारे धर्म का आधार है । अर्द्धनारीश्वर की पूजा का अर्थ यही दर्शाता है कि ईश्वर भी नारी के बिना आधा है ,अधूरा है।  वेदों के अनुसार भी ‘जहाँ नारी की पूजा होती है ‘ वहाँ देवता वास करते है परन्तु इसी धरती पर नारी के सम्मान को ताक पर रख उसे हर पल अपमानित किया जाता है । इस पुरुष प्रधान समाज में भी आज की नारी अपनी एक अलग पहचान बनाने में संघर्षरत है । जहाँ बेबस ,बेचारी अबला नारी आज सबला बन हर क्षेत्र में पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही है वहीं अपने ही परिवार में उसे आज भी यथा योग्य स्थान नहीं मिल पाया ,कभी माँ बन कभी बेटी तो कभी पत्नी या बहन हर रिश्ते को बखूबी निभाते हुए भी वह आज भी वही बेबस बेचारी अबला नारी ही है । 
शिव और शक्ति के स्वरूप पति पत्नी सृष्टि का सृजन करते है फिर नारी क्यों मजबूर और असहाय हो जाती है और आखों में आंसू लिए निकल पड़ती है अपनी ही कोख में पल रही नन्ही सी जान को मौत देने ।  क्यों नहीं हमारा सिर शर्म से झुक जाता ?कौन दोषी है ,नारी या यह समाज?क्यों कमज़ोर पड़ जाती है नारी,अधूरी है ईश्वर की पूजा अगर यह पाप हम नहीं रोक पाते ।  अधूरा है नारी सशक्तिकरण जब तक भ्रूण हत्यायों का यह सिलसिला हम समाप्त नहीं कर पाते । सही मायने में नारी अबला से सबला तभी बन पाए गी जब वह अपनी जिंदगी के निर्णय स्वयम कर पाये गी। 

रेखा जोशी 

Friday 7 October 2016

मांग रहे जो सबूत होता देख कर अचम्भा

अपनों  से  दूर वह  मरते  देश की आन पर
वीर  सिपाही जो मर मिटे देश की शान पर
मांग रहे जो  सबूत होता देख कर अचम्भा
सेक  रहे वह  रोटियाँ  शहीदों  की जान पर

रेखा जोशी



खिला आज मौसम रँगी है बहारे

खिला आज मौसम रँगी है बहारे 
बुलायें हमें आज दिलकश नज़ारे 
चलो हाथ में हाथ लेकर चलें हम 
कहीं दूर अब प्यार साजन पुकारे 

रेखा जोशी 


Thursday 6 October 2016

दुख हम सब के मैया हरती, जय जय हे जगदम्बे

सार छंद पर आधारित ''गीतिका ''

इस दुनिया की मैया तुम ही,  जय जय हे जगदम्बे
करते हम सब भक्ति तेरी, जय जय हे जगदम्बे
....
है  यश गाते माता तेरा  ,तारे  गौरी  मैया
पूजा  हम सब करते जननी , जय जय  हे जगदम्बे
....
अर्पित करती फूलों को मै ,वारु तन मन अपना
दुख हम सब के मैया हरती,  जय जय  हे जगदम्बे
....
खुशियाँ जीवन में लाती तुम ,  तुम हो जीवन दाती
झोली  सबकी मैया भरती , जय जय  हे जगदम्बे
.....
जयकारा ज्योता वाली माँ ,आये तेरे दर पर
ऊँचे  पर्वत  पर तुम  रहती ,जय जय  हे जगदम्बे

रेखा जोशी

मिल जाये जो यहाँ मनचाहा प्यार ज़िन्दगी में

किसी को यहाँ  ज़िन्दगी की इनायत नही मिलती 
दिल  में  ना  हो ज़ुर्रत तो  मोहब्बत  नहीं मिलती 
मिल  जाये  जो यहाँ  मनचाहा  प्यार ज़िन्दगी में 
हर किसी को  जहाँ  में ऐसी किस्मत नहीं मिलती 

रेखा जोशी 

Wednesday 5 October 2016

जग की हो शक्ति हो तुम माँ जगदम्बे


जग की हो शक्ति हो तुम माँ जगदम्बे 
वर दो शक्ति का दो तुम माँ जगदम्बे
नाम तेरा ले ध्याय हम सब यहाँ
मेरी परम भक्ति हो तुम माँ अम्बे


रेखा जोशी 

भीगा आँचल भरती सिसकियाँ

चेहरा कहता  दिल की बतियाँ 
नोचते  कौवे   रोती  अखियाँ 
चेहरा  वही  और  तड़प वही 
भीगा आँचल भरती सिसकियाँ 

रेखा जोशी 

Saturday 1 October 2016

बहरे- मुतदारिक मुसम्मन सालिम
अर्कान= फ़ाइलुन, फ़ाइलुन, फ़ाइलुन, फ़ाइलुन
तक़्तीअ= 212, 212, 212, 212 पर...
हाल दिल का सजन अब कहें  कम से कम
बात  दिल  की  न दिल में रहे कम से कम 
.....
चाँद आया उतर अब गगन में पिया
चांदनी रात में हम मिलें  कम से कम
....
साथ तेरा मिला ज़िन्दगी मिल गई
ज़िन्दगी ने मिलाया हमें कम से कम
....
यह नज़ारें सजन अब  पुकारे हमें
चाँद तारे सजे आ  चलें कम से कम
....
अब  बुलाते हमें  फूल बगिया सजन
लूट ले ज़िन्दगी के मज़े कम से कम
....
यह हसीं वादियाँ है  बुलाती   हमें
आज आओ सनम हम मिले कम से कम

