अँधेरा
काली रात थी सभी ओर तम घनेरा
दिनकर के आगमन से होता सवेरा
आओ मिल इक दीप प्रेम का रोशन करें
प्रेम से फैले उजाला मिटे अँधेरा
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उजाला
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उजाला
अकेले मत बैठो अँधेरे में तुम
खोल कर खिड़की देखो नज़ारे तुम
पट खुलते ही फैला देk
जीवन में निहारो अब बहारे तुम
रेखा जोशी
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