रेखा जोशी


Friday 30 September 2016

पाक को हमने सबक अब है सिखाना

पाक को हमने सबक अब है सिखाना
आज भारत को जहाँ में है उठाना
.
साँस दुश्मन को मिटा कर आज लेंगे
साथ मिलकर है बुराई को मिटाना
.
मिट गये है देश पर लाखो सिपाही
आज कुर्बानी ज़माने को बताना
,
देश के दुश्मन छिपें घर आज अपने
पाठ उनको ढूँढ कर अब है पढ़ाना
.
प्यार से मिलकर रहें आपस सदा हम
आज मिलकर देश को आगे बढ़ाना
रेखा जोशी

ज़िन्दगी की कसम ज़िन्दगी मिल गई

देख  कर आप को यह ज़ुबाँ सिल गई  
मुस्कुराती हुई  हर  कली  खिल  गई 
पा  लिया  प्यार हमने  पिया का यहाँ 
ज़िन्दगी की कसम ज़िन्दगी मिल गई 

रेखा जोशी 


यूँ तो लाखों मिले तुम सी स्नेहिल नहीं मिली

ढूँढा  हर  गली प्रेम  भरी महफ़िल नहीं  मिली
यूँ  तो लाखों मिले तुम सी स्नेहिल नहीं  मिली
डगर  डगर  डोलते  रहे  नहीं  मिले  तुम   हमे
 है  राहें बहुत मिली मगर  मंज़िल  नहीं  मिली

रेखा जोशी 

Thursday 29 September 2016

न तुम रूठना प्यार अपना दिखा कर

कहाँ ज़िन्दगी तुम चली हो  बुलाकर 
नहीं हम करेंगे गिला दिल दुखा कर 
.... 
दिखाते नहीं हाल दिल का किसी को 
सुनायें  किसे बात  अपनी  बता कर 
...... 
खिले फूल उपवन सजा आज अँगना 
गई ले सजन रंग  तितली चुरा कर 
.... 
चली  है हवा  आज  मौसम  सुहाना 
कहाँ  ले  गई  साथ  आंधी  उड़ा कर
... 
हमें  छोड़ जाना नहीं तोड़ना दिल 
न तुम रूठना प्यार अपना  दिखा कर 

रेखा जोशी 


Wednesday 28 September 2016

भगोड़ों ने सिपाही मार डाले रात में आ कर


1222 1222 1222 1222

छुरा  घोंपा  लगाई  आग  नफरत  की  पड़ोसी ने 
निहत्थे   वीर   मारे  वो  शरारत   की  पड़ोसी  ने 
भगोड़ों ने   सिपाही  मार  डाले  रात   में  आ कर 
जमीं  रोयी  गगन रोया जो' हरकत की पड़ोसी ने

रेखा जोशी 

सजा दिये पुष्प मुझ पर

सँवर गया  जीवन  यहाँ
रहा  अब  ठूठ  बन  यहाँ
सजा दिये पुष्प मुझ पर  
महकाते  कण कण यहाँ

रेखा जोशी 

ज्योति सदा जलती रहे माँ शारदे

दीप ज्ञान  का जला   हे  माँ शारदे
ज्योति  सदा जलती रहे माँ शारदे 
फैले  जगत  में उजियारा ज्ञान से
शत शत नमन करें तुझे माँ शारदे

रेखा जोशी 

Tuesday 27 September 2016

करें इंतज़ार सब हमारे घर लौटने का

परिवार   हमारी   जान   हमें   देता    सहारा 
थामते  सब  अपने  जब जहाँ  करता  किनारा 
करें   इंतज़ार  सब  हमारे  घर  लौटने  का
गले मिल सभी से हमें  सकून मिलता प्यारा

रेखा जोशी

जमीं रोयी गगन रोया जो' हरकत की पड़ोसी ने

पड़ोसी  ने  यहाँ  घोंटा  गला  इंसानियत   का है
किया नापाक उसने  कर्म वह खोटी नियत का है
जमीं रोयी गगन रोया जो' हरकत की पड़ोसी ने
दिया  है  आज  उसने  दर्द  वह  हैवानियत का है

रेखा जोशी 


घूँघट में शरमाये नैना , नैनो में दीदार लिखें

सावन बरसा आँगन मेरे , चलती मस्त बयार लिखें
मिलजुल कर अब रहना सीखें प्यारी इक बौछार लिखें
….
भीगा मेरा तन मन सारा ,भीगी मलमल की चुनरी
घूँघट में  शरमाये नैना ,  नैनो में दीदार लिखें

झूला झूलें मिल कर सखियाँ ,पेड़ों पर है हरियाली
तक धिन नाचें मोरा मनुवा ,है चहुँ ओर बहार लिखें
….
गरजे बदरा धड़के जियरा ,घर आओ सजना मोरे
बीता जाये सावन साजन ,अँगना अपने प्यार लिखें
….
नैना सूनें राह निहारें ,देखूँ पथ कब से तेरा
आजा रे साँवरिया मेरे ,मिल कर नव संसार लिखें

रेखा जोशी